उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला तो लगभग ये तय हो गया कि अगला राष्ट्रपति वही होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पसंदीदा होगा. क्योंकि राष्ट्रपति के चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन वोटों के गणित के हिसाब से बहुमत से बस कुछ ही दूर रह गया था. इस चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज में लगभग 11 लाख वोट होते हैं और राजग के दलों के मतों की संख्या करीब 5.32 लाख वोट के लगभग हैं. यह संघ परिवार के लिए भी सबसे पहला मौका है जब देश के सर्वोच्च पद, यानी राष्ट्रपति के पद, पर उनके मन के मुताबिक कोई नेता चुना जायेगा.
मार्च के महीने में एक खबर आई कि जनसंघ के समय से भाजपा के गठन तक पार्टी की धुरी रहे लाल कृष्ण अडवाणी को राष्ट्रपति बनाया जायेगा. ऐसा कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक गुरु, यानी लाल कृष्ण आडवाणी को, राष्ट्रपति पद गुरुदक्षिणा के रूप में देना चाहते हैं. खबरों के मुताबिक 8 मार्च को सोमनाथ में हुई एक बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की मौजूदगी में आडवाणी को देश का अगला राष्ट्रपति बनाये जाने का नाम पेश किया गया. खबरों की मानें, तो मोदी ने बैठक में यह संकेत दिया था कि अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी के पक्ष में बहुमत आया, तो उनकी तरफ से राष्ट्रपति का यह पद आडवाणी को गुरुदक्षिणा होगी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद तो आडवाणी का नाम अंतिम माना जाने लगा था.
राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का नाम तब आया था जब वो 1990 में आडवाणी के सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा के सारथी के तौर पर प्रोजेक्ट किये गए. उनको आडवाणी ने ही ये...
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला तो लगभग ये तय हो गया कि अगला राष्ट्रपति वही होगा जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पसंदीदा होगा. क्योंकि राष्ट्रपति के चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन वोटों के गणित के हिसाब से बहुमत से बस कुछ ही दूर रह गया था. इस चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज में लगभग 11 लाख वोट होते हैं और राजग के दलों के मतों की संख्या करीब 5.32 लाख वोट के लगभग हैं. यह संघ परिवार के लिए भी सबसे पहला मौका है जब देश के सर्वोच्च पद, यानी राष्ट्रपति के पद, पर उनके मन के मुताबिक कोई नेता चुना जायेगा.
मार्च के महीने में एक खबर आई कि जनसंघ के समय से भाजपा के गठन तक पार्टी की धुरी रहे लाल कृष्ण अडवाणी को राष्ट्रपति बनाया जायेगा. ऐसा कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी अपने राजनीतिक गुरु, यानी लाल कृष्ण आडवाणी को, राष्ट्रपति पद गुरुदक्षिणा के रूप में देना चाहते हैं. खबरों के मुताबिक 8 मार्च को सोमनाथ में हुई एक बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की मौजूदगी में आडवाणी को देश का अगला राष्ट्रपति बनाये जाने का नाम पेश किया गया. खबरों की मानें, तो मोदी ने बैठक में यह संकेत दिया था कि अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी के पक्ष में बहुमत आया, तो उनकी तरफ से राष्ट्रपति का यह पद आडवाणी को गुरुदक्षिणा होगी. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद तो आडवाणी का नाम अंतिम माना जाने लगा था.
राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का नाम तब आया था जब वो 1990 में आडवाणी के सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा के सारथी के तौर पर प्रोजेक्ट किये गए. उनको आडवाणी ने ही ये लांच पैड दिया. मोदी को गुजरात का सीएम बनवाने में भी आडवाणी का प्रमुख रोल माना जाता है. 2002 के गुजरात दंगों को लेकर जब अटल बिहारी वाजयेपी तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी से बहुत नाराज हुए थे, एवं उनको हटाना चाहते थे, पर उस वक्त भी आडवाणी ने मोदी का बचाव किया था.
पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त जब नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट किया गया, तब आडवाणी ने इसका विरोध किया था. पर मोदी न केवल पार्टी के उम्मीदवार बने बल्कि देश के प्रधानमंत्री भी बन गए. इसके बाद से दोनों के सम्बन्धों में खटास आ गई. ऐसा कहा गया कि इस सम्बन्ध को शिष्य मोदी गुरु अडवाणी को ‘गुरुदक्षिणा’ देकर मधुर बनाना चाहते हैं.
अडवाणी के राष्ट्रपति बनाने के कयासों में थोड़ी अड़चन तब आयी जब सर्वोच्च न्यायालय ने 19 अप्रैल को निर्देश में कहा था कि आडवाणी, जोशी और उमा के अलावा बाकी सभी आरोपियों पर बाबरी ढांचा ढहाए जाने के मामले में आपराधिक षड्यंत्र का मुकदमा चलेगा. फिर भी कुछ लोग ये मान रहे थे कि चूंकि यह मामला उनको उप प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक पाया तो राष्ट्रपति बनने से कैसे रोक पायेगा. भाजपा वैसे भी अयोध्या के मामले तो आपराधिक नहीं मानती है.
सारे कयासों को धता बताते हुए जून 19, 2017 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने एनडीए की ओर से दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले बिहार के गवर्नर रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया. राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर लग रही राजनीतिक अटकलों में कहीं भी कोविंद का नाम नहीं आया था. यूपी से दो बार राज्यसभा सांसद रहे हैं पर पार्टी के कद्दावर नेताओं में उनकी कहीं भी गिनती नहीं होती थी. खबर है कि कोविंद 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे एवं जालौन लोकसभा सीट से टिकट पाने के लिए बहुत भागदौड़ भी की, लेकिन उससे पहले विधानसभा चुनाव में मिली उनकी हार के रेकॉर्ड को देखते हुए पार्टी ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया था. यानी कि जिस व्यक्ति को भाजपा ने लोक सभा का टिकट नहीं दिया उसको राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना दिया.
रामनाथ कोविंद को नरेंद्र मोदी ने वो दे दिया जो वो कभी सपने में भी नहीं सोचे होंगे. प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति का पद कोविंद को दान या बख्शीश में दे दिया. शायद मोदी को राष्ट्रपति का पद आडवाणी को गुरुदक्षिणा के रूप देना नहीं भाया. इसलिए उन्होंने इसे कोविंद को बख्शीश के रूप में दे दिया. वैसे भी आज की राजनीति में बहुत कम लोग ही एकलव्य होते हैं जो गुरुदक्षिणा में द्रोण जैसे गुरु की झोली में अंगूठा डाल देते हैं. आज न तो कोई द्रोणाचार्य के समान गुरु है और न ही एकलव्य के जैसा शिष्य.
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