उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का बिगुल बच चुका है. सभी राजनीतिक पार्टियां जोर-शोर से अभी से ही तैयारियों में जुट गईं हैं. पीएम नरेंद्र मोदी सीएम आदित्यनाथ की तारीफ पर तारीफ करते नजर आ रहे हैं. बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को सीएम का चेहरा घोषित करके उनपर विश्वास जताया है.
वहीं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी यूपी चुनाव के लिए अपनी पार्टी को तैयार कर रहे हैं. अखिलेश को यकीन है कि 2022 चुनाव में उनकी पार्टी 400 सीटों से चुनाव जीतेगी. इस बीच राजनीति गलियारे में सपा महिला नेताओं और डिम्पल यादव को लेकर चर्चा शुरु हो गई है कि, क्या उन्हें अब राजनीति करनी चाहिए या नहीं. उनके होने या ना होने से सपा को क्या फायदा है या क्या नुकसान है. या इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे चुनाव लड़ रही हैं या नहीं. आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है चलिए बताते हैं.
अखिलेश यादव कई बार मंच से यह कह चुके हैं कि वे गठबंधन को लेकर छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. दूसरी तरफ अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी चुनावी रणनीति साधने में जुटे हुए हैं. लोगों का कहना है कि 2017 यूपी चुनाव में सपा की हार की एक बड़ी वजह शिवपाल यादव का पार्टी से अलग होना भी है. पारिवारिक कलह का सपा पर बड़ा प्रभाव पड़ा और इसका फायदा बीजेपी को मिला.
इस बीच राजीनीति की पकड़ रखने वाले लोगों का कहना है कि इस समय सपा को धाकड़ महिला नेताओं की बहुत जरूरत है. ऐसे में अखिलेश यादव और डिम्पल यादव को मिलकर तय कर लेना चाहिए कि डिम्पल को राजनीति करनी है या नहीं.
असल में वो राजनीति तो कर नहीं पा रही हैं, उपर से पार्टी की किसी और महिला नेता को आगे कर पा रही हैं. जबकि पार्टी में कई ऐसे युवा चेहरे हैं जो महिलाओं का...
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 का बिगुल बच चुका है. सभी राजनीतिक पार्टियां जोर-शोर से अभी से ही तैयारियों में जुट गईं हैं. पीएम नरेंद्र मोदी सीएम आदित्यनाथ की तारीफ पर तारीफ करते नजर आ रहे हैं. बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को सीएम का चेहरा घोषित करके उनपर विश्वास जताया है.
वहीं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी यूपी चुनाव के लिए अपनी पार्टी को तैयार कर रहे हैं. अखिलेश को यकीन है कि 2022 चुनाव में उनकी पार्टी 400 सीटों से चुनाव जीतेगी. इस बीच राजनीति गलियारे में सपा महिला नेताओं और डिम्पल यादव को लेकर चर्चा शुरु हो गई है कि, क्या उन्हें अब राजनीति करनी चाहिए या नहीं. उनके होने या ना होने से सपा को क्या फायदा है या क्या नुकसान है. या इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे चुनाव लड़ रही हैं या नहीं. आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है चलिए बताते हैं.
अखिलेश यादव कई बार मंच से यह कह चुके हैं कि वे गठबंधन को लेकर छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. दूसरी तरफ अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव भी चुनावी रणनीति साधने में जुटे हुए हैं. लोगों का कहना है कि 2017 यूपी चुनाव में सपा की हार की एक बड़ी वजह शिवपाल यादव का पार्टी से अलग होना भी है. पारिवारिक कलह का सपा पर बड़ा प्रभाव पड़ा और इसका फायदा बीजेपी को मिला.
इस बीच राजीनीति की पकड़ रखने वाले लोगों का कहना है कि इस समय सपा को धाकड़ महिला नेताओं की बहुत जरूरत है. ऐसे में अखिलेश यादव और डिम्पल यादव को मिलकर तय कर लेना चाहिए कि डिम्पल को राजनीति करनी है या नहीं.
असल में वो राजनीति तो कर नहीं पा रही हैं, उपर से पार्टी की किसी और महिला नेता को आगे कर पा रही हैं. जबकि पार्टी में कई ऐसे युवा चेहरे हैं जो महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. अब चुनाव का समय नजदीक है या तो डिम्पल हाउस वाइफ की भूमिका छोड़कर पूरी तरह राजनीति में उतर आएं और अपने दम से दूसरी पार्टी की महिला नेताओं को चुनौती दें या दूसरी महिलाओं को आगे लाने का काम करें. जबकि यह समय समाजवादी सड़क पर उतरकर हल्ला बोलने का है, जो पार्टी का चरित्र है.
दरअसल, डिम्पल यादव एक राजनीतिक परिवार से हैं पार्टी अध्यक्ष की पत्नी हैं और वही उनकी राजनीतिक क्षमता है. वो कभी भी न माया बन सकीं हैं न ममता. उनसे जनता को न तब कोई आस उम्मीद थी न आज कोई उलाहना है. सपा की राजनीति समाजवाद पर आधारित है इसमें समाज की महिलाएं कहां हैं और उनकी क्या भूमिका है ये बहस का मुद्दा है पर डिम्पल कोई लीडर रही हों ये कभी नहीं था.
जबकि डिंपल की देवरानी अपर्णा यादव अपनी बात बहुत ही गंभारता और दम के साथ रखती हैं. एक इंटरव्यू में अपर्णा ने कहा था कि उन्होंने राजनीति की बारिकियां चाचा शिवपाल से सीखी हैं. उनका कहना था कि अगर नेताजी के साथ किसी ने राजनीति में कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है वह चाचा जी ही है इसमें कोई दो राय नहीं है. किसी को भी हमेशा अपने राजनीतिक गुरु की सुननी चाहिए और मेरे राजनीतिक गुरु मुलायम सिंह यादव ही हैं.
अपर्णा 2017 विधानसभा चुनाव में लखनऊ कैंट निर्वाचन क्षेत्र से वह 33796 मतों के अंतर से रीता बहुगुणा जोशी से पराजित हुईं थीं. इसके बाद उन्हें लोकसभा सीट से लड़ने के लिए टिकट नहीं मिला था और वे चुनाव नहीं लड़ पाई थी, उन्होंने पार्टी के प्रमुख के फैसले को स्वीकार किया था.
यूपी 2017 के चुनाव में एक और नाम की खूब चर्चा हई थी, वो नाम था रिचा सिंह. सियासत के शहर में पूरे प्रदेश में चर्चित और वीआईपी सीट शहर पश्चिमी से चुनावी मैदान में उतरी और भाजपा के भयकर लहर में दूसरे स्थान रही. छात्र राजनीत में राष्ट्रिय मीडिया तब उनकी चर्चा हुई जब उन्होंने भाजपा के फायर ब्रांड तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ से दो-दो हाथ करने की ठानी और इविवि कैम्पस में उनके कार्यक्रम को रद्द करा दिया.
जिस तरह चुनाव के समय स्मृति ईरानी, प्रियंका गांधी, मायावती और मममा चुनाव मैदान में उतरी हैं उस टक्कर में डिम्पल यादव कहीं ना कहीं कम पड़ जाती हैं. एक रैली में वे कार्यकर्ताओं से परेशान होकर भइया से शिकायत कर दूंगी कि धमकी दे डाली थी. सभी कार्यकर्ता उन्हें भाबी कहकर बुलाते हैं. ऐसे समय में डिंपल को जनता में अपनी पकड़ मजबूत करने और खुलकर सामने आने की जरूरत है.
ऐसे में कई लोगों का तो यह भी कहना है कि भैया, डिम्पल यादव राजनीति करे या ना करें इससे क्या मुद्दे बदल जाएंगे? पिछले साढे चार साल में कब डिम्पल यादव इतनी सक्रिय दिखीं हैं कि अन्य महिला नेता उनकी वजह से आगे नहीं आ पा रही हैं? डिंपल सांसद का चुनाव लड़ती हैं और आगे भी लड़ेंगी, इससे पार्टी पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.
हांलिक महिला मुद्दों को सामने लाने के लिए सपा को धाकड़ महिला नेताओं की जरूरत तो है...समाजवादी पार्टी में परिवारवाद और पितृसत्ता के बीच इतना लंबा सफर तय करने वाली एक महिला हैं, डिंपल यादव, इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है...
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.