दिल्ली के बवाना में लगी आग में 17 लोगों की दर्दनाक मौत की खबर के साथ ही एक वीडियो वायरल हुआ है. वीडियो में बीजेपी नेता और NDMC की मेयर प्रीति अग्रवाल की साथी नेताओं से कानाफुसी है - जिसे साफ सुना जा सकता है. मेयर के इस वीडियो को लेकर आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर दिया है. बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने मेयर का बचाव करते हुए आप पर जवाबी हमला बोला है.
मौत की आग के तांडव के बीच हो रही इस राजनीतिक रस्साकशी में एक सवाल उभर कर आ रहा है - आखिर कितना मुश्किल होता है सियासी जिंदगी में 'मन की बात' करना. ये सियासत का ही तकाजा है कि राजनीतिक मजबूरियों के कारण नेताओं को 'मन की बात' गला घोंट देना पड़ता है.
क्या आपने कभी सोचा है, नेताओं को मीडिया या लोगों के सामने आकर जो बयान देना पड़ता है, तो उन्हें कैसा लगता होगा? नेताओं की साउंडबाइट का मन की बात से मेल खाना जरूरी नहीं होता. बयान राजनीति के हिसाब से दिये जाते हैं - और मन की बात मन में ही मन मसोस कर रह जाती है.
ओह, मन की बात!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और वित्त मंत्री अरुण जेटली की उस तस्वीर पर आपने भी ध्यान दिया होगा - जिसकी सोशल मीडिया पर लोग चटखारे लेकर चर्चा कर रहे हैं - 'बदले बदले सरकार नजर आते हैं.'
ये तस्वीर इसी हफ्ते जीएसटी काउंसिल की डिनर पार्टी की है. बताने की जरूरत नहीं केजरीवाल और जेटली चाय पर कितनी ही भावपूर्ण चर्चा कर रहे हैं. ये तस्वीर देखने के बाद, अब जरा कोर्ट में जिरह का वो सीन याद कीजिए. तब एक खबर सुर्खियों में रही जब सीनियर वकील राम जेठमलानी ने जेटली को CROOK कहा था. फिर जेटली ने पूछा कि क्या इस शब्द का इस्तेमाल वो अपने क्लाइंट के कहने पर कह रहे हैं? जेठमलानी ने हां...
दिल्ली के बवाना में लगी आग में 17 लोगों की दर्दनाक मौत की खबर के साथ ही एक वीडियो वायरल हुआ है. वीडियो में बीजेपी नेता और NDMC की मेयर प्रीति अग्रवाल की साथी नेताओं से कानाफुसी है - जिसे साफ सुना जा सकता है. मेयर के इस वीडियो को लेकर आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को कठघरे में खड़ा कर दिया है. बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने मेयर का बचाव करते हुए आप पर जवाबी हमला बोला है.
मौत की आग के तांडव के बीच हो रही इस राजनीतिक रस्साकशी में एक सवाल उभर कर आ रहा है - आखिर कितना मुश्किल होता है सियासी जिंदगी में 'मन की बात' करना. ये सियासत का ही तकाजा है कि राजनीतिक मजबूरियों के कारण नेताओं को 'मन की बात' गला घोंट देना पड़ता है.
क्या आपने कभी सोचा है, नेताओं को मीडिया या लोगों के सामने आकर जो बयान देना पड़ता है, तो उन्हें कैसा लगता होगा? नेताओं की साउंडबाइट का मन की बात से मेल खाना जरूरी नहीं होता. बयान राजनीति के हिसाब से दिये जाते हैं - और मन की बात मन में ही मन मसोस कर रह जाती है.
ओह, मन की बात!
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और वित्त मंत्री अरुण जेटली की उस तस्वीर पर आपने भी ध्यान दिया होगा - जिसकी सोशल मीडिया पर लोग चटखारे लेकर चर्चा कर रहे हैं - 'बदले बदले सरकार नजर आते हैं.'
ये तस्वीर इसी हफ्ते जीएसटी काउंसिल की डिनर पार्टी की है. बताने की जरूरत नहीं केजरीवाल और जेटली चाय पर कितनी ही भावपूर्ण चर्चा कर रहे हैं. ये तस्वीर देखने के बाद, अब जरा कोर्ट में जिरह का वो सीन याद कीजिए. तब एक खबर सुर्खियों में रही जब सीनियर वकील राम जेठमलानी ने जेटली को CROOK कहा था. फिर जेटली ने पूछा कि क्या इस शब्द का इस्तेमाल वो अपने क्लाइंट के कहने पर कह रहे हैं? जेठमलानी ने हां कहा. बाद में केजरीवाल ने जेठमलानी को झुठला दिया - और फिर जेठमलानी ने केस ही छोड़ दिया - मुकदमा चालू है.
कहना मुश्किल है - ये दोनों मन की बात डिनर पार्टी में कर रहे थे - या वो बातें जो वकीलों के जरिये कोर्ट में हुई थीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेडियो पर 'मन की बात' करते हैं जिसे टीवी पर भी लाइव दिखाया जाता है. ताजा चर्चा में तो उनके मन की बात का ही एक सिक्वल है जिसे कभी कभार टीवी चैनलों पर विजुअल के साथ पहले भी देखने को मिलता रहा है.
बहरहाल, मन की बात, मन की बात होती है - यानी निहायत ही निजी बातें. वैसे सार्वजनिक जीवन में निहायत ही निजी सिर्फ वही होता है जो सामाजिक और नैतिक तौर पर पर्दे के पीछे होता है. मुश्किल तब होती है जब वे बातें भी समय समय पर सीडी बनाकर सार्वजनिक कर दी जाती हैं. अभी गुजरात में हार्दिक पटेल की सीडी खासी चर्चित रही. हालांकि, अपनी कथित सीडी पर हार्दिक ने बड़ा ही बोल्ड स्टेप लिया जो उनके स्टेटमेंट से समझा जा सकता है. ऐसे सीडी एक्सपेरिमेंट गुजरात में पहले भी हुए हैं - और तमाम तिकड़मों के इस्तेमाल से उन्हें 'पीड़ित' के राजनीतिक जीवन के ताबूत में आखिरी कील के तौर पर इस्तेमाल किया गया है.
प्रधानमंत्री की मन की बात, हाल के दिनों में ज्ञान की बात ज्यादा लगती है जिनमें वो कभी इतिहास तो कभी आजादी की झलकियां पेश करते हैं तो कभी नयी सदी में न्यू इंडिया के नये वोटर का स्वागत करते हैं. विरोधियों का क्या? सवाल उठाना तो उनका हक है. व्यंग्यकारों के मामले में भी ऐसा ही कहा जा सकता है.
अब संपत सरल की भाषा में समझें तो कहेंगे कि सिर्फ मोदी जी ही हैं जो मन की बात करते हैं, बाकी सब सिर्फ सियासी बातें ही करते हैं. अगर पूछा जाये कि ये कैसे पता? 'मोदी जी ही बता रहे थे!' हाजिरजवाबी का यही नमूना देखने को मिलेगा. व्यंग्यकार कभी गलत नहीं होता - ये बात भी ये नेता ही अपनी हरकतों से साबित कर देते हैं. NDMC की मेयर प्रीति अग्रवाल का वीडियो इसका सबसे बड़ा नमूना है.
दरअसल, केजरीवाल ने ही ये वीडियो रीट्वीट किया. इसके बाद दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने आप पर घटिया राजनीति करने का इल्जाम लगाया और प्रीति अग्रवाल का जम कर बचाव किया.
ये वीडियो बवाना इंडस्ट्रियल एरिया की फैक्ट्रियों में लगी भीषण आग के बाद का है जिसमें 17 लोगों की मौत हो गयी. वीडियो में बीजेपी नेता और मेयर प्रीति अग्रवाल अपने सहयोगियों से धीमी आवाज में कह रही हैं - "इस फैक्ट्री की लाइसेंसिंग हमारे पास है, इसलिए हम इस पर कुछ नहीं कह सकते." ये वीडियो घटनास्थल का ही है जब वो मीडिया को अपना बयान देने जा रही थीं. बाद में मेयर ने एक ट्वीट के जरिये सफाई भी देने की कोशिश की.
बयानबाजी और 'मन की बात'
अब नेताओं के कुछ ऐसे बयानों की बात करते हैं जिन पर खासा विवाद हुआ. कई बयानों पर बवाल के बाद नेताओं ने अपनी बातों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने का आरोप भी मीडिया पर लगाया. इनमें ऐसे भी बयान थे जो इन नेताओं ने लाइव टीवी पर कहा था - लेकिन हंगामा होते ही उन्होंने यू-टर्न ले लिया - और ठीकरा मीडिया पर मढ़ दिया.
मनोहरलाल खट्टर : हफ्ते भर के भीतर हरियाणा में रेप की कई घटनाएं सामने आई हैं. मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का कहना है कि घटना की सच्चाई की पुष्टि होने से पहले सनसनी नहीं फैलानी चाहिए. कुछ उदाहरणों के जरिये खट्टर ने ये भी समझाने की कोशिश की रेप के मामलों की संख्या बढ़ी हुई इसलिए लगती है क्योंकि कई आरोप फर्जी होते हैं.
क्या सच में खट्टर निजी तौर पर भी यही मानते होंगे? क्या वास्तव में रेप के मामलों को लेकर सच में उनके मन में यही बातें होंगी?
बाबूलाल गौर - मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके बाबूलाल गौर ने एक बार कहा था - "रेप कभी सही होता है, कभी कभी गलत भी होता है." क्या बाबू लाल गौर का मन भी इस बात को मानता होगा कि रेप कभी कभी गलत भी होता है. संभव है बाबूलाल गौर कभी सामने आकर समझाएं कि कौन सा रेप गलत होता है और कौन सा सही? उम्मीद की जानी चाहिये इस पर एक बार और बयान देने के बाद उनके मन का बोझ हल्का जरूर हो जाएगा.
शीला दीक्षित : जब शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं, तभी रेप की एक घटना के बाद उनका बयान आया - 'इतना ऐडवेंचरस होने की क्या जरूरत थी?' क्या ऐसी बातें कहते वक्त शीला दीक्षित के सामने किसी रेप पीड़िता का चेहरा सामने नहीं आया होगा?
ममता बनर्जी : पश्चिम बंगाल में महिलओं के खिलाफ बढ़ते अपराध को लेकर जब ममता बनर्जी घिरती नजर आयी तो उल्टे पूछ डाला, 'क्या राज्य में सभी महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है?' ममता खुद भी महिला हैं - और उनके बारे में कभी ये भी नहीं कहा गया सहयोगियों में वो अकेली मर्द हैं. मजलूमों की आवाज उठाने वाली नेता के रूप में मशहूर ममता का ये बयान क्या उनके मन की बात हो सकती है? एकबारगी तो नहीं लगता.
मुलायम सिंह यादव : रेप के मामले में मुलायम सिंह यादव का एक बयान खूब हंगामा खड़ा किया था - 'बच्चे हैं, बच्चों से गलती हो जाती है - तो क्या फांसी पर चढ़ा दोगे?' लगता तो नहीं कि मुलायम सिंह यादव के मन में भी रेप को लेकर ऐसे ही ख्यालात होंगे.
राजनीतिक मजबूरी में मुलायम ने ये बयान भले ही दे दिया हो, लेकिन क्या उन मन इस बात के लिए कचोटता नहीं होगा? अगर मुलायम के मन पर कोई ऐसा बोझ हो तो क्या कभी उतारने चाहेंगे?
अरविंद केजरीवाल : केजरीवाल ने एक बार प्रधानमंत्री मोदी को 'कायर' और 'मनोरोगी' बताया था. ऐसे मौके भी तो आते होंगे जब केजरीवाल की मोदी से भी वैसे ही मुलाकात होती हो जैसे डिनर पार्टी में जेटली से हुई थी. अगर अब तक न हो पायी हो तो कभी न कभी ये मौका तो आएगा ही. अगर ऐसा मौका आया तो क्या केजरीवाल को अंदर से भी लगेगा मोदी के लिए उन्होंने जो कुछ भी कहा वही उनके मन की बात थी.
राहुल गांधी : पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यूपी में अपनी खाट सभा से लौटे राहुल गांधी ने एक बयान देकर सनसनी मचा दी थी - 'आप खून की दलाली करते हो.' राहुल गांधी ने ये बात प्रधानमंत्री मोदी के लिए ही कही थी.
क्या वास्तव में राहुल गांधी भी मोदी को लेकर ऐसा ही सोचते हैं? गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि चूंकि मोदी हिंदुस्तान का प्रतिनिधित्व करते हैं इसलिए उन्होंने कांग्रेस सोशल मीडिया कैंपेन - 'विकास पागल हो गया है' वापस ले लिया. वैसे भी तब के राहुल और अब के राहुल गांधी में खास फर्क देखा जा रहा है. क्या राहुल गांधी भी कभी मन की बात कर पाएंगे?
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