महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार पर आया संकट लगातार गहराता जा रहा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के बागी विधायकों की वापसी के लिए भावुक फेसबुक लाइव का आखिरी दांव खेला था. और, कुछ ही देर बाद शिवसेना प्रमुख ने मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' को भी खाली कर दिया था. अब इसके जवाब में बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे तीन पन्नों की एक चिट्ठी शेयर की है. यह चिट्ठी शिवसेना के बागी विधायक संजय शिरसाट ने लिखी है. जिसे शेयर करते हुए एकनाथ शिंदे ने ने लिखा है कि 'यह है हमारे विधायकों की भावना.'
वैसे, उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी सरकार और शिवसेना को बचाने के लिए सभी पदों को छोड़ने की तरकीब भी काम आती नहीं दिख रही है. क्योंकि, बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे के खेमे में विधायकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. वहीं, 55 विधायकों वाली शिवसेना की एक हालिया बैठक में कुल 13 विधायक ही मौजूद रहे थे. पहले जो खतरा केवल महाविकास आघाड़ी सरकार पर नजर आ रहा था. अब उसके दायरे में शिवसेना भी आ गई है. और ऐसी स्थितियां बन गई हैं कि शिवसेना में ही दोफाड़ की नौबत आ गई है.
आइए जानते हैं एकनाथ शिंदे के 'लेटर बम' की 7 बड़ी बातें...
- शिवसेना का मुख्यमंत्री होने के बावजूद मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' में पार्टी के विधायकों को ही प्रवेश नहीं मिल पाता था. मंत्रालय में मुख्यमंत्री सभी से मिलते हैं. पर आपने मंत्रालय में भी हमसे कभी मुलाकात नहीं की. और, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आप कभी मंत्रालय गए ही...
महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार पर आया संकट लगातार गहराता जा रहा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के बागी विधायकों की वापसी के लिए भावुक फेसबुक लाइव का आखिरी दांव खेला था. और, कुछ ही देर बाद शिवसेना प्रमुख ने मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' को भी खाली कर दिया था. अब इसके जवाब में बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे तीन पन्नों की एक चिट्ठी शेयर की है. यह चिट्ठी शिवसेना के बागी विधायक संजय शिरसाट ने लिखी है. जिसे शेयर करते हुए एकनाथ शिंदे ने ने लिखा है कि 'यह है हमारे विधायकों की भावना.'
वैसे, उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी सरकार और शिवसेना को बचाने के लिए सभी पदों को छोड़ने की तरकीब भी काम आती नहीं दिख रही है. क्योंकि, बागी विधायकों का नेतृत्व कर रहे एकनाथ शिंदे के खेमे में विधायकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. वहीं, 55 विधायकों वाली शिवसेना की एक हालिया बैठक में कुल 13 विधायक ही मौजूद रहे थे. पहले जो खतरा केवल महाविकास आघाड़ी सरकार पर नजर आ रहा था. अब उसके दायरे में शिवसेना भी आ गई है. और ऐसी स्थितियां बन गई हैं कि शिवसेना में ही दोफाड़ की नौबत आ गई है.
आइए जानते हैं एकनाथ शिंदे के 'लेटर बम' की 7 बड़ी बातें...
- शिवसेना का मुख्यमंत्री होने के बावजूद मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' में पार्टी के विधायकों को ही प्रवेश नहीं मिल पाता था. मंत्रालय में मुख्यमंत्री सभी से मिलते हैं. पर आपने मंत्रालय में भी हमसे कभी मुलाकात नहीं की. और, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि आप कभी मंत्रालय गए ही नहीं. मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' के दरवाजे ढाई साल में पहली बार असलियत में शिवसेना विधायकों के लिए खुले हैं. वरना विधायक बनकर भी हमें आपके आसपास वाले लोगों से विनती करके इस सीएम हाउस में प्रवेश मिलता था.
- निर्वाचन क्षेत्र के काम के लिए, व्यक्तिगत परेशानियों के लिए और अन्य कामों के लिए भी अनेक अवसरों पर आपसे मिलने की बार-बार विनती की गई. मुख्यमंत्री आवास 'वर्षा' के गेट पर कई-कई घंटों इंतजार के बावजूद मुलाकात के लिए प्रवेश नहीं मिला. कई बार फोन किया गया, पर फोन भी रिसीव नहीं किया गया. मेरा सवाल है कि क्या यह निर्वाचन क्षेत्र से जीतकर आने वाले पार्टी विधायक का अपमान नहीं है? 'ये जो कथित चाणक्य रूपी क्लर्क आपके आसपास जुटे हैं, उन्होंने हमें दूर रखकर विधान परिषद चुनाव और राज्यसभा चुनाव की रणनीति बनाई और नतीजे पूरे महाराष्ट्र ने देखे.'
- हम सभी विधायक लंबे वक्त से कई तरह के अपमान सहन कर रहे हैं. हमने कभी भी इधर-उधर नहीं देखा और चीजों को बर्दाश्त करते रहे. इस बार पहली मर्तबा हम लोग अपने सवालों को लेकर एकनाथ शिंदे के दरवाजे पहुंचे. शिवसेना विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र के साथ भेदभाव, विधायक निधि के साथ भेदभाव, अधिकारी वर्ग का असहयोग और कांग्रेस-एनसीपी की तरफ से लगातार अपमान को लेकर शिंदे साहब ने हम सभी विधायकों के अनुरोध पर न्याय और हक के लिए यह निर्णय (एमवीए से बगावत) लिया.
- हिंदुत्व, अयोध्या और राम मंदिर क्या शिवसेना के मुद्दे नही हैं? आदित्य ठाकरे हाल ही में अयोध्या गए. फिर हम लोगों को (शिवसेना विधायकों) को आपने अयोध्या जाने से क्यों रोका? आपने खुद फोन करके कई विधायकों को अयोध्या जाने से रोका. यहां तक कि मैंने कई साथी विधायकों के साथ मुंबई एयरपोर्ट से अयोध्या जाने के लिए लगेज चेक इन करवा लिया था. लेकिन, आपने एकनाथ शिंदे साहब को फोन कर हमें अयोध्या जाने से रोकने का दबाव डाला. हमें वापस लौटना पड़ा. राज्यसभा चुनाव में शिवसेना के एक भी विधायक ने क्रॉस वोटिंग नहीं की. लेकिन, विधान परिषद चुनाव में आपने हम पर इतना अविश्वास दिखाया. हमें रामलला के दर्शन तक करने नहीं दिया गया.
- साहेब (उद्धव ठाकरे) आपने हमसे (पार्टी विधायकों) वर्षा में मुलाकात नहीं की. लेकिन, कांग्रेस और एनसीपी के लोग आपसे नियमित मिलते रहे और अपने निर्वाचन क्षेत्रों का काम करवाते रहे. आपसे भूमि पूजन और उद्गाटन करवा रहे थे, सोशल मीडिया पर आपके साथ की फोटो लगाकर वायरल कर रहे थे. इस दौरान हमारे निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को लग रहा था कि मुख्यमंत्री तो हमारा है. फिर हमारे विरोधियों को कैसे निधि मिल रही है. उनके काम कैसे हो रहे हैं.
- इस तरह की तमाम मुश्किल परिस्थितियों में माननीय बालासाहेब, धर्मवीर आनंद दिघे साहेब के हिंदुत्व पर चलने वाले एकनाथ शिंदे साहब का साथ हम लोगों ने दिया. हमारे मुश्किल से मुश्किल वक्त में भी हमेशा शिंदे साहेब का दरवाजा खुला रहा. शिंदे साहब का जैसा व्यवहार आज है, कल भी रहेगा. यह भरोसा हम सभी लोगों को है.
- कल आपने जो कुछ भी कहा (उद्धव ठाकरे का संबोधन) वह बहुत भावनात्मक था. लेकिन, उसमें हमारे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया गया था. इसी वजह से हम अपनी भावनाओं को आप तक पहुंचाने के लिए पत्र लिख रहे हैं.
उद्धव ने खुद अपने पैरों पर मारी कुल्हाड़ी
एकनाथ शिंदे द्वारा शेयर की गई चिट्ठी को देख आसानी से कहा जा सकता है कि शिवसेना की फिलवक्त हालात के लिए उद्धव ठाकरे ही जिम्मेदार हैं. अपनी ही पार्टियों के विधायकों को मुख्यमंत्री आवास के बाहर इंतजार कराना, सीएम होने के बावजूद मंत्रालय नहीं जाना, सेकुलर छवि बनाने के लिए शिवसेना के सियासी आधार रहे हिंदुत्व के मुद्दों को खूंटी पर टांग देना, सीएम की कुर्सी बचाए रखने के लिए शिवसेना से ज्यादा एनसीपी और कांग्रेस के विधायकों का ख्याल रखना जैसे बातों को हवा देकर उद्धव ठाकरे ने खुद अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली. महाविकास आघाड़ी सरकार बनाकर उद्धव ठाकरे भले ही अपनी जिद को पूरा कर सीएम बन गए हों. लेकिन, इस सरकार का रिमोट एनसीपी चीफ शरद पवार के ही हाथ में था. और, बागी विधायकों ने साफ कहा है कि उनकी नाराजगी की वजह भी एनसीपी और कांग्रेस के साथ किया गया महाविकास आघाड़ी गठबंधन ही है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.