खबर है कि अगर चीन में कोई 'राष्ट्रवाद' की बह रही धारा के विपरीत चला तो सरकार उसे दंडित करेगी. राष्ट्रवाद या देशप्रेम एक बेहद व्यक्तिगत चीज है. मैं कितना राष्ट्रवादी हूं इसका निर्धारण आप नहीं कर सकते. आप कितने बड़े देशभक्त हैं इसको मांपने का पैमाना मेरे पास नहीं है. हम अपने-अपने तरीके से अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित होते हैं. हालांकि ये बात एक नागरिक के संबंध में थी मगर इसी बात को अगर किसी नेता के सन्दर्भ में रखकर देखें तो मिलेगा कि इसे वो अपनी राजनीति का आधार बनाकर वोट जुटा सकता है और शासक बन अपनी जनता पर वर्षों शासन कर सकता है.या ये भी कहा जा सकता है कि एक नेता के लिए राष्ट्रवाद पॉलिटिकल टूल की तरह काम करता है.
इस बात को समझने के लिए आपको विश्व के चार बड़े नेताओं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझना होगा. इन चारों में एक बात कॉमन है. ये चारों राष्ट्रवाद के पुरोधा हैं और तमाम बातों के बीच राष्ट्रवाद के बल पर अपने-अपने देश चला रहे हैं. इन चारों का ही उद्देश्य अपने-अपने देशों को महान बनाना है और विश्व मानचित्र पर चमकते हुए देखना है.
जब बात किसी भी देश के राष्ट्रवाद की हो तो वहां के झंडे या फिर राष्ट्रीय गीत/राष्ट्रगान को खारिज नहीं किया जा सकता. अब चाहे हमारा देश भारत हो या फिर पड़ोसी मुल्क चीन आज दोनों ही देशों की राजनीति तमाम बातों से इतर या तो राष्ट्रगीत/राष्ट्रगान के अल्फाजों या फिर झंडे के डंडे के आसपास आकर सिमट गयी है. राष्ट्रवाद के मामले में हम भारतीय उदार हैं मगर इसको लेकर चीन बेहद गंभीर है. एक तरफ जहां भारत में...
खबर है कि अगर चीन में कोई 'राष्ट्रवाद' की बह रही धारा के विपरीत चला तो सरकार उसे दंडित करेगी. राष्ट्रवाद या देशप्रेम एक बेहद व्यक्तिगत चीज है. मैं कितना राष्ट्रवादी हूं इसका निर्धारण आप नहीं कर सकते. आप कितने बड़े देशभक्त हैं इसको मांपने का पैमाना मेरे पास नहीं है. हम अपने-अपने तरीके से अपने राष्ट्र के प्रति समर्पित होते हैं. हालांकि ये बात एक नागरिक के संबंध में थी मगर इसी बात को अगर किसी नेता के सन्दर्भ में रखकर देखें तो मिलेगा कि इसे वो अपनी राजनीति का आधार बनाकर वोट जुटा सकता है और शासक बन अपनी जनता पर वर्षों शासन कर सकता है.या ये भी कहा जा सकता है कि एक नेता के लिए राष्ट्रवाद पॉलिटिकल टूल की तरह काम करता है.
इस बात को समझने के लिए आपको विश्व के चार बड़े नेताओं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझना होगा. इन चारों में एक बात कॉमन है. ये चारों राष्ट्रवाद के पुरोधा हैं और तमाम बातों के बीच राष्ट्रवाद के बल पर अपने-अपने देश चला रहे हैं. इन चारों का ही उद्देश्य अपने-अपने देशों को महान बनाना है और विश्व मानचित्र पर चमकते हुए देखना है.
जब बात किसी भी देश के राष्ट्रवाद की हो तो वहां के झंडे या फिर राष्ट्रीय गीत/राष्ट्रगान को खारिज नहीं किया जा सकता. अब चाहे हमारा देश भारत हो या फिर पड़ोसी मुल्क चीन आज दोनों ही देशों की राजनीति तमाम बातों से इतर या तो राष्ट्रगीत/राष्ट्रगान के अल्फाजों या फिर झंडे के डंडे के आसपास आकर सिमट गयी है. राष्ट्रवाद के मामले में हम भारतीय उदार हैं मगर इसको लेकर चीन बेहद गंभीर है. एक तरफ जहां भारत में राष्ट्रगान को लेकर सम्पूर्ण देश में बहस छिड़ी है तो वहीं चीन ने राष्टीय गान या राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान न करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करने की योजना बनाई है.
समाचार एजेंसी शिन्हुआ से जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अपने सत्ता में आने के बाद से ही राष्ट्रवाद पर नजर रखे हुए हैं और इसको लेकर काफी सख्त भी हैं. चूंकि बात चीन के राष्ट्रवाद को लेकर चल रही हैं तो आपको बताते चलें कि चीन ने सितंबर में एक नया कानून पारित किया है.
इस नए कानून के तहत हांगकांग और मकाऊ समेत पूरे राष्ट्र में अगर कोई भी व्यक्ति या संस्था राष्ट्रीय गान का मजाक बनाता पाया गया उसे 15 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा जाएगा. साथ ही वहां सरकार द्वारा इस बात पर भी विचार किया जा रहा है कि, यदि कोई राष्ट्रीय प्रतीकों का अनादर करता है या फिर उन्हें अपवित्र करता है, जलाने का प्रयास करता है तो उसे कठोर से कठोर दंड दिया जाए.
गौरतलब है कि सरकार चाहे किसी भी देश की हो नेता भले ही कोई हो वो ये जानता है कि उसके राज्य / देश के लोग राष्ट्र को लेकर बहुत भावुक होते हैं. और जब बात राष्ट्र की आती है, तो वो तमाम मूल बातों को भूल उन फैसलों का स्वागत करते हैं जिनको देखकर महसूस होता है कि ये राष्ट्र हित में हैं. साथ ही उन फैसलों से व्यक्ति के अन्दर राष्ट्रवाद की भावना का संचार होता है.
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