यूं तो भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत जनवरी में केरल में हुई. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (S President Donald Trump) के भारत आगमन के बाद सरकार चेती और इस महामारी का संज्ञान लिया. मार्च 2020 में सरकार ने बीमारी के मद्देनजर कठोर कदम उठाए और पहले जनता कर्फ्यू (Janata Curfew) फिर लॉक डाउन लगाया. भारत में कोरोना का आगमन भले ही आज भी एक पहेली की तरह देखा जा रहा हो लेकिन उस दौर में जिस पर इस बीमारी को भारत भर में फैलाने के आरोप लगे और तमाम तरह की लानत मलामत हुई वो राजधानी दिल्ली का निज़ामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin Markaz) और तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) था. चूंकि मरकज़ में कुछ जमाती संक्रमित पाए गए थे तो कहा यही गया था कि अगर देश में लोग इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आए हैं तो उसकी एकमात्र वजह रोक के बावजूद निज़ामुद्दीन मरकज़ में हुआ तब्लीगियों का प्रोग्राम था. मामला काफी दिन तक सुर्खियों में रहा और आज भी इस मरकज का मुखिया मौलाना साद (Maulana Saad) पुलिस की पहुंच से कोसों दूर है. सवाल होगा कि एक ऐसे वक्त में जब चीजें ठीक हो रही हों और सम्पूर्ण देश ने कोरोना वायरस के साथ खुद को 'एडजस्ट' कर लिया हो आखिर क्यों तब्लीगी जमात और दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन मरकज पर बात हो रही है? कारण है चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार की अदालत. जिसने कोरोना फैलाने के आरोपों का सामना कर रहे 36 विदेशी नागरिकों को न केवल बरी किया बल्कि दिल्ली पुलिस की भी जमकर क्लास लगाई.
दिल्ली पुलिस को लताड़ लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि आरोपियों की पहचान के लिए कोई टेस्ट आइडेंटिटी परेड (TIP) नहीं कराई गई बल्कि होम मिनिस्ट्री द्वारा दी गई लिस्ट का इस्तेमाल किया गया.मामले...
यूं तो भारत में कोरोना वायरस की शुरुआत जनवरी में केरल में हुई. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (S President Donald Trump) के भारत आगमन के बाद सरकार चेती और इस महामारी का संज्ञान लिया. मार्च 2020 में सरकार ने बीमारी के मद्देनजर कठोर कदम उठाए और पहले जनता कर्फ्यू (Janata Curfew) फिर लॉक डाउन लगाया. भारत में कोरोना का आगमन भले ही आज भी एक पहेली की तरह देखा जा रहा हो लेकिन उस दौर में जिस पर इस बीमारी को भारत भर में फैलाने के आरोप लगे और तमाम तरह की लानत मलामत हुई वो राजधानी दिल्ली का निज़ामुद्दीन मरकज़ (Nizamuddin Markaz) और तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) था. चूंकि मरकज़ में कुछ जमाती संक्रमित पाए गए थे तो कहा यही गया था कि अगर देश में लोग इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आए हैं तो उसकी एकमात्र वजह रोक के बावजूद निज़ामुद्दीन मरकज़ में हुआ तब्लीगियों का प्रोग्राम था. मामला काफी दिन तक सुर्खियों में रहा और आज भी इस मरकज का मुखिया मौलाना साद (Maulana Saad) पुलिस की पहुंच से कोसों दूर है. सवाल होगा कि एक ऐसे वक्त में जब चीजें ठीक हो रही हों और सम्पूर्ण देश ने कोरोना वायरस के साथ खुद को 'एडजस्ट' कर लिया हो आखिर क्यों तब्लीगी जमात और दिल्ली स्थित निज़ामुद्दीन मरकज पर बात हो रही है? कारण है चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार की अदालत. जिसने कोरोना फैलाने के आरोपों का सामना कर रहे 36 विदेशी नागरिकों को न केवल बरी किया बल्कि दिल्ली पुलिस की भी जमकर क्लास लगाई.
दिल्ली पुलिस को लताड़ लगाते हुए कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि आरोपियों की पहचान के लिए कोई टेस्ट आइडेंटिटी परेड (TIP) नहीं कराई गई बल्कि होम मिनिस्ट्री द्वारा दी गई लिस्ट का इस्तेमाल किया गया.मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से कहा कि अभियोजन पक्ष निजामुद्दीन स्थित मरकज परिसर में किसी भी आरोपी की मौजूदगी साबित करने में नाकाम रहा.
वही कोर्ट को मामले में गवाह बनाए गए लोगों के बयानों में भी गहरा विरोधाभास दिखा जिसे अदालत ने एक बड़े मुद्दे की तरह लिया. बताते चलें कि जब भारत में कोरोना के मामले बढ़े और केंद्र सरकार समेत राज्य सरकारों के भी हाथ पांव फूले तो निज़ामुद्दीन मरकज में आए जमातियों को भारत में कोरोना के फैलने का जिम्मेदार माना गया और उन्हें सुपर स्प्रेडर की संज्ञा दी गयी.
जमातियों पर दिल्ली पुलिस से लेकर अलग- अलग राज्य सरकारों ने तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए और कहा गया कि तब्लीग के लोगों ने अपने कृत्य से न केवल अपनी बल्कि दूसरों की जान को भी जोखिम में डाला. तब आईपीसी की धारा 188 (सरकारी सेवक द्वारा लागू आदेश का पालन नहीं करना), 269 (संक्रमण फैलाने के लिए लापरवाही भरा कृत्य करना) और महामारी कानून की धारा तीन (नियमों को नहीं मानना) और आपदा प्रबंधन कानून, 2005 की धारा 51 के तहत भी विदेश से निज़ामुद्दीन मरकज में आयोजित कार्यक्रम के सिलसिले में दिल्ली पहुंचे जमातियों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे.
मामले की सुनवाई के दौरान चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने हजरत निजामुद्दीन के स्टेशन हाउस ऑफिसर जोकि मामले में शिकायतकर्ता थे और जांच में शामिल अफसरों को आरोपियों की पहचान न कर पाने के लिए तलब किया. अदालत ने गवाहों के बयानों में विरोधाभास का जिक्र भी किया और मामले में दोषी बनाए गए कुछ अभियुक्तों द्वारा पेश की गई दलीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि ‘उस अवधि के दौरान उनमें से कोई भी मरकज में मौजूद नहीं था और उन्हें अलग-अलग स्थानों से उठाया गया.
सुनवाई में कोर्ट ने गृह मंत्रालय का भी जिक्र किया और कहा कि पुलिस द्वारा अभियुक्तों को गृह मंत्रालय के निर्देश पर इसलिए उठाया गया ताकि दुर्भावना के तहत उनपर मुकदमा चलाया जा सके.’ अदालत ने मामले के आईओ के ऊपर भी जबरदस्त तंज कसते हुए कहा कि, 'यह समझ से परे है कि कैसे IO ने 2,343 व्यक्तियों में से 952 विदेशी नागरिकों की पहचान कर ली.
ध्यान रहे कि जमातियों के मद्देनजर निज़ामुद्दीन थाने के एसएचओ की तरफ से तक दिया गया था कि मरकज के सभी जमाती कोरोनावायरस गाइडलाइंस की धज्जियां उड़ाते हुए पाए गए थे. साथ ही उन्होंने कोर्ट को ये भी बताया था कि कोई टेस्ट आइडेंटिटी परेड (TIP) नहीं कराई गई बल्कि गृह मंत्रालय द्वारा दी गई लिस्ट का इस्तेमाल किया गया.
अब जबकि कोर्ट ने सभी 36 विदेशी जमातियों को बरी कर दिया है. मामला एक बार फिर सोशल मीडिया पर आ गया है. और भारत में कोरोना के फैलने में जमातियों की भूमिका पर तब शुरू हुई डिबेट को नए आयाम मिल गए हैं. कोर्ट से आए फैसले के बाद मामले ने दिलचस्प रंग ले लिया है.
वो लोग जो तब से लेकर आज तक जमातियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे उनका यही कहना है कि सरकार और दिल्ली पुलिस ने मुसलमानों को नीचा दिखाने के लिए जमातियों को चुना लेकिन चूंकि सच ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सकता, अदालत में जज के सामने वो बाहर आ ही गया.
सोशल मीडिया पर तब्लीग समर्थक लोगों का ये भी कहना है कि कोरोना मामले में मुसलमानों को घसीटकर सरकार ने केवल और केवल अपनी नाकामी दिखाई और जो सच था उसपर पर्दा डालने का काम किया.
अब जबकि मामले पर कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है तमाम लोग ऐसे भी हैं जो सरकार पर कटाक्ष कर रहे हैं.
सोशल मीडिया पर यूजर्स इस बात को भी दोहरा रहे हैं कि जब भारत में कोरोना के मामले बढ़े सरकार को कोई न कोई ऐसा चाहिए था जिसके कंधे पर बंदूक रखकर वो गोली चला सके और क्योंकि तब जमाती पुलिस के हत्थे चढ़ चुके थे उन्हें ये मौका मिला और उन्होंने इसका भरपूर फायदा उठाया.
वो तमाम लोग जो सरकार के साथ है वो आज भी अपनी बातों पर अड़े हैं और दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के एक्शन को सही ठहरा रहे हैं.
फैसले ने समर्थकों को बल दिया है वो ये भी कह रहे हैं अब वो वक़्त आ गया है जब तब्लीग और जमात से जुड़े लोगों को मीडिया पर उनकी छवि ख़राब करने के लिए केस करना चाहिए.
बहरहाल जैसा कि हम बता चुके हैं फैसले ने एक बार फिर हिंदू मुस्लिम डिबेट की शक्ल ले ली है इसलिए जो प्रतिक्रियाएं इस मामले पर आ रही है वो साफ़ तौर पर नफरत की आग में हवा का काम करती नजर आ रही हैं. डिबेट आगे कहां तक खींची जाती है इसका फैसला तो वक़्त करेगा लेकिन जो वर्तमान है उसे देखकर और साथ ही 36 जमातियों को बरी किये जाने को देखकर इस बात को कहने में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि, दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय की मामले के मद्देनजर जबरदस्त किरकिरी हुई है.
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