महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election 2020) में दस्तक दे चुके हैं. पटना पहुंचते ही देवेंद्र फडणवीस ने सुशांत सिंह राजपूत की चर्चा कर साफ कर दिया है - ना भूले हैं, ना भूलने देंगे. महाराष्ट्र में एक धारणा ये भी रही है कि सुशांत सिंह राजपूत के केस को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में देवेंद्र फडणवीस का अहम रोल रहा है. वैसे तो ये सब टीम वर्क होता है, लेकिन देवेंद्र फडणवीस को उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के कुर्सी पर बैठने के बाद से ही उनके खिलाफ एक मजबूत और कारगर मुद्दे की तलाश थी. कोरोना संकट, वधावन बंधुओं के लॉकडाउन उल्लंघन, बांद्रा में प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा या पालघर में साधुओं की हत्या के मामले से जो काम न हो सका वो सुशांत सिंह राजपूत केस ने कर दिया. अगर कंगना रनौत ने मुंबई पहुंच कर उद्धव सरकार के लिए चुनौतियों का अंबार लगा दिया है तो उसका भी आधार सुशांत सिंह राजपूत केस ही है.
कंगना रनौत ने झांसी की रानी बन कर पंगा तो उद्धव ठाकरे की सरकार से लिया है, लेकिन मुंबई को पीओके बताकर बीजेपी को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर भी कर दिया है. नतीजा ये हुआ है कि सुशांत सिंह राजपूत केस के जरिये उद्धव ठाकरे सरकार को घेरने के चक्कर में बीजेपी खुद भी घिरा हुआ महसूस करने लगी है.
अब देवेंद्र फडणवीस के पटना पहुंच जाने के बाद बीजेपी के लिए मुंबई में उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने के लिए नये सिरे से रणनीति बनाने का भी मौका मिल गया है - और बीजेपी चाहे तो शरद पवार के साथ पुरानी संभावनाओं को आगे बढ़ा कर वो काम कर सकती है जो एड़ी चोटी का जोर लगाकर भी देवेंद्र फडणवीस अपनी दूसरी पारी को 72 घंटे से आगे नहीं बढ़ा पाये थे.
क्या फडणवीस पटना से दिल्ली जाने वाले हैं?
तरक्की जरूरी नहीं कि पहले पहल भी अच्छी खबर लेकर ही आये. सुशांत सिंह राजपूत केस के चलते महाराष्ट्र से बिहार चुनाव के लिए भेजे गये बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस पर भी ये बात लागू होती लगती है. अगर मुंबई में सत्ता के...
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) बिहार चुनाव 2020 (Bihar Election 2020) में दस्तक दे चुके हैं. पटना पहुंचते ही देवेंद्र फडणवीस ने सुशांत सिंह राजपूत की चर्चा कर साफ कर दिया है - ना भूले हैं, ना भूलने देंगे. महाराष्ट्र में एक धारणा ये भी रही है कि सुशांत सिंह राजपूत के केस को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में देवेंद्र फडणवीस का अहम रोल रहा है. वैसे तो ये सब टीम वर्क होता है, लेकिन देवेंद्र फडणवीस को उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) के कुर्सी पर बैठने के बाद से ही उनके खिलाफ एक मजबूत और कारगर मुद्दे की तलाश थी. कोरोना संकट, वधावन बंधुओं के लॉकडाउन उल्लंघन, बांद्रा में प्रवासी मजदूरों का जमावड़ा या पालघर में साधुओं की हत्या के मामले से जो काम न हो सका वो सुशांत सिंह राजपूत केस ने कर दिया. अगर कंगना रनौत ने मुंबई पहुंच कर उद्धव सरकार के लिए चुनौतियों का अंबार लगा दिया है तो उसका भी आधार सुशांत सिंह राजपूत केस ही है.
कंगना रनौत ने झांसी की रानी बन कर पंगा तो उद्धव ठाकरे की सरकार से लिया है, लेकिन मुंबई को पीओके बताकर बीजेपी को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर भी कर दिया है. नतीजा ये हुआ है कि सुशांत सिंह राजपूत केस के जरिये उद्धव ठाकरे सरकार को घेरने के चक्कर में बीजेपी खुद भी घिरा हुआ महसूस करने लगी है.
अब देवेंद्र फडणवीस के पटना पहुंच जाने के बाद बीजेपी के लिए मुंबई में उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने के लिए नये सिरे से रणनीति बनाने का भी मौका मिल गया है - और बीजेपी चाहे तो शरद पवार के साथ पुरानी संभावनाओं को आगे बढ़ा कर वो काम कर सकती है जो एड़ी चोटी का जोर लगाकर भी देवेंद्र फडणवीस अपनी दूसरी पारी को 72 घंटे से आगे नहीं बढ़ा पाये थे.
क्या फडणवीस पटना से दिल्ली जाने वाले हैं?
तरक्की जरूरी नहीं कि पहले पहल भी अच्छी खबर लेकर ही आये. सुशांत सिंह राजपूत केस के चलते महाराष्ट्र से बिहार चुनाव के लिए भेजे गये बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस पर भी ये बात लागू होती लगती है. अगर मुंबई में सत्ता के गलियारों की चर्चाओं को लेकर आयी मीडिया रिपोर्ट को देखें तो बिहार चुनाव देवेंद्र फडणवीस के लिए तरक्की के नये रास्ते दिखाने वाला है - और उनको राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका मिल सकता है.
पटना पहुंचते ही देवेंद्र फडणवीस ने बीजेपी नेतृत्व को एहसास करा दिया है कि बिहार चुनाव में अपनी भूमिका को लेकर वो कितने सहज महसूस कर रहे हैं. वैसे ये सब संभव इसलिए भी हो पा रहा है क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रभारी रहे भूपेंद्र यादव ही बिहार में उनके सबसे करीबी साथी होंगे. बिहार चुनाव की तैयारियों में काफी पहले से लगे भूपेंद्र यादव के साथ मिल कर ही देवेंद्र फडणवीस को काम भी करना है.
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र के राजनीतिक बैठकबाज महाराष्ट्र के लिए बीजेपी की नयी रणनीति को लेकर कयास लगाने लगे हैं. एक ऐसी रणनीति जो कर्नाटक के सबसे कामयाब ऑपरेशन लोटस जैसी कारगर साबित हो.
महाराष्ट्र को लेकर बीजेपी की नयी कार्ययोजना में देवेंद्र फडणवीस की कोई भूमिका नहीं रहने वाली है - क्योंकि ये सब उनके महाराष्ट्र से बाहर होने की सूरत में ही संभावित प्रतीत होती है. ये भी है कि देवेंद्र फडणवीस को अगर राष्ट्रीय राजनीति में कोई भूमिका दिया जाना है तो उसका बिहार चुनाव में उनके प्रदर्शन से कोई खास लेना देना भी नहीं है. न ही बिहार चुनाव के नतीजों से देवेंद्र फडणवीस की सेहत पर कोई फर्क पड़ने वाला है.
नयी चर्चा में एक पुराना प्रसंग जोड़ देने पर मीडिया रिपोर्ट की मुंबई की राजनीतिक गॉसिप सच के काफी करीब लग रही है - और बीजेपी की संभावित रणनीति में एनसीपी नेता शरद पवार की भी बड़ी भूमिका हो सकती है, ऐसा लगता है.
फिर तो उद्धव सरकार गिर जाएगी!
कंगना रनौत के मुंबई के PoK हो जाने वाले बयान का तो देवेंद्र फडणवीस तक ने सपोर्ट नहीं किया है, लेकिन ये भी ध्यान रहे कि शरद पवार ने भी बीएमसी के एक्शन को गैरजरूरी बता दिया है. कहने का मतलब ये है कि कंगना रनौत के दफ्तर पर बीएमसी के एक्शन को लेकर उद्धव ठाकरे को शरद पवार का साथ नहीं मिला है.
उद्धव ठाकरे के कुर्सी पर बैठने से पहले एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. मुलाकात का कोई नतीजा तो नहीं निकला लेकिन एक संभावित राजनीतिक समीकरण की नींव तो पड़ ही गयी थी.
अव्वल तो शरद पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात को किसानों के मुद्दे पर चर्चा भर बताया था, लेकिन वहां एक तरीके से बीजेपी और एनसीपी के गठबंधन की संभावनाओं पर गंभीरतापूर्वक चर्चा हुई थी जिसकी खबर बाद में आयी मीडिया रिपोर्टों में देखने को मिल पायी थी. वैसे उस दौर में महाराष्ट्र से जुड़ा हर नेता सरकार बनाने को लेकर किसी भी मुलाकात को किसानों के हितों की चर्चा से जोड़ दिया करता रहा.
बाद में मालूम हुआ था कि शरद पवार और मोदी की मुलाकात में महाराष्ट्र में सरकार बनाने की संभावनाएं टटोली गयी थीं. शरद पवार ने ऐसी डिमांड रख दी कि मोदी ने बात आगे बढ़ने ही नहीं दी.
मीटिंग को लेकर बाद में आयीं खबरों के मुताबिक, शरद पवार की दो मांगें थीं एक एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले को केंद्र में मंत्री बनाया जाये और दूसरा महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री बदल दिया जाये. सुप्रिया सुले के लिए भी मंत्री पद की शर्त सामने आयी थी - कृषि मंत्रालय ही चाहिये था. दरअसल, शरद पवार रक्षा मंत्री के अलावा कृषि मंत्री भी रहे हैं और महाराष्ट्र में किसानों की भारी तादाद देखते हुए उसका मकसद वोट बैंक साधना रहा. ये मांग तो सोच विचार के बाद संभव हो भी सकती ती, लेकिन मुख्यमंत्री बदलने की बात पर प्रधानमंत्री मोदी भला कैसे राजी होते. चुनाव नतीजे आने के बाद जब हरियाणा में सरकार बनाने की संभावनाएं तलाशी जा रही थीं, उसी दौरान बीजेपी के दिल्ली मुख्यालय में प्रधानमंत्री मोदी ने देवेंद्र फडणवीस और मनोहर लाल खट्टर की खूब तारीफ की थी. मोदी कहना रहा कि दोनों ही नेताओं को नौसीखिया बताया जाता रहा, लेकिन दोनों ने अच्छे से काम किया और करप्शन फ्री सरकारें दी. देवेंद्र फडणवीस तो चार दशक बाद महाराष्ट्र में पांच साल का कार्यकाल पूरे करने वाले मुख्यमंत्री भी बन गये. बताते हैं कि शरद पवार चाहते थे कि देवेंद्र फडणवीस की जगह किसी को भी बीजेपी चाहे को मुख्यमंत्री बना ले. नये संदर्भों में ये बातें इसलिए प्रासंगिक हो जाती हैं क्योंकि बिहार चुनाव के बाद अगर बीजेपी उद्धव सरकार गिराने की कोशिश करती है तो शरद पवार की ये मांग मान लेने पर ये काम आसान हो सकता है.
देवेंद्र फडणवीस को राष्ट्रीय राजनीति में लाये जाने के बाद महाराष्ट्र बीजेपी की गुटबाजी पर भी असर पड़ेगा. फडणवीस की विरोधी पंकजा मुंडे और एकनाथ खड़से जैसे नेताओं को शांत कराया जा सकेगा. जब महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव हुए थे तो पंकजा मुंडे को टिकट की उम्मीद थी, लेकिन फडणवीस ने ऐसा होने ही नहीं दिया.
फिर चर्चा रही कि गुटबाजी खत्म करने के लिए पंकजा मुंडे को ही राष्ट्रीय राजनीति में शिफ्ट कर दिया जाये - लेकिन अब तो लगता है उसका उलटा होने वाला है. वैसे भी दोनों गुटों के नेताओं को एक जगह संभालना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है.
अगर बीजेपी फडणवीस को पटना से मुंबई न भेज कर दिल्ली बुला लेती है तो एक ही तीर से दो निशाने सध जाएंगे - महाराष्ट्र बीजेपी में गुटबाजी भी खत्म हो जाएगी और शरद पवार भी उद्धव सरकार से अलग होने का फैसला कर सकते हैं.
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान किसी मराठी व्यक्ति के देश का प्रधानमंत्री बनने की चर्चा चली तो देवेंद्र फडणवीस का भी बयान आया था जिसे उनकी महत्वाकांक्षाओं से जोड़ कर देखा गया था - क्या देवेंद्र फडणवीस अब उसी रास्ते चल पड़े हैं?
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