केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) द्वारा लाए गए कृषि कानूनों (Farm Bill 2020) के खिलाफ किसान आंदोलन (Farmer Protest) पूरे देश में लगातार सुर्खियां बटोर रहा है. पूरे देश की निगाहें इस वक्त दिल्ली बार्डर (Farmers At Delhi Border) पर डटे किसानों पर है. किसान आंदोलन यूं तो कई महीनों से पंजाब और हरियाणा (Farmer Protest At Punjab And Haryana) में जारी है लेकिन किसानों के दिल्ली कूच (Dehi Chalo) के ऐलान के बाद अब यह आंदोलन भारत की ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय खबर बन चुकी है. पंजाब और हरियाणा से आए किसान बड़ी संख्या में दिल्ली में घुसने के लिए प्रयासरत हैं, वह सभी दिल्ली के जंतर मंतर पर जाकर धरना देना चाहते हैं. केन्द्र की मोदी सरकार उन्हें वापिस जाने की सलाह दे रही है औऱ बातचीत करने का भरोसा दे रही है लेकिन किसान मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं. वह ज़िद पर अड़े हुए हैं और दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर किसी भी कीमत पर पहुंच जाना चाहते हैं. किसानों का कहना है कि उनका आंदोलन उनके हक के लिए है यह किसी भी तरीके से कोई भी राजनीति से प्रेरित नहीं है. किसानों ने कहा था कि उनके आंदोलन में किसी भी राजनीतिक दल के नेता को मंच नहीं दिया जाएगा, इस आंदोलन से किसी भी तरह की कोई राजनीतिक रोटी नहीं सेंकी जाएगी. केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा (BJP) का आरोप है कि किसानों को नए कानून के बहाने कांग्रेस पार्टी (Congress) बहकाने का काम कर रही है औऱ इस पूरे आंदोलन को कांग्रेस का अंदरूनी समर्थन हासिल है वह केंद्र सरकार को बदनाम करने की साजिश रच रही है.
कांग्रेस पार्टी ने इस आंदोलन को समर्थन दिया है लेकिन वह खुलकर सामने आने से बच रही है और वह इस पूरे आंदोलन को महज किसानों...
केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) द्वारा लाए गए कृषि कानूनों (Farm Bill 2020) के खिलाफ किसान आंदोलन (Farmer Protest) पूरे देश में लगातार सुर्खियां बटोर रहा है. पूरे देश की निगाहें इस वक्त दिल्ली बार्डर (Farmers At Delhi Border) पर डटे किसानों पर है. किसान आंदोलन यूं तो कई महीनों से पंजाब और हरियाणा (Farmer Protest At Punjab And Haryana) में जारी है लेकिन किसानों के दिल्ली कूच (Dehi Chalo) के ऐलान के बाद अब यह आंदोलन भारत की ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय खबर बन चुकी है. पंजाब और हरियाणा से आए किसान बड़ी संख्या में दिल्ली में घुसने के लिए प्रयासरत हैं, वह सभी दिल्ली के जंतर मंतर पर जाकर धरना देना चाहते हैं. केन्द्र की मोदी सरकार उन्हें वापिस जाने की सलाह दे रही है औऱ बातचीत करने का भरोसा दे रही है लेकिन किसान मानने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं. वह ज़िद पर अड़े हुए हैं और दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर किसी भी कीमत पर पहुंच जाना चाहते हैं. किसानों का कहना है कि उनका आंदोलन उनके हक के लिए है यह किसी भी तरीके से कोई भी राजनीति से प्रेरित नहीं है. किसानों ने कहा था कि उनके आंदोलन में किसी भी राजनीतिक दल के नेता को मंच नहीं दिया जाएगा, इस आंदोलन से किसी भी तरह की कोई राजनीतिक रोटी नहीं सेंकी जाएगी. केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा (BJP) का आरोप है कि किसानों को नए कानून के बहाने कांग्रेस पार्टी (Congress) बहकाने का काम कर रही है औऱ इस पूरे आंदोलन को कांग्रेस का अंदरूनी समर्थन हासिल है वह केंद्र सरकार को बदनाम करने की साजिश रच रही है.
कांग्रेस पार्टी ने इस आंदोलन को समर्थन दिया है लेकिन वह खुलकर सामने आने से बच रही है और वह इस पूरे आंदोलन को महज किसानों का आंदोलन ही दिखाकर पेश करना चाहती है. अब बात करते हैं आम आदमी पार्टी की, आम आदमी पार्टी इस पूरे आंदोलन का सबसे बड़ा सियासी फायदा उठाने की जुगत मे लगी हुयी है. आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी रणनीति जिसे वह पिछले 4-5 सालों से अमलीजामा पहनाने में लगी हुयी है वह है खुद को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का तमगा दिलवाना और देश भर में पांव पसारना.
यह सपना तो वह अपने पहले ही लोकसभा चुनाव साल 2014 में ही पूरा कर लेना चाहती थी, इसीलिए तो लगभग सभी बड़े नेताओं के खिलाफ अपने प्रमुख चेहरे को पार्टी ने उतार दिया था, खुद अरविंद केजरीवाल नरेंद्र मोदी के सामने उतर गए थे. खैर उस चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन फीका ही रहा और पार्टी 432 सीटों पर लड़कर महज 4 सीट ही हासिल कर सकी थी. यह चारों सीट उसने पंजाब में जीती थी. जिसके बाद ही लगने लगा कि पंजाब के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी बड़ा खेल कर सकती है.
आम आदमी पार्टी ने पंजाब के वर्ष 2017 के चुनाव में कड़ी मेहनत की, चुनाव से पहले और चुनाव के बाद आए ओपीनियन पोल और एक्जिट पोल में कई चैनलों और एजेंसियों ने आम आदमी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी या बहुमत हासिल करते हुए दिखाया लेकिन जब नतीजा आया तो आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक ही रहा. पार्टी ने पंजाब विधानसभा की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन जीत महज 20 सीटों पर ही मिली. खैर वह कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर की पार्टी बनकर ज़रूर उभरी थी. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी कुछ खास नहीं कर सकी और वह 4 सीटों से औंधे मुंह गिरकर 1 सीटों पर आ पहुंची.
अब आम आदमी पार्टी को यह एहसास हो गया है कि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनने के लिए उसे सबसे पहले कई राज्यों में अपना विस्तार करना होगा. आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति तैयार की और सबसे पहले उन राज्यों पर निशाना साधा है जहां पर विधानसभा की कम सीटें हैं. इस समय आम आदमी पार्टी की नज़र सबसे अधिक गोवा, पंजाब, उत्तराखंड जैसे राज्यों पर है, जहां के संगठन पर वह बड़ी मेहनत कर रही है. इसके साथ ही पार्टी उत्तर प्रदेश पर भी अपनी निगाहें जमाए हुए है लेकिन उसने पूरी ताकत झोंकी है छोटे राज्यों पर.
आम आदमी पार्टी पंजाब में सत्ता हासिल करना चाहती है वह राज्य में लगातार सक्रिय भी है और अब किसान आंदोलन उसे बोनस के रूप में मिल गया है. वह किसानों की हर संभव मदद कर उसका सियासी लाभ चाहती है. अब आपको समझना बेहद आसान हो गया होगा कि आखिर क्यों आम आदमी पार्टी किसान आंदोलन को ताकत दे रही है. पार्टी ने किसान आंदोलन को शुरू से ही अपना समर्थन दिया हुआ है.
नए कृषि कानून के पास होते ही पंजाब की विधानसभा में आम आदमी पार्टी ने किसानों के समर्थन में खूब हल्ला मचाया था, खुद पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा के सदन में बवाल काटा था. आम आदमी पार्टी किसी भी कीमत पर खुद को किसानों का हितवाला घोषित करना चाहती है. दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे किसानों को खाना से लेकर पानी तक की मदद आम आदमी पार्टी की ओर से हो रही है. खुद दिल्ली सरकार के कई मंत्री इस आंदोलन की पूरी देखरेख कर रहे हैं.
पिछले दिनों जब केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार से खाली स्टेडियम को जेल में बदलने के लिए स्टेडियम की मांग की तो दिल्ली सरकार ने फौरन इंकार कर दिया और उस इंकार वाली चिठ्ठी को सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया ताकि किसानों तक सीधे मैसेज चला जाए कि दिल्ली की सरकार किसानों के साथ है. दिल्ली सरकार के कई मंत्री किसानों के साथ सीधी बातचीत भी कर रहे हैं और हर तरह की मदद मुहैया करा रहे हैं.
दिल्ली की केजरीवाल सरकार इस पूरे आंदोलन को खुला समर्थन देकर किसानों को अपनी ओर आकर्षित कर लेना चाहती है लेकिन केजरीवाल और उनकी पार्टी को समझ लेना चाहिए कि इससे पहले भी देश में किसानों के कई आंदोलन हुए हैं जिसमें उस आंदोलन को समर्थन देने वाली पार्टियों का चुनावों में बुरा हाल हुआ है. किसानों की मदद करना बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर इस मदद के बहाने चुनावी रोटी सेंकने का काम हो रहा है तो ये आम आदमी पार्टी की बहुत बड़ी भूल होगी. किसान आंदोलन के इतिहासों पर नज़र डाली जाए तो इक्का दुक्का छोड़ कोई भी किसान आंदोलन चुनावी मुद्दा बनकर नहीं उभर पाया है.
ये भी पढ़ें -
राहुल गांधी किसानों के साथ सड़क पर उतर जाते तो दोनों का ही भला हो जाता
क्या बड़े किसान नेता की स्पेस भर सकेंगे विश्लेषक योगेंद्र यादव?
किसान आंदोलन से कांग्रेस को फायदा होगा, लेकिन मोदी सरकार को नुकसान नहीं
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.