द फ्लोरिडा स्टैडर्ड नाम की अमेरिकी वेबसाइट में एक लेख छपा है. जिसमें डॉ. नाओमी वुल्फ ने दावा किया है कि फाइजर की कोरोना वैक्सीन के ट्रायल्स के दौरान 44 फीसदी महिलाओं का गर्भपात हुआ था. द फ्लोरिडा स्टैडर्ड ने इसे 'नरसंहार' बताया है. डॉ. नाओमी वुल्फ ने अमेरिका के फ्रीडम ऑफ इनफॉर्मेशन एक्ट के तहत जुटाए गए तीन लाख पन्नों का एनालिसिस किया था. जिसमें फाइजर कंपनी और सरकारी अधिकारियों के बीच हुई बातचीत और ईमेल शामिल नहीं हैं. इस पर इसी साल जनवरी में अमेरिका की एक कोर्ट में मामला भी दर्ज करवाया गया था. इस चौंकाने वाले खुलासे की खबर को ट्वीट करते हुए RSS की संस्था प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय समन्वयक जे नंदकुमार ने कहा कि 'भारत के लिबरल और लुटियंस मीडिया इसी वैक्सीन को आयात किए जाने का दबाव प्रधानमंत्री पर बना रहे थे. शुक्र है कि भारत ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन पर भरोसा किया.'
गर्भवती महिलाओं पर कोरोना वैक्सीन के असर को लेकर संशय
कोरोना महामारी से खिलाफ वैक्सीन आने की खबर के साथ ही दुनियाभर में इसे लेकर मारामारी मच गई थी. हर देश अपने यहां तेजी से कोरोना टीकाकरण को शुरू करना चाहता था. लेकिन, कोरोना महामारी के दौरान गर्भवती महिलाओं पर कोविड टीकाकरण का क्या असर होगा? इसे लेकर लंबे समय तक संशय बना रहा था. फरवरी, 2021 में खबर सामने आई थी कि कोविड वैक्सीन बनाने वाली फाइजर समेत कई विदेशी कंपनियों ने गर्भवती महिलाओं पर परीक्षण करने की तैयारी शुरू कर दी है. जिससे पता किया जा सके कि कोरोना टीके गर्भवती माताओं के लिए सुरक्षित हैं या नहीं? बता दें कि डॉ. नाओमी वुल्फ ने फाइजर के इन्हीं ट्रायल्स के पेपर्स को खंगाला था. और, 44 फीसदी महिलाओं के गर्भपात की बात सामने आई थी.
द फ्लोरिडा स्टैडर्ड नाम की अमेरिकी वेबसाइट में एक लेख छपा है. जिसमें डॉ. नाओमी वुल्फ ने दावा किया है कि फाइजर की कोरोना वैक्सीन के ट्रायल्स के दौरान 44 फीसदी महिलाओं का गर्भपात हुआ था. द फ्लोरिडा स्टैडर्ड ने इसे 'नरसंहार' बताया है. डॉ. नाओमी वुल्फ ने अमेरिका के फ्रीडम ऑफ इनफॉर्मेशन एक्ट के तहत जुटाए गए तीन लाख पन्नों का एनालिसिस किया था. जिसमें फाइजर कंपनी और सरकारी अधिकारियों के बीच हुई बातचीत और ईमेल शामिल नहीं हैं. इस पर इसी साल जनवरी में अमेरिका की एक कोर्ट में मामला भी दर्ज करवाया गया था. इस चौंकाने वाले खुलासे की खबर को ट्वीट करते हुए RSS की संस्था प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय समन्वयक जे नंदकुमार ने कहा कि 'भारत के लिबरल और लुटियंस मीडिया इसी वैक्सीन को आयात किए जाने का दबाव प्रधानमंत्री पर बना रहे थे. शुक्र है कि भारत ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन पर भरोसा किया.'
गर्भवती महिलाओं पर कोरोना वैक्सीन के असर को लेकर संशय
कोरोना महामारी से खिलाफ वैक्सीन आने की खबर के साथ ही दुनियाभर में इसे लेकर मारामारी मच गई थी. हर देश अपने यहां तेजी से कोरोना टीकाकरण को शुरू करना चाहता था. लेकिन, कोरोना महामारी के दौरान गर्भवती महिलाओं पर कोविड टीकाकरण का क्या असर होगा? इसे लेकर लंबे समय तक संशय बना रहा था. फरवरी, 2021 में खबर सामने आई थी कि कोविड वैक्सीन बनाने वाली फाइजर समेत कई विदेशी कंपनियों ने गर्भवती महिलाओं पर परीक्षण करने की तैयारी शुरू कर दी है. जिससे पता किया जा सके कि कोरोना टीके गर्भवती माताओं के लिए सुरक्षित हैं या नहीं? बता दें कि डॉ. नाओमी वुल्फ ने फाइजर के इन्हीं ट्रायल्स के पेपर्स को खंगाला था. और, 44 फीसदी महिलाओं के गर्भपात की बात सामने आई थी.
अचानक आई फाइजर के सीईओ की सफाई
ये एक चौंकाने वाला मामला ही कहा जा सकता है कि जिस दिन डॉ. नाओमी वुल्फ ने फाइजर के इन ट्रायल्स में हुए गर्भपात को लेकर एक टीवी कार्यक्रम में पहुंचीं. उसी दिन फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोर्ला के कोरोना पॉजिटिव होने की खबर भी सामने आई. जिसके बाद फाइजर के सीईओ अल्बर्ट बोर्ला ने एक लंबा-चौड़ा बयान भी जारी किया. जिसमें फाइजर वैक्सीन और इसमें इस्तेमाल होने वाले ड्रग के बारे में तमाम फायदे गिनाने के साथ ही गर्भवती महिलाओं पर इसके असर को लेकर भी बात कही.
अल्बर्ट बोर्ला ने कहा कि 'फाइजर वैक्सीन में इस्तेमाल किए जाने वाले निर्मट्रेलविर ड्रग का गर्भावस्था के दौरान जन्म के दौरान होने वाले दोषों, गर्भपात, माता या भ्रूण पर पड़ने वाले प्रतिकूल परिणामों के मूल्यांकन का कोई डाटा मौजूद नही है. इसके साथ फाइजर वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाली रिटोनविर ड्रग के उपयोग से जुड़ी स्टडीज में भी गर्भवती महिलाओं में प्रमुख जन्म दोषों के होने का जोखिम सामने नहीं आया है. रिटोनवीर को गर्भपात से जुड़े जोखिम के तौर पर पेश करने के लिए प्रकाशित अध्ययन अपर्याप्त हैं. गर्भावस्था के दौरान कोविड-19 का उपचार न करने पर भी मातृ और भ्रूष से जुड़े जोखिम सामने आए हैं.'
वैसे, अल्बर्ट बोर्ला का ये लंबा-चौड़ा बयान ये बताने के लिए काफी है कि फाइजर वैक्सीन में इस्तेमाल हुए ड्रग्स को लेकर कंपनी के पास भी कोई डाटा मौजूद नहीं है. वहीं, अमेरिका में इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से गर्भवती महिलाओं पर किया जा रहा है. यही फाइजर वैक्सीन बीते साल ही भारत में भी आने को तैयार थी. साथ ही खुद को सुरक्षित भी बता रही थी.
भारत आने को तैयार था फाइजर, लेकिन मोदी सरकार ने कहा- ना
बीते साल मार्च में आई कोरोना की दूसरी लहर के बाद फाइजर ने अपनी कोरोना वैक्सीन भारतीय बाजार में उतारने के लिए मोदी सरकार से अनुमति मांगी थी. लंबे समय तक फाइजर और मोदी सरकार के बीच बातचीत चलती रही. लेकिन, अगस्त, 2021 में ये बात सामने आई कि भारत सरकार फाइजर/बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है. दरअसल, अमेरिकी कंपनी फाइजर ने भारत सरकार से टीकों के इस्तेमाल से होने वाली किसी भी दुष्प्रभाव पर कानूनी सुरक्षा की मांग की थी. जिसे लेकर भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया था. मोदी सरकार ने इसे लेकर तर्क दिया था कि रूस की कोरोना वैक्सीन Sputnik-V को भी ये सुरक्षा नहीं दी गई है.
चरणबद्ध कोरोना टीकाकरण ने गर्भवती महिलाओं के लिए खोली राह
बीते साल भारत में 16 जनवरी से शुरू हुए कोविड टीकाकरण के दो महीने बाद ही कोरोना महामारी की दूसरी लहर आने से वैक्सीन की किल्लत की खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. जिसके बाद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर काफी दबाव था कि देश में सभी टीकों की उपलब्धता हो. उस दौरान भारत में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भी ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के स्वदेश निर्मित टीके कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी. लेकिन, ये वैक्सीन चरणबद्ध तरीके से पहले कोरोना फ्रंटलाइन वॉरियर्स, फिर 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों, फिर 45+ गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों से होते हुए 18+ लोगों तक पहुंची थी.
शुरुआत में इन कोरोना वैक्सीन का इस्तेमाल गर्भवती महिलाओं के साथ ही स्तनपान कराने वाली महिलाओं पर नहीं किया जा रहा था. लेकिन, अगस्त तक कोविशील्ड और कोवैक्सीन के ट्रायल्स से जुड़े आंकड़े आ जाने के बाद केंद्रीय स्वास्थय मंत्रालय ने इन वैक्सीन को गर्भवती महिलाओं पर भी इस्तेमाल की इजाजत दे दी. क्योंकि, इन वैक्सीन का गर्भवती महिलाओं पर कोई भी गंभीर असर देखने को नहीं मिला. इतना ही नहीं, कोविशील्ड और कोवैक्सीन बनाने वाली कंपनियां टीकों के इस्तेमाल से होने वाली दुष्प्रभाव पर कानूनी सुरक्षा भी नहीं मांग रही थीं. जैसा कि फाइजर ने किया था.
स्वदेशी कोरोना टीकों पर ही टिका रहा भारत
कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन अभियान के शुरू होने के बाद बीते साल के अंत तक सरकार ने 8 वैक्सीन को मंजूरी दे दी थी. लेकिन, इनमें से सिर्फ 3 कोरोना वैक्सीन का ही इस्तेमाल किया जा रहा था. कोविशील्ड, कोवैक्सीन और Sputnik-V ही इस्तेमाल की जा रही थीं. जिसमें से Sputnik-V का टीका मुफ्त नहीं था. कोविशील्ड, कोवैक्सीन और Sputnik-V के अलावा भारत सरकार ने कोवोवैक्स (Covovax), कोर्बेवैक्स (Corbevax), मॉडर्ना (Moderna), जॉनसन एंड जॉनसन (Johnson & Johnson) और जाइकोव डी (ZyCOV-D) के भी आपात इस्तेमाल को मंजूरी दी थी.
लेकिन, इन वैक्सीन में से केवल कोर्बेवैक्स और जाइकोव डी का ही इस्तेमाल आगे बढ़ सका. ये दोनों ही टीके भारत में ही निर्मित किए गए थे. और, इन कोरोना वैक्सीन का इस्तेमाल बच्चों पर किया गया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो दुनिया की मेडिसिन लॉबी के दबाव के बावजूद भारत कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वदेशी टीकों पर ही टिका रहा.
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