भाजपा के 'शत्रु' हैं तो कांग्रेस में, लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए भी प्रचार कर रहे हैं. कंफ्यूज? दरअसल, उनकी पत्नी पूनम सिन्हा समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई हैं. यानी पति-पत्नी रहते तो एक साथ हैं, लेकिन चुनाव लड़ रहे हैं अलग-अलग पार्टियों से. ये स्थिति घर में भले ही दोनों को अजीब ना लग रही हो, लेकिन जब लखनऊ से चुनाव लड़ रही पूनम सिन्हा के चुनाव प्रचार में खुद शत्रुघ्न सिन्हा दिखाई दिए, तो कांग्रेस बेशक असहज हो गई. लखनऊ से कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को मैदान में उतारा है. उन्होंने कांग्रेस से इस बात की शिकायत तक की है.
जब इस बारे में शत्रुघ्न सिन्हा को पता चला तो उन्होंने साफ कर दिया कि परिवार के मुखिया और एक पति होने के नाते अपने परिवार का समर्थन करना उनका कर्तव्य है. मान लिया उनका कर्तव्य है, लेकिन इससे कांग्रेस को जो नुकसान होगा, उसका क्या? लखनऊ सीट भाजपा का गढ़ है, जिस पर वह पिछले 28 सालों से जीत रही है. अब शत्रुघ्न सिन्हा का ये रवैया कांग्रेस के खिलाफ जा सकता है, जिससे कांग्रेस का मुकाबला और भी बढ़ सकता है. वैसे शत्रुघ्न सिन्हा और उनकी पत्नी के अलग-अलग पार्टी में होने को लेकर बहुत से लोग हैरान दिख रहे हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि राजनीति में ऐसे और भी कई उदाहण हैं.
रवींद्र जडेजा का परिवार
ये परिवार इस बार जितना चर्चा में है, उतना पहले कभी नहीं था. इसकी वजह है उनकी पत्नी का भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाना. हैरानी की बात तो ये है कि उनके पिता अनिरुद्ध सिंह और बहन नैनाबा ने इसी महीने की शुरुआत में कांग्रेस की सदस्यता ली है. जाहिर है कि इससे जडेजा का परिवार दो अलग-अलग विचारधाराओं में बंट गया है. खैर,...
भाजपा के 'शत्रु' हैं तो कांग्रेस में, लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए भी प्रचार कर रहे हैं. कंफ्यूज? दरअसल, उनकी पत्नी पूनम सिन्हा समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई हैं. यानी पति-पत्नी रहते तो एक साथ हैं, लेकिन चुनाव लड़ रहे हैं अलग-अलग पार्टियों से. ये स्थिति घर में भले ही दोनों को अजीब ना लग रही हो, लेकिन जब लखनऊ से चुनाव लड़ रही पूनम सिन्हा के चुनाव प्रचार में खुद शत्रुघ्न सिन्हा दिखाई दिए, तो कांग्रेस बेशक असहज हो गई. लखनऊ से कांग्रेस ने आचार्य प्रमोद कृष्णम को मैदान में उतारा है. उन्होंने कांग्रेस से इस बात की शिकायत तक की है.
जब इस बारे में शत्रुघ्न सिन्हा को पता चला तो उन्होंने साफ कर दिया कि परिवार के मुखिया और एक पति होने के नाते अपने परिवार का समर्थन करना उनका कर्तव्य है. मान लिया उनका कर्तव्य है, लेकिन इससे कांग्रेस को जो नुकसान होगा, उसका क्या? लखनऊ सीट भाजपा का गढ़ है, जिस पर वह पिछले 28 सालों से जीत रही है. अब शत्रुघ्न सिन्हा का ये रवैया कांग्रेस के खिलाफ जा सकता है, जिससे कांग्रेस का मुकाबला और भी बढ़ सकता है. वैसे शत्रुघ्न सिन्हा और उनकी पत्नी के अलग-अलग पार्टी में होने को लेकर बहुत से लोग हैरान दिख रहे हैं, लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि राजनीति में ऐसे और भी कई उदाहण हैं.
रवींद्र जडेजा का परिवार
ये परिवार इस बार जितना चर्चा में है, उतना पहले कभी नहीं था. इसकी वजह है उनकी पत्नी का भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाना. हैरानी की बात तो ये है कि उनके पिता अनिरुद्ध सिंह और बहन नैनाबा ने इसी महीने की शुरुआत में कांग्रेस की सदस्यता ली है. जाहिर है कि इससे जडेजा का परिवार दो अलग-अलग विचारधाराओं में बंट गया है. खैर, जिस तरह शत्रुघ्न सिन्हा खुलकर अपनी पत्नी का प्रचार कर रहे हैं, वैसा जडेजा परिवार के साथ देखने को नहीं मिला है और उम्मीद है कि मिलेगा भी नहीं.
अमिताभ अघोषित रूप से भाजपा के, जया बच्चन सपा में
ये तो सभी जानते हैं कि जया बच्चन समाजवादी पार्टी की नेता हैं. इतना ही नहीं, वह 3 बार राज्य सभा सासंद भी रह चुकी हैं. लेकिन उनके पति और महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन अघोषित रूप से भाजपा को समर्थन देते दिखते हैं. गुजरात का ब्रांड अंबेसडर बनना, मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान को प्रमोट करना और अलग-अलग मौकों पर मोदी सरकार की तारीफ करना तो यही दिखाता है.
माधव राव सिंधिया और विजया राजे सिंधिया में दरार
अगर राजनीति के इतिहास में थोड़ा पीछे जाएं तो एक और तस्वीर सामने आती है. ये बात है 60-70 के दशक की. तब विजया राजे सिंधिया कांग्रेस में थीं, लेकिन जब 1969 में इंदिरा सरकार ने प्रिंसली स्टेट्स की सारी सुविधाएं छीन लीं तो उन्होंने जनसंघ की सदस्या ले ली. उनके बेटे माधव राव सिंधिया ने भी शुरुआत में जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन फिर वह कांग्रेस में शामिल हो गए. भले ही माधव राव सिंधिया ने पार्टी बदली हो, लेकिन 2001 में हेलिकॉप्टर क्रैश में मौत होने तक उन्हें कभी कोई हरा नहीं सका, यहां तक कि अटल बिहारी भी उनसे हार गए थे. शत्रुघ्न सिन्हा को पत्नी के समर्थन में खुलकर सामने आ गए हैं, लेकिन कांग्रेस में जाने के बाद माधव राव सिंधिया और विजया राजे सिंधिया में वैचारिक मतभेद हो गए थे, जिसके बाद दोनों अलग-अलग तक रहने लगे थे.
वसुंधरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया में राजनीतिक मतभेद
सिंधिया परिवार में वसुंधरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया का रिश्ता भले ही बुआ-भतीजे का हो, लेकिन दोनों के विचार बिल्कुल अलग हैं. वसुंधरा राजे भाजपा की नेता हैं, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के जरिए देश की सेवा में समर्पित रहते हैं. दोनों में वैचारिक मतभेद जरूर है, लेकिन दोनों अक्सर सार्वजनिक मंच पर एक परिवार की तरह मिलते हैं. आखिरी बार दोनों को अशोक गहलोत के शपथ ग्रहण समारोह में देखा गया था, जहां वसुंधरा राजे ने स्टेज पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को दुलार दिया था. वो तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी.
ये सारे तो वो नाम हैं, जो जाने पहचाने हैं. लेकिन इस लोकसभा चुनावों में ऐसा एक और उदाहरण देखने को मिला है. यूपी की गौतमबुद्धनगर लोकसभा सीट से भाजपा के एमएलसी जयवीर सिंह के बेटे अरविंद कुमार सिंह चुनाव लड़ने का ऐलान किया, लेकिन भाजपा नहीं, कांग्रेस के टिकट पर. बस इतना होने की देर थी कि भाजपा नेता जयवीर सिंह ने अपने बेटे से रिश्ता ही तोड़ लिया. उन्होंने को बाकायदा एक फेसबुक पोस्ट कर के ये साफ किया कि उनका अरविंद कुमार सिंह से सामाजिक और राजनीतिक रूप से अब कोई रिश्ता नहीं है और बाकी का पूरा परिवार भाजपा और पीएम मोदी के प्रति पूरी तरह से वफादार है.
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