"... गोकुलपुरी टायर मार्केट के अन्दर दिल्ली पुलिस और आईटीबीपी के जवानों के अलावा तीन - चार कुत्तें हैं. वो कुत्ते जो अब भी मारे दहशत के किसी भी इंसान को देखते हुए दुम दबा के भाग रहे हैं. कुत्ते कितना डरे हुए हैं ये उनके बर्ताव से समझा जा सकता है. इनका पूरा शरीर धुंए और राख से पटा पड़ा है. साथ ही ये घायल हैं. पुलिस और सेना के लोग इनके आगे बिस्कुट डाल रहे हैं मगर घटना के एक हफ्ते बाद भी भूख तो जैसे इनसे कोसों दूर है. गर मौके पर जाइए तो आप खुद इन्हें कांपते हुए देख लें कोई बड़ी बात नहीं है..."
कहा जा रहा है कि दंगों (Delhi Riots) के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में नफ़रत का कोहरा छंट चुका है. हालात सामान्य हो रहे हैं. जन जीवन पटरी पर लौट रहा है. बंद दुकानें खुल रही हैं. इलाके में तनाव तो है मगर लोग एक दूसरे के साथ मिल जुलकर रहना चाहते हैं... तमाम बातें हैं जो दंगों के बाद बीते एक सप्ताह से टीवी पर बताई जा रही हैं. सोशल मीडिया पर दिखाई जा रही हैं. 'हालात सामान्य हो रहे हैं' या फिर 'जन जीवन पटरी पर लौट रहा है.' ये सिर्फ पंक्तियां नहीं हैं. इनमें कहानी बसती है. दिल्ली दंगों के बाद हमने दंगा प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लिया.
इंसान की फितरत झूठ बोलना है वो तर्क देता रहेगा. पुलिस कहेगी कि 'स्थिति नियंत्रण में है.' जानवर सच के ज्यादा करीब हैं. उस दिन मंजर कैसा रहा होगा? घटनास्थल पर मौजूद जानवरों के जख्मों को देखें तो हालात खुद ब खुद हमारी आंखों के सामने आ जाएंगे. दंगे की उस मनहूस घड़ी से लेकर अब तक हालात कैसे हैं? जवाब उन जानवरों की आंखों में है जिन्होंने इंसान को मारती, इंसानियत को तबाह करती इंसानों की भीड़...
"... गोकुलपुरी टायर मार्केट के अन्दर दिल्ली पुलिस और आईटीबीपी के जवानों के अलावा तीन - चार कुत्तें हैं. वो कुत्ते जो अब भी मारे दहशत के किसी भी इंसान को देखते हुए दुम दबा के भाग रहे हैं. कुत्ते कितना डरे हुए हैं ये उनके बर्ताव से समझा जा सकता है. इनका पूरा शरीर धुंए और राख से पटा पड़ा है. साथ ही ये घायल हैं. पुलिस और सेना के लोग इनके आगे बिस्कुट डाल रहे हैं मगर घटना के एक हफ्ते बाद भी भूख तो जैसे इनसे कोसों दूर है. गर मौके पर जाइए तो आप खुद इन्हें कांपते हुए देख लें कोई बड़ी बात नहीं है..."
कहा जा रहा है कि दंगों (Delhi Riots) के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली में नफ़रत का कोहरा छंट चुका है. हालात सामान्य हो रहे हैं. जन जीवन पटरी पर लौट रहा है. बंद दुकानें खुल रही हैं. इलाके में तनाव तो है मगर लोग एक दूसरे के साथ मिल जुलकर रहना चाहते हैं... तमाम बातें हैं जो दंगों के बाद बीते एक सप्ताह से टीवी पर बताई जा रही हैं. सोशल मीडिया पर दिखाई जा रही हैं. 'हालात सामान्य हो रहे हैं' या फिर 'जन जीवन पटरी पर लौट रहा है.' ये सिर्फ पंक्तियां नहीं हैं. इनमें कहानी बसती है. दिल्ली दंगों के बाद हमने दंगा प्रभावित क्षेत्रों का जायजा लिया.
इंसान की फितरत झूठ बोलना है वो तर्क देता रहेगा. पुलिस कहेगी कि 'स्थिति नियंत्रण में है.' जानवर सच के ज्यादा करीब हैं. उस दिन मंजर कैसा रहा होगा? घटनास्थल पर मौजूद जानवरों के जख्मों को देखें तो हालात खुद ब खुद हमारी आंखों के सामने आ जाएंगे. दंगे की उस मनहूस घड़ी से लेकर अब तक हालात कैसे हैं? जवाब उन जानवरों की आंखों में है जिन्होंने इंसान को मारती, इंसानियत को तबाह करती इंसानों की भीड़ देखी.
दिल्ली मेट्रो की पिंक लाइन पर पड़ने वाले गोकुलपुरी मेट्रो स्टेशन से नीचे उतरिये बिलकुल बगल में दयालपुर थाना है. लोगों की भीड़ से पटा हुआ. क्या हिंदू क्या मुस्लिम दोनों ही पक्षों के लोग दंगों के बाद से ही यहां मौजूद हैं. किसी के हाथ में अपने परिजन की तस्वीर है तो कोई एप्लीकेशन के साथ बीते कई दिनों से यहां गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने आ रहा है. बता दें कि दिल्ली दंगों में दिल्ली पुलिस और सिक्योरिटी फोर्सेज की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है.
थाना क्रॉस करिए और आउटर रिंग रोड या वज़ीराबाद रोड की तरफ कोई 250 मीटर चलने के बाद, बांए हाथ पर आपको आईटीबीपी के जवान दिखते हैं. इस स्थान पर कई दुकानें हैं. दुकानों के शटर बेतरतीबी से आधे तोड़े गए हैं उनमें मौजूद सामान निकाला गया है. जगह-जगह जले हुए टायरों का ढेर है. धुंए की महक अब भी यहां से रह रह कर उठ रही है. आईटीबीपी के जवान यहां लेफ्ट राइट कर रहे हैं और इस स्थान को किसी छावनी में तब्दील कर दिया गया है.
मीडिया के अलावा यहां किसी को अन्दर जाने की इजाजत नहीं है. मीडिया को भी यहां बहुत देर रुकने नहीं दिया जा रहा है. बाहर राहगीर मोबाइल से फोटो खींचते वीडियो बनाते मिल जाएंगे. स्थानीय लोगों के अनुसार अब से ठीक एक हफ्ता पहले तक यहां भारत की सबसे बड़ी टायर मार्केट थी. हजारों का मजमा रहता था. करोड़ों का कारोबार होता है. अब यहां मातम पसरा है.
शुरुआत में जिन तीन-चार कुत्तों का जिक्र हमने किया वो भी घटना को लेकर मातम मना रहे हैं. दंगाइयों ने इन्हें भी नहीं छोड़ा. इन्हें भी जलाने का प्रयास किया गया है. दंगों से पहले क्या जिंदगी रही होगी इनकी. टायर मार्केट में मन पसंद का भोजन मिला तो ठीक वरना उस नाले की तरफ रुख कर लिया जो बीते एक हफ्ते से चर्चा में है. जहां से एक के बाद एक वो तमाम लाशें निकल रही हैं जिनके बारे में आशंका व्यक्त की जा रही है कि इन्हें दंगाइयों के द्वारा दंगों के दौरान मारा गया और उस नाले में डाल दिया जो सीलमपुर से वेलकम फिर न्यू जाफराबाद फिर करदमपुरी होते हुए गोकुलपुरी आता है.
आग से उपजी लपटों और धुंए के कारण लाल हुई इन कुत्तों की आंखें इस बात की गवाही दे देंगी कि उस दिन इंसानों ने केवल दुकानों और टायरों को आग के हवाले नहीं किया. बल्कि उस भरोसे का भी क़त्ल हुआ जो ये बेजुबान जानवर इंसानों से करते थे. कुत्तों और मनुष्य दोनों ही सामाजिक प्राणी हैं. कुत्तों और मनुष्यों का रिश्ता तब से है जब से इंसान ने आग जलाना सीखा. मगर आज उस घटना के हजारों साल बाद गोकुलपुरी की इस टायर मार्केट में उसी आग ने कुत्तों को इंसानों से दूर कर दिया है.अब बस डर है. दंगों दौरान जले हुए ये कुत्तें इस बात को समझ चुके हैं कि जो इंसान किसी दूसरे इंसान का नहीं हुआ वो भला इनका क्या ख़ाक होगा.
लाखों सवाल इन बे-जुबान कुत्तों की आंखों में तैर रहे हैं. नहीं मालूम कि ये जवाब इनको मिलेंगे या ये गलियों के आवारा कुत्ते इसी कसक में मर जाएंगे कि कोष कोई हमें भी हमारे सवालों के जवाब दे देता.
इसी टायर मार्केट के बगल में फुट ओवर ब्रिज है जिसे दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया. यहां भी कुछ जंगली कबूतर अपने घोसलों को तलाशने के लिए यहां से वहां मंडराते हुए नजर आ रहे हैं. फुट ओवर ब्रिज के ऊपर एक झरोखे में जला हुए घोंसला है शायद दंगों से पहले इन घोंसलों में अंडे या फिर कुछ बच्चे रहे हों. दंगाइयों ने इन कबूतरों से भी उनकी दुनिया, उनकी खुशियां छीन ली.
टायर मार्केट से करीब दो किलोमीटर दूर भजनपुरा चौक पर मौजूद इंडियन ऑइल के पेट्रोल पम्प का भी हाल टायर मार्केट जैसा ही है. यहां भी सब कुछ तबाह और बर्बाद हो गया है. यहां भी मिलते जुलते जानवर हैं. हां वही कुत्ते और कबूतर जिनका सब कुछ तबाह हो गया है. जो खौफ में हैं और इंसानों से डरे हुए हैं. जिन्हें हर आता जाता व्यक्ति दंगाई लगता है और जिनके अन्दर ये खौफ घटना के एक हफ्ते बाद भी बना हुआ है कि कोई आए इन्हें मार न दे.
पेट्रोल पम्प पर डीटीसी की बसें और कुछ दिल्ली पुलिस की गाड़ियां जिनमें बड़ी संख्या में फ़ोर्स है, बवाल के बाद से ही मौके खड़ी हैं. दंगे के दौरान तबाह हुआ पेट्रोल पम्प और आईटीबीपी/ पुलिस के जवान बिना कुछ कहे दहशत खुद बयां कर देंगे. पेट्रोल पम्प का भी हाल टायर मार्केट वाला है आम लोगों का प्रवेश निषेध है हालात का जायजा लेने मीडिया अंदर जा सकती है.
पेट्रोल की जली टंकियों और आग के हवाले की गई गाड़ियों और प्रॉपर्टी के आलवा यहां भी हमारा सामना कुछ खौफज़दा कुत्तों और कबूतरों से हुआ. दिल्ली पुलिस का एक कांस्टेबल इनके आगे बिस्किट डालता हुआ हमें दिखाई दिया. मगर यहां भी इन कुत्तों की भूख वैसे ही मर गई थी जैसा कि हम गोकुलपुरी की टायर मार्केट वाले कुत्तों के मामले में देख चुके थे. महसूस हुआ कि भले ही इंसानों में एक दूसरे से रिश्ता न हो मगर कुत्तों में है वो दर्द समझते हैं. दो चार लोगों को अपने पास आते देखना. उनको देखकर इनका भाग जाना और फिर कहीं कोने में दुबककर बैठ जाना इस बात की तस्दीख कर देता है कि जिनका सब कुछ उजड़ जाता है उनके पास दुबककर बैठने के अलावा कोई चारा भी नहीं रहता.
भजनपुरा चौक पर मौजूद इस पेट्रोल पम्प पर भले ही लोगों का हुजूम हो. भले ही यहां आगे कोई बवाल न बढ़ें, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद रखा गया हो मगर दहशत कैसी रही होगी पेट्रोल फ्यूल डिस्पेंसर मशीनें बता रही हैं जिन्हें ख़ाक में मिला दिया गया है. शायद इन मशीनों में लगे पाइप भी एक दूसरे से यही कह रहे हों कि हमारा क्या दोष हमने तो कभी हिंदू और मुसलमानों में भेद नहीं किया? अजीब सा मंजर है इस पेट्रोल पम्प का. धुंए की महक न केवल दम घोंट रही है बल्कि एक साथ कई दास्तानें बयां कर रही है. पेट्रोल पम्प इस बात की मौन स्वीकृति दे रहा है कि जो इस पूरे इलाके में हुआ शायद उसे भूलने में 10 या फिर 15 साल लगें.
भजनपुरा के इस पेट्रोल पम्प के ठीक सामने मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र चांदबाग है जहां आने वाले के स्वागत में वो दुकानें हैं जिन्हें जलाया गया है. जो सड़क मुख्य बस्ती की तरफ जाती है. बांए हाथ पर एक दुकान है. कभी जूस की हुआ करती थी. सड़क पर फल पड़े हैं. जले फल, कटे फल कुचले फल, दबे फल. इन फलों पर गौर करिए आंख बंद करिए और कल्पना करिए. आप चाहे हिंदू हों या मुस्लिम हाथों में लाठी डंडे, तलवार, चाकू, पेट्रोल बम लिए भीड़ आपको अपनी तरफ आते दिखाई देगी और हां कल्पना मात्र ही आपको इतना दहशत में डाल देगी कि आप थर थर कांप उठेंगे.
चांदबाग़ में हैवानियत कैसे हुई और कितनी हुई अंदाजा जले-अधजले फलों को देखकर आसानी से लग जाएगा. हमें यकीन है जिस वक़्त जवान अपनी ड्यूटी बदलते होंगे ये फल भी खुसुर फुसुर करते होंगे कि जब हमें हिंदू और मुस्लमान दोनों खाते थे तो फिर इतनी नफ़रत क्यों ? ये हिंसा ये खून खराबा किसलिए.
सड़क के दोनों तरफ जले मकान, जली दुकानें हैं. दंगाई हिंदू थे या मुसलमान इससे फर्क नहीं पड़ता. फर्क जिससे पड़ता है वो बात बस इतनी है कि इस दंगे ने भरोसे का क़त्ल किया है और घाव वाकई बहुत गहरे हैं. तस्वीरें दिल को दहला कर रख देने वाली हैं. सवाल वही हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि पूरे इलाके का अमन सुकून क़त्ल और गारत में तब्दील हो गया.
दंगे के एक हफ्ते बाद जैसा माहौल है. जिस तरह की दहशत है. वो उस नाले को देखकर भी समझी जा सकती है जिसमें एक घर का पूरा सामान दंगाइयों ने फ़ेंक दिया. घर में शादी थी मगर दंगाइयों को इस बात की कोई परवाह नहीं थी उन्हें बस अपना काम करना था. दंगाई अपना काम कर चुके हैं. नाला और उस नाले में पड़ा सामान मौजूद है ही सारी दास्तां बताने के लिए. गली के इस नाले ने बहुत कुछ देखा है. ये पुलिस वालों की बेबसी देख चुका है. दंगाइयों की आंखों में नफ़रत देख चुका है साथ ही इसने लोगों को रोते बिलखते और जान की भीख मांगते भी देखा है.
उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों को हुए एक सप्ताह हो चुका है. निश्चित तौर पर जीवन पटरी पर आ जाएगा. लेकिन बड़ा सवाल वही है उन इंसानों का क्या? उन जानवरों का क्या जिन्होंने चंद ही पलों में अपना सब कुछ खो दिया. जो आज जिंदा लाश से ज्यादा कुछ नहीं हैं. जिनके पूरे अस्तित्व पर सवालियां निशान लग चुके हैं. इनका आगे का जीवन कैसा होगा? जवाब वक़्त देगा मगर जो वर्तमान है वो डरावना है.
उत्तर पूर्वी दिल्ली की दंगा प्रभावित गलियां शोर मचा रही हैं और कह रही हैं कि कुछ भी ठीक नहीं है. नफ़रत लोगों में इतनी ज्यादा है कि अगर पुलिस हट जाए तो फिर सड़कों पर खुनी खेल खेला जाएगा. जले हुए मकान और दुकानों ने हमें जाते जाते बता दिया कि जो नफ़रत दिलों में पैदा हुई अगर वो ख़त्म भी हो गई तो उसे ख़त्म होने में 15-20 साल लगेंगे.
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