चलिए अच्छा हुआ खतरा टल गया. अलग अलग की बजाए बहुत सारे नेताओं ने एक साथ यू टर्न ले लिया. जबान से तो किसी ने भी ऐसा कुछ नहीं कहा, लेकिन अपनी हरकतों से जता दिया कि उनके लिए EVM को हैक करना मुश्किल नहीं - नामुमकिन है, सिवा आप के.
ऐसा भी नहीं कि चुनाव आयोग को वॉक ओवर मिल गया हो. मौके पर सीपीएम और एनसीपी के नुमाइंदे के पहुंचे तो लेकिन दो घंटे में ही मैदान से हट गये.
वे भी सिर्फ समझने आये थे
अपना हैकॉथन अलग कराने के ऐलान के साथ आम आदमी पार्टी तो चुनाव आयोग की चुनौती से पहले ही अलग हो चुकी थी. सीपीएम और एनसीपी को छोड़ कर बीएसपी, टीएमसी और कांग्रेस सहित सारी पार्टियां भी पल्ला झाड़ चुकी थीं.
तय तारीख 3 जून को चुनाव आयोग का ईवीएम चैलेंज सुबह 10 बजे शुरू हुआ - और चुनौती स्वीकार करने वाले दोनों दलों सीपीएम और एनसीपी के प्रतिनिधि वहां पहुंच भी गये. इस चैलेंज के लिए 14 ईवीएम रखे थे जिन्हें पंजाब, यूपी और उत्तराखंड से मंगाया गया था.
राजनीतिक दलों की ओर से अपने प्रतिनिधियों को एथिकल हैकर के तौर पर पेश किया गया. सभी को चार घंटे का वक्त मिला था. चार घंटे में उन्हें साबित करना था कि ईवीएम से छेड़छाड़ करके कैसे चुनाव नतीजों में हेरफेर की जा सकती है. करीब दो घंटे तक उन लोगों ने ईवीएम पर गौर फरमाया उसके बाद साफ किया कि वे सिर्फ तौर तरीके समझने आये थे. मान तो वो पहले ही चुके थे कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती, फिर भी देखना चाहते थे कि ऐसा कुछ संभव भी है क्या?
शोर मचाने की जरूरत क्या थी
अव्वल तो चुनाव आयोग के चैलेंज में बीएसपी के नुमाइंदों को मुस्तैदी से डटे रहना चाहिये था. उनकी मानें तो ये ईवीएम ही है जिसकी वजह से उन्हें यूपी की सत्ता से दूर...
चलिए अच्छा हुआ खतरा टल गया. अलग अलग की बजाए बहुत सारे नेताओं ने एक साथ यू टर्न ले लिया. जबान से तो किसी ने भी ऐसा कुछ नहीं कहा, लेकिन अपनी हरकतों से जता दिया कि उनके लिए EVM को हैक करना मुश्किल नहीं - नामुमकिन है, सिवा आप के.
ऐसा भी नहीं कि चुनाव आयोग को वॉक ओवर मिल गया हो. मौके पर सीपीएम और एनसीपी के नुमाइंदे के पहुंचे तो लेकिन दो घंटे में ही मैदान से हट गये.
वे भी सिर्फ समझने आये थे
अपना हैकॉथन अलग कराने के ऐलान के साथ आम आदमी पार्टी तो चुनाव आयोग की चुनौती से पहले ही अलग हो चुकी थी. सीपीएम और एनसीपी को छोड़ कर बीएसपी, टीएमसी और कांग्रेस सहित सारी पार्टियां भी पल्ला झाड़ चुकी थीं.
तय तारीख 3 जून को चुनाव आयोग का ईवीएम चैलेंज सुबह 10 बजे शुरू हुआ - और चुनौती स्वीकार करने वाले दोनों दलों सीपीएम और एनसीपी के प्रतिनिधि वहां पहुंच भी गये. इस चैलेंज के लिए 14 ईवीएम रखे थे जिन्हें पंजाब, यूपी और उत्तराखंड से मंगाया गया था.
राजनीतिक दलों की ओर से अपने प्रतिनिधियों को एथिकल हैकर के तौर पर पेश किया गया. सभी को चार घंटे का वक्त मिला था. चार घंटे में उन्हें साबित करना था कि ईवीएम से छेड़छाड़ करके कैसे चुनाव नतीजों में हेरफेर की जा सकती है. करीब दो घंटे तक उन लोगों ने ईवीएम पर गौर फरमाया उसके बाद साफ किया कि वे सिर्फ तौर तरीके समझने आये थे. मान तो वो पहले ही चुके थे कि ईवीएम में गड़बड़ी नहीं की जा सकती, फिर भी देखना चाहते थे कि ऐसा कुछ संभव भी है क्या?
शोर मचाने की जरूरत क्या थी
अव्वल तो चुनाव आयोग के चैलेंज में बीएसपी के नुमाइंदों को मुस्तैदी से डटे रहना चाहिये था. उनकी मानें तो ये ईवीएम ही है जिसकी वजह से उन्हें यूपी की सत्ता से दूर रहना पड़ा. ताजा ताजा हमकदम बने अखिलेश यादव को भी मायावती के लोगों के पीछे दीवार की तरह खड़े रहना चाहिये था. उनके बयानों को याद करें तो उनके सत्ता में लौटने में ईवीएम का भी रोल हो सकता है.
आप नेता अरविंद केजरीवाल तो पूरे रिसर्च के बाद दो दो उदाहरण भी पेश किये थे जिनमें से एक की हवा तो पहले ही निकल चुकी है. महाराष्ट्र सिविक पोल वाले उम्मीदवार के दावे जांच में सही साबित हो ही नहीं पाये.
चुनाव आयोग में शिकायत लेकर और राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने वालों में आगे तो कांग्रेस के ही नेता रहे - लेकिन जब सब की सुन कर चुनाव आयोग ने ईवीएम हैक करने की चुनौती दी तो एक एक करके बारी बारी सब सरक लिये. मालूम नहीं तब सीपीएम और एनसीपी नेताओं को क्या सूझा कि उन्होंने चुनौती स्वीकार कर ली. संभव है ये भी विपक्षी दलों की रणनीति का कोई हिस्सा रहा हो.
ऐसा भी नहीं है कि ईवीएम पर पहली बार सवाल उठा हो. लेकिन जब जब सवाल उठे चुनाव आयोग ने अग्नि परीक्षा की चुनौती आगे बढ़ कर स्वीकार की. अब तो आयोग को बधाई बनती है कि एक बार फिर उसने साबित किया है कि ईवीएम को कोई हैक नहीं कर सकता.
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...तो साबित हो गया चुनाव आयोग की ईवीएम हैक नहीं की जा सकती !
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