आदर्श आचार संहिता से सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं खफा हैं, हरियाणा के एक मंत्री भी इससे काफी परेशान हैं. वैसे दोनों की परेशानियों में फर्क है क्योंकि वजहें भी अलग अलग हैं.
विवादित बयानों के लिए मशहूर हरियाणा के स्वास्थ्य और खेल मंत्री अनिल विज का कहना है कि आचार संहिता से विकास कार्यों में बाधा पहुंच रही है. अनिल विज ने इस सिलसिल में लोक सभा के बाद हरियाणा विधानसभा और फिर पंचायत चुनावों की ओर ध्यान दिलाया है. अनिल विज कहते हैं, 'चुनाव आचार संहिता की इतनी लंबी अवधि विकास को बाधित करती है. हरियाणा में लोकसभा चुनाव छठे चरण में 12 मई को होना है, लेकिन सभी काम पहले ही रूक गए हैं.'
आचार संहिता को लेकर चुनाव आयोग के कुछ फैसले विपक्ष को बेहद नागवार गुजरे हैं. पश्चिम बंगाल के अफसरों के तबादले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो पत्र लिख कर चुनाव आयोग को सरकार के प्रभाव में पक्षपातपूर्ण कार्रवाई का आरोप लगाया है. ममता के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं. पहले भी लिये गये हैं और आयोग को इस सिलसिले में किसी से नसीहत लेने की जरूरत नहीं है.
अफसरों को चुनाव ड्यूटी से दूर रखने की हिदायत
चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल के चार अफसरों के तबादले का आदेश दिया था. इन अफसरों में सीबीआई एक्शन के खिलाफ ममता बनर्जी के साथ धरने पर दिखे अनुज शर्मा भी शामिल हैं. पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर चुनाव आयोग ने हिदायत भी दी है कि जिन चार अफसरों का तबादला किया गया है उनसे चुनाव से संबंधित कोई भी जिम्मेदारी न दी जाये.
ममता बनर्जी ने आयोग को लिए पत्र में इसे दुर्भाग्यपूर्ण, मनमाना और बीजेपी के इशारे पर लिया गया फैसला बताया. ममता बनर्जी ने पत्र में मांग भी की थी कि आयोग को इसकी समीक्ष और जांच करनी चाहिये, ताकि पता चल सके कि ऐसा कैसे हुआ और किसके निर्देश पर किया गया?
आचार संहिता का उल्लंघन रोकने के लिए सख्ती जरूरी है
चुनाव आयोग ने अपने फैसले को सही ठहराते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जरूरी बताया - और ममता बनर्जी के आरोपों को पूरी तरह गलत करार दिया.
आचार संहिता के उल्लंघन के तीन बड़े मामले
पश्चिम बंगाल के अफसरों के अलावा आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के तीन मामले उल्लेखनीय हैं. शिकायत मिलने चुनाव आयोग ने ऐसे तीन मामलों की जांच की और पाया कि आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है. जिनके खिलाफ ये मामले रहे, वे हैं - योगी आदित्यनाथ, राजीव कुमार और कल्याण सिंह.
1. योगी आदित्यनाथ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गाजियाबाद की एक रैली में कहा था, 'कांग्रेस के लोग आतंकवादियों को बिरयानी खिलाते थे और मोदीजी की सेना आतंकवादियों को गोली और गोला देती है.'
जब चुनाव आयोग के पास शिकायत पहुंची तो उसने जांच की और नोटिस देकर योगी आदित्यनाथ से जवाब मांगा. योगी आदित्यनाथ ने अपने जवाब में बताया कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा. योगी आदित्यनाथ की दलील रही कि सैन्य बलों के सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति भी आखिर प्रधानमंत्री की अगुवाई वाली सरकार की सलाह पर ही तो कदम उठाते हैं - फिर मोदी जी की सेना हुई कि नहीं?
बहरहाल, चुनाव आयोग को यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का जवाब संतोष जनक नहीं लगा. चुनाव आयोग ने माना कि योगी आदित्यनाथ के बयान से चुनाव आयोग के उन निर्देशों का उल्लंघन हुआ है जिसमें राजनीतिक बयानबाजी से सैन्य बलों को दूर रखने को कहा गया था. आयोग ने साफ तौर पर सर्जिकल स्ट्राइक और विंग कमांडर अभिनंदन के फोटो के चुनाव प्रचार में इस्तेमाल की मनाही की थी. आयोग के आदेश के बाद कई नेताओं को ऐसे पोस्टर हटाने पड़े थे.
2. राजीव कुमार : नीति आयोग के वाइसचेयरमैन राजीव कुमार की टिप्पणी के खिलाफ कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज करायी थी. कांग्रेस अध्य्क्ष राहुल गांधी की स्कीम न्याय को लेकर राजीव कुमार ने कहा था, 'राहुल गांधी के पांच करोड़ गरीब परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये देने के वादे से राजकोषीय अनुशासन धराशायी हो जाएगा. इस योजना से काम ना करने वाले लोगों को भी बढ़ावा मिलेगा.'
चुनाव आयोग ने नोटिस देकर राजीव कुमार से जवाब मांगा था. अपने जवाब में राजीव कुमार ने कहा कि उनकी टिप्पणी एक अर्थशास्त्री के तौर पर रही, न कि नीति आयोग के वाइस चेयरमैन के रूप में. आयोग राजीव कुमार के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ और माना कि उनके बयान से आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है.
3. कल्याण सिंह : राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने कहा था, 'हम सब भाजपा के कार्यकर्ता हैं और हम सब चाहते हैं कि चुनाव में भाजपा जीते. हम चाहते हैं कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनें.'
चुनाव आयोग ने कल्याण सिंह के बयान को उनके राज्यपाल होने के नाते आचार संहिता का उल्लंघन माना. कल्याण सिंह के संवैधानिक पद पर होने के नाते आयोग ने कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति को लिखा. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने चुनाव आयोग का पत्र समुचित एक्शन की संस्तुति के साथ गृह मंत्रालय को अग्रसारित कर दिया है.
सजा-ए-चेतावनी
कल्याण सिंह को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाये जाने पर तो चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेज दी, लेकिन योगी आदित्यनाथ और राजीव कुमार के मामलों को अपने स्तर पर ही निबटा दिया. याद रहे 1990 में हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद अपने बेटे के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे थे. चुनाव आयोग ने राज्यपाल के इस आचरण पर नाराजगी जतायी तो गुलशेर अहमत ने इस्तीफा दे दिया था. चुनाव आयोग ने योगी आदित्यनाथ को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी तो पाया लेकिन सजा के तौर पर सिर्फ चेतावनी दी. चुनाव आयोग ने योगी आदित्यनाथ को आगे से ऐसी बातों से बचने की हिदायत दी है.
योगी आदित्यनाथ की ही तरह चुनाव आयोग ने राजीव कुमार को भी भविष्य में सावधान रहने की नसीहत दी है. चुनाव आयोग का मानना है कि चूंकि राजीव कुमार एक ब्यूरोक्रेट हैं और चुनाव से ठीक पहले उनका राजनीतिक बयान आचार संहिता का उल्लंघन है. राजीव कुमार के बहाने आयोग ने कहा है कि सरकारी कर्मचारियों को न सिर्फ अपने व्यवहार में निष्पक्ष होना चाहिये, बल्कि उनकी सार्वजनिक अभिव्यक्ति में भी ये बात झलकनी चाहिए. कांग्रेस ने योगी आदित्यनाथ और राजीव कुमार के बयानों के मामले में चुनाव आयोग पर हल्का एक्शन बताया है. कांग्रेस ने सवाल उठाया कि क्या MCC यानी मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट अब मोदी आचार संहिता बन गयी है?
निश्चित रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित कराना निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है - और पश्चिम बंगाल के अफसरों को अगर वो इसमें बाधा मानता है तो चुनाव ड्यूटी से दूर रखने का फैसला बिलकुल सही है. चुनाव आयोग को ऐसे किसी भी चीज की इजाजत नहीं देनी चाहिये जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में आड़े आ रही हो.
सवाल ये है कि योगी आदित्यनाथ और राजीव कुमार ने तो अपना काम कर दिया. दोनों को अपने अपने बयानों का फायदा मिल गया. उसी तरह कल्याण सिंह ने भी अपना काम कर दिया. चुनाव आयोग के कुछ नियम हैं और उन्हीं के आधार पर चुनाव आयुक्त अपने विवेकाधिकार से कार्रवाई के फैसले लेते हैं.
लेकिन क्या आचार संहिता के उल्लंघन के लिए सिर्फ चेतावनी या आगे से सावधान रहने की नसीहत नाकाफी नहीं है? नियम और कानून का पालन सुनिश्चि करने के लिए ही सजा का प्रावधान किया जाता है. किसी भी अपराध के लिए सजा इसीलिए दी जाती है कि बाकियों के लिए नसीहत हो और कोई भी नियम कानून को अपने हाथ में लेने का दुस्साहस न करे.
मान लेते हैं कि जिस किसी को भी चुनाव आयोग ने चेतावनी दी है या फिर सावधान रहने की सलाह दी है वो भविष्य में वैसी हरकत से बाज आएगा, लेकिन बाकियों का क्या? बाकी नेता तो यही मान कर चलेंगे कि कर लो जो मर्जी हो, चुनाव आयोग जांच करेगा, दोषी पाएगा और चेतावनी देगा - लेकिन इससे ज्यादा क्या करेगा? आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाकर सिर्फ सजा-ए-चेतावनी काफी नहीं है. चुनाव आयोग को ऐसे मसलों पर नये सिरे से गंभीरता से विचार करना चाहिये और उसके हिसाब से खुद को अपडेट भी करना चाहिये.
इन्हें भी पढ़ें :
'4 लाख करोड़ के लोन' की देनदारी वाले प्रत्याशी को आखिर टिकट कैसे मिल गया?
निजामाबाद लोकसभा सीट ऐसी चुनौती है, जिसने चुनाव आयोग की नींद हराम कर डाली!
तेलंगाना चुनाव में वोट के बदले बाइक-स्मार्टफोन के ऑफर से चुनाव आयोग खुश ही होगा!
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.