आइये आपको धरती के भगवान से परिचय कराते हैं. कौन वाला भगवान? वही जो आजकल सड़कों पर लाठियां खा रहा है. इस सच को शिद्दत के साथ शायद किसी ने महसूस ही नहीं किया होगा. चलिए आपको कुछ याद दिलाकर अन्नदाताओं के भगवान होने का अहसास दिलाता हूं. आपको याद होंगे कोरोना काल के लॉकडाउन के शुरुआती दिन. डर, ख़ौफ, घबराहट, बेचैनी, बंदिशें और असमंजस्य की स्थिति में राशन, पानी, दूध, फल, सब्जी जैसी रोज इस्तेमाल की जरुरी चीजों को लेकर बड़ी फिक्र थी. अब ये सब कैसे उपलब्ध होगा? दूसरी एक और अहम फिक्र थी- रोज कुआं खोद कर पानी पीने वाले मेहनतकशों का क्या होगा? अब ये क्या करेंगे? कैसे जिएंगे? छोटे,छोटे काम करने वाले, ठेला लगाने वाले, रिक्शा चलाना वाले, वेन्डर, बैन्डर, कबाड़ी, नाई, धोबी.. इत्यादि. इन दोनों बेहद बड़ी समस्याओं को उस वक्त धरती के भगवानों/ख़ुदाओं ने हल कर दिया था. आपको याद होगा कि सामान्य दिनों की तुलना में उन मुश्किल दिनों में फल और सब्जियों की बहार सी आ गई थी. सख्त लॉकडाउन के दौरान हर तरफ खूब सस्ते फल और सब्जियों का जखीरा लगा था. सस्ती और ताजी सब्जियों की उपलब्धता ने सबको इत्मेनान दिला दिया था.
किसानों ने दिनों रात मेहनत करके, पसीना बहा कर सब्जी की इतनी पैदावार कर दी थी कि सस्ती और ताज़ी सब्जियों की बहार सी आ गई थी. मुश्किल दौर से निपटने में सहायक अन्नदाताओं के इस योगदान का दूसरा सबसे बड़ा लाभ ये हुआ था कि कम पूंजी के छोटे-छोटे काम करके रोज कमा कर रोज खाने वाले वो गरीब मेहनतकश जिनका काम ठप्प था वो सब सब्जी बेंचकर जीविका चलाने लगे थे.
ये होता है किसानों का जज्बा और योगदान. शायद इसीलिए हमारे देश ने जवान और किसान को हमेशां ख़ूब इज्ज़त दी है और इनकी एहमियत का एहसास किया...
आइये आपको धरती के भगवान से परिचय कराते हैं. कौन वाला भगवान? वही जो आजकल सड़कों पर लाठियां खा रहा है. इस सच को शिद्दत के साथ शायद किसी ने महसूस ही नहीं किया होगा. चलिए आपको कुछ याद दिलाकर अन्नदाताओं के भगवान होने का अहसास दिलाता हूं. आपको याद होंगे कोरोना काल के लॉकडाउन के शुरुआती दिन. डर, ख़ौफ, घबराहट, बेचैनी, बंदिशें और असमंजस्य की स्थिति में राशन, पानी, दूध, फल, सब्जी जैसी रोज इस्तेमाल की जरुरी चीजों को लेकर बड़ी फिक्र थी. अब ये सब कैसे उपलब्ध होगा? दूसरी एक और अहम फिक्र थी- रोज कुआं खोद कर पानी पीने वाले मेहनतकशों का क्या होगा? अब ये क्या करेंगे? कैसे जिएंगे? छोटे,छोटे काम करने वाले, ठेला लगाने वाले, रिक्शा चलाना वाले, वेन्डर, बैन्डर, कबाड़ी, नाई, धोबी.. इत्यादि. इन दोनों बेहद बड़ी समस्याओं को उस वक्त धरती के भगवानों/ख़ुदाओं ने हल कर दिया था. आपको याद होगा कि सामान्य दिनों की तुलना में उन मुश्किल दिनों में फल और सब्जियों की बहार सी आ गई थी. सख्त लॉकडाउन के दौरान हर तरफ खूब सस्ते फल और सब्जियों का जखीरा लगा था. सस्ती और ताजी सब्जियों की उपलब्धता ने सबको इत्मेनान दिला दिया था.
किसानों ने दिनों रात मेहनत करके, पसीना बहा कर सब्जी की इतनी पैदावार कर दी थी कि सस्ती और ताज़ी सब्जियों की बहार सी आ गई थी. मुश्किल दौर से निपटने में सहायक अन्नदाताओं के इस योगदान का दूसरा सबसे बड़ा लाभ ये हुआ था कि कम पूंजी के छोटे-छोटे काम करके रोज कमा कर रोज खाने वाले वो गरीब मेहनतकश जिनका काम ठप्प था वो सब सब्जी बेंचकर जीविका चलाने लगे थे.
ये होता है किसानों का जज्बा और योगदान. शायद इसीलिए हमारे देश ने जवान और किसान को हमेशां ख़ूब इज्ज़त दी है और इनकी एहमियत का एहसास किया है. लेकिन शायद पहली बार किसान से मोहब्बत के रंग कुछ फीके पड़ते दिखाई दे रहे है. किसान आन्दोलन में शामिल किसानों को पब्लिक डोमेन पर अपशब्द कहने वालों की कमी नहीं है. कुछ का आरोप है कि ये भाजपा के समर्थकों, टोल गैंग या आईटीआईसेल की देन है. जो भी हो. ऐसे आरोप सच्चे हों या झूठे. आंदोलनकारियों को खालिस्तानी जैसे जुमलों से नवाजने वाले भाजपाई हों या गैर भाजपाई हों लेकिन ये तो तय है कि धरती के भगवान अन्नदाताओं पर खूब नकारात्मक टिप्णियां हुई हैं.
हालांकि ऐसा दुर्भाग्यशाली दौर कभी-कभी ही आता है जब हम अपने अन्नदाताओं और सैनिकों के हिस्से का विश्वास और मोहब्बत तख्तनशीनों पर लुटा देते हैं. एक जमाना था जब कांग्रेस और इंदिरा-राजीव पर देश को इतनी मोहब्बत थी कि हम उन सुरक्षाकर्मियों/ फौजियों से भी नफरत करने लगे थे कि जो सिक्ख थे. वजह ये थी कि सिक्ख सुरक्षाकर्मीं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की थी.
इत्तेफाक कि इस काले अध्यायक्ष के लगभग चार दशक बाद जब कांग्रेस के बजाय भाजपा के जनाधार का दौर चल रहा है और इंदिरा गांधी जैसी लोकप्रियता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है. इस दौर मे भी सत्ता या तख्तनशीनों पर जनता का एक बड़ा वर्ग कुछ ज्यादा ही विश्वास जता रहा है.
सरकार पर मोहब्बतें लुटायी जा रही है़. उस बार सिक्ख समाज को सत्ता विरोधी मानकर उन पर कांग्रेस समर्थक हमला करते थे. इस दौर में आंदोनकारी किसानों को मोदी सरकार का विरोधी मानकर उन्हें निशाने पर लिया जा रहा है. इत्तेफाक कि आंदोनकारी किसानों में अधिकांश सिक्ख हैं. यानी इंदिरा से मोदी तक बेचारे सिक्ख भाई सरकार समर्थकों की नफरत का शिकार हो रहे हैं.
ये भी पढ़ें -
किसान आंदोलन की भेंट चढ़ने जा रही BJP की खट्टर सरकार!
किसान आंदोलन में आम आदमी पार्टी मदद कम सपने ज़्यादा देख रही है!
क्या बड़े किसान नेता की स्पेस भर सकेंगे विश्लेषक योगेंद्र यादव?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.