(Farmer Protest) प्रशासन की बड़ी हार लगती है जब इस तरह से आंदोलन उग्र (Farmer Protest Violence) होते हैं. बैरिकेड लगाओ, फिर तुड़वाओ और फिर पानी डालो, मीडिया फ़ोटो खींचे, फिर अपना मज़ाक उड़वाओ.
क्या है ये अंग्रेज़ी हुकूमत? साइमन क्यों बन रहा है प्रशासन?
इतना हंगामा, इतनी पॉलिटिक्स एक ऐसे मुद्दे को लेकर हो रही है जो मुद्दा है ही नहीं. सब पढ़े लिखे हैं, सब जानते हैं हक़ीक़त. अब लम्बी चर्चा के बाद प्रशासन ने दिल्ली में घुसने की इजाज़त दे दी है. कर लो बात, क्या है समस्या बताओ? समस्या है या कंफ्यूजन है पहले ये तय कर लो. अच्छा कंफ्यूजन है या राजनीति है ज़रा ये सच बोल दो. साफ बात न करके सरकार मामले को लम्बा खींचकर ख़ुद विलन बनने पर आमादा क्यों रहती है? यही पहले CAA के दौरान हुआ! फिर दिल्ली दंगों में तीन दिन चुप्पी रही और अब किसान आंदोलन!
उधर राज्यसभा से कोई बिल पास होता है और इधर प्लानिंग स्टार्ट हो जाती है कि इसका प्रोटेस्ट किस कलर से करना है. पक्ष में बैठे इतने बड़े-बड़े चाणक्य सब कुछ समझबूझकर भी जाने क्यों ख़ुद की मिट्टी ख़राब करते रहते हैं. एक एक्शन होता है जिसमें बैरिकेड उठाकर यहाँ वहाँ फेंक दिए जाते हैं, पुलिस बल पर भीड़ टूट पड़ती है, दूसरा रिएक्शन होता है कि पुलिस वॉटर केनन चला देती है, लाठी से वापस खदेड़ देती है. दूसरे की उम्दा फोटोग्राफी होती है, अच्छे पोज़ लिए जाते हैं और फिर कार्टूनिस्ट्स भी अपनी कला और इमेजिनेशन से बढ़िया भावनाएं उबाल देते हैं.
एक 18 साल का कॉलेज गोइंग बालक न्यूज़ पढ़ने से पहले कार्टून्स देखता है. वो MSP समझने से पहले भगत सिंह की फोटो के साथ लगे स्लोगन्स को देख हाइपर होता है. वो भविष्य है देश का, किसान इस...
(Farmer Protest) प्रशासन की बड़ी हार लगती है जब इस तरह से आंदोलन उग्र (Farmer Protest Violence) होते हैं. बैरिकेड लगाओ, फिर तुड़वाओ और फिर पानी डालो, मीडिया फ़ोटो खींचे, फिर अपना मज़ाक उड़वाओ.
क्या है ये अंग्रेज़ी हुकूमत? साइमन क्यों बन रहा है प्रशासन?
इतना हंगामा, इतनी पॉलिटिक्स एक ऐसे मुद्दे को लेकर हो रही है जो मुद्दा है ही नहीं. सब पढ़े लिखे हैं, सब जानते हैं हक़ीक़त. अब लम्बी चर्चा के बाद प्रशासन ने दिल्ली में घुसने की इजाज़त दे दी है. कर लो बात, क्या है समस्या बताओ? समस्या है या कंफ्यूजन है पहले ये तय कर लो. अच्छा कंफ्यूजन है या राजनीति है ज़रा ये सच बोल दो. साफ बात न करके सरकार मामले को लम्बा खींचकर ख़ुद विलन बनने पर आमादा क्यों रहती है? यही पहले CAA के दौरान हुआ! फिर दिल्ली दंगों में तीन दिन चुप्पी रही और अब किसान आंदोलन!
उधर राज्यसभा से कोई बिल पास होता है और इधर प्लानिंग स्टार्ट हो जाती है कि इसका प्रोटेस्ट किस कलर से करना है. पक्ष में बैठे इतने बड़े-बड़े चाणक्य सब कुछ समझबूझकर भी जाने क्यों ख़ुद की मिट्टी ख़राब करते रहते हैं. एक एक्शन होता है जिसमें बैरिकेड उठाकर यहाँ वहाँ फेंक दिए जाते हैं, पुलिस बल पर भीड़ टूट पड़ती है, दूसरा रिएक्शन होता है कि पुलिस वॉटर केनन चला देती है, लाठी से वापस खदेड़ देती है. दूसरे की उम्दा फोटोग्राफी होती है, अच्छे पोज़ लिए जाते हैं और फिर कार्टूनिस्ट्स भी अपनी कला और इमेजिनेशन से बढ़िया भावनाएं उबाल देते हैं.
एक 18 साल का कॉलेज गोइंग बालक न्यूज़ पढ़ने से पहले कार्टून्स देखता है. वो MSP समझने से पहले भगत सिंह की फोटो के साथ लगे स्लोगन्स को देख हाइपर होता है. वो भविष्य है देश का, किसान इस देश की नींव है, दोनों की बात न सुनकर उन्हें रोकना, माहौल तनावपूर्ण करना बहुत कष्टदायक लगता है.
अगर आपको भरोसा है कि किसानों को कोई नुक़सान नहीं होगा तो क्या ज़रूरत है बैरिकेड्स की, सुनिए उनकी, भरी जनसभा में सुनिए. न्यूज़ मीडिया वालों को बुलाकर, प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपना पक्ष बिठाकर, करिए क्लियर कि किसानों को क्या लाभ होगा. यूथ देखता है ऐसे डिबेट्स.
रही बात तोड़फोड़ के डर की, भीड़ के उग्र होने की तो यूपी सीएम ने अमेरिका तक को अच्छा आईडिया सरकाया है, जो सार्वजनिक संपत्ति का नुक़सान करेगा वो ही उसकी भरपाई करेगा.पर देश की चुनी हुई सरकार होकर बैकफुट पर मत खेलिए, सामने आइए, खुल के बात कीजिए. सांच को आंच कैसी?
ये भी पढ़ें -
उद्धव ठाकरे के मोदी-शाह के खिलाफ अचानक तेज हुए तेवर किस बात का इशारा हैं?
Tejashwi Yadav का चुनावी चोला धीरे धीरे उतरने लगा है
बिहार स्पीकर चुनाव में तेजस्वी के हंगामे और सुशील मोदी के 'ऑडियो' अटैक से क्या मिला?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.