कानून सभी के लिए बराबर है. चूंकि पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार जैसे नेता भी कानून से ऊपर नहीं हैं, इसलिए गिरफ्तार किये गये हैं. जांच एजेंसियां भी कानून लागू करने की अपनी ड्यूटी ही निभा रही हैं.
कानूनी तौर पर डीके शिवकुमार के केस में भी वैसे ही कोई भेदभाव की बात नहीं कही जा सकती है, जैसे पी. चिदंबरम के मामले में - लेकिन आगे से ऐसा नहीं होगा. ऐसा लगता है. आगे जो भी होगा वो मामले बिलकुल अलग होंगे. 2019 के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जनता से वादा किया था कि बीजेपी सत्ता में आयी तो जिनकी जगह जेल में है वे अपनी जगह भेजे ही जाएंगे. चुनावी वादों की इस सूची में साफ साफ चिदंबरम और शिवकुमार के नाम तो नहीं थे, लेकिन संकेत जरूर मिले थे. बहरहाल, ये काम तो हो गया. निश्चित तौर पर जिन लोगों ने बीजेपी को श्रद्धाभाव और बड़ी उम्मीद के साथ वोट दिया था, वे निराश होने की जगह गर्व का अनुभव कर रहे होंगे. धारा 370 को हटाकर बीजेपी ने अपने समर्थकों का भरोसा तो जीत ही लिया है - अब उन गिरफ्तारियों की बारी है जिनका जिक्र खुल कर चुनाव प्रचार में हुआ था.
डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी पर सबसे हैरानी वाली बात है, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की उनके पक्ष में टिप्पणी - भला ऐसा क्यों?
DK पर भी एक्शन तो PC जैसा ही है, लेकिन...
जरा पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर ध्यान देने की कोशिश कीजिये. दोनों की गिरफ्तारी को लेकर पॉलिटिकल रिएक्शन में एक बड़ा फर्क नजर आता है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी पर 'दुख' जताया है - आखिर ऐसा क्यों है? क्या येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के केस में लोकपाल कोर्ट के आदेश पर अपनी गिरफ्तारी वाले दिन याद आ गये हैं?
एक ट्वीट के जरिये डीके शिवकुमार ने गिरफ्तारी पर अपने तरीके से रिएक्ट किया है. डीके ने कहा - 'मेरे बीजेपी के मित्रों को बधाई वे मुझे गिरफ्तार कराने के अपने मिशन में कामयाब...
कानून सभी के लिए बराबर है. चूंकि पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार जैसे नेता भी कानून से ऊपर नहीं हैं, इसलिए गिरफ्तार किये गये हैं. जांच एजेंसियां भी कानून लागू करने की अपनी ड्यूटी ही निभा रही हैं.
कानूनी तौर पर डीके शिवकुमार के केस में भी वैसे ही कोई भेदभाव की बात नहीं कही जा सकती है, जैसे पी. चिदंबरम के मामले में - लेकिन आगे से ऐसा नहीं होगा. ऐसा लगता है. आगे जो भी होगा वो मामले बिलकुल अलग होंगे. 2019 के चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने जनता से वादा किया था कि बीजेपी सत्ता में आयी तो जिनकी जगह जेल में है वे अपनी जगह भेजे ही जाएंगे. चुनावी वादों की इस सूची में साफ साफ चिदंबरम और शिवकुमार के नाम तो नहीं थे, लेकिन संकेत जरूर मिले थे. बहरहाल, ये काम तो हो गया. निश्चित तौर पर जिन लोगों ने बीजेपी को श्रद्धाभाव और बड़ी उम्मीद के साथ वोट दिया था, वे निराश होने की जगह गर्व का अनुभव कर रहे होंगे. धारा 370 को हटाकर बीजेपी ने अपने समर्थकों का भरोसा तो जीत ही लिया है - अब उन गिरफ्तारियों की बारी है जिनका जिक्र खुल कर चुनाव प्रचार में हुआ था.
डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी पर सबसे हैरानी वाली बात है, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की उनके पक्ष में टिप्पणी - भला ऐसा क्यों?
DK पर भी एक्शन तो PC जैसा ही है, लेकिन...
जरा पी. चिदंबरम और डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाओं पर ध्यान देने की कोशिश कीजिये. दोनों की गिरफ्तारी को लेकर पॉलिटिकल रिएक्शन में एक बड़ा फर्क नजर आता है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी पर 'दुख' जताया है - आखिर ऐसा क्यों है? क्या येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के केस में लोकपाल कोर्ट के आदेश पर अपनी गिरफ्तारी वाले दिन याद आ गये हैं?
एक ट्वीट के जरिये डीके शिवकुमार ने गिरफ्तारी पर अपने तरीके से रिएक्ट किया है. डीके ने कहा - 'मेरे बीजेपी के मित्रों को बधाई वे मुझे गिरफ्तार कराने के अपने मिशन में कामयाब रहे...'
30 अगस्त को अपने एक ट्वीट में शिवकुमार ने कहा था कि गुजरात के कांग्रेस विधायकों के कर्नाटक में रहने का इंतजाम करने की वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है.
गुजरात में राज्य सभा के लिए चुनाव होने थे. जैसे ही कांग्रेस को लगा कि उसके विधायक टूट सकते हैं, उसने कर्नाटक भेजने का फैसला किया क्योंकि तब राज्य में पार्टी की सरकार थी. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे और डीके उनके कैबिनेट साथी. डीके शिवकुमार हमेशा ही कर्नाटक में बेहद सक्षम नेता माने जाते रहे हैं और कांग्रेस के संकटमोचक भी कहे जाते रहे हैं. तब राज्य सभा चुनाव में जीते तो अमित शाह भी थे और स्मृति ईरानी भी, लेकिन एक और जीत ऐसी रही जो बीजेपी नेतृत्व को खल गयी थी - सोनिया गांधी के राजनीतिक सहयोगी अहमद पटेल भी चुनाव जीत गये थे.
ये तो नहीं मालूम कि डीके शिवकुमार ने जिन राजनीतिक मित्रों की बात की है, उनमें येदियुरप्पा भी शामिल हैं या नहीं? वैसे भी नेताओं के राजनीतिक पक्ष से इतर निजी रिश्ते बड़े मजबूत होते हैं.
कर्नाटक में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी पर दुख जताया है. येदियुरप्पा का कहना है कि डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी से उन्हें कोई खुशी नहीं हुई है. येदियुरप्पा कहते हैं, 'मैं भगवान से दुआ करता हूं कि वो जल्द ही बाहर आ जाएं... मैंने अपने राजनीतिक जीवन में किसी के लिए घृणा का भाव नहीं रखा है और न ही मैंने किसी का बुरा नहीं चाहा है.'
आखिर येदियुरप्पा के इस बयान की क्या वजह हो सकती है? ये डीके शिवकुमार ही थे जो कर्नाटक के बागी विधायकों से मिलने मुंबई के होटल तक पहुंच गये थे. आखिरी वक्त में जब विधानसभा में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी बहुमत साबित करने वाले थे, तब भी सुना गया डीके किसी बीजेपी नेता को डिप्टी सीएम की पोस्ट का ऑफर दे रहे थे.
क्या येदियुरप्पा के डीके शिवकुमार के सपोर्ट में बयान देने की कोई राजनीतिक वजह है?
किसी राजनीतिक विरोधी के सपोर्ट में उस नेता का ऐसा बयान देना सहज संदेह पैदा करता जिसकी पार्टी पर राजनीतिक बदले की भावना से गिरफ्तारी का इल्जाम लग रहा हो. जब बीजेपी नेतृत्व भी डीके की गिरफ्तारी में दिलचस्पी लेने को लेकर सवालों के घेरे में हो, फिर येदियुरप्पा के पार्टी लाइन से आगे बढ़ कर और नेतृत्व के खिलाफ जाकर ऐसे बयान देने की क्या मजबूरी हो सकती है. येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय में अपनी मजबूत पकड़ की बदौलत 75 पार होने के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी पूरी ताकत से अपने पास रखे हुए हैं. शिवकुमार कर्नाटक के वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. वोक्कालिगा लोगों को अपनी ओर साधने के लिए ही येदियुरप्पा ने एसएम कृष्णा को कांग्रेस से बीजेपी में लाया था, लेकिन कोई खास फायदा नहीं हुआ. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी वोक्कालिगा समुदाय से ही आते हैं.
तो क्या येदियुरप्पा ने डीके की गिरफ्तारी पर वोक्कालिगा समुदाय की नाराजगी बचने के लिए ये बयान दिया है?
दरअसल, डीके शिवकुमार को जिस दिन गिरफ्तार किया गया कर्नाटक के लोग गणेश चतुर्थी मना रहे थे - और डीके अपने पिता की समाधि पर जाना चाहते थे. डीके ने ED के अफसरों से इसकी अनुमति भी मांगी लेकिन नामंजूर कर दी गयी. कर्नाटक के लोग बड़े गौर से ये सब टीवी पर देख रहे थे. जो शख्स बड़ी से बड़ी मुश्किलों में भी पूरी शिद्दत से डटा रहता था और चेहरे पर कभी शिकन तक न दिखी वो जैसे तैसे अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रहा था. ऐसा भी नहीं कि डीके की आंखों से आंसू गिरने को पहली बार आतुर थे, चुनाव कैंपेन के दौरान भी ऐसे वाकये नोटिस किये गये थे. एचडी कुमारस्वामी और देवगौड़ा को तो फफक कर रोते तक देखा गया है. मगर, मौके अलग अलग थे.
माना जा रहा है कि डीके शिवकुमार के साथ अफसरों के इस बर्ताव से वोक्कालिगा समुदाय के लोग बीजेपी से नाराज हो सकते हैं क्योंकि गणेश चतुर्थी को होने वाली पूजा से गहरायी तक जुड़े हैं - और डीके को वैसी हालत में देखने के बाद लोगों पर असर हो सकता है.
इस लिहाज से येदियुरप्पा के डीके की गिरफ्तारी पर दुख जताने की यही सबसे बड़ी वजह लगती है.
पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी को भी राजनीतिक बदले से जोड़ कर देखा गया, खासकर कांग्रेस नेता के गृह मंत्री रहते सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस में अमित शाह को तीन महीने जेल में बिताने पड़े थे. हालांकि, बाद में अमित शाह सहित केस से जुड़े सारे आरोपी बरी भी हो गये.
चिदंबरम की गिरफ्तारी के पहले कुछ कांग्रेस कार्यकर्ता हल्का-फुल्का विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. गिरफ्तारी के बाद वे भी शांत पड़ गये. तमिलनाडु से भी ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिला जहां की शिवगंगा सीट से वो सांसद रहे हैं - और अभी तो उनके बेटे कार्ती चिदंबरम सांसद हैं.
शिवकुमार की स्थिति चिदंबरम से थोड़ी अलग लग रही है. वो कांग्रेस में भी सक्षम यूं ही नहीं बने थे - उनके हर किसी से अच्छे रिश्ते हैं और इस वजह से जनता में भी उनका बेहतर सपोर्ट बेस है. डीके की गिरफ्तारी के विरोध में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ और आगजनी भी की है. कुछ बसों के इस दौरान शीशे भी तोड़ डाले गये. हिंसक घटनाओं के चलते कुछ सरकारी और निजी स्कूल-कॉलेजों में छुट्टी भी घोषित कर दी गयी है और प्रदर्शन करने वालों को गिरफ्तार भी किया गया है.
ऐसे वाकये जब एक्शन में अफसरों ने एक न सुनी!
राजनीतिक बदले की कार्रवाइयों में बरसों तक 2001 में आधी रात के बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की गिरफ्तारी का वाकया याद किया जाता रहा है. तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने 12 करोड़ रुपये के फ्लाईओवर घोटाले को लेकर आधी रात के बाद करुणानिधि के यहां छापा डलवाया था - और पुलिसकर्मी उन्हें घसीटते हुए सीढ़ियों से नीचे ले गये थे.
डीके शिवकुमार की गिरफ्तारी को भी कर्नाटक के लोग कुछ उसी तरीके से ले रहे हैं, कम से कम कुछ मीडिया रिपोर्ट से तो ऐसा ही लग रहा है. गिरफ्तारी से तो डीके की ही तरह चिदंबरम को भी बचने की कोई आखिरी गुंजाइश भी नहीं दिखी, लेकिन वो कुछ देर सोना जरूर चाहते थे.
1. चिदंबरम की गिरफ्तारी : कांग्रेस नेता चिदंबरम रात भर कानूनी दस्तावेज तैयार करने में जगे हुए थे - और चाहते थे कि सीबीआई सुबह गिरफ्तार कर ले - लेकिन 40 प्लस की उम्र में दीवार लांघ कर पहुंचे अफसर भला कैसे मानते - वो कहते रहे कि बहुत थके हैं और सोना चाहते हैं - अफसरों ने मन ही मन हंसते लेकिन चेहरे पर गंभीरता का भाव लिये हुए समझाया कि सीबीआई हेडक्वार्टर में भी ठीक ठाक इंतजाम है. चिदंबरम को भी ये बात मालूम थी ही - बिल्डिंग के उद्घाटन के मौके पर विशेष अतिथि जो थे.
2. वीरभद्र सिंह के घर छापे : केंद्र में मोदी सरकार के आने के करीब साल भर बाद, 2015 हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के तत्कालीन के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के मामले अब भी चल रहे हैं. विधानसभा चुनावों में प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का एक बयान खूब चला था - 'बेलगाड़ी'. मोदी का कहना रहा कि ये नेता बेलगाड़ी पर सवार हैं. वीरभद्र सिंह चुनाव हार गये और बीजेपी ने जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया है.
वीरभद्र सिंह भी उस बात को ताउम्र नहीं भूल सकते जब उनकी बेटी की शादी के दिन उनके घर पर छापा पड़ा था. तब विवाह स्थल पर मेहमानों को दी गयी दावत छोड़ कर वीरभद्र सिंह को बीच में ही घर की तरफ भागना पड़ा था.
और इन एक्शन को पीछे की घटनाओं से कड़ी जोड़ें तो ठीक वैसी ही स्थिति देखने को मिलती है. बताते हैं कि अमित शाह को भी किसी विवाह समारोह से से ही हिरासत में लिया गया था. जाहिर है सारे इवेंट स्क्रिप्ट के हिसाब से ही हो रहे हैं, बस किरदार बदल गये हैं. नयी स्क्रिप्ट में एक्टर और डायरेक्टर दोनों ही के रोल स्वैप हो गये हैं.
BJP के चुनावी वादों में और क्या क्या है?
एक सवाल के जवाब में तो अमित शाह ने इस बात से भी साफ इंकार कर दिया था कि बीजेपी ने कभी रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तार किये जाने की बात कही थी. वैसे हाल फिलहाल एक पुराना वीडियो वायरल हुआ था जिसमें बीजेपी नेता उमा भारती को ऐसा कहते हुए सुना गया.
2014 के लोक सभा और हरियाणा विधानसभा चुनावों में बीजेपी नेता रॉबर्ट वाड्रा को सत्ता में आने पर गिरफ्तार करने की बात किया करते रहे. वैसे अमित शाह के बयान के बाद वाड्रा की गिरफ्तारी की बातें भी मोदी सरकार 1.0 में 15 लाख वाले काले धन जैसा जुमला लगा.
2019 के आम चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा था, 'किसानों को लूटने वालों को ये चौकीदार कोर्ट तक ले गया है. आज वो जमानत के लिए चक्कर काट रहे हैं, ED के दफ्तर में जूते घिस रहे हैं. ये लोग पहले मानते थे कि हम शहंशाह हैं. मैं ऐसे लोगों को जेल के दरवाजे तक ले गया हूं, आने वाले पांच साल में इन्हें अंदर तक कर दूंगा.
प्रधानमंत्री ने रॉबर्ट वाड्रा का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारों में तफसील से पूरी तस्वीर खींच डाली थी - और ये पक्का तब हो गया जब खुद रॉबर्ट वाड्रा ने इसे लेकर एक फेसबुक पोस्ट भी लिख डाली.
तो क्या चिदंबरम और डीके के बाद रॉबर्ट वाड्रा भी कतार में खड़े माने जा सकते हैं? एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड जमीन आवंटन के मामले में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और कांग्रेस के सबसे बुजुर्ग नेता मोती लाल वोरा के खिलाफ भी चार्जशीट फाइल हो चुकी है. अगर वाकई रॉबर्ट वाड्रा जांच एजेंसियों की सूची में अगले पायदान पर पहुंच चुके हैं, फिर तो पहले रॉबर्ट वाड्रा और बाद में सोनिया गांधी और राहुल गांधी का ही नंबर हो सकता है.
वैसे PA और NDA के शासन में एक बड़ा फर्क है. बीजेपी ऐसे विरोधी नेताओं को जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं - सुधरने का एक बड़ा मौका भी देती है. ये सुधार गृह भी बीजेपी में ही है. बस उसके लिए भगवा धारण कर पुरानी पार्टी को मीडिया के सामने कुछ देर कोसना और देशद्रोही साबित करने की कोशिश करनी होती है - फिर तो सारे पाप मैगी बनने से भी कम वक्त में धुल जाते हैं.
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