शरद पवार की पांच दशक की राजनीति में बीस साल NCP के खाते में दर्ज है - और देवेंद्र फडणवीस का दावा है कि शरद पवार की पार्टी अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी है.
कहने को तो महाराष्ट्र के सिलसिले में देवेंद्र फडणवीस ऐसी टिप्पणी कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर भी कर चुके हैं. खास बाद ये है कि NCP के प्रति ऐसी भावना रखने वाले देवेंद्र फडणवीस अकेले नेता नहीं हैं.
शरद पवार और उनकी पार्टी NCP को लेकर कांग्रेस नेतृत्व की भी सोच तकरीबन देवेंद्र फणडवीस जैसी ही है. हालात तो ऐसे लगने लगे हैं जैसे वास्तव में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद NCP का नामोनिशान मिट जाएगा!
महाराष्ट्र में पवार पावर को चैलेंज
पहला सवाल तो ये है कि क्या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए मौजूदा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव आखिरी इलेक्शन साबित होगा?
और दूसरा सवाल इसीलिए खड़ा होता है कि क्या इसके साथ ही महाराष्ट्र में पवार पावर का लंबे अरसे तक जो सूरज चमकता रहा है वो अस्त हो जाएगा?
कहने को तो महाराष्ट्र चुनाव में शरद पवार और सोनिया गांधी की संयुक्त रैली की भी योजना बन रही है. 2017 में यूपी विधानसभा चुनावों से पहले बनारस में रोड शो के दौरान तबीयत खराब होने के बाद से सोनिया गांधी चुनाव कैंपेन से दूर ही रही हैं. 2019 के आम चुनाव में भी सोनिया ने अपने चुनाव क्षेत्र रायबरेली से बाहर सिर्फ एक ही रैली की थी - लेकिन अब वो विधानसभा चुनाव में फिर से उतरने जा रही हैं. हालांकि, हर चुनाव में चुनाव आयोग को स्टार कैंपेनर के तौर पर सोनिया गांधी का नाम दर्ज कराया जाता रहा है.
शरद पवार के साथ सोनिया गांधी की रैली का मकसद मिल कर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को चुनौती देना है. मगर, लगता है कांग्रेस को महाराष्ट्र में NCP की ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है. कांग्रेस, दरअसल, अपनी जमीन बचाये रखने के लिए शरद पवार का साथ चाहती है. देखा जाये तो शरद पवार को भी कांग्रेस के साथ की महती जरूरत है.
कांग्रेस चाहती है कि शरद पवार अपनी पार्टी के साथ कांग्रेस में शामिल...
शरद पवार की पांच दशक की राजनीति में बीस साल NCP के खाते में दर्ज है - और देवेंद्र फडणवीस का दावा है कि शरद पवार की पार्टी अब अपनी उम्र पूरी कर चुकी है.
कहने को तो महाराष्ट्र के सिलसिले में देवेंद्र फडणवीस ऐसी टिप्पणी कांग्रेस और राहुल गांधी को लेकर भी कर चुके हैं. खास बाद ये है कि NCP के प्रति ऐसी भावना रखने वाले देवेंद्र फडणवीस अकेले नेता नहीं हैं.
शरद पवार और उनकी पार्टी NCP को लेकर कांग्रेस नेतृत्व की भी सोच तकरीबन देवेंद्र फणडवीस जैसी ही है. हालात तो ऐसे लगने लगे हैं जैसे वास्तव में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद NCP का नामोनिशान मिट जाएगा!
महाराष्ट्र में पवार पावर को चैलेंज
पहला सवाल तो ये है कि क्या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए मौजूदा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव आखिरी इलेक्शन साबित होगा?
और दूसरा सवाल इसीलिए खड़ा होता है कि क्या इसके साथ ही महाराष्ट्र में पवार पावर का लंबे अरसे तक जो सूरज चमकता रहा है वो अस्त हो जाएगा?
कहने को तो महाराष्ट्र चुनाव में शरद पवार और सोनिया गांधी की संयुक्त रैली की भी योजना बन रही है. 2017 में यूपी विधानसभा चुनावों से पहले बनारस में रोड शो के दौरान तबीयत खराब होने के बाद से सोनिया गांधी चुनाव कैंपेन से दूर ही रही हैं. 2019 के आम चुनाव में भी सोनिया ने अपने चुनाव क्षेत्र रायबरेली से बाहर सिर्फ एक ही रैली की थी - लेकिन अब वो विधानसभा चुनाव में फिर से उतरने जा रही हैं. हालांकि, हर चुनाव में चुनाव आयोग को स्टार कैंपेनर के तौर पर सोनिया गांधी का नाम दर्ज कराया जाता रहा है.
शरद पवार के साथ सोनिया गांधी की रैली का मकसद मिल कर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को चुनौती देना है. मगर, लगता है कांग्रेस को महाराष्ट्र में NCP की ज्यादा जरूरत महसूस हो रही है. कांग्रेस, दरअसल, अपनी जमीन बचाये रखने के लिए शरद पवार का साथ चाहती है. देखा जाये तो शरद पवार को भी कांग्रेस के साथ की महती जरूरत है.
कांग्रेस चाहती है कि शरद पवार अपनी पार्टी के साथ कांग्रेस में शामिल हो जायें. कांग्रेस को फायदा ये होगा कि शरद पवार जैसा कद्दावर नेता मिल जाएगा. देखा जाये तो कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही फेमिली पॉलिटिक्स करती रही हैं, लेकिन शरद पवार की पार्टी में सिर्फ परिवार है और बाहर से कुछ भी नहीं. परिवार से भी भतीजे अजीत पवार बागी बन चुके हैं - और विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं.
कांग्रेस का इरादा देख कर तो यही लगता है कि वो खुद ही एनसीपी को हजम कर जाना चाहती है ताकि उसकी अपनी उम्र थोड़ी लंबी हो सके. शरद पवार अभी ऐसा कोई संकेत नहीं दिये हैं कि वो एनसीपी के कांग्रेस में विलय के लिए तैयार हैं.
हो सकता है कांग्रेस अपना भविष्य सुधारने के लिए एससीपी का विलय चाह रही हो, लेकिन शरद पवार को भी तो लगता होगा कि जब कांग्रेस का वर्तमान ही नहीं किसी रूप में नजर आ रहा है तो भविष्य को लेकर कौन रिस्क ले.
देवेंद्र फडणवीस तो एनसीपी को पूरा खाली करा दिये हैं - जो नेता बीजेपी में आने को राजी नहीं हुए उनको शिवसेना में फिट करा दिये - मकसद तो एक ही महाराष्ट्र से पवार पावर को खत्म कर अपना सिक्का चलवाना.
ये कब हुआ? कैसे हुआ?
विपक्षी नेताओं के लिए मुसीबत का पहाड़ बना प्रवर्तन निदेशालय कुछ देर के लिए ही सही महाराष्ट्र में तो बौना ही नजर आया. शरद पवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बावजूद ED के अधिकारियों के हाथ पांव फूल गये जब वो पेशी के लिए दफ्तर पहुंचने का ऐलान कर दिये.
फिर जैसे तैसे अफसरों ने मेल भेज कर कहा कि अभी पूछताछ का कोई इरादा नहीं है - और मुंबई के पुलिस कमिश्नर ने शरद पवार से पेशी का कार्यक्रम रद्द करने की अपील की तब जाकर कार्यक्रम रद्द हुआ और मामला शांत हुआ.
जो भी हुआ जैसे भी हुआ - मैसेज तो यही गया कि महाराष्ट्र में बूढ़े शेर के बड़े साथी भले छोड़ कर चले गये हों लेकर छोटे कार्यकर्ताओं और लोगों में प्रभाव खत्म नहीं हुआ है. शरद पवार ने भी प्रेस कांफ्रेंस में इस कुछ ऐसे अंदाज में पेश किया कि उनके खिलाफ अब तक एक्शन न होने से वो खुद भी हैरान थे. शरद पवार के मुताबिक, महाराष्ट्र में जहां कहीं भी वो जा रहे हैं - लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है.
जमीनी हकीकत बिलकुल ऐसी ही नहीं है. हो सकता है शरद पवार को सुनने या उनसे मिलने आने वालों की तादाद अच्छी हो, लेकिन बड़े नेताओं के चले जाने और परिवार में झगड़े के कारण एनसीपी की हालत ऊंची दुकान फीके पकवान वाली ही हो गयी है.
हालत ये हो गयी है कि पांच साल पहले नौसीखिये की तरह हल्के में लिये जाने वाले देवेंद्र फडणवीस ने अपनी सरकार में वैसे काम कर दिखाये हैं जो अब तक बड़े से बड़े मराठा नेता नहीं कर पाये.
मराठा आरक्षण का फडणवीस सरकार का फैसला इतना फायदेमंद साबित हुआ कि कांग्रेस और एनसीपी का साथ देने वाले मराठा समाज का बड़ा तबका बीजेपी के साथ आ गया. मराठा नेताओं के कांग्रेस और एनसीपी छोड़ कर बीजेपी और शिवसेना का दामन थामने की मची होड़ की भी यही वजह रही.
एक धारणा ये भी रही है कि मराठा नेताओं ने कभी ब्राह्मणों को उभरने का मौका ही नहीं दिया - देवेंद्र फडणवीस से पहले सिर्फ मनोहर जोशी ही शिवसेना के प्रभाव के चलते महाराष्ट्र के सीएम की कुर्सी पर बैठ पाये. देवेंद्र फणडवीस के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी माना जाता रहा कि वो ज्यादा दिन तो टिकने से रहे - लेकिन फडणवीस के राजनीतिक कौशल देखिये कि वो पूरे पांच साल तक तो कुर्सी पर जमे ही रहे, दूसरी पारी भी तकरीबन तय मानी जा रही है. देवेंद्र फणडवीस ऐसा करने वाले महाराष्ट्र के 17 मुख्यमंत्रियों में वसंतराव नाईक के बाद दूसरे नेता हैं.
हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना के साथ साथ बीजेपी को रामदास आठवले के चलते दलितों का भी समर्थन मिल जाता है. नतीजा ये होता है कि प्रकाश अंबेडकर जैसे नेता की पार्टी के सामने में चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है.
देवेंद्र फडणवीस के शासन में महाराष्ट्र का विकास कितना हुआ ये अलग विषय है, लेकिन एनसीपी, कांग्रेस और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का तो पूरा विनाश हो गया है - और यही वजह है कि पवार पावर भी बस सांसें ही गिन रहा है.
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