अम्मू उस वक्त दो साल की भी नहीं थी जब उनके पिता जयराम की मौत हो गई. उस काली और भयानक रात की याद अभी तक जयललिता के ज़हन में ऐसे ताजा है जैसे कल की ही बात हो. वो रात उनके आगे के झंझावतों की शुरुआत थी. एक ऐसे जीवन की शुरुआत जिसमें अब ना तो पिता का प्यार था ना ही वो सुरक्षा. इसी रात ने एक भोली भाली, बला की सुंदर और मासूम अम्मू को अम्मा बना दिया. अम्मा एक फौलादी इरादों वाली औरत, कभी हार ना मानने वाली औरत.
जयललिता फाइल फोटो |
पिता की मौत के बाद जयललिता की मां वेदा ने अपने दोनों बच्चों-बेटा पप्पू और बेटी अम्मू के साथ बैंगलोर शिफ्ट कर लिया. जयललिता को घर में सभी प्यार से अम्मू ही बुलाते थे. बैंगलोर में अम्मू के नाना रंगास्वामी अयंगर का घर था. श्रीरंगम (त्रिची, तमिलनाडु) के रहने वाले रंगस्वामी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड में नौकरी लगने के बाद वो परिवार के साथ बैंगलोर शिफ्ट हो गए थे. उनके चार बच्चे थे- तीन बेटियां, वेदा, अंबुज और पद्मा और एक बेटा श्रीनिवासन. उनका परिवार एक मध्यम वर्गीय रुढ़िवादी ब्राह्मण परिवार था. घर में पूजा-पाठ का विशेष महत्व था.
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अम्मू की मां वेदा ने बैंगलोर के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में सेक्रेटरी की नौकरी कर ली और घर का खर्च उठाने में पिता का हाथ बंटाने लगीं. हालांकि, उनकी कमाई सिर्फ इतनी ही थी कि वो अपने बच्चों की बुनियादी ज़रूरतों को ही पूरा कर सकती थीं. तभी एक कन्नड़ फिल्म...
अम्मू उस वक्त दो साल की भी नहीं थी जब उनके पिता जयराम की मौत हो गई. उस काली और भयानक रात की याद अभी तक जयललिता के ज़हन में ऐसे ताजा है जैसे कल की ही बात हो. वो रात उनके आगे के झंझावतों की शुरुआत थी. एक ऐसे जीवन की शुरुआत जिसमें अब ना तो पिता का प्यार था ना ही वो सुरक्षा. इसी रात ने एक भोली भाली, बला की सुंदर और मासूम अम्मू को अम्मा बना दिया. अम्मा एक फौलादी इरादों वाली औरत, कभी हार ना मानने वाली औरत.
जयललिता फाइल फोटो |
पिता की मौत के बाद जयललिता की मां वेदा ने अपने दोनों बच्चों-बेटा पप्पू और बेटी अम्मू के साथ बैंगलोर शिफ्ट कर लिया. जयललिता को घर में सभी प्यार से अम्मू ही बुलाते थे. बैंगलोर में अम्मू के नाना रंगास्वामी अयंगर का घर था. श्रीरंगम (त्रिची, तमिलनाडु) के रहने वाले रंगस्वामी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड में नौकरी लगने के बाद वो परिवार के साथ बैंगलोर शिफ्ट हो गए थे. उनके चार बच्चे थे- तीन बेटियां, वेदा, अंबुज और पद्मा और एक बेटा श्रीनिवासन. उनका परिवार एक मध्यम वर्गीय रुढ़िवादी ब्राह्मण परिवार था. घर में पूजा-पाठ का विशेष महत्व था.
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अम्मू की मां वेदा ने बैंगलोर के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में सेक्रेटरी की नौकरी कर ली और घर का खर्च उठाने में पिता का हाथ बंटाने लगीं. हालांकि, उनकी कमाई सिर्फ इतनी ही थी कि वो अपने बच्चों की बुनियादी ज़रूरतों को ही पूरा कर सकती थीं. तभी एक कन्नड़ फिल्म प्रोड्यूसर केम्पराज की नजर वेदा पर पड़ी. वे वेदा की खूबसूरती के कायल हो गए. वो वेदा को अपनी नई फिल्म में हिरोइन बनाना चाहते थे और इसके लिए उनके पिता से इजाजत लेने गए. अयंगर ने मना कर दिया.
वेदा की सबसे छोटी बहन पद्मा अभी कॉलेज में ही पढ़ रही थी. हालांकि उनकी दूसरी बेटी अंबुजा ने घर के रिवाजों को तोड़ते हुए एयर होस्टेस की नौकरी कर ली थी. इसलिए अयंगर परिवार ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. इससे अंबुजा को कोई फर्क नहीं पड़ा. उन्होंने फिल्मों में भी काम करना शुरू कर दिया और अब अपना नाम विद्यावती रख लिया था. वो चेन्नई में ही बस गईं. अंबुजा ने वेदा और उनके बच्चों को अपने साथ चेन्नई में ही रख लिया. उन्होंने बच्चों का स्कूल में एडमिशन करा दिया.
जयललिता फाइल फोटो |
बहन अंबुजा ने ही उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के लिए समझाया. बहन की सफलता और अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए वेदा को लगा कि ये काम बेहतर हैं. इसके बाद केम्पराज ने उन्हें अपने फिल्म में ले लिया और अब वेदा 'संध्या' बन गई. संध्या सुपर स्टार बन गईं. जल्दी ही उन्हें पता चल गया था कि अपने व्यस्त कार्यक्रम के साथ वो बच्चों का ख्याल नहीं रख पाएंगी. इसलिए उन्होंने बच्चों को अपने पिता के पास वापस बैंगलोर भेज दिया.
अम्मू अपनी मां को बहुत याद करती थीं. बच्चे मां के आने का इंतजार करते रहते थे. वेदा कम समय के लिए ही आतीं पर बच्चों के लिए खूब सारे खिलौने, मिठाइयां और गिफ्ट लातीं. दोनों भाई-बहन को पढ़ना बहुत पसंद था इसलिए वो उनके लिए खूब सारी किताबें भी लातीं ताकि जब वो जाएं तो बच्चे रोएं नहीं.
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अम्मू का एडमिशन बंगलोर के बिशप कॉटन स्कूल में हो गया. यहां वो चार साल तक पढ़ी. इसके बाद पद्मा की शादी हो गयी और वो अपने पति के साथ शिफ्ट हो गई. पद्मा ही दोनों बच्चों की देखभाल करती थी इसलिए उनकी शादी के बाद वेदा ने दोनों बच्चों को वापस चेन्नई बुला लिया. जयललिता मां के साथ वापस आकर बहुत खुश थीं, पर जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि अब उनकी मां के पास बच्चों के लिए बहुत ही कम समय है. 10 साल की उम्र में जयललिता ने चेन्नई के प्रसिद्ध चर्च पार्क कॉन्वेंट में दाखिला लिया.
पढ़ाई में अम्मू होशियार तो थी ही, अपनी खूबसूरती की वजह से भी वो सारे टीचरों और बच्चों के बीच मशहूर हो गईं. दक्षिण भारतीय रंग-रूप के उलट अपने गुलाबी रंग, लंबे बाल और सुंदर आंखों के साथ-साथ एक एक्ट्रेस की बेटी होने के कारण उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई थी. स्कूल में मिलने वाली तारीफों ने एक तरफ जहां जयललिता को आत्मविश्वास से भर दिया वहीं दूसरी तरफ अपनी हर कामयाबी पर मां का साथ खड़े ना हो पाना उनके दिल में टीस बनकर रह गया. एक बार जयललिता ने अपनी मां को दो दिनों तक नहीं देखा तब उन्होने मां के लिए एक निबंध लिखा. रातभर जगकर लिखे गए इस निबंध का शीर्षक था- 'मेरी मां- मेरे लिए वो क्या मायने रखती है'.
जयललिता फाइल फोटो |
इस निबंध ने फर्स्ट प्राइज जीता और यही नहीं निबंध को पढ़कर टीचर इतनी प्रभावित हुई कि उन्होंने सभी स्टूडेंट्स को वो निबंध पढ़कर सुनाया. रात को जब संध्या घर वापस आईं तो बेटी को सीने से कॉपी लगाए सोया हुआ देखा. जयललिता मां की आहट पाकर जग गईं. मां को देखते ही आंखों में आंसू लिए उन्होंने बताया कि वो दो दिन से उनका इंतजार कर रही थीं. मां को वो अपना निबंध सुनाना चाहती थीं. संध्या उसी वक्त बेटी के साथ बैठीं और जयललिता को कहा कि वो अपना निबंध उन्हें सुनाएं.
'मां ने मुझे ढेर सारा प्यार किया मेरे गालों को चूमती रहीं और कहती रहीं कि ये बहुत ही खूबसूरत निबंध है. मां ने मुझे गले लगाया और कहा कि मुझे माफ कर दो, मैं दोबरा अब कभी तुम्हें इंतजार नहीं करवाउंगी. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं. मां का इंतजार करना मेरी आदत बन गया.' और इसके साथ ही जयललिता में निराशा और असंतोष भी बढ़ता गया. अब समय असमय घर में आने वाले प्रोड्यूसरों और एक्टरों को देख कर वो चिढ़ने लगीं. इस माहौल से बचने के लिए जयललिता ने किताब को अपना साथी बना लिया. बड़े होकर वो डॉक्टर या वकील बनने के सपने देखने लगीं या फिर अगर किस्मत साथ ने दिया तो IAS बनना चाहती थीं. वो किसी भी तरीके से बस सिनेमा से दूर रहना चाहती थीं.
(लेखिका वासंती की किताब 'Amma: Jayalalithaa’s Journey from Movie Star to Political Queen' के अंश)
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