देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) क्या मोहरा बन कर रह गये हैं? एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को बीजेपी के सपोर्ट से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा करते वक्त ये ख्याल शायद ही देवेंद्र फडणवीस के मन के किसी कोने में आया होगा. बल्कि, वो तो ये सोच रहे होंगे कि शिंदे सरकार को वो वैसे ही नचाएंगे जैसे अब तक उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी सरकार के साथ शरद पवार पेश आते रहे.
देवेंद्र फडणवीस तब भूल गये थे कि असली रिमोट कंट्रोल तो दिल्ली में रहता है, मुंबई में तो बिलकुल नहीं - देवेंद्र फडणवीस को आखिर क्यों नहीं लगा कि उनके हाथ में तो बस डमी है. देवेंद्र फडणवीस के साथ सबसे बुरा तो ये हुआ कि ये पूरा घटनाक्रम सरेआम हुआ.
अब इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एकनाथ शिंदे तक को मालूम था कि डिप्टी सीएम कौन बन रहा है - और देवेंद्र फणनवीस को इस बात की भनक तक नहीं लगी, जबकि ये साफ हो जाने के बाद कि उद्धव ठाकरे सरकार के दिन लद चुके, वो दो बार दिल्ली का दौरा भी कर चुके थे! एक मीडिया रिपोर्ट का इशारा तो ऐसा ही है.
बहरहाल, सच तो यही है कि शिवसेना से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे, बीजेपी के सपोर्ट से ही मुख्यमंत्री बन गये हैं - और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बन कर पीछे पीछे चलना पड़ रहा है.
जिस कैबिनेट मीटिंग की देवेंद्र फडणवीस अध्यक्षता किया करते थे, एकनाथ शिंदे की तरफ से बैठक बुलाये जाने पर वो चुपचाप देखते रह गये. एकनाथ शिंदे के साथ तब कैबिनेट सहयोगी के तौर पर अकेले देवेंद्र फडणवीस ही रहे. ऐसा तो तब भी नहीं हुआ था जब पांच साल सरकार चलाने के बाद 72 घंटे के लिए वो कुर्सी पर बैठे थे.
किसी मुख्यमंत्री की डिप्टी सीएम बनना कोई नयी बात नहीं है. महाराष्ट्र के...
देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) क्या मोहरा बन कर रह गये हैं? एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) को बीजेपी के सपोर्ट से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा करते वक्त ये ख्याल शायद ही देवेंद्र फडणवीस के मन के किसी कोने में आया होगा. बल्कि, वो तो ये सोच रहे होंगे कि शिंदे सरकार को वो वैसे ही नचाएंगे जैसे अब तक उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी सरकार के साथ शरद पवार पेश आते रहे.
देवेंद्र फडणवीस तब भूल गये थे कि असली रिमोट कंट्रोल तो दिल्ली में रहता है, मुंबई में तो बिलकुल नहीं - देवेंद्र फडणवीस को आखिर क्यों नहीं लगा कि उनके हाथ में तो बस डमी है. देवेंद्र फडणवीस के साथ सबसे बुरा तो ये हुआ कि ये पूरा घटनाक्रम सरेआम हुआ.
अब इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि एकनाथ शिंदे तक को मालूम था कि डिप्टी सीएम कौन बन रहा है - और देवेंद्र फणनवीस को इस बात की भनक तक नहीं लगी, जबकि ये साफ हो जाने के बाद कि उद्धव ठाकरे सरकार के दिन लद चुके, वो दो बार दिल्ली का दौरा भी कर चुके थे! एक मीडिया रिपोर्ट का इशारा तो ऐसा ही है.
बहरहाल, सच तो यही है कि शिवसेना से बगावत करने वाले एकनाथ शिंदे, बीजेपी के सपोर्ट से ही मुख्यमंत्री बन गये हैं - और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस डिप्टी सीएम बन कर पीछे पीछे चलना पड़ रहा है.
जिस कैबिनेट मीटिंग की देवेंद्र फडणवीस अध्यक्षता किया करते थे, एकनाथ शिंदे की तरफ से बैठक बुलाये जाने पर वो चुपचाप देखते रह गये. एकनाथ शिंदे के साथ तब कैबिनेट सहयोगी के तौर पर अकेले देवेंद्र फडणवीस ही रहे. ऐसा तो तब भी नहीं हुआ था जब पांच साल सरकार चलाने के बाद 72 घंटे के लिए वो कुर्सी पर बैठे थे.
किसी मुख्यमंत्री की डिप्टी सीएम बनना कोई नयी बात नहीं है. महाराष्ट्र के लिए भी ये कोई अचरज वाली बात नहीं है - लेकिन देवेंद्र फडणवीस का महाराष्ट्र का डिप्टी सीएम बनना आसानी से किसी को भी शायद ही हजम हो रहा हो. अभी उद्धव ठाकरे सरकार में ही अशोक चव्हाण महज एक मंत्री के तौर पर शामिल थे, जबकि वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. ऐसे कई उदाहरण महाराष्ट्र में भी हैं, और देश के दूसरे राज्यों में भी मिल जाएंगे.
आगे समाचार ये है कि 3 जुलाई को स्पीकर का चुनाव होना है और अगले ही दिन यानी 4 जुलाई को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बहुमत साबित करना होगा - और हां, जो महाराष्ट्र में चले हाल के राजनीतिक उठापटक से जुड़े जो मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे उन पर 11 जुलाई को सुनवाई होगी.
ये भी साफ है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी बीजेपी नेतृत्व के सामने वही टारगेट है जो बिहार में रहा है. देखा जाये तो बिहार के मुकाबले बीजेपी को महाराष्ट्र में काफी तेज सफलता मिली है. 2017 में जो खेल बीजेपी ने बिहार में दिखाया था, पांच साल बाद महाराष्ट्र में वैसा ही नमूना नजर आ रहा है. बिहार में ऐसा होने में सवा साल से कुछ ज्यादा वक्त लगा था और महाराष्ट्र में ढाई साल तक इंतजार करना पड़ा - कॉमन बात ये है कि दोनों ही राज्यों में बीजेपी के पास डिप्टी सीएम की ही कुर्सी है, मुख्यमंत्री गठबंधन पार्टनर का.
नीतीश कुमार की ही तरह महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) को घेर कर पैदल करने के मकसद से बीजेपी नेतृत्व ने एकनाथ शिंदे को ड्राइविंग सीट पर बिठाया है और देवेंद्र फडणवीस को कंडक्टर जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है. अब तो महाराष्ट्र की गाड़ी को एकनाथ शिंदे तभी आगे बढ़ा पाएंगे जब पीछे से देवेंद्र फडणवीस सीटी बजाएंगे - मुद्दे की बात ये है कि देवेंद्र फडणवीस को सीटी बजाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का मुंह देखना होगा और अगर कुछ नजर नहीं आया तो जेपी नड्डा ट्वीट कर देंगे. बस इतनी सी बात है.
ये फडणवीस एक्सपेरिमेंट क्या है?
देवेंद्र फडणवीस को लेकर ये खबर भी आ रही है कि नयी जिम्मेदारी संभाल लेने के बावजूद ट्विटर पर अपना बॉयो बदला नहीं है - महाराष्ट्र का सेवक. जो लिखा है, कम से कम वो डिप्टी सीएम से बड़ा पद तो है ही.
ये तो प्रधानमंत्री मोदी जैसा ही है. जैसे प्रधानमंत्री मोदी खुद को प्रधान सेवक बताते रहे हैं, देवेंद्र फडणवीस भी तो वैसा ही कर रहे हैं. बल्कि, थोड़ा दायरा बढ़ा कर देखने की कोशिश करें तो अगर प्रधान सेवक का मतलब प्रधानमंत्री हुआ तो महाराष्ट्र का सेवक तो मुख्यमंत्री ही समझा जाएगा - फिर तो देवेंद्र फडणवीस के 'महाराष्ट्र का सेवक' का मतलब आसानी से समझा जा सकता है. है कि नहीं?
डिप्टी सीएम बनाने का ढिंढोरा क्यों पीटा गया? सबसे बड़ा सवाल ये है कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सार्वजनिक तौर पर देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनने के लिए क्यों कहा?
और उसके बाद पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने ट्विटर पर देवेंद्र फडणवीस की तारीफों के साथ डिप्टी सीएम बनने को लेकर हौसलाअफजाई क्यों की?
ये काम तो बड़े आराम से एक व्हाट्सऐप मैसेज से भी हो सकता था. फोन करने या बात करके कन्वींस करने की भी जरूरत नहीं पड़ती - और यही वजह है कि देवेंद्र फडणवीस को बैंड बाजा और बारात के साथ डिप्टी सीएम बनाये जाने की प्रकिया काफी हैरान करती है.
क्या अमित शाह, जेपी नड्डा के जरिये किसी को कोई मैसेज देना चाहते थे? क्या ये मैसेज महाराष्ट्र के लोगों के लिए था? क्या ये मैसेज खास तौर पर देवेंद्र फडणवीस के लिए था या फिर एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाये जाने की घोषणा के बाद महाराष्ट्र बीजेपी कार्यकर्ताओं में छायी मायूसी की वजह से?
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के साथ देवेंद्र फडणवीस की एक बड़ी ही दुर्लभ तस्वीर भी तमाम घटनाक्रम के बीच देखने को मिली थी. बल्कि एकनाथ शिंदे के नये ट्विटर प्रोफाइल चित्र पर भी भारी नजर आ रही थी.
तस्वीर विशेष में राज्यपाल कोश्यारी अपने हाथों से देवेंद्र फडणवीस को मिठाई खिला रहे हैं. राज्यपाल ने एकनाथ शिंदे को भी मिठाई खिलायी है. बधाई की इन तस्वीरों से जो खुशी का इजहार हो रहा था, देवेंद्र फडणवीस के ऐलान के बाद तो जैसे गायब ही हो गया.
देवेंद्र फडणवीस का चेहरा पहली बार तब देखने लायक था जब प्रेस कांफ्रेंस में बता रहे थे कि वो नहीं बल्कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री होंगे - और दूसरी बार तब जब उनको शपथ के लिए बुलाया गया. मंच पर राज्यपाल कोश्यारी से मिले तो मुस्कुराये जरूर लेकिन जैसे जबरन कोई काम कर रहे हों.
शपथग्रहण से पहले बीजेपी नेता कृपाशंकर सिंह ने इंडिया टुडे टीवी पर लाइव अपनी नाखुशी जतायी थी. उनके साथ गाड़ी में बैठे एक और बीजेपी नेता ने खुल कर बताया था कि देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री न बनने से उनको निराशा हुई है - और ये महाराष्ट्र बीजेपी कार्यकर्ताओं का मूड समझने के लिए काफी था.
क्या बीजेपी कार्यकर्ताओं का मूड समझने के बाद अमित शाह के कहने पर जेपी नड्डा ने देवेंद्र फडणवीस को दिल्ली का फरमान सुनाया?
पहरेदारी भी जरूरी है, लेकिन...
बुझे मन से फडणवीस बीजेपी के मिशन को कैसे आगे बढ़ाएंगे: कृपाशंकर सिंह जैसे नेताओं और बीजेपी कार्यकर्ताओं में मायूसी भले छायी हो, लेकिन बीजेपी में ही एक तबका ऐसा भी है जो मन ही मन बहुत खुश हुआ होगा - और तब तो और भी ज्यादा खुशी हुई होगी जब देवेंद्र फडणवीस को एकनाथ शिंदे के बाद शपथ लेते देखा होगा?
ऐसे नेताओं में कई होंगे, लेकिन सबसे पहले नाम तो विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे का ही सामने आता है. ये देवेंद्र नाथ फडणवीस ही हैं जिनकी वजह से विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे को महाराष्ट्र से हटाकर केंद्रीय राजनीति में ऐडजस्ट करना पड़ा था - और एकनाथ खड़से जैसे नेता तो बीजेपी छोड़ कर एनसीपी में ही चले गये. MVA सरकार में वो भी कैबिनेट का हिस्सा रहे.
विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे को हमेशा ही देवेंद्र फडणवीस के विरोध में खड़े देखा जाता रहा. पंकजा मुंडे का तो यहां तक कहना रहा कि बीजेपी के नेताओं ने ही उनको महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव हरा दिया. घुमा फिरा कर ही सही, इशारा तो उनका देवेंद्र फडणवीस की ही तरफ था - और जब विधान परिषद चुनाव में टिकट न मिलने पर पंकजा निराश होने लगीं तो बीजेपी नेतृत्व को दखल देना पड़ा था. अब तक विधान परिषद किसे भेजा जाएगा ये सब देवेंद्र फडणवीस ही तय करते रहे हैं, आगे से जो भी हो.
अगर डिप्टी सीएम बना कर देवेंद्र फडणवीस पर नकेल कसने का बीजेपी नेतृत्व का इरादा है, तो कैसे समझा जाये कि वो बुझे मन से बीजेपी के मिशन को पक्के तौर पर आगे बढ़ाएंगे ही?
फडणवीस को भरोसे में लेना जरूरी क्यों नहीं समझा गया: देवेंद्र फडणवीस के मन की घोषित बात तो यही थी कि सरकार में शामिल नहीं हो रहे हैं, शायद इसलिए भी क्योंकि वो मुख्यमंत्री नहीं बन रहे थे. ये फैसला भी दिल्ली में बीजेपी नेतृत्व का ही रहा क्योंकि जो अजीत पवार को लेकर रातोंरात मुख्यमंत्री बन सकता हो, वो इतने दिनों के इंतजार के बाद इतना बड़ा त्याग करेगा, किसी को भी नहीं लग सकता.
एकनाथ शिंदे को भी बीजेपी उद्धव ठाकरे के खिलाफ वैसे ही इस्तेमाल करने जा रही है जैसे कभी जीतनराम मांझी और बाद में चिराग पासवान का नीतीश कुमार के खिलाफ किया था - बड़ा फर्क ये है कि ये बीते प्रयोगों से बिलकुल अलग है. चिराग पासवान तो कभी नीतीश कुमार के नहीं रहे, जीतनराम मांझी जरूर उनके सबसे भरोसेमंद रहे.
एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे का पुराना रिश्ता ऐसा ही रहा है. महाविकास आघाड़ी सरकार गिरने के बाद भी शरद पवार ने ये बात दोहरायी है. अब अगर एकनाथ शिंदे इतने भरोसेमंद रहे हैं तो उद्धव ठाकरे के राजदार भी तो होंगे - और बीजेपी को उद्धव ठाकरे के खिलाफ इससे बढ़िया हथियार कहां मिल सकता है?
लेकिन ऐसे हथियार के अनगाइडेड मिसाइल बन जाने का भी तो खतरा हो सकता है - तो क्या यही सोच कर बीजेपी नेतृत्व ने देवेंद्र फडणवीस को एकनाथ शिंदे के पीछे पीछे लगा दिया है? लेकिन बीजेपी नेतृत्व को ये नहीं भूलना चाहिये था कि खुशी खुशी काम करने और मन मसोस कर तनावभरे माहौल में कोई काम करना कितना मुश्किल होता है?
सरकार में सारे फैसले पॉलिसी मैटर को लेकर ही तो होते नहीं, ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर बहुत सारे छोटे छोटे काम भी होते हैं - और ये जरूरी भी नहीं कि एकनाथ शिंदे वो भी देवेंद्र फडणवीस का मन भांप कर ही करेंगे. फिर तो ये भी जरूरी नहीं कि देवेंद्र फडणवीस की बातों को हर बार उतनी तवज्जो मिलेगी ही?
फर्ज कीजिये, बतौर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के किसी फैसले का देवेंद्र फडणवीस ने विरोध किया, लेकिन विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया. ऐसा एक से ज्यादा बार हुआ और मामला दिल्ली पहुंचा तो क्या होगा?
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया का मामला देखा जाये तो लगता तो यही है कि एकनाथ शिंदे की ही बात मानी जाएगी. ये सोच कर भी कि कहीं वो नाराज न हो जायं. जैसे तमाम दिक्कतों के बावजूद बीजेपी नीतीश कुमार को नाराज नहीं करती.
अब ये समझना भी जरूरी है कि देवेंद्र फडणवीस और शिवराज सिंह चौहान के सामने हालात एक जैसे भले हों, लेकिन दोनों बहुत बड़ा फर्क है. अव्वल तो चौहान के मुकाबले फडणवीस की पोजीशन भी बेहतर है. मोदी-शाह के पहले के दौर वाले चौहान को बीजेपी मजबूरी में ढो रही है, जबकि फडणवीस फेवरेट रहे हैं. 30 जून से पहले कभी ऐसा देखने को नहीं मिला है कि देवेंद्र फडणवीस को इग्नोर किया जा रहा हो.
मुद्दे की बात ये है कि बीजेपी नेतृत्व भले ही बड़े मिशन के साथ फडणवीस एक्सपेरिमेंट कर रहा हो, लेकिन ये काम फडणवीस को भरोसे में लेकर भी तो किया जा सकता था. मान भी लेते हैं कि देवेंद्र फडणवीस तैयार नहीं होते, लेकिन जैसे बात मान कर डिप्टी सीएम बने हैं - ऐसा पहले भी तो कर सकते थे और किसी को कानों कान खबर तक न होती.
ऐसे कैसे शिवसेना पर काबिज होगी बीजेपी?
बीजेपी का मैसेज तो साफ है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि लोगों तक पहुंच भी रहा है क्या? और अगर अभी नहीं पहुंच रहा है तो जिन लोगों पर ये जिम्मेदारी है, वे पहुंचाने में कामयाब रहेंगे क्या?
लोग अपने हिसाब से ही समझते हैं, लेकिन बार बार समझाने पर काफी लोग समझायी हुई बातें भी समझ लेते हैं - देश में हिंदुत्व की राजनीति का अभी जो दबदबा है, वैसे ही हुआ है. और ये लंबे अरसे से चल रही कोशिशों का नतीजा है.
महाराष्ट्र में भी जो कुछ हुआ है उसका आधार हिंदुत्व की राजनीति ही है. हिंदुत्व की वो राजनीति जिसे शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे ने पेश किया. एकनाथ शिंदे बार बार ये बात दोहराते भी रहे हैं. हो सकता है, ये उनकी अपनी समझ से संभव हुआ हो, या फिर वो भी समझाये जाने पर समझ गये हों.
अपने ट्विटर प्रोफाइल में बाल ठाकरे के कदमों में बैठे एकनाथ शिंदे तस्वीर लगाकर भी यही मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं. जोर जोर से ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि बाल ठाकरे के हिंदुत्व की राजनीति के असली वारिस वहीं हैं, उद्धव ठाकरे तो बिलकुल नहीं. उद्धव ठाकरे इसलिए नहीं क्योंकि वो शिवसेना की मूल अवधारणा को किनारे रख कर सरकार बनाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिये.
अब बीजेपी एकनाथ शिंदे के कंधे का इस्तेमाल करते हुए कम से कम दो मकसद साधने का प्रयास कर रही है. एक शिवसेना को उसी की तरकश के तीर से निशाना बनाना - और देश भर की तरफ कांग्रेस और उसकी गठबंधन साथी एनसीपी से महाराष्ट्र को मुक्त कराना.
बीजेपी की तरफ से ये समझाने की कोशिश हो रही है कि वो महाराष्ट्र के लोगों को 2019 वाली स्थिति दिला रही है - जब बीजेपी का शिवसेना के साथ गठबंधन रहा. बीजेपी ये बताने की कोशिश कर रही है कि वो पहले की ही तरह शिवसेना के साथ खड़ी है. बिलकुल उसी गठबंधन की तरह जिसे पिछले विधानसभा में सत्ता में वापसी का जनादेश मिला था.
लेकिन ये काम तो देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम बना कर भी दिया जा सकता था - ये भी ध्यान रहे कि एकनाथ शिंदे ने जो काम कर दिखाया है, वो बहुत बड़ा उलटफेर है. जरूरी भी नहीं कि एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम की कुर्सी से मान भी जाते. हां, देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाने की उनकी कोई इच्छा नहीं रही होगी.
महाराष्ट्र से जुड़ी मीडिया रिपोर्ट पर ध्यान दें तो कई बीजेपी नेता एकनाथ शिंदे को आगे कर बीजेपी की मराठा राजनीति में पैठ का नुस्खा भी बता रहे हैं - लेकिन ये तो पूरी तरह देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ लगता है.
क्या ये देवेंद्र फडणवीस के लिए खतरे की घंटी है: बीजेपी नेताओं का कहना है कि बीजेपी ने तीन फीसदी ब्राह्मण वोट पर 30 फीसदी मराठा वोट को तरजीह दी है - देवेंद्र फडणवीस की जगह एकनाथ शिंदे को फिलहाल आगे करने की एक बड़ी वजह यही मानी जा रही है.
वैसे भी अब एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे की लड़ाई को बिलकुल अलग तरीके से लिया जाएगा, बनिस्बत देवेंद्र फडणवीस बनाम उद्धव ठाकरे के. निश्चित तौर पर एकनाथ शिंदे काउंटर करने में हर तरीके से भारी पड़ेंगे - अगर चुनाव आयोग का फैसला एकनाथ शिंदे के पक्ष में आ गया तो उद्धव ठाकरे को मातोश्री में बैठ कर हनुमान चालीसा सुनना ही पड़ेगा.
अगर बीजेपी ने ये व्यवस्था म्युनिसिपल चुनावों तक या कुछ और दिनों तक के लिए किया है तो ठीक है, लेकिन अगर ये सब लंबा चलने वाला है तो देवेंद्र फडणवीस के लिए तो खतरे की घंटी है - आखिर, मोदी-शाह ने महाराष्ट्र में नया फडणवीस खोज लिया है क्या?
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