दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की ओर से AAP विधायकों को अयोग्य करार देने के जिस फैसले पर दोबारा सुनवाई किए जाने का आदेश दिया, वो फैसला अचल कुमार ज्योति के मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए लिया गया था. जस्टिस संजीव खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनाव आयोग का 20 AAP विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश करने के फैसले से नेचुरल जस्टिस का उल्लंघन हुआ क्योंकि AAP विधायकों को मौखिक तौर पर सुनवाई का मौका नहीं दिया गया था. हाईकोर्ट ने विधायकों को अयोग्य करार देने वाली अधिसूचना को ‘Bad In Law’ करार देने के साथ चुनाव आयोग को आदेश दिया कि विधायकों की याचिका पर नए सिरे से सुनवाई की जाए.
AAP के 20 विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश मुख्य चुनाव आयुक्त रहते जिन अचल कुमार ज्योति ने की थीं वो आखिर हैं कौन, ये भी जान लीजिए. ज्योति 2010 से जनवरी 2013 तक गुजरात के मुख्य सचिव रहे. 13 मई 2015 को इन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया. 6 जुलाई 2017 को ये मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए. 23 जनवरी 2018 को रिटायर होने से महज चार दिन पहले ज्योति ने 19 जनवरी को 20 AAP विधायकों को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में अयोग्य करार देने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेज दी.
इसके दो दिन बाद ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश पर अपनी मुहर लगा दी. 'ऑफिस ऑफ प्राफिट' के चक्कर में ये सब हुआ. इनको अयोग्य करार देने के लिए उन्हें संसदीय सचिव बनाए जाने का तर्क दिया गया था. लेकिन ये भुला दिया गया कि कई राज्यों में पहले से ही ऐसा होता रहा है. अब भी कई राज्यो में हैं. इनमें बीजेपी शासित राज्य भी शामिल हैं. अगर अयोग्य करार देना था ही तो सभी पर ये मापदंड लागू होना चाहिए, सिर्फ...
दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की ओर से AAP विधायकों को अयोग्य करार देने के जिस फैसले पर दोबारा सुनवाई किए जाने का आदेश दिया, वो फैसला अचल कुमार ज्योति के मुख्य चुनाव आयुक्त रहते हुए लिया गया था. जस्टिस संजीव खन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चुनाव आयोग का 20 AAP विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश करने के फैसले से नेचुरल जस्टिस का उल्लंघन हुआ क्योंकि AAP विधायकों को मौखिक तौर पर सुनवाई का मौका नहीं दिया गया था. हाईकोर्ट ने विधायकों को अयोग्य करार देने वाली अधिसूचना को ‘Bad In Law’ करार देने के साथ चुनाव आयोग को आदेश दिया कि विधायकों की याचिका पर नए सिरे से सुनवाई की जाए.
AAP के 20 विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश मुख्य चुनाव आयुक्त रहते जिन अचल कुमार ज्योति ने की थीं वो आखिर हैं कौन, ये भी जान लीजिए. ज्योति 2010 से जनवरी 2013 तक गुजरात के मुख्य सचिव रहे. 13 मई 2015 को इन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया. 6 जुलाई 2017 को ये मुख्य चुनाव आयुक्त बन गए. 23 जनवरी 2018 को रिटायर होने से महज चार दिन पहले ज्योति ने 19 जनवरी को 20 AAP विधायकों को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में अयोग्य करार देने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेज दी.
इसके दो दिन बाद ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश पर अपनी मुहर लगा दी. 'ऑफिस ऑफ प्राफिट' के चक्कर में ये सब हुआ. इनको अयोग्य करार देने के लिए उन्हें संसदीय सचिव बनाए जाने का तर्क दिया गया था. लेकिन ये भुला दिया गया कि कई राज्यों में पहले से ही ऐसा होता रहा है. अब भी कई राज्यो में हैं. इनमें बीजेपी शासित राज्य भी शामिल हैं. अगर अयोग्य करार देना था ही तो सभी पर ये मापदंड लागू होना चाहिए, सिर्फ दिल्ली में ही क्यों?
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ये कहते रहे थे कि बदले की भावना के तहत बीजेपी और केंद्र सरकार 20 AAP विधायकों को अयोग्य करार देने पर तुली है. उनका ये भी कहना था कि चुनाव आयोग पर दबाव डाल कर केंद्र सरकार ने ये फैसला कराया. AAP विधायक कहते रहे कि उन्हें सुनवाई का समुचित मौका दिए बिना ही चुनाव आयोग ने ये अयोग्य करार देने की सिफारिश कर दी थी. इन विधायकों ने राष्ट्रपति से भी गुहार लगानी चाही थी कि उन्हें बिना सुनवाई का समुचित मौका दिए ही ये सिफारिश कर दी गई, इसलिए राष्ट्रपति की ओर से चुनाव आयोग को सिफारिश पर पुनर्विचार करने के लिए कहा जाए. लेकिन राष्ट्रपति ने भी दो दिन में ही चुनाव आयोग की सिफारिश को हरी झंडी दिखा दी.
सवाल महज 20 AAP विधायकों का नहीं बल्कि चुनाव आयोग जैसी सांविधानिक संस्था का केंद्र सरकार की ओर से कथित तौर पर मनमाना इस्तेमाल किए जाने के आरोप का है. चुनाव आयोग वो संस्था होती है जिस पर निष्पक्ष चुनावों के जरिए लोकतंत्र की मर्यादा को अक्षुण रखने की जिम्मेदारी होती है.
जहां तक अरविंद केजरीवाल का सवाल है, तो उन्होंने हाल में अपने पहले के आरोपों पर जिस माफियां मांगने की झड़ी लगाई, उसने उनकी साख को भारी नुकसान पहुंचाया.अगर उन्होंने विक्रम सिंह मजीठिया, नितिन गडकरी, कपिल सिब्बल के बेटे के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे तो उन पर टिके रहते. अगर वो आरोप सच्चे होते तो उन्हें अदालत में वैसे ही जीत मिलती जैसे कि उनके AAP विधायकों को अब मिली.
ये तर्क कोई मायने नहीं रखता कि अदालती लड़ाई में बहुत समय जाया होता और वो दिल्ली के लोगों के काम के लिए ज्यादा टाइम नहीं निकाल पाते. केजरीवाल के विरोधी यही कर रहे हैं कि केजरीवाल के आरोप सच्चे नहीं थे और अदालत में नहीं टिकते, इसीलिए उन्होंने माफी मांग मांग कर पतली गली से बच निकलने का रास्ता चुना.
सच्चाई का दंभ भरो तो हमेशा सच के साथ खड़े रहो. चाहे कितनी भी परेशानियां सामने आएं. आखिर में जीत आप की ही होगी. राजनीति के फेर में समझौते किए जाएंगे तो साख को बट्टा लगेगा. अब केजरीवाल किसी के भी खिलाफ भविष्य में कोई भी आरोप लगाएंगे तो कौन उसे गंभीरता से लेगा. हर किसी के जेहन में यही आएगा क्या गारंटी कि बाद में माफी मांग कर इनसे पल्ला नहीं झाड़ लिया जाएगा.
ये भी पढ़ें -
यूं ही विश्वास-संकट बना रहा तो केजरीवाल को माफी मिलने से रही!
तो क्या केजरीवाल की पूरी राजनीति ही झूठ पर आधारित है?
आखिर क्यों चला केजरीवाल का 'माफियों' का दौर, तथ्यों के साथ यूं समझिए
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.