ऑपरेशन लोटस जब तब सुर्खियों में आता ही रहता है. 2018 में कर्नाटक चुनाव के बाद ऑपरेशन लोटस की खूब चर्चा रही - और उसके बाद भी कई बार इसका जिक्र आया. कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव हुए - और कम से कम दो राज्यों में तो ऐसी संभावनाएं बन भी रही थीं, लेकिन तनावपूर्ण शांति बनी रही और वक्त गुजर गया. चर्चाएं तो रहीं कि कोशिशें जारी हैं, लेकिन कर्नाटक जैसा दुस्साहस नहीं देखने को मिला.
हैरानी की बात ये है कि लोक सभा चुनाव के बीच पश्चिम बंगाल और दिल्ली से विधायकों की सौदेबाजी की चर्चा शुरू हो गयी है. आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने तो बीजेपी ज्वाइन कर इस बात के सबूत दे दिये हैं कि ऐसी चर्चाएं सिर्फ धुआं नहीं हैं, बल्कि अंदर एक आग भी धधक रही है.
केंद्र में अगली सरकार जिस किसी भी राजनीति दल की बने, ये तो साफ है कि 23 मई के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. सवाल है कि क्या कुछ विधायकों के हेर फेर से सत्ता परिवर्तन की कवायद अभी से शुरू हो गयी है क्या?
कितने आप विधायक खुली हवा में सांस लेने वाले हैं?
दिल्ली में आप के पास इतने विधायक हैं कि दो-चार छोड़ भी दें तो बहुमत वाली सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. दिल्ली में 12 मई को वोट डाले जाने हैं और उससे पहले आप विधायक का बीजेपी ज्वाइन करना आप की चुनावी सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता. ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से दो दो हाथ में व्यस्थ थे और बीजेपी ने खेल कर दिया.
दिल्ली के गांधी नगर से आप के विधायक अनिल बाजपेयी ने केंद्रीय मंत्री विजय गोयल की मौजूदगी में भगवा धारण कर लिया है. ऐसा लगता है विजय गोयल से थोड़ी देर हो गयी. जिस तरह मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी को कोर्ट में घसीट कर अपना टिकट बचा लिया, उसी तरह ये काम पहले करके विजय गोयल भी अपने लिए एक टिकट का इंतजाम कर सकते थे.
कुछ दिन पहले जब सरहद पर युद्ध जैसे हालात हो गये थे, जो भी नेता बीजेपी ज्वाइन करता वो यही कहा...
ऑपरेशन लोटस जब तब सुर्खियों में आता ही रहता है. 2018 में कर्नाटक चुनाव के बाद ऑपरेशन लोटस की खूब चर्चा रही - और उसके बाद भी कई बार इसका जिक्र आया. कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभाओं के चुनाव हुए - और कम से कम दो राज्यों में तो ऐसी संभावनाएं बन भी रही थीं, लेकिन तनावपूर्ण शांति बनी रही और वक्त गुजर गया. चर्चाएं तो रहीं कि कोशिशें जारी हैं, लेकिन कर्नाटक जैसा दुस्साहस नहीं देखने को मिला.
हैरानी की बात ये है कि लोक सभा चुनाव के बीच पश्चिम बंगाल और दिल्ली से विधायकों की सौदेबाजी की चर्चा शुरू हो गयी है. आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने तो बीजेपी ज्वाइन कर इस बात के सबूत दे दिये हैं कि ऐसी चर्चाएं सिर्फ धुआं नहीं हैं, बल्कि अंदर एक आग भी धधक रही है.
केंद्र में अगली सरकार जिस किसी भी राजनीति दल की बने, ये तो साफ है कि 23 मई के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. सवाल है कि क्या कुछ विधायकों के हेर फेर से सत्ता परिवर्तन की कवायद अभी से शुरू हो गयी है क्या?
कितने आप विधायक खुली हवा में सांस लेने वाले हैं?
दिल्ली में आप के पास इतने विधायक हैं कि दो-चार छोड़ भी दें तो बहुमत वाली सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. दिल्ली में 12 मई को वोट डाले जाने हैं और उससे पहले आप विधायक का बीजेपी ज्वाइन करना आप की चुनावी सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता. ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से दो दो हाथ में व्यस्थ थे और बीजेपी ने खेल कर दिया.
दिल्ली के गांधी नगर से आप के विधायक अनिल बाजपेयी ने केंद्रीय मंत्री विजय गोयल की मौजूदगी में भगवा धारण कर लिया है. ऐसा लगता है विजय गोयल से थोड़ी देर हो गयी. जिस तरह मीनाक्षी लेखी ने राहुल गांधी को कोर्ट में घसीट कर अपना टिकट बचा लिया, उसी तरह ये काम पहले करके विजय गोयल भी अपने लिए एक टिकट का इंतजाम कर सकते थे.
कुछ दिन पहले जब सरहद पर युद्ध जैसे हालात हो गये थे, जो भी नेता बीजेपी ज्वाइन करता वो यही कहा करता कि राष्ट्रवाद के मुद्दे पर मतभेद के कारण उनसे अपनी पार्टी छोड़ बीजेपी में आने का फैसला किया. अनिल बाजपेयी भी अगर पहले बीजेपी में आये होते तो मीडिया के सामने वही स्क्रिप्ट पढ़नी पड़ती - लेकिन वो फिलहाल नयी इबारत बांच रहे हैं. बाजपेयी का आरोप है कि अरविंद केजरीवाल अपशब्द कह कर विधायकों को अपमानित करते हैं. अनिल बाजपेयी की बातों को बागी आप विधायक अलका लांबा भी सही बता रही हैं. अलका लांबा ने ऐसा तब भी कहा था जब राजीव गांधी का भारत रत्न वापस लेने को लेकर विवाद हुआ था.
अनिल बाजपेयी का ये भी आरोप है कि आम आदमी पार्टी के किसी भी आदेश पर बगैर पढ़ाये विधायकों से दस्तखत ले लिये जाते हैं. अनिल बाजपेयी का कहना है कि केजरीवाल की हिटलरशाली के कारण कई और भी विधायक आप में घुटन महसूस कर रहे हैं. वैसे अनिल बाजपेयी आप से बीजेपी में शामिल होने वाले पहले विधायक नहीं है, बल्कि दूसरे हैं.
अनिल बाजपेयी से पहले 2017 में बवाना से तत्कालीन आप विधायक वेद प्रकाश ने आप छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन कर लिया. ये तब की बात है जब दिल्ली में एमसीडी के चुनाव चल रहे थे. एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने आप के छक्के छुड़ा दिये - और उसके बाद वेद प्रकाश के इस्तीफे की वजह से बवाना में उपचुनाव हुए. वेद प्रकाश बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन आप ने दूसरा उम्मीदवार खड़ा कर बवाना की सीट पर कब्जा बरकरार रखा.
वैसे तो आप विधायक कपिल मिश्रा भी काफी दिनों से बागी बने हुए हैं, लेकिन वो पार्टी में रहते हुए ही बीजेपी का नारा बुलंद करते रहते हैं. कपिल मिश्रा भी कुमार विश्वास खेमे के माने जाते हैं जो अरविंद केजरीवाल पर हमले का कोई भी मौका नहीं गंवाते.
हाल ही की तो बात है, आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने उसके 7 विधायकों को 10-10 करोड़ रुपये देकर खरीदने की कोशिश की थी. तभी विजय गोयल ने दावा ठोक दिया कि 7 नहीं 14 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं - इसे लेकर ट्विटर पर अरविंद केजरीवाल और विजय गोयल में तीखी बहस भी हुई.
ट्विटर पर तकरार
आप और बीजेपी की इस छीनाझपटी में कांग्रेस ने भी हमला बोल दिया है. कांग्रेस प्रवक्ता जितेंद्र कुमार कोछड़ का कहना है कि एक साजिश के तहत आप विधायक को अरविंद केजरीवाल की सहमति से बीजेपी में ज्वाइन कराया गया है - और एक-दो और विधायक ऐसा कर सकते हैं ताकि बीजेपी को फायदा और कांग्रेस को नुकसान हो.
आप नेता अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि बीजेपी विधायकों की खरीद-फरोख्त कर दिल्ली सरकार गिराने की कोशिश कर रही है. केजरीवाल से पहले उनके साथी मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया था कि बीजेपी उनके सात विधायकों को करोड़ों रुपये देकर खरीदना चाहती है. फिर क्या था, ट्विटर पर विजय गोयल और अरविंद केजरीवाल की तकरार शुरू हो गयी.
विजय गोयल के साथ साथ अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घसीट लिया, जिसके बाद वो एक एक नाम लेकर आप नेता से सवाल पूछने लगे.
क्या ये ऑपरेशन लोटस का विस्तार है?
पश्चिम बंगाल में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, '23 मई को लोकसभा चुनावों के नतीजे के बाद हर जगह बीजेपी ही नजर आएगी. दीदी! आपके तमाम विधायक आपका साथ छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लेंगे. आज भी आपके 40 विधायक हमारे संपर्क में हैं.'
ये सुनते ही तृणमूल कांग्रेस नेता बिफर पड़े. टीएमसी नेता डेरेक-ओ-ब्रायन ने तो बीजेपी पर विधायकों के खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए चुनाव आयोग में शिकायत भी दर्ज करा दी है.
विधायकों की सौदेबाजी की ये चर्चा अभी सिर्फ दो राज्यों तक ही सीमित नजर आ रही है - दिल्ली और पश्चिम बंगाल. आगे क्या इरादा है? क्या बीजेपी के ऑपरेशन लोटस का विस्तार है जो कर्नाटक से बाहर निकल पड़ा है. ऑपरेशन लोटस के आविष्कारक कर्नाटक बीजेपी के नेता बीएस येदियुरप्पा माने जाते हैं. जब पहली बार येदियुरप्पा ने गठबंधन की सरकार बनायी तो वो अल्पमत में रही - लेकिन इसके जरिये दूसरे दलों के विधायकों को तोड़ कर बहुमत हासिल कर लिया. इस ऑपरेशन में पहले दूसरे दलों से विधायकों को पार्टी में शामिल कराया जाता है. जब वे इस्तीफा दे देते हैं तो उपचुनाव होता है और दोबारा चुनाव जीतकर वो बीजेपी के विधायक बन जाते हैं. गुजरात की भी एक विधानसभा सीट पर बीजेपी ने ऐसा ही किया था. जसदण से कांग्रेस विधायक को बीजेपी ने पार्टी में शामिल कर मंत्री बना दिया - और उपचुनाव जीत कर सूबे में 100 का आंकड़ा हासिल कर लिया. दिल्ली में बवाना में भी बीडेपी ने ऐसी ही कोशिश की थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल ने उसे नाकाम कर दिया था.
विधानसभा के चुनाव के बाद विधायकों के खरीद-फरोख्त की बातें तो सुनने को मिलती रहती हैं, लेकिन आम चुनाव के बीच ये सब हैरान करने वाला है. ये तो मालूम है कि यूपी की सात सीटों के साथ साथ बीजेपी की नजर पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित कई राज्यों में पांव जमाने की है - और वो उसी रणनीति पर काम भी कर रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह वैसे भी बीजेपी का स्वर्णकाल तभी मानेंगे जब पंचायत से पार्लियामेंट तक सिर्फ बीजेपी का ही बहुमत हो.
फिर तो दिल्ली और पश्चिम बंगाल का बीजेपी को तो 2018 में हारे हुए राज्यों में राजनीतिक विरोधी कांग्रेस की सरकार भी खटक ही रही होगी - और कोई दो राय नहीं कि बीजेपी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर भी ऐसी ही रणनीति पर काम कर रही हो. कांग्रेस की मुश्किल 23 मई तक ही नहीं उसके बाद कहीं ज्यादा बड़ी लगती है.
इन्हें भी पढ़ें :
राहुल गांधी को टारगेट कर केजरीवाल भी मदद तो मोदी की ही कर रहे हैं
दिल्ली में राहुल-केजरीवाल की 'आत्मघाती' लुकाछिपी
अरविंद केजरीवाल से खफा बनारसी, नाम दिया 'रणछोड़'
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.