पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर (Capt Amrinder Singh) सिंह को पांच साल पुराना चुनावी वादा याद दिलाया जाये तो लगता नहीं कि अब वो सुनना भी पसंद करेंगे - 2017 के चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के लोगों ये कह कर ही वोट मांगा था कि वो उनका आखिरी चुनाव होगा. हाल फिलहाल कैप्टन अमरिंदर सिंह जिस तरीके से किसान आंदोलन (Farmers Protest) में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं, लगता नहीं कि वो अपने चुनावी वादे को निभाने के मूड में हैं. बीच में एक खबर ये भी आयी थी कि इस बार भी वो चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को हायर करना पसंद करेंगे. फिलहाल तो प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी कराने में जी जान से जुटे हुए हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह शुरू से ही कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. 25 सितंबर को जब किसानों ने बंद बुलाया तो भी वे सपोर्ट में रहे और पहले से ही बोल दिया था कि आंदोलन करने वाले किसानों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी जाएगी. साथ ही, किसानों से भी अपील की थी कि वे कानून को हाथ में न लें ताकि सरकार को एक्शन के लिए मजबूर न होना पड़े.
किसानों का मौजूदा विरोध प्रदर्शन भी पंजाब से ही शुरू हुआ है और दिल्ली पहुंच चुका है - क्या किसानों को पंजाब से दिल्ली भेजने में कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी कोई भूमिका हो सकती है?
दिल्ली आकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की और बोले - 'मैंने अमित शाह के साथ बातचीत में अपना विरोध दर्ज कराया है और इस मसले के जल्द समाधान की मांग की है.'
कैप्टन अमरिंदर का कहना है कि ये मुद्दा जल्द समाधान मांगता है, वरना पंजाब की आर्थिक स्थिति के साथ देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा है. हालांकि, कैप्टन अमरिंदर ने ये साफ करने की कोशिश भी की कि केंद्र सरकार और किसानों के बीच जारी बातचीत में उनको कुछ नहीं कहना है.
कैप्टन अमरिंदर जिस तरह आगे बढ़ कर पहल कर रहे हैं, लगता तो ऐसा ही है जैसे वो 2022 तक के लिए एक...
पंजाब में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर (Capt Amrinder Singh) सिंह को पांच साल पुराना चुनावी वादा याद दिलाया जाये तो लगता नहीं कि अब वो सुनना भी पसंद करेंगे - 2017 के चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के लोगों ये कह कर ही वोट मांगा था कि वो उनका आखिरी चुनाव होगा. हाल फिलहाल कैप्टन अमरिंदर सिंह जिस तरीके से किसान आंदोलन (Farmers Protest) में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं, लगता नहीं कि वो अपने चुनावी वादे को निभाने के मूड में हैं. बीच में एक खबर ये भी आयी थी कि इस बार भी वो चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को हायर करना पसंद करेंगे. फिलहाल तो प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सत्ता में वापसी कराने में जी जान से जुटे हुए हैं.
कैप्टन अमरिंदर सिंह शुरू से ही कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं. 25 सितंबर को जब किसानों ने बंद बुलाया तो भी वे सपोर्ट में रहे और पहले से ही बोल दिया था कि आंदोलन करने वाले किसानों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज नहीं करायी जाएगी. साथ ही, किसानों से भी अपील की थी कि वे कानून को हाथ में न लें ताकि सरकार को एक्शन के लिए मजबूर न होना पड़े.
किसानों का मौजूदा विरोध प्रदर्शन भी पंजाब से ही शुरू हुआ है और दिल्ली पहुंच चुका है - क्या किसानों को पंजाब से दिल्ली भेजने में कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी कोई भूमिका हो सकती है?
दिल्ली आकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी की और बोले - 'मैंने अमित शाह के साथ बातचीत में अपना विरोध दर्ज कराया है और इस मसले के जल्द समाधान की मांग की है.'
कैप्टन अमरिंदर का कहना है कि ये मुद्दा जल्द समाधान मांगता है, वरना पंजाब की आर्थिक स्थिति के साथ देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा है. हालांकि, कैप्टन अमरिंदर ने ये साफ करने की कोशिश भी की कि केंद्र सरकार और किसानों के बीच जारी बातचीत में उनको कुछ नहीं कहना है.
कैप्टन अमरिंदर जिस तरह आगे बढ़ कर पहल कर रहे हैं, लगता तो ऐसा ही है जैसे वो 2022 तक के लिए एक फिक्स्ड डिपॉजिट कर रहे हों - और किसान वोट बैंक में ये निवेश कैप्टन अमरिंदर को अच्छा रिटर्न भी दिला सकता है.
अवॉर्ड वापसी - 2
किसानों के समर्थन और मोदी सरकार के विरोध में पंजाब से अवॉर्ड वापसी भी शुरू हो गयी है - पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल (Badal Padma Award Return) और उनके पुराने साथी सुखदेव सिंह ढींढसा सबसे पहले आगे आये हैं. विरोध ये तरीका ठीक पांच साल पहले भी केंद्र की मोदी सरकार और मॉब लिंचिंग के विरोध में देखने को मिला था जब कई हस्तियों ने अवॉर्ड वापसी मुहिम चला रखी थी. 1977 में इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लागू करने का सपोर्ट करने वाले मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में अपना पद्म पुरस्कार ऐसे ही लौटा दिया था.
शिरोमणि अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे एक लंबे चौड़े पत्र में कृषि कानूनों का विरोध किया है. किसानों के खिलाफ प्रशासनिक एक्शन की निंदा करते हुए प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्मविभूषण सम्मान वापस कर दिया है.
कृषि कानूनों के विरोध में ही हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था और फिर अकाली दल ने एनडीए भी छोड़ दिया.
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पत्र में लिखा है, ‘मैं इतना गरीब हूं कि किसानों के लिए कुर्बान करने के लिए मेरे पास कुछ और नहीं है... मैं जो भी हूं किसानों की वजह से ही हूं... ऐसे में अगर किसानों का अपमान हो रहा है, तो किसी तरह का सम्मान रखने का कोई फायदा नहीं है.’
बादल का कहना है कि किसानों के आंदोलन को जिस तरह से गलत तरीके से पेश किया जा रहा है वो दर्दनाक है. बादल का कहना है कि जिस तरह किसानों के साथ धोखा हो रहा है, उनको उससे काफी दुख पहुंचा है.
बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने किसानों के आंदोलन को टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ जोड़ कर पेश करते हुए शाहीन बाग - 2 का प्रयाोग बताया है. लगता है प्रकाश सिंह बादल इसे ही दर्दनाक बता रहे हैं.
सवाल ये है कि केंद्र सरकार का ये कानून जब पूरे देश में लागू है तो विरोध सिर्फ पंजाब में ही क्यों हो रहा है. पंजाब के बाद हरियाणा भी कुछ हद तक प्रभावित है. थोड़ा बहुत असर तो कई राज्यों में है, लेकिन पंजाब की तरह नहीं. बिहार में तो अभी अभी चुनाव हुए हैं - और लोगों ने उसी बीजेपी पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया है जिसकी केंद्र सरकार ने ये कानून बनाया है.
बिहार चुनाव में तो महागठबंधन के मैनिफेस्टो में भी सत्ता में आने पर पंजाब जैसे उपायों के वादे किये गये थे. ये उपाय पंजाब की तरह ही बताये गये थे. दरअसल, पंजाब विधानसभा ने तीन कृषि कानूनों को बेअसर करने के लिए विधेयक पारित किये हैं.
विरोध और प्रदर्शन के लिए मोर्चे पर तो किसान डटे हुए हैं, लेकिन ये तो बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस का ही विरोध ज्यादा लगता है. शायद यही वजह है कि बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार दबाव तो महसूस कर रही है, लेकिन उतनी चिंतित लग रही है जितने बीजेपी के एनडीए साथी हैं - एनडीए में बीजेपी के साथी तो अंदर तक हिल गये हैं. हरसिमरत कौर बादल ने तो मंत्री पद छोड़ा ही अकाली दल ने एनडीए ही छोड़ दी. अब तो राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल भी वैसे ही डरे हुए महसूस कर रहे हैं - और हरियाणा में तो दुष्यंत चौटाला ने भी कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही तरह किसानों की समस्या का शीघ्र समाधान करने की मांग कर रहे हैं. किसान आंदोलन में जाट बिरादरी लीड कर रहे हैं, लिहाजा जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला भी मुश्किल महसूस कर रहे हैं.
अकाली दल के एनडीए छोड़ने से तो कांग्रेस को ज्यादा खुशी नहीं हुई होगी, लेकिन दुष्यंत चौटाला के बीजेपी से नाता तोड़ने का तो शिद्दत से इंतजार होगा. अगर ये संभव हुआ तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा फिर से सरकार बनाने की कोशिश में जुट जाएंगे. दुष्यंत चौटाला के लिए एनडीए छोड़ना अकाली दल जितना आसान भी न होगा क्योंकि उनकी अलग मजबूरियां हैं.
किसानों के आंदोलन की गूंज कनाडा तक पहुंची है, लेकिन वहां के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की टिप्पणी को भारतीय विदेश मंत्रालय ने अधकचरा, सच से परे, गैर जरूरी और एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों में हस्क्षेप करने जैसा बताया है. असल में कनाडा का पंजाब कनेक्शन भी काफी गहरा है, ट्रूडो सिख समुदाय की सहानुभूति हासिल करने के लिए कर रहे हैं - सवाल वोट का जो है. हर देश में हर नेता का अपना वोट बैंक भी तो मायने रखता है.
किसान वोट बैंक और कैप्टन का फिक्स्ड डिपॉजिट!
शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के साथ साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी किसानों के मामले में कूद पड़े हैं और किसानों के खिलाफ बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की मिलीभगत के तौर पर समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल का इल्जाम है कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास कृषि कानूनों को रोकने के कई मौके थे लेकिन वो ऐसा कुछ भी नहीं किये जिससे किसानों को फायदा हो. अरविंद केजरीवाल ने कैप्टन अमरिंदर सिंह पर गंदी राजनीति करने का आरोप लगाया है. केजरीवाल का तो यहां तक कहना है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और अकाली दल दोनों ने मिल कर तीनों कृषि कानून पास कराने में मोदी सरकार का साथ दिया है.
दरअसल, अरविंद केजरीवाल भी पंजाब की राजनीति में प्रमुख हिस्सेदार हैं और 2017 में तो सरकार बनाने के लिए वो पूरी ताकत भी झोंक दिये थे. जाहिर है, कैप्टन अमरिंदर और बादल की तरह केजरीवाल की भी नजर 2022 के विधानसभा चुनाव पर तो होगी ही. अरविंद केजरीवाल का दावा है कि दिल्ली में स्टेडियम को जेल के तौर पर इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं देने के चलते मोदी सरकार भी उनसे खफा है. थोड़ा अजीब भी लगता है, कोरोना वायरस के मामले में अमित शाह के पीछे पीछे चुपचाप चलने वाले केजरीवाल केंद्र सरकार की नाराजगी को महसूस कर रहे हैं और खुलेआम जिक्र भी.
जैसे अरविंद केजरीवाल पंजाब के मुख्यमंत्री को निशाना बना रहे हैं, वैसे ही कैप्टन अमरिंदर सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से पूछ रहे हैं कि दो महीने से किसान पंजाब में बड़े आराम से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा सरकार उनके खिलाफ बल प्रयोग कर उकसा रही है. पूछते भी हैं, 'क्या किसानों के पास पब्लिक हाईवे से शांतिपूर्ण तरीके से गुजरने का अधिकार भी नहीं है?'
क्या ऐसा नहीं लगता कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बड़ी ही चतुरायी से किसान आंदोलन को पंजाब से बाहर कर दिल्ली पहुंचा दिया है. दोनों हाथों में और सिर कढ़ाई में होने जैसा. किसानों के आंदोलन का सपोर्ट भी हो गया और पंजाब में ऐसी कोई परेशानी नहीं हुई जो हरियाणा और दिल्ली में हो रही है.
फर्ज कीजिये किसानों का आंदोलन पंजाब में चल रहा होता तो एनडीए छोड़ने के बाद अकाली दल किसानों को अपनी तरफ करने के लिए अलग राजनीति करता और निशाने पर कैप्टन अमरिंदर सिंह होते. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसान आंदोलन के तूफान का रुख दिल्ली की तरफ मोड़ कर खुद को हर तरीके से सुरक्षित कर सुकून महसूस कर रहे हैं.
किसान आंदोलन के जरिये अपनी ताकत का एहसास कराने और राहुल गांधी के ग्लैमर का इस्तेमाल करते हुए कैप्टन अमरिंदर ने कांग्रेस नेता को टैक्टर की सवारी ही नहीं करायी , बल्कि ड्राइविंग सीट पर भी बिठा दिया. ये वही कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं जो सोनिया गांधी से लड़ कर राहुल गांधी के करीबी प्रताप सिंह बाजवा से पंजाब कांग्रेस की कमान छीन ली थी. जब राहुल गांधी को नवजोत सिंह सिद्धू अपना और असली कैप्टन बताने लगे तो उनको राष्ट्रवादी राजनीति में रोस्ट ही कर डाला. मंत्री पद के साथ साथ बंगला भी छीन लिया. कपिल शर्मा शो छूटने का जो नुकसान हुआ वो तो हुआ ही.
एक और महत्वपूर्ण बात - 2017 के विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह को ज्यादा वोट शहरी इलाकों से मिले थे, ग्रामीण इलाकों में पैठ नहीं बन पायी थी.असल बात ये है कि किसान आंदोलन का सपोर्ट कर कैप्टन अमरिंदर सिंह गांवों में बसने वाले किसान वोट बैंक में भारी इनवेस्टमेंट कर रहे हैं. विधानसभा चुनाव में अभी काफी वक्त है - फिर तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को अभी किये जाने वाले फिक्स्ड डिपॉजिट का रिटर्न भी अच्छा मिलना चाहिये!
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