लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है और सत्ता एक बार फिर मोदी सरकार के हाथ में चली गई है. पिछली बार 2014 में जब भाजपा जीती थी, तो उसे मोदी लहर कहा गया था. तब भाजपा ने 543 सीटों में से 300 सीटें जीती थीं. इस बार तो भाजपा ने करीब 350 सीटें जीत ली हैं. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार तो मोदी की सुनामी आई है. पीएम मोदी परिवारवाद पर हमेशा ही प्रहार करते रहे हैं.
मोदी लहर में तो कुछ परिवार अपना किला बचाने में कामयाब भी हो गए थे, लेकिन मोदी की सुनामी में परिवारवाद छितर-बितर हो गया है. जो सत्ता पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के हाथों में रही, वह अब निकल कर दूसरे हाथों में जा रही है. राहुल गांधी का अमेठी हार जाना सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं हैं, जिनके परिवारवाद को मोदी की सुनामी ने तबाह किया है, बल्कि बहुत से ऐसे परिवार हैं, जो मोदी की सुनामी के सामने टिक नहीं पाए. ये भी सच है कि कुछ ने अभी भी अपना गढ़ बचाने में कामयाबी पा ली है.
बिखर गया मुलायम परिवार !
मुलायम सिंह के परिवार के इस लोकसभा चुनाव में कुल 6 लोग मैदान में थे. इनमें से बस दो ही जीत पाए, बाकी सब हार गए.
- उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़े मुलायम सिंह यादव को 5.23 लाख वोट मिले और उन्होंने भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को करीब 1 लाख वोट से हराया. शाक्य को सिर्फ 4.28 लाख वोट ही मिले.
- जीतने वालों में मुलायम परिवार के दूसरे सदस्य हैं अखिलेश यादव, जिन्होंने मुलायम सिंह की विरासत आजमगढ़ से चुनाव लड़ा था. यहां से भाजपा ने भोजपुरी सिंगर निरहुआ को मैदान में उतारा था. जहां एक ओर अखिलेश यादव को 6.19 लाख वोट मिले, वहीं निरहुआ को सिर्फ 3.60 लाख...
लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है और सत्ता एक बार फिर मोदी सरकार के हाथ में चली गई है. पिछली बार 2014 में जब भाजपा जीती थी, तो उसे मोदी लहर कहा गया था. तब भाजपा ने 543 सीटों में से 300 सीटें जीती थीं. इस बार तो भाजपा ने करीब 350 सीटें जीत ली हैं. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि इस बार तो मोदी की सुनामी आई है. पीएम मोदी परिवारवाद पर हमेशा ही प्रहार करते रहे हैं.
मोदी लहर में तो कुछ परिवार अपना किला बचाने में कामयाब भी हो गए थे, लेकिन मोदी की सुनामी में परिवारवाद छितर-बितर हो गया है. जो सत्ता पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार के हाथों में रही, वह अब निकल कर दूसरे हाथों में जा रही है. राहुल गांधी का अमेठी हार जाना सबसे बड़ा उदाहरण है. लेकिन सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं हैं, जिनके परिवारवाद को मोदी की सुनामी ने तबाह किया है, बल्कि बहुत से ऐसे परिवार हैं, जो मोदी की सुनामी के सामने टिक नहीं पाए. ये भी सच है कि कुछ ने अभी भी अपना गढ़ बचाने में कामयाबी पा ली है.
बिखर गया मुलायम परिवार !
मुलायम सिंह के परिवार के इस लोकसभा चुनाव में कुल 6 लोग मैदान में थे. इनमें से बस दो ही जीत पाए, बाकी सब हार गए.
- उत्तर प्रदेश के मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़े मुलायम सिंह यादव को 5.23 लाख वोट मिले और उन्होंने भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को करीब 1 लाख वोट से हराया. शाक्य को सिर्फ 4.28 लाख वोट ही मिले.
- जीतने वालों में मुलायम परिवार के दूसरे सदस्य हैं अखिलेश यादव, जिन्होंने मुलायम सिंह की विरासत आजमगढ़ से चुनाव लड़ा था. यहां से भाजपा ने भोजपुरी सिंगर निरहुआ को मैदान में उतारा था. जहां एक ओर अखिलेश यादव को 6.19 लाख वोट मिले, वहीं निरहुआ को सिर्फ 3.60 लाख वोट ही मिल पाए.
- यूपी के कन्नौज से अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को चुनाव में खड़ा किया था. वह भाजपा के सुब्रत पाठक से करीब 12 हजार वोटों से हार गईं. डिंपल यादव को 5.49 लाख वोट मिले, जबकि सुब्रत पाठक को 5.61 लाख वोट मिले.
- अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव भी बदायूं से हार गए हैं. उन्हें सिर्फ 4.91 लाख वोट मिले हैं, जबकि भाजपा की संघमित्रा मौर्या को 5.10 लाख वोट मिले हैं. यहां भाजपा ने समाजवादी पार्टी का किला ढहा दिया है. दिलचस्प है कि 2004, 2009 और 2014 में, यानी हर बार, धर्मेंद्र यादव बदायूं से लोकसभा का चुनाव जीतते रहे हैं. पिछली बार मोदी लहर के बावजूद वह अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे थे, लेकिन इस बार सत्ता हाथ से चली गई.
- समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव ने यूपी के फिरोजाबाद से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा है. अक्षय यादव को सिर्फ 4.65 लाख वोट मिले हैं, जबकि भाजपा के चंद्र सेन ने 4.94 लाख वोट हासिल किए हैं. पिछली बार तो अक्षय ने यहीं से करीब 1.15 लाख वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार अपना किला नहीं बचा सके.
- फिरोजाबाद सीट पर अक्षय यादव के खिलाफ मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव खड़े थे. खैर, न तो यहां अक्षय की चली, ना ही शिवपाल यादव की. शिवपाल भी सिर्फ 91 हजार वोट ही पा सके और बुरी तरह से हार गए.
फिर हारीं लालू की बेटी, चाचा-भतीजी के बीच थी जंग
बिहार के पाटलीपुत्र से चुनावी मैदान में उतरीं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती को हार का मुंह देखना पड़ा है. यहां तो परिवार वालों में ही झगड़ा है. रिश्ते में चाचा लगने वाले भाजपा नेता रामकृपाल यादव ने ही उन्हें हराया है. जहां मीसी भारती को 4.68 लाख वोट मिले, वहीं राम कृपाल यादव को 5.06 लाख वोट हासिल हुए. आपको बता दें कि 2009 में पटना लोकसभा सीट को बांटकर पटना साहिब और पाटलीपुत्र लोकसभा सीट बनाई गई थी. 2009 में जेडीयू के रंजन प्रसाद यादव जीते थे, जबकि 2014 में रामकृपाल यादव ने यहां से मीसा भारती को हराया और 2019 के चुनाव में भी वह जीत बरकरार है. दिलचस्प है कि राम कृपाल यादव चाचा हैं और रंजन यादव लालू के चाणक्य रह चुके हैं.
देवगौड़ा ने परिवार तो बचा लिया, लेकिन खुद को नहीं संभाल पाए
कर्नाटक के देवगौड़ा परिवार के लिए लोकसभा चुनाव खुशियों के साथ गम भी लाया है. इस चुनाव में देवगौड़ा परिवार के तीन सदस्यों की किस्मत का फैसला हुआ और सभी का मुकाबला बीजेपी उम्मीदवारों से था.
- पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने कर्नाटक की तुमकुर सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा के जीएस बसवराज से हार गए. देवगौड़ा को करीब 5.81 लाख वोट मिले, जबकि जीएस बसवराज के हिस्से में 5.94 लाख वोट आए.
- देवगौड़ा ने कर्नाटक की हासन सीट की अपनी विरासत अपने पोते प्रज्ज्वल रेवन्ना को सौंप दी. इस सीट पर प्रज्ज्वल ने 6.75 लाक वोट हासिल किए और जीत दर्ज की. यहां भाजपा की मंजु ए हार गईं, जिन्हें 5.33 लाख वोट मिले.
- मंड्या से देवगौड़ा के दूसरे पोते और मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी चुनाव मैदान में उतरे थे. निखिल कुमारस्वामी के खिलाफ कांग्रेस के दिवंगत नेता एमएच अम्बरीश की पत्नी और अभिनेत्री सुमनलता निर्दलीय चुनाव लड़ीं, जिन्हें बीजेपी का भी समर्थन मिला. इस सीट पर सुमनलता ने 7.02 लाख वोट पाते हुए जीत दर्ज की है, जबकि निखिल कुमार स्वामी को सिर्फ 5.76 लाख वोट ही मिले हैं.
डीएमके में अभी भी सत्ता परिवार वालों के पास
तमिलनाडु की अहम पार्टी डीएमके की ओर से कनिमोझी और दयानिधि मारन मैदान में थे. दोनों ने ही चुनाव जीत भी लिया. तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि की बेटी कनिमोझी थुथुकुडी सीट से मैदान में थीं. तमिलनाडु की जनता ने उन्हें 5.60 लाख वोट दिए, जबकि भाजपा के डॉ. तमिलिसाई सौंदरराजन को सिर्फ 2.14 लाख वोट ही मिले.
वहीं दूसरी ओर करुणानिधि के भाई के बेटे दयानिधि मारन ने भी चेन्नई सेंट्रल से जीत हासिल कर ली है. उन्होंने 4.48 लाख वोट हासिल किए. उनके मुकाबले चेन्नई सेंट्रल में दूर-दूर तक कोई नहीं है.
केसीआर की बेटी नहीं बचा सकीं अपनी सत्ता
जिस तरह डीएमके में कनिमोझी का कद है, कुछ वैसा ही कद तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में के कविता का है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता निजामाबाद से चुनाव लड़ीं. उनकी सीधी टक्कर भाजपा के अरविंद धर्मपुरी से थी, जिन्हें 4.79 लाख वोट मिले हैं, जबकि कविता सिर्फ 4.09 लाख वोट ही जुटा सकीं. 2014 के चुनाव में कविता करीब 2.5 लाख से भी अधिक वोटों से जीती थीं.
पवार परिवार में पहली बार पहली हार
अजित पवार के बेटे पार्थ पवार ने इस बार महाराष्ट्र के मावल से चुनाव लड़ा. 27 साल के पार्थ ने अपना पहला चुनाव लड़ा और पहली बार में ही हार गए. इसी के साथ ये भी जानना दिलचस्प है कि ये पवार परिवार की पहली हार है. पोते पार्थ के हार जाने से शरद पवार की काफी किरकिरी भी हो रही है. पार्थ को करीब 5 लाख वोट मिले, जबकि शिवसेना ने 7.18 लाख वोट जुटा लिए. यानी करीब 2.1 लाख से करारी शिकस्त.
जहां एक ओर मोदी की सुनामी में पार्थ की वजह से पवार परिवार की पहली हार हुई है, वहीं दूसरी ओर, शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने बारामती का अपना किला बचाने में सफलता पाई है. यहां से वह 2009 और 2014 में जीती थीं और इस बार भी अपनी जीत बरकरार रखी है. सुप्रिया सुले को 6.83 लाख वोट मिले हैं, जबकि भादपा की कंचन राहुल कूल को सिर्फ 5.28 लाख वोट मिले हैं.
बादल परिवार ने बचा लिया अपना गढ़
इस लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से भी मैदान में कुछ परिवार थे. इनमें ही एक नाम बादल परिवार का भी है. बादल परिवार अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहा है. एक ओर पंजाब के बठिंडा से हरसिमरत कौर बादल जीत गई हैं, तो वहीं फिरोजपुर से मैदान में उतरे सुखबीर सिंह बादल को भी लोगों ने सिर आंखों पर बिठाया है.
हरसिमरत कौन को 4.90 लाख वोट मिले हैं, जबकि उनके प्रतिद्ंद्वी कांग्रेस के अमरिंदर सिंह राजा को 4.69 वोट मिले हैं. वहीं दूसरी ओर, फिरोजपुर में शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर सिंह बादल को 6.31 लाख वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस के शेर सिंह को सिर्फ 4.32 लाख वोट ही मिले हैं.
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