पिछले साल किसान आंदोलन के बाद चर्चा में आए मन्दसौर में किसान एक बार फिर सरकार के खिलाफ होता दिख रहे हैं. इस बार प्याज़ और लहसुन की बम्पर पैदावार के बाद मंडियों के बाहर किसान कई-कई दिन उपज बेचने का इंतज़ार कर रहे हैं तो दूसरी ओर प्याज़ और लहसुन के भाव मे गिरावट से किसान घाटे में भी जा रहे हैं. मंदसौर से किसान की दुखती रग पर पढ़िए ये रिपोर्ट.
पशुपतिनाथ मंदिर और अफीम की खेती के लिए मशहूर मध्यप्रदेश का मंदसौर उस वक़्त अचानक से दुनिया भर में सुर्खियां बन गया था जब किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलियों से 6 किसानों की मौत हो गयी थी और ये तारीख मंदसौर के इतिहास में एक काला धब्बा बन गयी.
6 जून 2018
यही वो तारीख है जिसने मध्यप्रदेश के मालवा इलाके में बसे मंदसौर को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए एक राजनीतिक प्रयोगशाला बना दिया और इसके केंद्र में था 17 साल का युवक अभिषेक पाटीदार. मंदसौर की इस ग्राउंड रिपोर्ट की शुरुआत बिना अभिषेक के घर जाए हो ही नहीं सकती इसलिए सबसे पहले हम मंदसौर के पास पिपल्यामन्दिर गांव में गए. इस गांव में अभिषेक पाटीदार का परिवार रहता है. अभिषेक किसान आंदोलन के वक़्त पुलिस फायरिंग में मरने वाला पहला शख्स था. लेकिन हादसे के डेढ़ साल बाद भी अभिषेक की मां को मलाल है कि जिन मांगों को लेकर आन्दोलन हुआ था वो तो जस की तस हैं. अभिषेक की मां अलका पाटीदार बताती हैं कि किसान आंदोलन की मुख्य मांग थी कर्जा माफी और फसल का सही दाम, लेकिन अभी तक दोनों ही मांगों पर सरकार से सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला.
'भावान्तर' का भंवर
किसान आंदोलन के उठे गुस्से को शांत करने के मकसद से शिवराज सरकार ने भावन्तर...
पिछले साल किसान आंदोलन के बाद चर्चा में आए मन्दसौर में किसान एक बार फिर सरकार के खिलाफ होता दिख रहे हैं. इस बार प्याज़ और लहसुन की बम्पर पैदावार के बाद मंडियों के बाहर किसान कई-कई दिन उपज बेचने का इंतज़ार कर रहे हैं तो दूसरी ओर प्याज़ और लहसुन के भाव मे गिरावट से किसान घाटे में भी जा रहे हैं. मंदसौर से किसान की दुखती रग पर पढ़िए ये रिपोर्ट.
पशुपतिनाथ मंदिर और अफीम की खेती के लिए मशहूर मध्यप्रदेश का मंदसौर उस वक़्त अचानक से दुनिया भर में सुर्खियां बन गया था जब किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलियों से 6 किसानों की मौत हो गयी थी और ये तारीख मंदसौर के इतिहास में एक काला धब्बा बन गयी.
6 जून 2018
यही वो तारीख है जिसने मध्यप्रदेश के मालवा इलाके में बसे मंदसौर को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए एक राजनीतिक प्रयोगशाला बना दिया और इसके केंद्र में था 17 साल का युवक अभिषेक पाटीदार. मंदसौर की इस ग्राउंड रिपोर्ट की शुरुआत बिना अभिषेक के घर जाए हो ही नहीं सकती इसलिए सबसे पहले हम मंदसौर के पास पिपल्यामन्दिर गांव में गए. इस गांव में अभिषेक पाटीदार का परिवार रहता है. अभिषेक किसान आंदोलन के वक़्त पुलिस फायरिंग में मरने वाला पहला शख्स था. लेकिन हादसे के डेढ़ साल बाद भी अभिषेक की मां को मलाल है कि जिन मांगों को लेकर आन्दोलन हुआ था वो तो जस की तस हैं. अभिषेक की मां अलका पाटीदार बताती हैं कि किसान आंदोलन की मुख्य मांग थी कर्जा माफी और फसल का सही दाम, लेकिन अभी तक दोनों ही मांगों पर सरकार से सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला.
'भावान्तर' का भंवर
किसान आंदोलन के उठे गुस्से को शांत करने के मकसद से शिवराज सरकार ने भावन्तर योजना शुरू की जिसमें उपज की कीमत से ऊपर सरकार अपनी तरफ से थोड़ी और राशि देती है ताकि किसान को मंडी में मिलने वाले भाव से ऊपर की कीमत भी मिल जाये. लेकिन करीब 70 फीसदी किसान आबादी वाले मंदसौर में किसानों की नाराजगी सरकार को इसलिए भी भारी पड़ सकती है क्योंकि जिन किसानों को भावन्तर का मरहम शिवराज सरकार ने दिया था उस भावन्तर के भंवर में किसान फंसता दिख रहा है. कई किसानों का कहना है कि भावन्तर से पहले उनकी उपज के उन्हें अच्छे दाम मिलते थे लेकिन भावान्तर के बाद उपज के दाम मंडी में इतने नीचे जा चुके हैं कि भावान्तर की राशि जुड़ने के बाद भी किसान घाटे में ही है.
मंदसौर में 'शिवराज सरकार' पर क्यों मंडरा रहा है खतरा
आपको बताते हैं कि क्यों शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी के लिए मंदसौर एक बड़ा खतरा है. फिलहाल मंदसौर जिले में 4 विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें से 3 पर बीजेपी का कब्ज़ा है लेकिन भावान्तर के अलावा उपज की सही कीमत ना मिलने पर भी किसान सरकार से नाराज है. जी हां, मंदसौर और उसके आस-पास प्याज़ और लहसुन की बम्पर पैदावार हुई है और उसके चलते मंदसौर कृषि उपज मंडी के बाहर कई टन प्याज़ और लहसुन लादे ट्रैक्टर-ट्रालियों की लंबी कतार लग गयी है. मंडी प्रांगण के अंदर कई टन प्याज़ और लहसुन ज़मीन पर बिखरी पड़ी थी. मंदसौर में इतना प्याज़ आ गया है कि अब किसानों को 50 पैसे प्रति किलो के भाव से प्याज़ बेचनी पड़ रही है. पास ही के गांव से प्याज़ बेचने आए श्याम पाटीदार ने बताया कि उसने 20 नवम्बर को ही 50 पैसे प्रति किलो की दर से प्याज़ बेची और हर एक किलो पर साढ़े पांच रुपये का घाटा उठाया. सिर्फ प्याज़ ही नहीं बल्कि लहसुन की गिरती कीमतों ने भी किसानों के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी कर दी है. किसान 3-4 दिन से ज्यादा लहसुन को रख नहीं सकता इसलिए कम कीमत मिलने पर भी मजबूरी में लहसुन बेचने को मजबूर है.
जानिए क्यों घाटे में है किसान
अब आपको आसान भाषा मे समझाते हैं कि कैसे मंदसौर कृषि मंडी में किसान घाटे में उपज बेचने पर मजबूर है.
- मंदसौर की मंडी में मध्यप्रदेश के आष्टा, सीहोर, भोपाल और उज्जैन ज़िले के अलावा राजस्थान के बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ से लहसुन आता है जबकि नीमच और राजस्थान से प्याज़ की आवक होती है.
- एक किलो प्याज़ उगाने में 5-6 ₹ का खर्चा आता है, लेकिन मंदसौर मंडी में प्याज़ 50 पैसे प्रति किलो की दर से बिक रहा है यानी हर एक किलो पर किसान को ₹ 4.50 से लेकर 5 रुपये तक का घाटा हो रहा है.
- वहीं एक क्विंटल लहसुन उगाने में 3000 ₹ का खर्चा आता है, लेकिन मंदसौर मंडी में लहसुन 700 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिक रहा है यानी हर एक क्विंटल लहसुन पर भी किसान 2300 रुपये के घाटे में है.
- बीते एक सप्ताह में लगभग 1 लाख 20 हजार बोरी प्याज और लगभग इतनी ही बोरी लहसुन मंदसौर मंडी में आ चुका है.
- मंडी इंस्पेक्टर समीर दास का कहना है पैदावार ज्यादा होने से ये हालात बने हैं.
मंदसौर में पाटीदारों की अच्छी पकड़
मालवा के एक छोर पर बसे मंदसौर में पाटीदारों का वोट बैंक बहुत अहम माना जाता है. किसान आंदोलन में सबसे सक्रिय भूमिका निभाने वाले किसान नेता अमृतराम पाटीदार बताते हैं कि मंदसौर में 16% पाटीदार हैं जो पूरी तरह से सरकार बदलने का मन बना चुके हैं. अमृतराम पाटीदार के मुताबिक किसान इस बात से नाराज़ हैं कि ना तो किसान आंदोलन के बाद किसानों का कर्जा माफ हुआ और ना ही गोलीकांड के आरोपियों को सज़ा हुई.
नेताओं के अपने तर्क
इन सब के बीच हमने भावान्तर के भुगतान में देरी और फसल के कम दाम को लेकर स्थानीय विधायक और बीजेपी प्रत्याशी यशपाल सिंह सिसोदिया से बात की, तो उन्होंने इसका दोष कांग्रेस पर डाल दिया. बोले भावान्तर को लेकर कांग्रेस ने चुनाव आयोग में शिकायत की है इसलिए पैसा नहीं दे सकते. यशपाल ने बताया कि सरकार ने लहसुन और प्याज़ पर 800 और 400 रुपये की अतिरिक्त राशि का इंतज़ाम किया है और किसान को इससे राहत मिली है. वहीं इलाके से कांग्रेस के प्रत्याशी नरेंद्र नाहटा कहते हैं बीजेपी से किसान नाराज़ हैं. नाहटा ने बताया कि कांग्रेस प्याज़ और लहसुन को एमएसपी के दायरे में लाने का वादा कर चुकी है लिहाजा किसान उसके साथ हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाले मालवा में यदि मंदसौर के किसानों का गुस्सा फैला तो बीजेपी के लिए 15 सालों की सत्ता हाथ से जाने के आसार तो बन सकते हैं लेकिन कांग्रेस को ये भी याद रखना होगा कि किसानों से वादे कर अगर वो वोट लेने ने कामयाब हो भी गयी तो वादे नियत समय में पूरे भी करने होंगे, नहीं तो 2019 के लोकसभा चुनाव जिसे सत्ता का फाइनल कहा जाता है वहां उसे मुंह की खानी पड़ेगी.
ये भी पढ़ें-
क्या ऐसे बयानों से किसानों की हालत सुधरेगी?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.