Farmer Protest 2020 : जो किसी बात के पक्षधर हैं वो इतने एक्सट्रीम हैं जितने बाहुबली के लिए गांव वाले थे, जो ख़िलाफ़ हैं वो इतने ख़िलाफ़ हैं कि दोनों कान पर हाथ रखकर चिल्ला रहे हैं, सुनना कोई नहीं चाहता क्योंकि बोलना कोई बन्द नहीं करता. इतना एक्सट्रीम समाज 1947 से ही था या अभी 2014 से दिखना शुरु हुआ है, ये तय करना मुहाल है. किसान (Farmer) और जवान (Soldier) इस देश के सबसे अहम योद्धा हैं और दोनों ही कई बार राजनेताओं (Politicians) के सदके बढ़िया राजनीतिक हथियार (Political Tools) साबित होते हैं. दोनों के प्रति ही जनता हमेशा भावुक रहती है. पार्टीज़ अपना-अपना उल्लू इन्हीं भावुकता की टेबल पर सीधा करती रहती हैं.
सेंस ऑफ ह्यूमर का ऐसा अकाल पड़ा है मार्किट में जैसे कांग्रेस में लीडरशिप का है. Swiggy के एक ह्यूमरस रिप्लाई पर हंसने की बजाए लोग बॉयकॉट करने लग गए. आहत होना फुल ट्रेंड में है. इस मामले में दोनों पक्ष बराबर गति पकड़े हैं. एक से राइट आहत होता है तो लेफ्ट दूसरे को बॉयकॉट शुरु कर देता है. 'देवाईडेड बाई लेफ्ट राइट, यूनाइटेड बाई बॉयकॉट' हो रहा है.
इस सब मूर्खताओं, भंगेड़ीपनों के इतर जब देखता हूं कि गुरपुरब के दिन, त्योहार के वक़्त भी सिखों को प्रोटेस्ट करते, घर से दूर सड़कों पर बैठे परेशान होते देखता हूं तो मन ख़राब हो जाता है. कोई तुक नहीं समझ आता राजनीति का. ऐसा लगता है सब ठगी चल रही है.
ये किसान अपनी इच्छा से बैठे हों, किसी के बुलाए भटकाए बैठे हों या अंजान बने बस एक के पीछे एक आए हों या सरकार के तख्तापलट की क्रांति कर रहे हों, कोई भी वजह हो पर इस तरह परेशान होते, गुरपुरब के दिन दिल्ली सील कर देने की धमकी देते देखकर लगता है कि हम...
Farmer Protest 2020 : जो किसी बात के पक्षधर हैं वो इतने एक्सट्रीम हैं जितने बाहुबली के लिए गांव वाले थे, जो ख़िलाफ़ हैं वो इतने ख़िलाफ़ हैं कि दोनों कान पर हाथ रखकर चिल्ला रहे हैं, सुनना कोई नहीं चाहता क्योंकि बोलना कोई बन्द नहीं करता. इतना एक्सट्रीम समाज 1947 से ही था या अभी 2014 से दिखना शुरु हुआ है, ये तय करना मुहाल है. किसान (Farmer) और जवान (Soldier) इस देश के सबसे अहम योद्धा हैं और दोनों ही कई बार राजनेताओं (Politicians) के सदके बढ़िया राजनीतिक हथियार (Political Tools) साबित होते हैं. दोनों के प्रति ही जनता हमेशा भावुक रहती है. पार्टीज़ अपना-अपना उल्लू इन्हीं भावुकता की टेबल पर सीधा करती रहती हैं.
सेंस ऑफ ह्यूमर का ऐसा अकाल पड़ा है मार्किट में जैसे कांग्रेस में लीडरशिप का है. Swiggy के एक ह्यूमरस रिप्लाई पर हंसने की बजाए लोग बॉयकॉट करने लग गए. आहत होना फुल ट्रेंड में है. इस मामले में दोनों पक्ष बराबर गति पकड़े हैं. एक से राइट आहत होता है तो लेफ्ट दूसरे को बॉयकॉट शुरु कर देता है. 'देवाईडेड बाई लेफ्ट राइट, यूनाइटेड बाई बॉयकॉट' हो रहा है.
इस सब मूर्खताओं, भंगेड़ीपनों के इतर जब देखता हूं कि गुरपुरब के दिन, त्योहार के वक़्त भी सिखों को प्रोटेस्ट करते, घर से दूर सड़कों पर बैठे परेशान होते देखता हूं तो मन ख़राब हो जाता है. कोई तुक नहीं समझ आता राजनीति का. ऐसा लगता है सब ठगी चल रही है.
ये किसान अपनी इच्छा से बैठे हों, किसी के बुलाए भटकाए बैठे हों या अंजान बने बस एक के पीछे एक आए हों या सरकार के तख्तापलट की क्रांति कर रहे हों, कोई भी वजह हो पर इस तरह परेशान होते, गुरपुरब के दिन दिल्ली सील कर देने की धमकी देते देखकर लगता है कि हम त्योहार को तो शायद सदियों से मना रहे हैं लेकिन प्रथम गुरुनानक देव जी के वचनों को पूरी तरह भुला चुके हैं. समझने बूझने की शक्ति जवाब दे चुकी है. कुआं बहुत गहरा है भांग तले में मिली हुई है.
तिसपर आंदोलन की कमर तोड़ने के लिए कुछ लोगों द्वारा खालिस्तानी नारे, CAA या 370 हटाओ के हल्ले सुनकर और मन ख़राब हो जाता है. अब वाकई लगने लगता है कि देश में बड़े स्तर पर बदलाव की ज़रूरत है, कहीं कहीं सख्ती बरतने की ज़रूरत है क्योंकि, पूरे बरस होते रहने वाले सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन और हर इलेक्शन में मौजूदा सरकार की जीत हमें भ्रमित करने के सिवाए कुछ नहीं कर रही.
ख़ैर, बात निकलती है तो फिर दूर तलक जाती है, इस सड़क का कोई अंत नज़र नहीं आता. गुरपुरब की बधाई हो आप सबको.
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