देश की पहली आदिवासी और महिला आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. वीडियो के बहाने दावा किया जा रहा है कि आदिवासी राष्ट्रपति का शुद्धिकरण हो रहा है. दावा करने वाले इसे लगभग 'जातीय अपमान' के तौर पर ही परोस रहे हैं. जबकि ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो इसे एक सामान्य और स्वाभाविक घटना बता कर तर्क दे रहे हैं.
वीडियो 'ट्राइबल आर्मी' के ट्विटर अकाउंट पर साझा किया गया था. इसमें देखा जा सकता है कि द्रौपदी मुर्मू, फूलों की बड़ी माला पहने हुए हैं. उन्होंने प्रार्थना की मुद्रा में दोनों पंजों को जोड़ रखा है. उनके आसपास पुजारी और अन्य लोगों की भीड़ है. पुजारी संभवत: मंत्रोच्चार कर रहे हैं. वे द्रौपदी मुर्मू के सिर पर कुछ छिड़क रहे हैं. प्रक्रिया के दौरान राष्ट्रपति शांत खड़ी हैं. अंत में पुजारी हाथ जोड़ लेते हैं और वीडियो यहीं समाप्त हो जाता है.
दीवार पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी है. वीडियो महज 30 सेकेंड का है. ट्राइबल आर्मी ने वीडियो के साथ सवाल पूछा कि क्या कभी भारत के इतिहास में इस तरह से किसी राष्ट्रपति के साथ ऐसा हुआ है? चूंकि द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं इसलिए इसे उनका अपमान बताया जा रहा है. लोगों में बहस छिड़ी हुई है. तरह-तरह के रिएक्शन आ रहे हैं.
मुथमिल सेलवन मुरुगेसन नामक यूजर ने लिखा है 'क्या बकवास हो रहा है'? उन्हें जवाब देते हुए किसी ने लिखा- 'शुद्धिकरण...' हालांकि एक यूजर ने लिखा कि यह शुद्धिकरण नहीं हो रहा, यह तो आशीर्वाद मंत्र है.
एक और यूजर ने लिखा ऐसी शानदार आदिवासी परम्परा तो हम सपने में भी सोच नहीं सकते! बहुत बहुत बधाई! आदिवासी परम्परा...
देश की पहली आदिवासी और महिला आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है. वीडियो के बहाने दावा किया जा रहा है कि आदिवासी राष्ट्रपति का शुद्धिकरण हो रहा है. दावा करने वाले इसे लगभग 'जातीय अपमान' के तौर पर ही परोस रहे हैं. जबकि ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो इसे एक सामान्य और स्वाभाविक घटना बता कर तर्क दे रहे हैं.
वीडियो 'ट्राइबल आर्मी' के ट्विटर अकाउंट पर साझा किया गया था. इसमें देखा जा सकता है कि द्रौपदी मुर्मू, फूलों की बड़ी माला पहने हुए हैं. उन्होंने प्रार्थना की मुद्रा में दोनों पंजों को जोड़ रखा है. उनके आसपास पुजारी और अन्य लोगों की भीड़ है. पुजारी संभवत: मंत्रोच्चार कर रहे हैं. वे द्रौपदी मुर्मू के सिर पर कुछ छिड़क रहे हैं. प्रक्रिया के दौरान राष्ट्रपति शांत खड़ी हैं. अंत में पुजारी हाथ जोड़ लेते हैं और वीडियो यहीं समाप्त हो जाता है.
दीवार पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगी है. वीडियो महज 30 सेकेंड का है. ट्राइबल आर्मी ने वीडियो के साथ सवाल पूछा कि क्या कभी भारत के इतिहास में इस तरह से किसी राष्ट्रपति के साथ ऐसा हुआ है? चूंकि द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं इसलिए इसे उनका अपमान बताया जा रहा है. लोगों में बहस छिड़ी हुई है. तरह-तरह के रिएक्शन आ रहे हैं.
मुथमिल सेलवन मुरुगेसन नामक यूजर ने लिखा है 'क्या बकवास हो रहा है'? उन्हें जवाब देते हुए किसी ने लिखा- 'शुद्धिकरण...' हालांकि एक यूजर ने लिखा कि यह शुद्धिकरण नहीं हो रहा, यह तो आशीर्वाद मंत्र है.
एक और यूजर ने लिखा ऐसी शानदार आदिवासी परम्परा तो हम सपने में भी सोच नहीं सकते! बहुत बहुत बधाई! आदिवासी परम्परा आगे बढ़ रही! तो वहीं अमर्त्य सागर पूछ रहे हैं कि क्या मजाक हो रहा है. कुछ ने जवाब देने की कोशिश की कि यही हमारी पहचान है. इसमें गलत क्या है?
कुछ यूजर्स ने इसे आदिवासी समाज पर सांस्कृतिक हमला भी करार दिया है. हंसराज मीणा ने पूछा कि कि मोदी सरकार द्वारा ये कौनसी रस्म कराई जा रही है? शुद्धिकरण की या आदिवासियों के भगवाकरण की? लोग पाखंडवाद और ना जाने क्या-क्या आरोप लगा रहे हैं.
अब सवाल है कि जो कुछ दिख रहा है वह सही है क्या. सही है तो किस तरह और गलत है तो क्यों?
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है यही है कि वीडियो में जो कुछ दिख रहा है वह सनातन परंपरा में सामान्य और स्वाभाविक घटना है. पहली बात- भले ही कुछ लिबरल आदिवासियों को सनातन से अलग मानते हों, लेकिन सनातन की व्याख्याओं में ऐसा नहीं है. आदिवासी समाज सनातन परंपरा का हिस्सा रहा है और उसे 'पंचमा' के रूप में चिन्हित किया गया है. आदिवासी प्रकृति पूजक और शिव के अनन्य भक्त रहे हैं और सनातन की धार्मिक व्याख्याओं में उनकी हमेशा से प्रभावी मौजूदगी रही है. महाभारत और रामायण से पहले वेदों में भी उसके प्रसंग हैं जिसे कम से कम पांच हजार साल पुराना माना गया है.
राष्ट्रपति के रूप में शुद्धिकरण या आशीर्वाद मंत्र की है तो यह किसी व्यक्ति का अपना चयन होता है. संविधान उसे धार्मिक रीति रिवाज की आजादी देता है. राजनीतिक लोग ईश्वर के नाम शपथ लेते हैं. अपनी भाषाओं में शपथ लेते हैं. आदिवासी समाज अपने को सनातन परंपरा में ही जोड़कर देखता है. ये दूसरी बात है कि प्रकृति पूजकों के अपने रीति रिवाज भी हैं. जहां तक बात द्रौपदी मुर्मू की है उनकी धार्मिक आस्था किसी के लिए गूढ़ सवाल नहीं है.
राष्ट्रपति बनने से पूर्व भी ना जाने कितने मौकों पर उन्होंने कभी भी अपनी आस्था का प्रदर्शन करने में संकोच नहीं किया. ठीक वैसे ही जैसे तमाम अल्पसंख्यक नेता और बॉलीवुड के अभिनेता अजमेर शरीफ जैसे मजारों पर चादर चढ़ाते शीश झुकाते नजर आते रहे हैं. अब अगर द्रौपदी मुर्मू की हिंदू धर्म परंपरा में आस्था है तो उस पर सवाल उठाना व्यर्थ है. खासकर ओडिशा में जहां भगवान जगन्नाथ हर जाति समूह की श्रद्धा के केंद्र में हैं. ओडिशा में तो भगवान् जगन्नाथ आदिवासी रंग में ही रंगे आते हैं. उनका महाप्रसाद भी लोक से ही निकला है जो बहुत साधारण दाल और भात है. उनकी मूर्ति लकड़ी से बनाई जाती है और समूचा ओडिशी समाज उन्हें अपने पालक के तौर पर पूजता है खुद को उनकी प्रजा मानता है. अगर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपनी आस्था और भक्ति को लेकर सहज हैं तो किसी अन्य को सवाल उठाने का हक़ नहीं.
दूसरी बात. सनातन परंपरा में रीति रिवाज जानने वालों को पता है कि लोग नए काम की शुरुआत अपनी आस्था के वशीभूत करते हैं. सनातन परंपरा में पूजा के नियम हैं. पहले आसन शुद्ध किया जाता है. फिर पुरोहित, यजमान का शुद्धिकरण करता है और बाद में यजमान भी पुरोहित का शुद्धिकरण करने के बाद संकल्प लेकर पूजा आदि कार्य के लिए आगे बढ़ता है. अगर यह शुद्धिकरण होगा तो बिल्कुल ऐसे ही हुआ होगा. यह भी कि सनातन में स्वस्तिवाचन की भी परंपरा है. यह बहुत प्राचीन परंपरा है. पुरोहित की मौजूदगी में विधि विधान से मंत्रोच्चार के साथ पूरी की जाती है और पुरोहित मौजूद नहीं है तो लोग प्रतीकात्मक किसी नए कार्य को शुरू करते वक्त मंगल कामना करते हैं.
स्वस्तिवाचन के कई मंत्र हैं. उदाहरण के लिए "आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥" के मंत्र को लिया जा सकता है. इसका मतलब है कि हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों. प्रगति को न रोकने वाले और सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें. अब भला इस स्वस्तिवाचन में किसी धर्म या क़ानून की हानि या किसी के प्रति कोई मानवीय दुर्भावना नहीं दिखती.
द्रौपदी के लिए चिंतित लोग क्या ईसाई बन चुके आदिवासियों को ईसाई मानते हैं? अगर वे धर्मांतरित ईसाईयों को लेकर सहज हैं तो भला द्रौपदी मुर्मू को लेकर इतनी असहजता क्यों है? इससे तो यही पता चलता है कि सवाल उठा रहे लोगों को द्रौपदी मुर्मू से नहीं बल्कि उनकी धार्मिक मान्यताओं से दिक्कत है और लोग इसी बहाने अपमानजनक बातों को उठाकर आदिवासी समाज को भड़काने की कोशिश कर रहे और कुछ नहीं.
नीचे द्रौपदी मुर्मू के वीडियो पर आए कुछ कमेंट्स को पढ़ा जा सकता है.
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