अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में नाटो के सहयोगी देश तुर्की पर टैरिफ अटैक किया है. जी हां, सीरिया के खिलाफ लड़ाई में तुर्की भले ही अमेरिका का सहयोगी है, लेकिन कारोबार के मामले में ट्रंप ने उस पर निर्मम आयात-शुल्क लागू किया है. दो गुने से भी ज्यादा. अपने चिर-परिचित अंदाज में ट्विटर पर जब ट्रंप ने इस बात का एलान किया तो तुर्की की मुद्रा लीरा में 20% की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई. एक ट्वीट का इतना भयानक असर शायद ही पहले देखा गया हो. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि अमेरिका अपने सहयोगी देश को ही निशाना बना रहा है. ट्रंप के इस फैसले की मुख्य वजह 2016 में तुर्की के द्वारा एक अमेरिकी पादरी की गिरफ़्तारी को बताया जा रहा है. उसपर देशद्रोही गतिविधि में शामिल होने का आरोपी बताया गया है. जो पिछले पिछले तुर्की में हुए असफल सैन्य तख्तापलट से जुड़ा था.
अमेरिका और तुर्की के रिश्ते उसके बाद से ही ख़राब बताये जा रहे हैं जब से तुर्की में राष्ट्रपति पद पर एर्दोगान की सत्ता में दोबारा वापसी हुई है. तुर्की के इतिहास में मुस्तफा कमाल पाशा के बाद एर्दोगान को सबसे ताक़तवर शासक माना जाता है. अमेरिका का ऐसा मानना है कि तुर्की के राष्ट्रपति ने लोकतान्त्रिक मूल्यों की हत्या करते हुए दोबारा सत्ता में वापसी की है.
ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा, ''मैं हाल ही में तुर्की से होने वाले स्टील और एल्यूमिनियम आयात पर शुल्क डबल करने का आदेश दिया है. क्योंकि उनकी मुद्रा Turkish Lira हमारे...
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में नाटो के सहयोगी देश तुर्की पर टैरिफ अटैक किया है. जी हां, सीरिया के खिलाफ लड़ाई में तुर्की भले ही अमेरिका का सहयोगी है, लेकिन कारोबार के मामले में ट्रंप ने उस पर निर्मम आयात-शुल्क लागू किया है. दो गुने से भी ज्यादा. अपने चिर-परिचित अंदाज में ट्विटर पर जब ट्रंप ने इस बात का एलान किया तो तुर्की की मुद्रा लीरा में 20% की रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई. एक ट्वीट का इतना भयानक असर शायद ही पहले देखा गया हो. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि अमेरिका अपने सहयोगी देश को ही निशाना बना रहा है. ट्रंप के इस फैसले की मुख्य वजह 2016 में तुर्की के द्वारा एक अमेरिकी पादरी की गिरफ़्तारी को बताया जा रहा है. उसपर देशद्रोही गतिविधि में शामिल होने का आरोपी बताया गया है. जो पिछले पिछले तुर्की में हुए असफल सैन्य तख्तापलट से जुड़ा था.
अमेरिका और तुर्की के रिश्ते उसके बाद से ही ख़राब बताये जा रहे हैं जब से तुर्की में राष्ट्रपति पद पर एर्दोगान की सत्ता में दोबारा वापसी हुई है. तुर्की के इतिहास में मुस्तफा कमाल पाशा के बाद एर्दोगान को सबसे ताक़तवर शासक माना जाता है. अमेरिका का ऐसा मानना है कि तुर्की के राष्ट्रपति ने लोकतान्त्रिक मूल्यों की हत्या करते हुए दोबारा सत्ता में वापसी की है.
ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा, ''मैं हाल ही में तुर्की से होने वाले स्टील और एल्यूमिनियम आयात पर शुल्क डबल करने का आदेश दिया है. क्योंकि उनकी मुद्रा Turkish Lira हमारे मज़बूत डॉलर की तुलना में तेजी से कमज़ोर हुई है. अमरीका और तुर्की के संबंध भी ठीक नहीं हैं.'' तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगान का मानना है कि विदेशी ताक़तों के कारण उनकी मुद्रा में गिरावट जारी है. उनका इशारा पश्चिमी देशों की तरफ था. तुर्की ने अमरीका पर पलटवार की चेतावनी दी है. एर्दोगान ने अपने भाषण में कहा है, ''अगर उनके पास डॉलर हैं तो हमारे पास लोग हैं. हमारे पास अपने अधिकार हैं, और हमारे पास अल्लाह हैं.''
पादरी एंड्र्यू ब्रनसन हैं विवाद के पीछे
ब्रनसन काफ़ी समय से तुर्की में रह रहे हैं. वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ रहते हैं जबकि इज़्मिर के एक चर्च में वह पादरी के तौर पर काम करते हैं. तुर्की प्रशासन का आरोप है कि ब्रनसन के ग़ैर-क़ानूनी कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) और गुलेन आंदोलन के साथ संबंध हैं. गुलेन आंदोलन पर 2016 के असफल तख़्तापलट का आरोप लगाया जाता है. अमेरिका ने अपने पादरी की जल्द रिहाई की मांग की है लेकिन तुर्की की सरकार ने अमेरिकी मांग को खारिज कर दिया है.
रुस से दोस्ती भी रास नहीं आ रही
तुर्की नाटो संगठन का महत्वपूर्ण सदस्य है लेकिन हाल में रूस से बढ़ती उसकी नजदीकियों ने अमेरिकी सामरिक चिंताओं को बढ़ाने का काम किया है. दरअसल तुर्की रूस से एंटी मिसाइल डिफेन्स सिस्टम का डील करना चाहता है. जबकि अमेरिका इस डील के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज करवा चुका है. सीरिया में कुर्दिश लड़ाकों को अमेरिकी समर्थन मिलने से भी तुर्की नाराज है. ट्रंप द्वारा अमेरिकी प्रतिबंधों के एलान के बाद तुर्की के राष्ट्रपति ने पुतिन से टेलीफोन पर बात की और हालात का ब्योरा दिया. इसमें कोई शक नहीं है कि रूस और तुर्की के बीच परवान चढ़ते सामरिक इश्क़ अमेरिकी प्रतिबंधों की असल वजह हैं.
तुर्की ही वो देश है जिसने ऑटोमन साम्राज्य के रूप में पूरे यूरोप और सेंट्रल एशिया में कई शताब्दियों तक एकछत्र राज किया. नाटो में होने के बावजूद तुर्की पश्चिमी देशों का मुखर सहयोगी कभी नहीं रहा. जिस देश ने यूरोप के देशों पर वर्षों तक राज किया, जहाँ के शासकों ने पश्चिमी देशों में कत्लेआम मचाया हो तो फिर उनके रिश्तों में ऐतिहासिक शंका की गुंजाईश लाजिमी है. अपनी लाख कोशिशों के बावजूद तुर्की अभी तक यूरोपीय यूनियन का सदस्य नहीं बन पाया.
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद तुर्की की अर्थव्यवस्था की हालत और खराब होने वाली है. पांच साल पहले दो लीरा देकर एक अमरीकी डॉलर ख़रीदा जा सकता था, लेकिन अब एक डॉलर के लिए 6.50 लीरा देने पड़ रहे हैं. बहरहाल तुर्की के राष्ट्रपति का बयान की ''उनके पास डॉलर है तो हमारे पास अल्लाह है'' मौजूदा हालात में प्रासंगिक लगता है क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था वाकई में अल्लाह भरोसे ही प्रतीत होता है.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)
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