नौ दिन उपराज्यपाल के कार्यालय में सोफा धरना करने के बाद अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुरुवार को दस दिन के लिए बेंगलूरु पहुंच गए हैं. बताया गया है कि नौ दिन के सोफा धरना के कारण केजरीवाल के शरीर में शुगर बढ़ गई थी. अपने मधुमेह का इलाज कराने के लिए मुख्यमंत्री साहब प्राकृतिक चिकित्सा के लिए बेंगलूरु पहुंचे हैं. अरविंद के खराब स्वास्थ्य के कारण आईएएस अधिकारियों के साथ उनकी बैठक भी लटक गई है.
दिलचस्प यह है कि केजरीवाल जब बेंगलुरु से लौटेंगे तो वो फिर एक आंदाेलन में व्यस्त हो जाएंगे. गौरतलब है कि 1 जुलाई से आम आदमी पार्टी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग लेकर आंदोलन करने वाली है. 'आप' ने 1 जुलाई को इस विषय पर महा-सम्मेलन बुलाने का निर्णय किया है. यदि आम आदमी पार्टी इसी प्रकार धरने और आंदोलनों में व्यस्त रहेगी तो दिल्ली की समस्याओं पर काम कैसे होगा?
मुख्यमंत्री होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल ने किसी भी विभाग का कार्यभार नहीं लिया हुआ है. इस तथ्य से यह अंदाजा लग सकता है कि दिल्ली की समस्याओं के निवारण के लिए वह कितने चिंतित होंगे. जब किसी व्यक्ति के पास किसी विभाग का कार्यभार ही नहीं होगा तो कोई उसपर काम पूरा न करने का आरोप ही नहीं लगा पाएगा. उस व्यक्ति की कोई जवाबदेही ही नहीं होगी. ऐसे व्यक्ति के काम का कैसे मूल्यांकन होगा? कहावत है- 'खाली दिमाग शैतान का घर' जो दिल्ली के मुख्यमंत्री पर ठीक बैठती है. जिस व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होगा, वह हर समय धरने और आंदोलन करने के बारे में ही सोचता रहेगा.
वर्तमान में दिल्ली के कई क्षेत्र पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं. पानी के लिए शहर में हत्याएं हो रही हैं. शहर में...
नौ दिन उपराज्यपाल के कार्यालय में सोफा धरना करने के बाद अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गुरुवार को दस दिन के लिए बेंगलूरु पहुंच गए हैं. बताया गया है कि नौ दिन के सोफा धरना के कारण केजरीवाल के शरीर में शुगर बढ़ गई थी. अपने मधुमेह का इलाज कराने के लिए मुख्यमंत्री साहब प्राकृतिक चिकित्सा के लिए बेंगलूरु पहुंचे हैं. अरविंद के खराब स्वास्थ्य के कारण आईएएस अधिकारियों के साथ उनकी बैठक भी लटक गई है.
दिलचस्प यह है कि केजरीवाल जब बेंगलुरु से लौटेंगे तो वो फिर एक आंदाेलन में व्यस्त हो जाएंगे. गौरतलब है कि 1 जुलाई से आम आदमी पार्टी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग लेकर आंदोलन करने वाली है. 'आप' ने 1 जुलाई को इस विषय पर महा-सम्मेलन बुलाने का निर्णय किया है. यदि आम आदमी पार्टी इसी प्रकार धरने और आंदोलनों में व्यस्त रहेगी तो दिल्ली की समस्याओं पर काम कैसे होगा?
मुख्यमंत्री होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल ने किसी भी विभाग का कार्यभार नहीं लिया हुआ है. इस तथ्य से यह अंदाजा लग सकता है कि दिल्ली की समस्याओं के निवारण के लिए वह कितने चिंतित होंगे. जब किसी व्यक्ति के पास किसी विभाग का कार्यभार ही नहीं होगा तो कोई उसपर काम पूरा न करने का आरोप ही नहीं लगा पाएगा. उस व्यक्ति की कोई जवाबदेही ही नहीं होगी. ऐसे व्यक्ति के काम का कैसे मूल्यांकन होगा? कहावत है- 'खाली दिमाग शैतान का घर' जो दिल्ली के मुख्यमंत्री पर ठीक बैठती है. जिस व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होगा, वह हर समय धरने और आंदोलन करने के बारे में ही सोचता रहेगा.
वर्तमान में दिल्ली के कई क्षेत्र पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं. पानी के लिए शहर में हत्याएं हो रही हैं. शहर में प्रदूषण की समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप लेती जा रही है. दिल्ली सरकार के पास प्रदूषण से लड़ने की कोई रणनीति नज़र नहीं आ रही है. समय के साथ-साथ डीटीसी की बसें पुरानी होती जारी रही हैं पर उनके स्थान पर नई बसें वर्षों से नहीं आई हैं. दिल्ली के यातायात मंत्री कई वर्षों से नई डीटीसी लाने की बात कर रहे हैं, पर वह केवल खोखले आश्वासन ही प्रतीत होते हैं. शहर में सीलिंग का मुद्दा जस का तस लटका पड़ा है. दिल्ली सरकार के अनेक मोहल्ला क्लीनिक व्यवस्था के अभाव में दम तोड़ रहे हैं.
इतनी सारी ज्वलंत समस्याओं का समाधान करने के बजाए दिल्ली सरकार के मंत्री और स्वयं मुख्यमंत्री उपराज्यपाल से लड़ने में ही अपनी सारी शक्ति लगा रहे हैं. तीन सालों से दिल्ली की जनता अपने मुख्यमंत्री से यह उम्मीद लगाकर बैठी है कि वह शहर की समस्याओं का निदान करेंगे. अभी तक तो दिल्ली वालों को निराशा ही हाथ लगी है. काम की अपेक्षा करना, शायद अरविंद केजरीवाल से कुछ ज़्यादा की उम्मीद करना है. लोक सभा चुनाव में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है. पिछले तीन साल के तमाशे से यह साफ लगता है कि दिल्ली को एक और साल इस तमाशे को झेलना होगा.
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