Devendra Fadnavis resignation के बाद महाराष्ट्र में सरकार बनने का कोई साफ संकेत तो नहीं बचा है. देवेंद्र फडणवीस ने राज भवन जाकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दे दिया. इसके साथ Shiv Sena और BJP के बीच की खाई और चौड़ी हो गई है. जिसे Shiv Sena - BJP alliance break-up भी माना जा सकता है. अब गेंद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Governor Bhagat Singh Koshyari options) के पाले में है. यानी मतलब ये है कि अब सभी हाथ पर हाथ धरे बैठ गये हैं. कोशिशें अब भी जारी हैं. बल्कि तेज हो चली है. मुलाकातें भी चल रही हैं. उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) और शरद पंवार (Sharad Pawar) खासतौर पर सक्रिय हैं.
हो तो ये भी रहा है कि शरद पवार से रामदास अठावले मिल ले रहे हैं - और संभाजी राव को मातोश्री से बैरंग लौटना पड़ रहा है. देवेंद्र फडणवीस भी लगे हुए हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे तो फोन ही नहीं उठा रहे. सियासी महफिल तो अब भी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर पर जमी हुई है. सरकार बनने के लिए बचे 24 घंटे को देखते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी सक्रिय होने लगे हैं - नेताओं से मुलाकातों के बीच राजभवन में आगे की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं.
सवाल है कि क्या गवर्नर के पास अब सिर्फ राष्ट्रपति शासन की सिफारिश का ही विकल्प बचा है. अगर ये सवाल 9 नवंबर के बाद का है तो जवाब हां में होगा, लेकिन उसके ऐन पहले के लिए है तो नहीं - रास्ते और भी हैं!
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महाराष्ट्र के संभावित राजनैतिक भविष्य को देखते हुए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के एडवोकेट जनरल से कानूनी विकल्पों पर बात की है. साथ ही कानून और व्यवस्था को लेकर मुंबई के पुलिस कमिश्रनर से भी मुलाकात की बात कही जा रही है.
महाराष्ट्र से राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े तमाम अपडेट आ रहे हैं और उनमें कई महत्वपूर्ण और दिलचस्प भी हैं -
1. अपने विधायकों की सुरक्षा स्वयं करें : शिवसेना के बाद कांग्रेस को भी विधायकों की खरीद फरोख्त की...
Devendra Fadnavis resignation के बाद महाराष्ट्र में सरकार बनने का कोई साफ संकेत तो नहीं बचा है. देवेंद्र फडणवीस ने राज भवन जाकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दे दिया. इसके साथ Shiv Sena और BJP के बीच की खाई और चौड़ी हो गई है. जिसे Shiv Sena - BJP alliance break-up भी माना जा सकता है. अब गेंद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (Governor Bhagat Singh Koshyari options) के पाले में है. यानी मतलब ये है कि अब सभी हाथ पर हाथ धरे बैठ गये हैं. कोशिशें अब भी जारी हैं. बल्कि तेज हो चली है. मुलाकातें भी चल रही हैं. उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) और शरद पंवार (Sharad Pawar) खासतौर पर सक्रिय हैं.
हो तो ये भी रहा है कि शरद पवार से रामदास अठावले मिल ले रहे हैं - और संभाजी राव को मातोश्री से बैरंग लौटना पड़ रहा है. देवेंद्र फडणवीस भी लगे हुए हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे तो फोन ही नहीं उठा रहे. सियासी महफिल तो अब भी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के घर पर जमी हुई है. सरकार बनने के लिए बचे 24 घंटे को देखते हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी सक्रिय होने लगे हैं - नेताओं से मुलाकातों के बीच राजभवन में आगे की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं.
सवाल है कि क्या गवर्नर के पास अब सिर्फ राष्ट्रपति शासन की सिफारिश का ही विकल्प बचा है. अगर ये सवाल 9 नवंबर के बाद का है तो जवाब हां में होगा, लेकिन उसके ऐन पहले के लिए है तो नहीं - रास्ते और भी हैं!
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महाराष्ट्र के संभावित राजनैतिक भविष्य को देखते हुए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने राज्य के एडवोकेट जनरल से कानूनी विकल्पों पर बात की है. साथ ही कानून और व्यवस्था को लेकर मुंबई के पुलिस कमिश्रनर से भी मुलाकात की बात कही जा रही है.
महाराष्ट्र से राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े तमाम अपडेट आ रहे हैं और उनमें कई महत्वपूर्ण और दिलचस्प भी हैं -
1. अपने विधायकों की सुरक्षा स्वयं करें : शिवसेना के बाद कांग्रेस को भी विधायकों की खरीद फरोख्त की चिंता है. चुनाव से पहले कई नेताओं को गंवा चुकी कांग्रेस को कर्नाटक में मिले जख्म भी पूरी तरह भरे कहां हैं.
कांग्रेस अपने 44 विधायकों को जयपुर के रिजॉर्ट में ले जा रही है. पहली वजह तो यही है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, जब कर्नाटक में सरकार रही तो पार्टी गुजरात के विधायकों को ले गयी थी.
शिवसेना चाहे जितनी भी हेकड़ी दिखाये, हकीकत यही है कि विधायकों के लालच में पड़ने को लेकर वो भी डरी हुई है. होटल रंग शारदा में हिफाजत की फिक्र होने लगी थी, इसलिए शिवसेना अपने विधायकों को दूसरी जगह ले जा रही है.
2. उद्धव ठाकरे तो फोन ही नहीं उठा रहे : चुनाव से पहले देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे सार्वजनिक मंचों पर हंसते मुस्कुराते भले ही नजर आये हों, लेकिन अब वो बात नहीं रही. मिलना-जुलना तो दूर, सूत्रों के हवाले से आ रही खबर के मुताबिक देवेंद्र फडणवीस हफ्ते भर के अंदर उद्धव ठाकरे से तीन बार बात करने की कोशिश कर चुके हैं - लेकिन वो फोन ही नहीं उठा रहे हैं.
3. संभाजी भिड़े का बैरंग लौटना : महाराष्ट्र के हिंदुत्ववादी नेता संभाजी भिड़े हाल फिलहाल चर्चा में तो भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर रहे हैं, लेकिन माना ये जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी संभाजी भिड़े का सम्मान करते हैं. मगर, इन बातों से उद्धव ठाकरे को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.
खबर है कि संभाजी भिड़े मातोश्री गये थे उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने लेकिन उलटे पांव लौट भी आये. मातोश्री में संभाजी को भाव नहीं मिला क्योंकि उद्धव ठाकरे मिलने को राजी नहीं हुए. हालांकि, कहा जा रहा है कि मुलाकात नहीं हो सकी - लेकिन संभाजी भिड़े का संदेश उद्धव ठाकरे तक पहुंच गया है.
4. NCP से संपर्क संभव है : एक मीडिया रिपोर्ट में देवेंद्र फडणवीस कैबिनेट के एक सदस्य का गुमनाम बयान आया है, 'हम NCP से भी संपर्क कर सकते हैं. जैसे 2014 में समर्थन लिया गया था...' मतलब, सारे विकल्पों पर तेजी से काम चल रहा है.
5. नितिन गडकरी के यहां जमी महफिल : एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के बहाने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी महाराष्ट्र में डेरा डाल चुके हैं. सुना है गडकरी के के घर पर सरकार बनाने को लेकर माथापच्ची चल रही है. सरकार बनाने के रास्ते की तलाश में महाराष्ट्र बीजेपी के सीनियर नेता चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े, सुभाष देशमुख, संभाजी निलंगेकर-पाटिल पहुंचे हुए हैं.
गवर्नर चाहें तो 24 घंटे में सरकार बन जाये
ऐसा भी नहीं कि महाराष्ट्र में गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका 9 नवंबर के बाद शुरू होगी. जैसी विशेष परिस्थितियां पैदा हुई हैं, गवर्नर के पास तमाम विशेषाधिकार होते हैं - और राजभवन तय कर ले कि 24 घंटे में सरकार बना देनी है तो ये भी मुमकिन है. ये बात अलग है कि गवर्नर की व्यवस्था कितने दिन टिकती है. जाने माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया है कि आखिरी दौर में क्या क्या हो संभव है?
1. विधानसभा के साथ ही मुख्यमंत्री का भी कार्यकाल खत्म हो जाये जरूरी नहीं है. राज्यपाल चाहें तो देवेंद्र फडणवीस को कार्यवाहक मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने के लिए कह सकते हैं. ये व्यवस्था स्थायी इंतजाम होने तक चल सकती है.
2. राज्यपाल को ये अधिकार है कि वो सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दें. शर्त ये है कि राज्यपाल को यकीन हो कि वो बहुमत साबित कर सकते हैं. बाद में भले ही वो फ्लोर टेस्ट में फेल हो जायें, फर्क नहीं पड़ता.
3. राज्यपाल विधानसभा में ही विधायकों को बुलाकर अपना नेता चुनने को कह सकते हैं. जो भी विधायक नेता चुना जाता है मुख्यमंत्री बन जाएगा. ऐसा पहले भी हो चुका है.
4. राष्ट्रपति शासन की सिफारिश राज्यपाल के लिए आखिरी विकल्प है. अगर गवर्नर की तरफ से हो रही कोशिशों के बीच अगर कोई सरकार बनाने का राज्यपाल को भरोसा दिलाता है तो सारे ऑप्शन खुले हैं.
बीजेपी की तरफ से NCP से संपर्क का संकेत दिया जाना और शिवसेना के एनडीए छोड़ने की खबरों के बीच मान कर चलना चाहिये कि सरकार बनाने की संभावना खत्म नहीं हुई है.
महाराष्ट्र जैसे हालात में भी सरकारें बनती हैं
सरकार बनाने को लेकर जब भी कोई विशेष परिस्थिति बनती है तो केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार जरूर याद आती है - लेकिन राज्यों में भी प्रतिकूल परिस्थितियों में सरकार बनाने की कोशिशें हुई हैं - भले ही वो स्वस्थ लोकतांत्रिक पैमानों पर खरे न उतर पाते हों.
महाराष्ट्र का तो मामला ही अलग है. महाराष्ट्र में तो जनता ने बहुमत और एक मजबूत विपक्ष को वोट दिया है. एक सरकार चलाये और दूसरा सही गलत पर कड़ी नजर रखे. फिर भी कम से कम दो उदाहरण ऐसे हैं जो महाराष्ट्र के प्रसंग में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
1. केजरीवाल की 49 दिन की सरकार : दिल्ली के रामलीला मैदान आंदोलन के बाद 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. ये चुनाव डॉ. हर्षवर्धन के नेतृत्व में लड़ा गया था और बीजेपी ने जोड़-तोड़ कर सरकार न बनाने का फैसला किया. लिहाजा दूसरी बड़ी पार्टी आप आगे आयी और बुरी शिकस्त के बावजूद कांग्रेस सपोर्ट के लिए तैयार हो गयी.
अरविंद केजरीवाल ने सरकार बनायी लेकिन 49 दिन में ही भाग खड़े हुए. हां, अगली बार घूम-घूम कर माफी मांगे और 70 में से 67 सीटें जीत ली. फिलहाल केजरीवाल की पार्टी सरकार के पांच साल पूरे होने के बाद सत्ता में वापसी की तैयारी कर रही है.
2. नीतीश की 7 दिन वाली पारी : 2000 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने - लेकिन महज सात दिन तक ही टिक सके.
तब 324 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 123 विधायकों के साथ लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. ये बिहार से झारखंड के अलग होने के पहले की बात है जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी.
NDA के नेता नीतीश कुमार के समर्थन में सिर्फ 122 विधायक जीत पाये थे - यानी आरजेडी से ठीक एक कम. फिर भी गवर्नर वीसी पांडे को पूरा भरोसा रहा कि नीतीश कुमार न सिर्फ सरकार बना लेंगे बल्कि पांच साल चला भी लेंगे. कहते हैं ये विश्वास राज्यपाल को केंद्र की ओर से दिलाया गया था. बाद में नीतीश के सहयोगी रहे समाजवादी नेता पीके पांडेय ने ये बात आउटलुक पत्रिका को बतायी थी.
नीतीश के करीबी नेताओं ने सरकार बचाने की कोशिश में अपनी तरफ से कोई कसर बाकी न रखी थी. वे जेलों में बंद विधायकों से मिले और नीतीश की ओर से डिनर पार्टी भी दी गयी - फिर भी सात दिन में ही सारी कवायद नाकाम लगने लगी और नीतीश कुमार ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया.
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