सीनियर बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने 2019 में लोक सभा का चुनाव न लड़ने की घोषणा की है. सुषमा स्वराज फिलहाल मोदी सरकार में विदेश मंत्री हैं और उन्होंने ये ऐलान उस वक्त किया है जब मध्य प्रदेश में चुनावी माहौल चरम पर है.
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान इंदौर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुषमा स्वराज ने कहा कि वो 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं, लेकिन अगर पार्टी फैसला करती है तो वह इस पर विचार करेंगी. सुषमा स्वराज ने कहा कि मेरे स्वास्थ्य की कुछ मर्यादा है. दो साल पहले सुषमा स्वराज का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था और करीब एक महीने अस्पताल में बिताने पड़े थे. किडनी ट्रांसप्लांट के चलते ही तीन महीने बाद अभी अभी अरुण जेटली भी काम पर लौटे हैं. हाल तक तो वो ब्लॉग लिख कर ही बीजेपी का बचाव किया करते रहे.
सवाल है कि सुषमा स्वराज ने ऐन चुनावी माहौल में ये घोषणा क्यों की? क्या वाकई इसका कारण वही है जो सुषमा स्वराज ने बताया है - सेहत की मर्यादा. या फिर बीजेपी के अंदर जारी खींचतान? येद्दियुरप्पा को अपवाद मान कर चलें तो सुषमा अभी 75 क्लब से भी काफी दूर हैं. सुषमा स्वराज की उम्र अभी 66 साल है.
ताकि शिवराज पर आंच न आये
'चिट्ठी न कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहां तुम चले गये,' सुषमा स्वराज पर तंज कसता ये गाना विदिशा में खूब चल रहा है या कहें वायरल हो रखा है. जबलपुर पहुंची सुषमा स्वराज ने इस गाने की ओर ध्यान दिलाये जाने पर माना कि खराब सेहत के चलते कुछ समय से वो अपने इलाके के लोगों से मिल नहीं पायी हैं. दरअसल डॉक्टरों ने उन्हें कहीं आने जाने से बचने की सलाह थी - धूल उड़ने वाली जगहों पर तो कतई नहीं. सुषमा स्वराज ने बताया कि विदिशा के लोगों के लिए एक ऑडोटोरियम बनवाया गया है लेकिन आचार संहिता लागू होने के चलते उसका उद्घाटन नहीं हो सका. सुषमा स्वराज ने बताया कि जल्द ही इसका उद्घाटन भी होगा और लोगों से मुलाकात भी होगी.
सुषमा ने शिवराज सिंह चौहान के लिए तो नहीं की लोक सभा से अलविदा की घोषणा?
चुनावों के दरम्यान ही मीडिया में सुषमा स्वराज के गोद लिये गांव अजनास से जुड़ी रिपोर्ट आयी थीं. सुषमा स्वराज मध्य प्रदेश के विदिशा से लोक सभा सांसद हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल के बाद अजनास गांव को गोद लिया था. इन रिपोर्ट में बताया गया कि किस तरह गांव के लोग सुषमा स्वराज से नाराज हैं. गांव की स्थिति बदलहाल है लेकिन सुषमा स्वराज ने कभी उसकी सुधि लेने की कोशिश नहीं की.
क्या सुषमा स्वराज को ऐसा लग रहा था कि विरोधी इसका फायदा उठा रहे हैं? दरअसल, विदिशा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ही लोक सभा क्षेत्र रहा है. फिलहाल सुषमा स्वराज इसी सीट से लोक सभा पहुंचीं हैं. मुख्यमंत्री बनने से पहले तक विदिशा ही शिवराज सिंह चौहान का चुनाव क्षेत्र हुआ करता था.
शिवराज सिंह चौहान अपनी अगली पारी के लिए जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं - और सुषमा स्वराज की वजह से अगर कुछ नुकसान होता तो वो महंगा पड़ सकता है. हो सकता है सुषमा स्वराज ने यही सोच कर चुनावों के बीच ही खराब सेहत की दुहाई देते हुए ये घोषणा कर लोगों का गुस्सा कुछ कम करने की कोशिश की हो.
सुषमा स्वराज के लोक सभा चुनाव को अलविदा कहने पर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने जहां उनकी तारीफ की है, वहीं पी. चिदंबरम में तंज कसा है. पी. चिदंबरम ने एक ट्वीट में कहा है कि मध्य प्रदेश में बीजेपी की हालत को देखकर सुषमा ने 'मैदान छोड़' दिया है.
अब आगे क्या हो सकता है?
बीस साल पहले भी एक बार सुषमा स्वराज ने नाराज होकर लोक सभा चुनाव न लड़ने की घोषणा कर डाली थी. उस वक्त वो दक्षिण दिल्ली से लोक सभा सांसद थीं. सुषमा ने ही तब विजय कुमार मल्होत्रा का नाम आगे बढ़ाया और उनके और कांग्रेस की ओर से मनमोहन सिंह के बीच टक्कर हुई. मनमोहन सिंह के जीवन का यही एकमात्र लोक सभा चुनाव रहा जो वो लड़े भी और हारे भी.
आगे की राह मुश्किल तो नहीं लग रही?
सुषमा स्वराज को अपनी जिद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर छोड़नी पड़ी जब सोनिया गांधी के बेल्लारी से चुनाव लड़ने की खबर आयी. वरिष्ठों की सलाह पर चुनाव मैदान में उतरी सुषमा स्वराज ने महीने भर में ही कन्नड़ बोलना सीख लिया - और चुनाव प्रचार के दौरान धारा प्रवाह कन्नड़ में भाषण देती रहीं. सोनिया से सुषमा चुनाव जरूर हारीं, लेकिन लोगों का दिल जरूर जीत लिया.
ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि सुषमा के लोक सभा चुनाव न लड़ने से उनकी राजनीतिक सेहत पर कोई खास असर पड़ेगा, बशर्ते बीजेपी का प्लान कुछ और न हो. बताते हैं कि सुषमा स्वराज ने चुनाव न लड़ने को लेकर अपने मन की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बता दी है - और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को भी. फैसले का असर शिवराज सिंह पर भी पड़ता इसलिए उन्हें भी पहले से ही अवगत करा रखा था.
ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी सरकार 2019 का चुनाव जीत कर सत्ता में लौटे तो सुषमा स्वराज को सरकार में जगह नहीं मिलेगी. वित्त मंत्री अरुण जेटली इस बात की मिसाल हैं. 2014 में अरुण जेटली ने भी पंजाब से लोक सभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गये फिर भी मोदी कैबिनेट के ताकतवर मंत्री बने हुए हैं.
हां, सवाल ये जरूर बना हुआ है कि क्या 2019 में सत्ता में वापसी होने की स्थिति में अगर नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हैं तो सुषमा स्वराज को लेकर उनके क्या रिजर्वेशन होते हैं. सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी के सपोर्ट में नरेंद्र मोदी का खुल कर विरोध करने वालों में सुषमा स्वराज सबसे आगे रहीं. मुंबई कार्यकारिणी में जब संजय जोशी को हटाये जाने के बाद ही नरेंद्र मोदी पहुंचे तो आडवाणी के साथ आयोजन खत्म होने से पहले निकल जाने वालों में सुषमा स्वराज भी शामिल थीं. ये सुषमा की काबिलियत और पोजीशन ही रही कि मोदी को कैबिनेट में उन्हें महत्वपूर्ण स्थान देना पड़ा. ये बात अलग है कि धुआंधार विदेश यात्राओं से मोदी ने सुषमा को कम ही एहसास होने दिया कि विदेश मंत्री वही हैं. हालांकि, कई ऐसे मौके भी रहे जब बड़ी कूटनीतिक जिम्मेदारियां भी सुषमा स्वराज को ही सौंपी गयीं.
मेडिकल ग्राउंड आने पर सवाल कम हो जाते हैं, लेकिन खत्म नहीं होते. सोनिया गांधी की बीमारी और अमेरिका में इलाज को लेकर कांग्रेस नेताओं ने निजता का हवाला देकर सवाल टाल दिये थे. सुषमा स्वराज ने चुनावी राजनीति से तौबा कर लेने का ऐलान किया है और इसकी वजह अपनी खराब सेहत बतायी है. हालांकि, बाद में ये भी साफ कर दिया कि उन्होंने चुनाव न लड़ने की बात कही है - संन्यास की घोषणा नहीं की है.
फिर तो सुषमा की सियासी स्थिति को प्रत्यक्ष राजनीति से हाफ संन्यास जैसा समझा जा सकता है. तमाम बातों के बावजूद सुषमा स्वराज के इस फैसले के पीछे सिर्फ खराब स्वास्थ्य ही है या फिर बीजेपी की अंदरूनी खींचतान? या फिर मोदी राज में सुषमा का दम घुटना? सुषमा के इस ऐलान को लेकर उठते सवालों के जवाब सुषमा से कहीं ज्यादा बेहतर मोदी-शाह ही दे सकते हैं.
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