ईवीएम सिर्फ चुनाव डालने की मशीन ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक पार्टियों का सियासी हथियार भी है. 2014 चुनावों में जब भाजपा सत्ता में आई और मोदी सरकार बनी, तब से ही ईवीएम में गड़बड़ी की बातें कहते हुए इस पर अधिक उंगलियां उठने लगीं. अभी ईवीएम की गड़बड़ी वाला मामला पूरी तरह से सुलझा भी नहीं है और एक आरटीआई ने ईवीएम के जिन्न को फिर से बोतल से बाहर निकालने का काम किया है. इस आरटीआई में ईवीएम की खरीद को लेकर सरकार और चुनाव आयोग के आंकड़ों में अंतर मिला है. अंतर भी कोई छोटा-मोटा नहीं, बल्कि करीब 15 लाख मशीनों का.
आंकड़ों में भारी अंतर
1 नवंबर को कानून मंत्रालय की ओर से सामाजिक कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय को दिए आरटीआई के एक जवाब के अनुसार कुल 23,26,022 ईवीएम खरीदे गए थे, जिसमें 13,95,306 बैलटिंग यूनिट्स (बीयूएस) और 9,30,716 कंट्रोल यूनिट्स (सीयूएस) शामिल थे. लेकिन महीने भर बाद ही 11 दिसंबर 2017 को चुनाव आयोग से आरटीआई के जवाब में मिली सूचना हैरान करने वाली थी. उसके अनुसार, चुनाव आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र के दो ईवीएम विनिर्माताओं से 38,82,386 ईवीएम खरीदीं. भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीईएल), बेंगलुरू से 10,05,662 बीयूएस और 9,28,049 सीयूएस यानी कुल मिलाकर 19,33,711 ईवीएम खरीददी गईं. वहीं, इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद से 10,14,664 बीयूएस और 9,34,031 सीयूएस यानी कुल मिलाकर 19,48,675 ईवीएम खरीदी गईं. इस तरह कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के आंकड़ों में 15,56,364 ईवीएम का अंतर है.
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
दोनों आरटीआई के जवाब के समय में करीब महीने भर का अंतर है, लेकिन आंकड़ों में 15,56,364 ईवीएम का अंतर है. अब सवाल ये उठता है कि...
ईवीएम सिर्फ चुनाव डालने की मशीन ही नहीं है, बल्कि राजनीतिक पार्टियों का सियासी हथियार भी है. 2014 चुनावों में जब भाजपा सत्ता में आई और मोदी सरकार बनी, तब से ही ईवीएम में गड़बड़ी की बातें कहते हुए इस पर अधिक उंगलियां उठने लगीं. अभी ईवीएम की गड़बड़ी वाला मामला पूरी तरह से सुलझा भी नहीं है और एक आरटीआई ने ईवीएम के जिन्न को फिर से बोतल से बाहर निकालने का काम किया है. इस आरटीआई में ईवीएम की खरीद को लेकर सरकार और चुनाव आयोग के आंकड़ों में अंतर मिला है. अंतर भी कोई छोटा-मोटा नहीं, बल्कि करीब 15 लाख मशीनों का.
आंकड़ों में भारी अंतर
1 नवंबर को कानून मंत्रालय की ओर से सामाजिक कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय को दिए आरटीआई के एक जवाब के अनुसार कुल 23,26,022 ईवीएम खरीदे गए थे, जिसमें 13,95,306 बैलटिंग यूनिट्स (बीयूएस) और 9,30,716 कंट्रोल यूनिट्स (सीयूएस) शामिल थे. लेकिन महीने भर बाद ही 11 दिसंबर 2017 को चुनाव आयोग से आरटीआई के जवाब में मिली सूचना हैरान करने वाली थी. उसके अनुसार, चुनाव आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र के दो ईवीएम विनिर्माताओं से 38,82,386 ईवीएम खरीदीं. भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीईएल), बेंगलुरू से 10,05,662 बीयूएस और 9,28,049 सीयूएस यानी कुल मिलाकर 19,33,711 ईवीएम खरीददी गईं. वहीं, इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद से 10,14,664 बीयूएस और 9,34,031 सीयूएस यानी कुल मिलाकर 19,48,675 ईवीएम खरीदी गईं. इस तरह कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के आंकड़ों में 15,56,364 ईवीएम का अंतर है.
बात निकली है तो दूर तलक जाएगी
दोनों आरटीआई के जवाब के समय में करीब महीने भर का अंतर है, लेकिन आंकड़ों में 15,56,364 ईवीएम का अंतर है. अब सवाल ये उठता है कि क्या महीने भर में ही इतनी सारी ईवीएम खरीद ली गईं या फिर कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग में से किसी के आंकड़े गलत हैं? अगर ये कहानी गलत आंकड़ों की ओर मुड़ती है तो उंगली इस ओर उठेगी कि किसके आंकड़ों में गलती है और क्यों? ईवीएम जैसे मामले पर इतनी बड़ी खामी अगर धांधली है, तब तो बवाल होना लाजमी है, लेकिन अगर ये गलती भी है तो भी ये बात निकली है तो दूर तलक जाएगी ही.
पहले भी उठ चुका है ईवीएम का मामला
2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बाद कांग्रेस ने ईवीएम मशीन को अपनी हार के लिए जिम्मेदार ठहराया था. यूपी के चुनावी नतीजों के बाद मायवती ने ईवीएम पर उंगली उठाई, पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद अपनी हार का ठीकरा आम आदमी पार्टी ने ईवीएम के सिर पर फोड़ दिया. खुद भाजपा के लाल कृष्ण आडवाणी ने भी 2009 में हारने के बाद ईवीएम का विरोध किया था. यहां तक कि 2010 में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा प्रवक्ता और चुनावी मामलों के विशेषज्ञ जीवीएल नरसिम्हा राव ने एक किताब लिखी- 'डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट ऑर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन?'
ईवीएम को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं. खास कर इस पर सवाल तब उठता है जब कोई पार्टी हारती है. हर चुनाव के बाद ईवीएम को ही हार का जिम्मेदार ठहराया जाता है, भले ही कोई भी पार्टी हो. लेकिन इस बार बिना किसी चुनाव के ही ईवीएम का जिन्न जाग उठा है. वजह है आरटीआई, जिसमें आंकड़ों में गलती पाई गई है. और अब यह विसंगति बॉम्बे हाईकोर्ट के सामने एक जनहित याचिका का हिस्सा है. ये देखना दिलचस्प होगा कि गलती चुनाव आयोग मानता है या फिर कानून मंत्रालय गलत साबित होता है.
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