चुनावों की कौन कहे - अब तो एक भी ऐसा मुद्दा नजर नहीं आता जिस पर विपक्षी दल एक राय हो सकें. नागरिकता कानून और NRC (CAA-NRC) पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. जो क्षेत्रीय दल जहां भी मजबूत हैं अपने इलाके में अपने तरीके से विरोध जता रहे हैं - और साफ साफ देखा जा सकता है कि किस तरह एक राष्ट्रीय मुद्दे पर भी विपक्ष बंटा हुआ है.
नागरिकता कानून के विरोध में ज्यादातर राजनीतिक दल विरोध जता रहे हैं, लेकिन सबकी अपनी अपनी डफली है और सभी के अपने अपने राग हैं. पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार (Protest in Bihar, West Bengal) तक और बहुत हद तक दिल्ली में भी ऐसा ही नजारा है.
अब अगर सत्ता पक्ष के खिलाफ किसी एक मुद्दे पर विरोध को लेकर ही विपक्षी दलों (Sonia Gandhi Mamata Banerjee and Prashant Kishor) में आपसी बंटवारा हो तो उनके एक साथ खड़े होने की उम्मीद किस भरोसे की जा सकती है?
विपक्षी एकता का बिहार मॉडल
बिहार बंद के दौरान पटना, हाजीपुर, दरभंगा और भागलपुर में प्रदर्शनकारियों ने खूब बवाल किया. तेजस्वी यादव की बंद की कॉल पर आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कई जगह आगजनी और तोड़फोड़ की. आरजेडी कार्यकर्ताओं ने अररिया में एक ट्रेन रोक दी और वैशाली में सड़क जाम कर विरोध जताया.
ये तो नजारा रहा बिहार बंद पार्ट 2 का. 19 दिसंबर को भी वाम दलों की ओर से बिहार बंद कराया गया था, लेकिन उससे दूरी बनाते हुए तेजस्वी यादव ने घोषणा की कि आरजेडी की तरफ से बिहार बंद 21 दिसंबर को रहेगा.
वाम दल भी महागठबंधन में शामिल हैं लेकिन आम चुनाव में आरजेडी ने कन्हैया कुमार के चलते सीपीआई को एक भी सीट नहीं दी थी. फिर सीपीआई ने अलग से बेगूसराय में अपना उम्मीदवार खड़ा किया और उसके खिलाफ तेजस्वी यादव ने भी अपने उम्मीदवार उतारे - नतीजा ये हुआ कि बीजेपी के गिरिराज सिंह बाजी मार ले गये.
बिहार बंद पार्ट 1 में कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा-सेक्युलर और विकासशील इंसान पार्टी ने लेफ्ट का सपोर्ट किया था बंद का...
चुनावों की कौन कहे - अब तो एक भी ऐसा मुद्दा नजर नहीं आता जिस पर विपक्षी दल एक राय हो सकें. नागरिकता कानून और NRC (CAA-NRC) पर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. जो क्षेत्रीय दल जहां भी मजबूत हैं अपने इलाके में अपने तरीके से विरोध जता रहे हैं - और साफ साफ देखा जा सकता है कि किस तरह एक राष्ट्रीय मुद्दे पर भी विपक्ष बंटा हुआ है.
नागरिकता कानून के विरोध में ज्यादातर राजनीतिक दल विरोध जता रहे हैं, लेकिन सबकी अपनी अपनी डफली है और सभी के अपने अपने राग हैं. पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार (Protest in Bihar, West Bengal) तक और बहुत हद तक दिल्ली में भी ऐसा ही नजारा है.
अब अगर सत्ता पक्ष के खिलाफ किसी एक मुद्दे पर विरोध को लेकर ही विपक्षी दलों (Sonia Gandhi Mamata Banerjee and Prashant Kishor) में आपसी बंटवारा हो तो उनके एक साथ खड़े होने की उम्मीद किस भरोसे की जा सकती है?
विपक्षी एकता का बिहार मॉडल
बिहार बंद के दौरान पटना, हाजीपुर, दरभंगा और भागलपुर में प्रदर्शनकारियों ने खूब बवाल किया. तेजस्वी यादव की बंद की कॉल पर आरजेडी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कई जगह आगजनी और तोड़फोड़ की. आरजेडी कार्यकर्ताओं ने अररिया में एक ट्रेन रोक दी और वैशाली में सड़क जाम कर विरोध जताया.
ये तो नजारा रहा बिहार बंद पार्ट 2 का. 19 दिसंबर को भी वाम दलों की ओर से बिहार बंद कराया गया था, लेकिन उससे दूरी बनाते हुए तेजस्वी यादव ने घोषणा की कि आरजेडी की तरफ से बिहार बंद 21 दिसंबर को रहेगा.
वाम दल भी महागठबंधन में शामिल हैं लेकिन आम चुनाव में आरजेडी ने कन्हैया कुमार के चलते सीपीआई को एक भी सीट नहीं दी थी. फिर सीपीआई ने अलग से बेगूसराय में अपना उम्मीदवार खड़ा किया और उसके खिलाफ तेजस्वी यादव ने भी अपने उम्मीदवार उतारे - नतीजा ये हुआ कि बीजेपी के गिरिराज सिंह बाजी मार ले गये.
बिहार बंद पार्ट 1 में कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा-सेक्युलर और विकासशील इंसान पार्टी ने लेफ्ट का सपोर्ट किया था बंद का सपोर्ट किया था - लेकिन आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने दूरी बना ली.
बिहार बंद पार्ट 2 में तेजस्वी यादव खुद सड़क पर उतरे और मोर्चा संभाले. आम चुनाव में आरजेडी की हार के बाद ये पहला मौका रहा जब तेजस्वी यादव फील्ड में इस कदर एक्टिव दिखे. तेजस्वी यादव के पक्ष में एक बात अच्छी ये रही कि कि कांग्रेस और लेफ्ट के बंद का सपोर्ट करने वाले दूसरे दलों ने भी आरजेडी के बुलाये बंद का समर्थन किया.
दरभंगा में आरजेडी के बंद में अलग ही नजारा दिखा. भीषण ठंड के बावजूद कपड़े आरजेडी कार्यकर्ता शर्ट उतारकर प्रदर्शन कर रहे थे. आरजेडी कार्यकर्ताओं ने टायर भी जलाये और नारेबाजी भी कर रहे थे - 'हिटलरशाही नहीं चलेगी'.
सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात जो लगी वो थी इनके पोस्टर. नागरिकता कानून और NRC को लेकर विरोध का स्वर राष्ट्रव्यापी है - ये विरोध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह के फैसले के खिलाफ है, लेकिन इसमें नीतीश कुमार कहां से आ गये? नीतीश कुमार ने तो खुद ही बोल दिया है कि वो NRC को बिहार में लागू नहीं होने देंगे. फिर भी आरजेडी के पोस्टर पर लिखा है - 'नीतीश कुमार, तौबा, तौबा, तौबा...' क्या तेजस्वी यादव भी नागरिकता कानून के नाम पर विरोध प्रदर्शन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कर रहे थे, मोदी या अमित शाह के विरोध में नहीं!
ममता बनर्जी भी अकेली पड़ गयीं
नागरिकता कानून को लेकर आरजेडी के विरोध का बिहार मॉडल एकबारगी तो समझ में नहीं आ रहा है. ये ठीक है कि आरजेडी के लिए मुख्य टारगेट नीतीश कुमार हैं लेकिन नागरिकता संशोधन कानून का संसद में सपोर्ट कर देने भर से वो निशाने पर लिये जा रहे हैं. कुछ ही दिन पहले तो आरजेडी और महागठबंधन के नेताओं की तरफ से नीतीश कुमार को बुलावा भेजा जा रहा था.
जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने विरोध के मुद्दे पर कांग्रेस को ही टारगेट पर ले लिया है. प्रशांत किशोर का कहना है कि कांग्रेस की बयानबाजी का कोई मतलब नहीं है अगर पार्टी के नेता सड़कों पर न दिखायी दें. पहले रामलीला मैदान से और एक बार बयान जारी कर सोनिया गांधी ने नागरिकता कानून को लेकर मोदी सरकार पर हमला बोला है. सोनिया गांधी ने तो लोगों से घरों से निकल कर आंदोलन करने की भी अपील की थी, लेकिन प्रशांत किशोर की नजर में ये नाकाफी है. राहुल गांधी ने ट्विटर पर और प्रियंका गांधी ने झारखंड के पाकुड़ में रैली कर नागरिकता कानून का विरोध जताया था. फिर भी प्रशांत किशोर का कहना है कि कांग्रेस के बड़े नेता विरोध प्रदर्शन से नदारद हैं.
प्रशांत किशोर का कहना है - पार्टी कम से कम इतना तो कर ही सकती है कि सभी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को उन मुख्यमंत्रियों के साथ खड़ा करे जिन्होंने कहा है कि वे अपने राज्यों में एनआरसी लागू नहीं करेंगे - अन्यथा कांग्रेस के बयान का कोई मतलब नहीं है.
वैसे सोनिया गांधी ने नागरिकता कानून को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी विपक्षी नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ मुलाकात की थी.
मोदी सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मोर्चा लेने वाली ममता बनर्जी भी नागरिकता कानून को लेकर विरोध में अकेले पड़ गयी हैं. ममता बनर्जी ने संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में नागरिकता कानून और NRC पर जनमत संग्रह कराने की मांग कर डाली थी. जब ममता बनर्जी ने देखा कि कोई भी उनके इस कदम का सपोर्ट नहीं कर रहा है तो वो पीछे हट गयीं. यू-टर्न लेते हुए ममता बनर्जी ने कहा है कि वो सिर्फ ओपिनियन पोल की बात कर रही थी.
विपक्ष को एक बिंदु पर जुटाने की हाल फिलहाल एक ही कवायद सफल दिखी है - महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार का बनना. झारखंड विधानसभा को लेकर आये एग्जिट पोल में महागठबंधन अगर आगे लग रहा है तो वो अपनी किसी विशेषता के कारण नहीं बल्कि बीजेपी की चूक है जो उसे भारी पड़ती लग रही है - वरना, पूरे देश में बिहार और बंगाल मॉडल ही देखने को मिलता रहा है. मुद्दा कोई भी हो.
राहुल गांधी का नाम अक्सर लिया जाता है, लेकिन अभी तो पूरे विपक्ष की नीयत ऐसी लगती जिसका मकसद बीजेपी की बरकत बरकरार रखने की है ताकि वो जल्द से जल्द अपने स्वर्णिम काल में पहुंच जाये - पंचायत से पार्लियामेंट तक.
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