लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक बयानबाजी भी तेज होती जा रही है. इन दिनों गुजरात समेत देश भर में किसानों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है. सब्जियों, दूध और फसल की सही कीमत न मिलने से किसान परेशान हैं. जहां एक ओर भाजपा इस ओर सही से ध्यान नहीं दे रही है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी किसानों की इस समस्या को एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर अपना वोटबैंक साधने में जुटी हुई है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने तो किसानों के प्रदर्शन को कांग्रेस का एक पॉलिटिकल स्टंट कह डाला है. सवाल ये है कि आखिर गुजरात विधानसभा चुनावों में ग्रामीण क्षेत्रों से ठुकराए जाने के बावजूद भाजपा किसानों की समस्याओं को हल क्यों नहीं कर रही है. किसानों के इसी गुस्से को कांग्रेस भुनाने में लगी हुई है. इससे न सिर्फ मोदी सरकार को नुकसान पहुंच सकता है, बल्कि लोकसभा चुनाव में किसान अपनी ताकत किसी भी ओर मोड़ सकते हैं.
गुजरात विधानसभा चुनाव से भी नहीं लिया सबक
जब गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो भाजपा ने जीत तो हासिल कर ली, लेकिन उसमें एक बड़ी हार छुपी हुई थी. पिछले 25 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि भाजपा को गुजरात में 100 से कम सीटें मिलीं. भाजपा ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जब नतीजों का आकलन किया गया तो ये सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्रों से भाजपा को काफी कम वोट मिले हैं. यानी ये साफ है कि लाख कोशिशों के बावजूद किसान भाजपा से खुश नहीं हैं. किसानों की ये नाराजगी ही अब कांग्रेस का हथियार बन गई है और उनके साथ मिलकर कांग्रेस ने गुजरात में विरोध प्रदर्शन किया. यहां भाजपा को ये समझने की जरूरत है कि उनके और किसानों की बीच दूरियां पहले ही काफी बढ़ चुकी हैं और कांग्रेस का उनके साथ मिलकर प्रदर्शन करना इस दूरी को खाई में भी बदल सकता है, जिसे भरना मुश्किल हो जाएगा.
लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राजनीतिक बयानबाजी भी तेज होती जा रही है. इन दिनों गुजरात समेत देश भर में किसानों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है. सब्जियों, दूध और फसल की सही कीमत न मिलने से किसान परेशान हैं. जहां एक ओर भाजपा इस ओर सही से ध्यान नहीं दे रही है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी किसानों की इस समस्या को एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर अपना वोटबैंक साधने में जुटी हुई है. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने तो किसानों के प्रदर्शन को कांग्रेस का एक पॉलिटिकल स्टंट कह डाला है. सवाल ये है कि आखिर गुजरात विधानसभा चुनावों में ग्रामीण क्षेत्रों से ठुकराए जाने के बावजूद भाजपा किसानों की समस्याओं को हल क्यों नहीं कर रही है. किसानों के इसी गुस्से को कांग्रेस भुनाने में लगी हुई है. इससे न सिर्फ मोदी सरकार को नुकसान पहुंच सकता है, बल्कि लोकसभा चुनाव में किसान अपनी ताकत किसी भी ओर मोड़ सकते हैं.
गुजरात विधानसभा चुनाव से भी नहीं लिया सबक
जब गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो भाजपा ने जीत तो हासिल कर ली, लेकिन उसमें एक बड़ी हार छुपी हुई थी. पिछले 25 सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि भाजपा को गुजरात में 100 से कम सीटें मिलीं. भाजपा ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जब नतीजों का आकलन किया गया तो ये सामने आया कि ग्रामीण क्षेत्रों से भाजपा को काफी कम वोट मिले हैं. यानी ये साफ है कि लाख कोशिशों के बावजूद किसान भाजपा से खुश नहीं हैं. किसानों की ये नाराजगी ही अब कांग्रेस का हथियार बन गई है और उनके साथ मिलकर कांग्रेस ने गुजरात में विरोध प्रदर्शन किया. यहां भाजपा को ये समझने की जरूरत है कि उनके और किसानों की बीच दूरियां पहले ही काफी बढ़ चुकी हैं और कांग्रेस का उनके साथ मिलकर प्रदर्शन करना इस दूरी को खाई में भी बदल सकता है, जिसे भरना मुश्किल हो जाएगा.
क्या कहा है विजय रूपानी ने?
गुजरात में किसानों के साथ मिलकर कांग्रेस द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन को उन्होंने कांग्रेस का एक पॉलिटिकल स्टंट कहा है. उनका कहना है कि अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, जिन्हें देखते हुए कांग्रेस इस तरह के स्टंट करके किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि सरकार किसानों का पूरा ध्यान रख रही है, इसीलिए इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार ने करीब 5 करोड़ रुपए का अन्न खरीदा है. उन्होंने आरोप लगाया है कि कांग्रेस को किसानों की समस्याएं सिर्फ तब दिखती हैं, जब चुनाव आते हैं.
ये है भाजपा की नाकामी का सबसे बड़ा सबूत
ये सबूत छोटा-मोटा नहीं, बल्कि 7 मीटर ऊंचा और करीब डेढ़ किलोमीटर लंबा है. ये है एक बांध, जिसे बनाने की गुहार गुजरात के भावनगर में रहने वाले किसान करीब 30 सालों से कर रहे थे. जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, तब सबसे पहले इस बांध को बनाने की गुहार लगाई गई थी. करीब 25 सालों से गुजरात में भाजपा का राज है, लेकिन बावजूद इसके यह बांध नहीं बन सका. यहां किसानों का सबसे बड़ा दुश्मन समुद्र का खारा पानी था, जिसकी वजह से खेत बंजर हो रहे थे. खेती के भरोसे ही जीने वाले किसानों आखिरकार सरकार का आसरा छोड़कर खुद ही बांध बनाने की ठान ली.
जिस बांध को बनाने के लिए करोड़ रुपए तक के टेंडर निकला करते थे और कागजों पर घूमते रहते थे, उसे गांव वालों ने महज 40 लाख रुपए में बनाकर तैयार कर दिया. जिस बांध को सरकार 25 सालों में नहीं बनवा सकी, उसे गांव वालों ने महज 2 महीने 5 दिन बना दिया. बांध बनता रहा, लेकिन न कोई नेता वहां झांकने गया, ना ही किसी सरकारी अधिकारी ने वहां जाने की जहमत उठाई. भाजपा और खुद पीएम मोदी भले ही गुजरात मॉडल का कितना भी गुणगान करें, लेकिन अगर किसान परेशान है, तो ऐसे मॉडल का क्या फायदा. भाजपा अगर किसानों की मदद नहीं करेगी, तो ये किसान क्या कर सकते हैं, ये विधानसभा चुनाव में दिखाई दे चुका है.
विजय रूपानी की बात को नकारा नहीं जा सकता कि कांग्रेस एक तरह का पॉलिटिकल स्टंट कर रही है. लेकिन अगर अभी भी भाजपा किसानों के मुद्दों को सुलझाती नहीं है, तो भाजपा को एक बार फिर गुजरात विधानसभा चुनाव जैसे नतीजे देखने को मिल सकते हैं. देखा जाए तो कांग्रेस को गुजरात में भाजपा की दुखती रग मिल गई है, जिसे दबाकर वह लोकसभा चुनावों में जीत का ताज पहनना चाहती है. अगर भाजपा ने किसानों की समस्याओं का जल्द से जल्द निपटारा नहीं किया तो कांग्रेस ऐसा करने में सफल भी हो सकती है.
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