पत्रकारिता और काव्य साहित्य की खूबियों के साथ भारतीय सियासत में आकर जनता के दिलों में राज करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जैसी शख्सियत अपवाद थी. इनके अलावा पत्रकारिता से लेकर किसी भी क्रिएटिव क्षेत्र से सियासत में आने वाले तमाम लोगों में कोई भी हिट नहीं हो सका. पत्रकार/ चुनाव विश्लेषक/कॉलमिस्ट योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav) भी पहले अन्ना आंदोलन (Anna Movement) और फिर आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) का हिस्सा बन के सियासत में दाखिल हुए थे. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की बेवफाई, वैचारिक मतभेद या किसी भी वजह से वो आप के कूचे से निकल गये. फिर वो किसी पार्टी में नहीं गये. यादव ब्रांड यूपी की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बिहार के राष्ट्रीय जनता दल ने भी उन्हें मौक़ा नहीं दिया. या फिर उन्होंने राजनीति जारी रखते हुए भी किसी पार्टी में जाना मुनासिब नहीं समझा. स्वराज इंडिया का गठन किया और उसको स्थापित करने के लिए वो निरंतर संघर्ष कर रहे हैं.
उनकी पार्टी ने चुनाव भी लड़े लेकिन निराशा हाथ लगने से योगेंद्र यादव हताश नहीं हुए. किसानों के हक़ के लिए दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में वो लगातार पसीना बहा रहे हैं और रफ्ता-रफ्ता अपना संगठन खड़ा कर रहे हैं. इत्तेफाक़ कि स्वर्गीय महेन्द्र सिंह टिकैत के बाद कोई बड़ा किसान नेता सामने नहीं आया. चौधरी चरण सिंह के बाद अजीत सिंह, मुलायम सिंह और चौटाला जैसे नेताओं ने किसानों के लिए जमीनी काम करके उनका विश्वास जीता था. इन नेताओं का जमाना भी अब इतिहास बन गया है.
वर्तमान किसी बड़े किसान नेता की एंट्री के लिए पलकें बिछाये बैठा है. इस स्पेस पर ही अपनी सियासत की कुर्सी जमाने के लिए ही शायद योगेंद्र यादव किसानों की राजनीति...
पत्रकारिता और काव्य साहित्य की खूबियों के साथ भारतीय सियासत में आकर जनता के दिलों में राज करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जैसी शख्सियत अपवाद थी. इनके अलावा पत्रकारिता से लेकर किसी भी क्रिएटिव क्षेत्र से सियासत में आने वाले तमाम लोगों में कोई भी हिट नहीं हो सका. पत्रकार/ चुनाव विश्लेषक/कॉलमिस्ट योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav) भी पहले अन्ना आंदोलन (Anna Movement) और फिर आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) का हिस्सा बन के सियासत में दाखिल हुए थे. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की बेवफाई, वैचारिक मतभेद या किसी भी वजह से वो आप के कूचे से निकल गये. फिर वो किसी पार्टी में नहीं गये. यादव ब्रांड यूपी की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बिहार के राष्ट्रीय जनता दल ने भी उन्हें मौक़ा नहीं दिया. या फिर उन्होंने राजनीति जारी रखते हुए भी किसी पार्टी में जाना मुनासिब नहीं समझा. स्वराज इंडिया का गठन किया और उसको स्थापित करने के लिए वो निरंतर संघर्ष कर रहे हैं.
उनकी पार्टी ने चुनाव भी लड़े लेकिन निराशा हाथ लगने से योगेंद्र यादव हताश नहीं हुए. किसानों के हक़ के लिए दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में वो लगातार पसीना बहा रहे हैं और रफ्ता-रफ्ता अपना संगठन खड़ा कर रहे हैं. इत्तेफाक़ कि स्वर्गीय महेन्द्र सिंह टिकैत के बाद कोई बड़ा किसान नेता सामने नहीं आया. चौधरी चरण सिंह के बाद अजीत सिंह, मुलायम सिंह और चौटाला जैसे नेताओं ने किसानों के लिए जमीनी काम करके उनका विश्वास जीता था. इन नेताओं का जमाना भी अब इतिहास बन गया है.
वर्तमान किसी बड़े किसान नेता की एंट्री के लिए पलकें बिछाये बैठा है. इस स्पेस पर ही अपनी सियासत की कुर्सी जमाने के लिए ही शायद योगेंद्र यादव किसानों की राजनीति में अपनी पहचान बनाने के लिए युद्ध स्तर पर जमीनी संघर्ष कर रहे हैं. कृषि बिल पास होने के बाद इन दिनों कुछ राज्यों के किसानों की नाराजगी ने एक असरदार किसान आंदोलन की सूरत इख्तियार कर रखी है.
इस आंदोलन में योगेंद्र यादव की सियासत या जमीनी संघर्ष उभर कर सामने आने लगा है. किसानों के कई जत्थे उनके साथ हैं. योगेंद्र यादव के नेतृत्व पर भरोसा करने वालों को उनकी कई खूबियों पर भरोसा है.वो जमीन पर नजर आते हैं. किसानों के हर जायज मुद्दे को उठाते हैं. पढ़े लिखे हैं, जानकार हैं, पुराने विश्लेषक रहे हैं, पत्रकार हैं इसलिए अपनी बात को अच्छे तरीके से रखते हैं.
जेल जाने और मुकदमों से नहीं डरते हैं. सत्ता या सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस की कमियों पर वो सवाल उठाते हैं. विवादित या हेट स्पीच नहीं देते. अपनी बात को पूरी शालीनता और तर्कसंगत तरीक़े से रखते हैं. सत्ता से नाराज किसान कांग्रेस पर विश्वास जताने के बजाय योगेंद्र यादव को अपना नेता ना मान लें इस डर से भाजपा से ज्यादा कांग्रेस योगेंद्र की किसान राजनीति से डरती है. कांग्रेसी अक्सर योगेंद्र यादव पर भाजपा की टीम बी जैसे आरोप भी लगाते हैं.
सरकारें योगेंद्र यादव को लेकर चौकन्ना रहती हैं. उन पर तमाम मुकदमें दर्ज हो चुके हैं. ये कई बार गिरफ्तार भी हुए. दिल्ली दंगों को भड़काने जैसे आरोप भी उनपर लगे हैं. किसान आंदोलनों में उनकी अहम भूमिका रहती है. अब देखना ये है कि पत्रकार और चुनाव विश्लेषक से नेता बने योगेंद्र यादव अपने प्रयासों से देश के किसानों का विश्वास जीत कर किसान नेता के खाली स्पेस को भर पाते हैं या नहीं.
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