अब हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं उसमें कुछ भी नया नहीं है... कभी कालाहांडी, कभी बुंदेलखंड तो कभी विदर्भ में ऐसे वाकये होते रहते हैं और जो आंकड़ों में दर्ज होते ही होंगे. फर्क सिर्फ इतना है कि खुशहाल गुजरात में यह एक ऐसा दंश है जिसको आंकड़ों में भी जगह नहीं मिलती. पोपट भाई मकवाना का हंसता खेलता परिवार था. मगर पिछले कुछ सालों से मौसम की मार और लागत से कम फसल की कीमत ने उनके माथे पर शिकन बढ़ा दी थी. कंधों पर बैंक का कर्ज भी घाव को नासूर बना रहा था.
2 साल पहले मई के महीने में एक दिन पोपट भाई को एक बिजली अधिकारी मिला और उनके ऊपर साठ हजार का बिजली चोरी का जुर्माना लगा दिया. पोपट भाई के सिर पर देना बैंक का एक लाख रूपए का लोन पहले से ही था. साथ ही इन्होंने कुछ एक लाख ग्रामीण बैंक से भी लोन ले रखा था. इसलिए बिजली चोरी के जुर्माने की बात सुनते ही उनके सब्र का बांध टूट गया. और पोपट भाई ने आत्महत्या कर ली.
कुछ साल पहले ही जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा था कि- 'आखिर उनको नींद कैसे आती है जब देश का किसान आत्महत्या कर रहा है?' लेकिन अब यही सवाल पीएम मोदी के सामने मुंह बाए खड़ा है. सत्ता और सियासत के दो चोरों के बीच की कसौटी में गुजरात का किसान पिस रहा है. हैरत इस बात की है कि पोपट भाई की आत्महत्या को प्रशासन ने बड़ी चालाकी से नजरअंदाज किया. उनके बेटे ऋण माफी की अर्जी लेकर कहां-कहां नहीं गए लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. अब वह भी अपने पिता की तरह उसी चौराहे पर खड़े हैं.
पोपट भाई तो बस एक उदाहरण हैं. पोपट भाई की तरह गुजरात में हजारों किसान इसी दुख से गुजर रहे हैं और सरकारी सहायता की बाट जोह रहे हैं....
अब हम आपको जो कहानी बताने जा रहे हैं उसमें कुछ भी नया नहीं है... कभी कालाहांडी, कभी बुंदेलखंड तो कभी विदर्भ में ऐसे वाकये होते रहते हैं और जो आंकड़ों में दर्ज होते ही होंगे. फर्क सिर्फ इतना है कि खुशहाल गुजरात में यह एक ऐसा दंश है जिसको आंकड़ों में भी जगह नहीं मिलती. पोपट भाई मकवाना का हंसता खेलता परिवार था. मगर पिछले कुछ सालों से मौसम की मार और लागत से कम फसल की कीमत ने उनके माथे पर शिकन बढ़ा दी थी. कंधों पर बैंक का कर्ज भी घाव को नासूर बना रहा था.
2 साल पहले मई के महीने में एक दिन पोपट भाई को एक बिजली अधिकारी मिला और उनके ऊपर साठ हजार का बिजली चोरी का जुर्माना लगा दिया. पोपट भाई के सिर पर देना बैंक का एक लाख रूपए का लोन पहले से ही था. साथ ही इन्होंने कुछ एक लाख ग्रामीण बैंक से भी लोन ले रखा था. इसलिए बिजली चोरी के जुर्माने की बात सुनते ही उनके सब्र का बांध टूट गया. और पोपट भाई ने आत्महत्या कर ली.
कुछ साल पहले ही जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा था कि- 'आखिर उनको नींद कैसे आती है जब देश का किसान आत्महत्या कर रहा है?' लेकिन अब यही सवाल पीएम मोदी के सामने मुंह बाए खड़ा है. सत्ता और सियासत के दो चोरों के बीच की कसौटी में गुजरात का किसान पिस रहा है. हैरत इस बात की है कि पोपट भाई की आत्महत्या को प्रशासन ने बड़ी चालाकी से नजरअंदाज किया. उनके बेटे ऋण माफी की अर्जी लेकर कहां-कहां नहीं गए लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. अब वह भी अपने पिता की तरह उसी चौराहे पर खड़े हैं.
पोपट भाई तो बस एक उदाहरण हैं. पोपट भाई की तरह गुजरात में हजारों किसान इसी दुख से गुजर रहे हैं और सरकारी सहायता की बाट जोह रहे हैं. जब तक उनकी परिस्थितियों की गंभीरता और उनके संघर्ष को नहीं समझा जाएगा, तब तक गुजरात के किसान यूं ही खामोशी से अंधकार में डूबते रहेंगे.
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