चीन में हुए नौवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में जारी घोषणापत्र में पहली बार पाकिस्तान की सरजमीं से आतंक फैलाने वाले संगठनों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क इत्यादि का नाम सार्वजनिक रूप से शामिल करते हुए इनकी आलोचना की गई. घोषणापत्र में 16 बार आतंकी शब्द का इस्तेमाल करते हुए ब्रिक्स देशों ने आतंकवाद को शह देने वाले देश को लताड़ लगाई है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकी संगठनों के नाम का जिक्र किया गया है. घोषणापत्र के अनुसार: “हम क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति पर और तालिबान, इस्लामिक स्टेट (आईएस), अलकायदा और इससे संबद्ध संगठन ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी और हिज्बुल-तहरीर द्वारा की गई हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हैं”
हालाँकि, ब्रिक्स सम्मेलन शुरू होने से पहले जब भारत ने कहा था कि सम्मलेन में पाकिस्तानी आतंकवाद पर चर्चा होनी चाहिए तो चीन ने उस समय कहा था कि यह विषय महत्वपूर्ण नहीं है. इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा उठाया और इस पर सभी देशों ने चर्चा की. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहाँ ये है कि चूंकि अब ब्रिक्स ने जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने का संकल्प लिया है, तो क्या अब चीन इन आतंकी संगठनों को विश्व के खतरनाक आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कराने में भारत की सहायता करेगा? क्या चीन अब आतंकवाद के मुद्दे पर अपने बेहद नजदीकी दोस्त पाकिस्तान को बचाना बंद करेगा?
ऐसी इसलिए है कहा जा सकता है क्योंकि इससे पहले जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने को संयुक्त राष्ट्र में भारत ने जब भी प्रस्ताव दिया...
चीन में हुए नौवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में जारी घोषणापत्र में पहली बार पाकिस्तान की सरजमीं से आतंक फैलाने वाले संगठनों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क इत्यादि का नाम सार्वजनिक रूप से शामिल करते हुए इनकी आलोचना की गई. घोषणापत्र में 16 बार आतंकी शब्द का इस्तेमाल करते हुए ब्रिक्स देशों ने आतंकवाद को शह देने वाले देश को लताड़ लगाई है. ऐसा पहली बार हुआ है, जब ब्रिक्स घोषणापत्र में आतंकी संगठनों के नाम का जिक्र किया गया है. घोषणापत्र के अनुसार: “हम क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति पर और तालिबान, इस्लामिक स्टेट (आईएस), अलकायदा और इससे संबद्ध संगठन ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट, इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, टीटीपी और हिज्बुल-तहरीर द्वारा की गई हिंसा पर चिंता व्यक्त करते हैं”
हालाँकि, ब्रिक्स सम्मेलन शुरू होने से पहले जब भारत ने कहा था कि सम्मलेन में पाकिस्तानी आतंकवाद पर चर्चा होनी चाहिए तो चीन ने उस समय कहा था कि यह विषय महत्वपूर्ण नहीं है. इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा उठाया और इस पर सभी देशों ने चर्चा की. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यहाँ ये है कि चूंकि अब ब्रिक्स ने जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करने का संकल्प लिया है, तो क्या अब चीन इन आतंकी संगठनों को विश्व के खतरनाक आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कराने में भारत की सहायता करेगा? क्या चीन अब आतंकवाद के मुद्दे पर अपने बेहद नजदीकी दोस्त पाकिस्तान को बचाना बंद करेगा?
ऐसी इसलिए है कहा जा सकता है क्योंकि इससे पहले जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने को संयुक्त राष्ट्र में भारत ने जब भी प्रस्ताव दिया था तो चीन ने उसपर अडंगा लगाया था. इसी साल जून में चीन ने जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख अजहर मसूद पर संयुक्त राष्ट्र में कार्रवाई का विरोध किया था वहीं साल 2016 में चीन ने अजहर को आतंकवादी का दर्जा देने के भारत के आवेदन पर भी तकनीकी रोक लगा दी थी. 2016 पठानकोट हमले में मसूद अजहर दोषी है जिसमे 7 भारतीय जवान शहीद हुए थे. 24 दिसंबर, 1999 को प्लेन हाईजैकिंग केस में अजहर मसूद को भारत के जेल से 178 पैसेंजरों की रिहाई के बदले छोड़ा गया था. अजहर मसूद ने 2000 में जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकवादी संगठन बनाया था.
इसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
- आतंकवाद के खिलाफ जारी ब्रिक्स के घोषणा पत्र पर राष्ट्रपति शी जिंपिंग की भी मंजूरी है.
- अब चीन के लिए जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मौलाना मसूद अजहर पर बैन की कोशिश को वीटो करना बेहद शर्मिंदगी की वजह बन सकता है.
- चीन के दोहरेपन का अंतरराष्ट्रीय मंच पर पर्दाफाश हो जाएगा.
- भारत के खिलाफ चीन का पाकिस्तान से गठजोड़ सामने आ जाएगा.
अमेरिका भी पाकिस्तान के खिलाफ सख्त...
इससे पहले अमेरिका ने भी आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया था. अभी दो महीने पहले ही अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवादियों को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया करने वाले देशों की लिस्ट में डाला था. अमेरिका ने अपनी सालाना 'कंट्री रिपोर्ट ऑन टेररिज्म' में कहा था कि पाकिस्तान आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह है.
पिछले महीने ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका किसी भी सूरत में ये बर्दाश्त नहीं करेगा कि पाकिस्तान चरमपंथियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बना रहे. ट्रंप ने कहा था कि अमेरिका पाकिस्तान को अरबों डॉलर देता रहा और पाकिस्तान उन आतंकियों को पनाह देता रहा जिनके खिलाफ अमेरिका लड़ रहा है. इस स्थिति को जल्द बदलना होगा. हालांकि, कूटनीतिक जानकारों के अनुसार चीन का जो रुख अभी तक जारी है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि पाकिस्तान को लेकर उसका रवैया भविष्य में भी नहीं बदलने वाला है. फिलहाल भारत तो चीन से यही अपेक्षा करता है कि वह ब्रिक्स घोषणा पत्र पर अमल करते हुए आतंकी संगठनों और उसके संरक्षणदाता पाकिस्तान की नकेल कसे और क्षेत्र में शांति बहाल करने में मदद करे.
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