खुले में शौच करने वालों को अक्सर ये नसीहत सुननी पड़ती थी कि वो देश की नाक कटाने वाले काम कर रहे हैं. अब इधर-उधर कचरा फैलाने वालों को भी ये कहा जाता है कि वह दुनिया में देश की नाक कटवा रहे हैं. दुनिया की नजरों में भारत की गलत तस्वीर बन रही है. यकीनन ये नाक कटाने वाले काम हैं, लेकिन दिल्ली की आबोहवा के जो हालात हो गए हैं, उसे क्या कहेंगे? क्या अब देश की नाक नहीं कट रही? अगर कट रही है तो जिम्मेदार कौन है? क्या इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है. ये बात न तो एक-दो बार की है, ना ही एक-दो दिन की. हर साल यही आलम होता है. दिवाली आते-आते आस-पास के राज्यों में जलाई जा रही पराली के धुएं (Delhi Pollution) से दिल्ली की हवा में जहर घुल जाता है. जो बची खुची कसर होती है वो दिवाली में पटाखे फोड़कर पूरी कर दी जाती है. फिर भी सांस लेने की कुछ संभावनाएं होती हैं, जिन्हें खत्म करने की जिम्मेदारी सड़क का ट्रैफिक और पूरे शहर में जहां-तहां हो रहे कंस्ट्रक्शन ले लेते हैं. तब जाकर दिल्ली की हवा जहरीली बनती है, लेकिन इससे ना तो दिल्ली सरकार की नाक कट रही है, ना ही केंद्र सरकार की. मासूमों के फेफड़े जरूर जहरीली हवा से काले पड़ते जा रहे हैं.
दिल्ली में लागू करनी पड़ी हेल्थ इमरजेंसी
दिल्ली में प्रदूषण (Delhi-NCR Pollution) इतना अधिक बढ़ चुका है कि हालात बेकाबू हो गए हैं. हवा में जहर सा घुल गया है. Air Quality Index यानी एक्यूआई (AQI) लेवल 500 से 700 के बीच पहुंच गया है. बता दें कि 300-400 के बीच का स्तर 'बहुत खराब' होता है और 400-500 का स्तर 'खतरनाक', जबकि यहां तो लेवल 500 पार कर गया है. ये देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ईपीसीए (Environment Pollution Prevention and Control) ने 5...
खुले में शौच करने वालों को अक्सर ये नसीहत सुननी पड़ती थी कि वो देश की नाक कटाने वाले काम कर रहे हैं. अब इधर-उधर कचरा फैलाने वालों को भी ये कहा जाता है कि वह दुनिया में देश की नाक कटवा रहे हैं. दुनिया की नजरों में भारत की गलत तस्वीर बन रही है. यकीनन ये नाक कटाने वाले काम हैं, लेकिन दिल्ली की आबोहवा के जो हालात हो गए हैं, उसे क्या कहेंगे? क्या अब देश की नाक नहीं कट रही? अगर कट रही है तो जिम्मेदार कौन है? क्या इसके लिए सरकार जिम्मेदार नहीं है. ये बात न तो एक-दो बार की है, ना ही एक-दो दिन की. हर साल यही आलम होता है. दिवाली आते-आते आस-पास के राज्यों में जलाई जा रही पराली के धुएं (Delhi Pollution) से दिल्ली की हवा में जहर घुल जाता है. जो बची खुची कसर होती है वो दिवाली में पटाखे फोड़कर पूरी कर दी जाती है. फिर भी सांस लेने की कुछ संभावनाएं होती हैं, जिन्हें खत्म करने की जिम्मेदारी सड़क का ट्रैफिक और पूरे शहर में जहां-तहां हो रहे कंस्ट्रक्शन ले लेते हैं. तब जाकर दिल्ली की हवा जहरीली बनती है, लेकिन इससे ना तो दिल्ली सरकार की नाक कट रही है, ना ही केंद्र सरकार की. मासूमों के फेफड़े जरूर जहरीली हवा से काले पड़ते जा रहे हैं.
दिल्ली में लागू करनी पड़ी हेल्थ इमरजेंसी
दिल्ली में प्रदूषण (Delhi-NCR Pollution) इतना अधिक बढ़ चुका है कि हालात बेकाबू हो गए हैं. हवा में जहर सा घुल गया है. Air Quality Index यानी एक्यूआई (AQI) लेवल 500 से 700 के बीच पहुंच गया है. बता दें कि 300-400 के बीच का स्तर 'बहुत खराब' होता है और 400-500 का स्तर 'खतरनाक', जबकि यहां तो लेवल 500 पार कर गया है. ये देखते हुए सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ईपीसीए (Environment Pollution Prevention and Control) ने 5 नवंबर तक हेल्थ इमरजेंसी लागू कर दी है. साथ ही, 5 नवंबर तक सभी स्कूल भी बंद रखने के आदेश दिए हैं. क्या ये नाक कटाने वाली बात नहीं है कि एक देश की राजधानी में हेल्थ इमरजेंसी लागू करनी पड़ गई है. एडवाइजरी जारी की गई है कि टहलने ना जाएं, बिना मतलब घर से बाहर ना निकलें, घर के खिड़की दरवाजे बंद रखें.
एंजेला मार्कल क्या सोचेंगी?
एक ओर दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी लागू करनी पड़ी है और उसी में जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्कल भारत दौरे पर आईं. हम कहीं विदेश जाते हैं तो वहां की खूबसूरती, सड़कों आदि का जिक्र अपने यारों-दोस्तों से जरूर करते हैं. जरा सोचिए, जब एंजेला मार्कल वापस जर्मनी जाकर अपने लोगों से क्या कह रही होंगी? क्या ये कि एयरपोर्ट पर पहुंचते ही अधिकारी मास्क लेकर उनके स्वागत के लिए पहुंच गए थे, क्योंकि दिल्ली की हवा खराब हो रही थी? या ये कहेंगी कि उनकी सुरक्षा में अधिकारियों ने कोई कमी नहीं की और दिल्ली लैंड होते ही उन्हें मास्क ऑफर कर दिया? मार्कल के साथ 3 कैबिनेट मंत्री, 9 जूनियर मिनिस्टर और सेक्रेटरी लेवल के अधिकारी हैं. क्या सोचेंगे वो दिल्ली को देखकर? क्या अब नाक नहीं कट रही?
मास्क लगाकर खिलाड़ी करते रहे प्रैक्टिस
राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण के बीच 3 नवंबर को भारत और बांग्लादेश के बीच टी-20 मैच खेला जाना है. बुधवार को बांग्लादेशी खिलाड़ी भारत पहुंच और गुरुवार को वह प्रैक्टिस के लिए अरुण जेटली स्टेडियम में उतरे. बता दें कि इसी स्टेडियम में तीन मैचों की टी-20 सीरीज होनी है. बांग्लादेश के खिलाड़ी मैच प्रैक्टिस के दौरान मास्क पहने हुए नजर आए. ऐसी ही तस्वीर दिसंबर 2017 में भी दिखी थी, जब श्रीलंका के खिलाड़ी मैदान पर मास्क पहने हुए मैच खेल रहे थे. ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हर बार ऐसा ही होता है. हर साल दिल्ली के यही हालात होते हैं, लेकिन इससे नाक नहीं कट रही. सरकार के इंतजाम नाकाफी हैं, ये खुद दिल्ली की हवा बता रही है.
लापरवाह सरकार ने तो प्रदूषण में बच्चे दौड़ा दिए
31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्मदिवस था, जिसे राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान मोदी सरकार ने रन फॉर यूनिटी का आयोजन किया. नेशनल स्टेडियम से खुद अमित शाह ने इस दौड़ को हरी झंडी दी. इस रन फॉर यूनिटी में सैकड़ों छात्र दौड़े, वो भी जहरीले धुएं के बीच, जब दिल्ली में प्रदूषण का स्तर (एक्यूआई) 500-700 के बीच पहुंच गया है. एक अन्य कार्यक्रम में पियूष गोयल ने भी रन फॉर यूनिटी के लिए हरी झंडी दी. ये सिर्फ नाक कटाने वाली बात नहीं है, बल्कि शर्मिंदा करने वाली बात भी है. जो मासूम देश का भविष्य हैं, उन्हीं को जहरीले धुएं में दौड़ने के लिए कहा गया, जबकि एडवाइजरी जारी की गई है कि टहलने भी ना जाएं.
प्रदूषण को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो गई है. केजरीवाल इसके लिए केंद्र सरकार को दोषी मान रहे हैं, क्योंकि केंद्र सरकार हरियाणा-पंजाब में जलने वाली पराली पर रोक नहीं लगा पा रही है. वहीं दूसरी ओर, राज्यसभा सांसद और भाजपा नेता विजय गोयल दिल्ली के प्रदूषण के खिलाफ पर्याप्त कदम ना उठाने की बात कहते हुए एक दिन के उपवास पर बैठे हैं. खैर, इस तरह की नौटंकी के पीछे का मकसद सब समझते हैं. फालतू के ड्रामे छोड़कर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर प्रदूषण से निपटना चाहिए था. पराली जलाने के खिलाफ कानून तो बना दिया, उसे लागू कौन करेगा? हर साल दिल्ली सर्दियां आते-आते गैस चैंबर बन जाती है, लेकिन सरकार के नाकाफी इंतजाम किसी काम नहीं आ पाते. सरकार को अब ये समझ लेना चाहिए कि दिल्ली की ऐसी दशा होना देश की नाक कटाने जैसा है.
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