हर सुर्खियां सूख जाती हैं
हर मुद्दा मुर्दा हो जाता है
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा काम नहीं
मुद्दा जब तक सुलझ ना जाए
उसे जगाकर रखना ज़रूरी है..
मसला पत्थर का है या पत्थर फैंकने वालों का है?? इस पर तो हम सोचेंगे ज़रूर पर फारूख अब्दुल्ला जी आपके बेटे वतन की जिम्मेदारी नहीं समझते.. उन्हें सीखना चाहिए पत्थरबाजों के जज़्बे से कि राष्ट्रवाद क्या होता है, आखिर आपने क्यों अपने बेटे को ये संस्कार नहीं दिए कि उन्हें भी आजादी के लिए बन्दूक उठानी चाहिए. जो संस्कार आप दूसरे के बच्चों को दे रहे हैं, माफ कीजियेगा, ये दुख की बात है कि आप अपने बच्चे को नहीं दे पाए और उसे मुख्यमंत्री बना दिया. क्यों आपके बेटे वतन के लिए आगे नहीं आते? मुझे लगा वो आपका बहुत सम्मान करते हैं. तो वतन के लिए नेक काम तो उनकी ज़िम्मेदारी है. अगर वतन को आजादी पत्थरबाजों से मिलेगी तो सबसे पहले आपके बच्चों को पत्थर उठाने चाहिए. पर मेरे मन में एक सवाल बार-बार आता है कि आजादी कहां से और किससे? जब आप राज कर रहे थे तब आपने आजादी क्यों नही दिलवाई? वही बात है कि न तो आप अपने बच्चों को वतन के लिए लड़ना सिखा पाए और न ही किसी को आजादी दिलवा पाए, क्या आप भी समय बर्बाद कर बैठे??
दुर्भाग्य है कि आप भी वतन के लिए कुछ नहीं कर पाए, आपने कभी पत्थर नहीं उठाए, कभी बन्दूक नहीं उठाई, आप तो MBBS कर बैठे. देखिए साहब MBBS की डिग्री से वतन को आजादी नहीं मिल पाई, आपने अपने वतन के लिए कुछ नहीं किया. आपकी बेटी ने भी इस्लामिक संस्कार का ध्यान नहीं रखा और एक हिन्दू से शादी कर ली, आपके बच्चे आपकी सुनते क्यों नहीं है?? चक्कर क्या है? क्या किया आपकी बेटी ने आजादी के लिए?...
हर सुर्खियां सूख जाती हैं
हर मुद्दा मुर्दा हो जाता है
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा काम नहीं
मुद्दा जब तक सुलझ ना जाए
उसे जगाकर रखना ज़रूरी है..
मसला पत्थर का है या पत्थर फैंकने वालों का है?? इस पर तो हम सोचेंगे ज़रूर पर फारूख अब्दुल्ला जी आपके बेटे वतन की जिम्मेदारी नहीं समझते.. उन्हें सीखना चाहिए पत्थरबाजों के जज़्बे से कि राष्ट्रवाद क्या होता है, आखिर आपने क्यों अपने बेटे को ये संस्कार नहीं दिए कि उन्हें भी आजादी के लिए बन्दूक उठानी चाहिए. जो संस्कार आप दूसरे के बच्चों को दे रहे हैं, माफ कीजियेगा, ये दुख की बात है कि आप अपने बच्चे को नहीं दे पाए और उसे मुख्यमंत्री बना दिया. क्यों आपके बेटे वतन के लिए आगे नहीं आते? मुझे लगा वो आपका बहुत सम्मान करते हैं. तो वतन के लिए नेक काम तो उनकी ज़िम्मेदारी है. अगर वतन को आजादी पत्थरबाजों से मिलेगी तो सबसे पहले आपके बच्चों को पत्थर उठाने चाहिए. पर मेरे मन में एक सवाल बार-बार आता है कि आजादी कहां से और किससे? जब आप राज कर रहे थे तब आपने आजादी क्यों नही दिलवाई? वही बात है कि न तो आप अपने बच्चों को वतन के लिए लड़ना सिखा पाए और न ही किसी को आजादी दिलवा पाए, क्या आप भी समय बर्बाद कर बैठे??
दुर्भाग्य है कि आप भी वतन के लिए कुछ नहीं कर पाए, आपने कभी पत्थर नहीं उठाए, कभी बन्दूक नहीं उठाई, आप तो MBBS कर बैठे. देखिए साहब MBBS की डिग्री से वतन को आजादी नहीं मिल पाई, आपने अपने वतन के लिए कुछ नहीं किया. आपकी बेटी ने भी इस्लामिक संस्कार का ध्यान नहीं रखा और एक हिन्दू से शादी कर ली, आपके बच्चे आपकी सुनते क्यों नहीं है?? चक्कर क्या है? क्या किया आपकी बेटी ने आजादी के लिए? क्यों नहीं उठाया पत्थर? क्यों नहीं उठाई बन्दूक?? उन्हें तो पत्थरबाजों को लीड करना चाहिए था, उनका एक संगठन बनाना चाहिए था.. कहां हैं वो?
आपके बेटे संसद के लिए चुनाव क्यों लड़ते हैं, उन्हें तो कश्मीर की एसेम्बली तक ही रहना चाहिए अब जब आपको आजादी की इतनी चिंता है तो फिर इधर-उधर जाने से कुछ नहीं होगा. भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए खाना छोड़ा था, परिवार छोड़ा था, जेल गए थे और 23 साल की उम्र में फांसी पर भी चढ़ गए. झांसी की रानी ने भी अपना बच्चा खोया था, महल खोया था, अपने पति को खोया था, आजाद ने खुद को गोली मार दी थी, अशफाक ने भी बहुत कुछ त्याग दिया था. देखिए ऐसे नहीं मिलेगी आजादी. कुछ पत्थर, कुछ पेट्रोल बम, कुछ बन्दूक उठाइये, बच्चे अकेले नहीं कर पाएंगे. इसीलिए मेरा सुझाव है कि आपको पत्थरबाजों का एक संगठन बनाना चाहिए और आगे बढ़कर आजादी के लिए लड़ना चाहिए.
एक बार मुहर्रम के समय शुक्रवार को हम जम्मू से कश्मीर जा रहे थे. कई बार पत्थरबाजों ने हमारी गाड़ी को रोका, वो मुश्किल से 4 से 10 साल के बच्चे होंगे. अक्सर वहां नमाज़ के बाद पथराव होता है. पता नहीं ये कौन सा धर्म सिखाता है. हम लोगों ने उन बच्चों को काफी समझाने का प्रयास किया पर वो बच्चे माने नहीं, उस बीच एक दृश्य ऐसा था जिस पर केवल मेरी नज़र पड़ी, मां ने मुझे दुपट्टा सर पर रखने को कहा ताकि किसी को ये पता न चले कि मैं पंडित हूं. पर जो वहां मैंने देखा वो था एक पिता का दर्द, जब उन पत्थरबाज़ों ने हमें जाने से रोक कर रखा तो एक पिता कश्मीरी में अपने बेटे से गुज़ारिश करने लगा कि वो हमें जाने दें. उस पिता की आंखों की पुतली में दबे आंसू को शायद कोई देख नहीं पाया, पर मेरा सारा ध्यान वहां था. शायद ये भी कोई सुन नहीं पाया कि उस पिता ने कितनी बार अपने बेटे से कहा ‘कि तुझे क्या हो गया है’ कोई पिता अपने बच्चों को इस हाल में नहीं देख सकता है. जो आजादी की बकवास को कश्मीर में हवा देते हैं वो नेता अपने बच्चों को उस हालात में डालें. पुरानी कहावत है कि नारी ही नारी की दुश्मन है, मेरे हिसाब से नई है ‘मुसलमान ही मुसलमान का असल दुश्मन है.’
जब फारूक अब्दुल्ला इन बच्चों से कहते हैं कि आजादी के लिए पत्थर उठाओ, तो एक पिता यहां से अपने बच्चे को रुदाली आवाज़ में कहता है ‘कि मेरे बेटे तुझे क्या हो गया है’ असल में वो पत्थर तो इस पिता के दिल में लगता है. अगर मुसलमान अपने धर्म में इतना डूबा हुआ नहीं होता तो शायद देश का हर मुसलमान आगे होता और जो मुसलमान पढ़ा-लिखा है वो अगर ऐसी हरकतों का विरोध करता, तो शायद हर मुसलमान का बच्चा आज कश्मीर में केसर की खुशबू से अधिक महक रहा होता. मुझे अच्छा लगेगा जिस दिन आजादी की झूठी आवाज़ें फैलाने वाले ये दोगले नेता अपने बच्चों को ‘पत्थर’ के मैदान में उतारेंगे. देखते हैं कि इस आज़ादी को पाने के लिए इनके बच्चे कितना बड़ा जिगर रखते हैं.
...और हां, चुनाव कराकर खामोशी से लौट रहे जवानों को जो आपके नेशनलिस्ट लड़के लात मार रहे हैं, जरा इसके बारे में कुछ कहेंगे अब्दुल्ला साहब-<iframe allowfullscreen src='http://aajtak.intoday.in/embed/ae159ae' width='500' height='380' frameborder='0' scrolling='no' />
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