देश विपरीत परिस्थितियों में बड़ा हो रहा था, उसके अंदर रहने वालों की सोच दिन-प्रतिदिन छोटी होती जा रही है समाज, सत्ता और संस्था को भी एक नई जाति के रूप में देखना प्रारम्भ कर दिया. संसद में विपक्ष मौन धारण कर लिया,पर सड़क पर गरीब सत्ता को लगातार सोशल मीडिया के माध्यम से आगाह कर रहा है, और कह रहा है कि डगर कठिन पनघट की... यही रवैया रहा तो मुल्क की आवादी जो स्वयं में समस्या है, वो आप जैसी समस्या से मुक्त हो कर समाधान चाहेगी. पर वो कौन है/ होगा?
दुनिया का सबसे नौजवान मुल्क, जहां नौजवानों की आवादी लगभग 65%हो, उसके बावजूद वो व्यवस्था परिवर्तन न करा पाए, इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है? जर्मनी के आम चुनाव में एक नौजवान ने अपने से बड़े को उम्र में ही नही सब-कुछ में बड़े को सिर्फ यह कह कर हरा दिया कि सामने वाला जितना बड़ा है, उतना बड़ा ही झूठ बोलता है.
अपनी उम्र छिपाने के लिए बालों में खेजाब (कलर) लगाता है. नौजवान के पास सिर्फ एक बात और एक सायकिल थी. जर्मनी की सड़कों पर कहता फिरता था कि अगर नीतियां प्रो पुअर पीपुल नही है, तो सत्ता में रहने का कोई हक नही है. वही दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र में कांग्रेस जैसी पार्टी जो आज़ादी के आंदोलन से निकली है, उसके प्रधानमंत्री स्व नरसिंह राव जी ने जो उदारीकरण की नीति लागू क्या किया कि, देश का उदार चरिता नाम ही खतरे में पड़ गया.
अल्पमत की सरकार को बहुमत में बदलने के लिए सांसद-बिधायक निधि जो लाये, वो विज्ञान की भाषा मे भ्र्ष्टाचार के सम्बंध में ब्लैक होल है. दूसरी तरफ दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा पार्टी विथ डिफरेंस, अपने पक्ष में सत्ता परिवर्तन तो करा लिया, पर व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर सिर्फ खो-खो, खेलते-खेलते मन्दिर-मियां खेलने लगे.
उन्हें यह खेल आसान लगा, क्योंकि हिन्दू और मुसलमान आज भी भारतीय नही बन पाए. अगर हिन्दू बनता तो दलित के साथ रोटी का रिश्ता कायम करता, वही मुसलमान बनता तो शरियत की जगह संविधान में आस्था व्यक्त करता. सवाल इतिहास जानने और पढ़ने का नही है साथियों, इतिहास बनने का है, परिस्थितियां व्यक्तित्व का निर्माण करती है और आज वो परिस्थित है.
अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम रखते हुए, रचनात्मक आन्दोलन के माध्यम से सरकार से पूछे कि पानी और पेट्रोल की कीमत तय करने का मानक क्या है? शिर्ष पदों पर छोड़कर बाकी दो बार विधायक/सांसद बनने के बाद उक्त सीटों को प्रतिभाओं को अवसर मिले, उसके लिए क्यो नही छोड़ते?
दो बच्चों से ज्यादा पैदा करने वालो को सरकारी सुबिधा के साथ-साथ विधायकी और सांसदी का टिकट क्यों देते हो? राजनैतिक जीवन मे व्यक्तिगत पूंजी का निर्माण क्यों करते हो? टैक्स कम क्यों नही करते? राजनैतिक दलों चंदे में मिलने वाली राशि को देश से क्यो नही बताते? आज छिपा लो, कल नही कर पाओगे, क्योंकि कल तुम्हारा नही भारतीयों का होगा. सवाल खड़ा करें, भले उत्तर न मिले. दुनिया का सबसे नौजवान मुल्क, जहां नौजवानों की आबादी लगभग 65% हो उसके बावजूद व्यवस्था परिवर्तन नहीं.
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