क्या पीएम मोदी और जेटली, राजनाथ सिंह के पॉवर को कम करने के लिए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं? इस सवाल का औचित्य ये खबर पढ़ने के बाद आपको समझ आएगा. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा एक्सपर्ट अगर कोई है तो वो गृह मंत्रालय है. वही है जिसके पास अंदरूनी सर्विलांस से लेकर इनवेस्टीगेशन जैसी सुविधाएं मौजूद हैं. लेकिन राजनाथ सिंह को नीचा दिखाने के चक्कर में अब विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश के पहले होने वाली कड़ी सुरक्षा पड़ताल से मुक्त कर दिया है. या यूं कहें कि ये पड़ताल अब अनाड़ी मंत्रालय करेगा.
सरकार ने विदेशी कंपनियों के सिक्योरिटी चेक, उनकी पृष्ठभूमि का पता लगाना और दूसरे काम वाणिज्य मंत्रालय को दे दिए हैं. अभी तक विदेशी निवेश से जुड़े सभी प्रस्ताव पहले गृह मंत्रालय के पास सिक्योरिटी क्लीयरैंस के लिए आते थे. लेकिन सरकार ने अब इस पुराने नियम को एक रात में ही बदल डाला है. अब विदेशी निवेश से जुड़े सभी मामले सिक्योरिटी क्लीयरैंस के लिए केवल वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु के अधीन आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन के पास ही आएंगे.
कल्पना कर सकते हैं कि पॉलिसी और प्रमोशन वाले मंत्रालय का मकसद ज्यादा से ज्यादा निवेश लाना होगा चाहे सुरक्षा का कुछ भी हो. अब इसके लिए किसी दूसरे मंत्रालय की क्लीयरेंस की जरूरत नहीं होगी. लेकिन कंट्री ऑफ कन्सर्न से जुड़े जितने भी मामले सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए आएंगे, उनका निदान संबंधित प्रशासकीय विभाग व मंत्रालय ही करेगा. इस तरह से अब केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस अहम काम से अलग कर दिया गया है.
सरकार ने अपने इस कदम को सही ठहराने के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का जामा...
क्या पीएम मोदी और जेटली, राजनाथ सिंह के पॉवर को कम करने के लिए देश की सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं? इस सवाल का औचित्य ये खबर पढ़ने के बाद आपको समझ आएगा. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे ज्यादा एक्सपर्ट अगर कोई है तो वो गृह मंत्रालय है. वही है जिसके पास अंदरूनी सर्विलांस से लेकर इनवेस्टीगेशन जैसी सुविधाएं मौजूद हैं. लेकिन राजनाथ सिंह को नीचा दिखाने के चक्कर में अब विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश के पहले होने वाली कड़ी सुरक्षा पड़ताल से मुक्त कर दिया है. या यूं कहें कि ये पड़ताल अब अनाड़ी मंत्रालय करेगा.
सरकार ने विदेशी कंपनियों के सिक्योरिटी चेक, उनकी पृष्ठभूमि का पता लगाना और दूसरे काम वाणिज्य मंत्रालय को दे दिए हैं. अभी तक विदेशी निवेश से जुड़े सभी प्रस्ताव पहले गृह मंत्रालय के पास सिक्योरिटी क्लीयरैंस के लिए आते थे. लेकिन सरकार ने अब इस पुराने नियम को एक रात में ही बदल डाला है. अब विदेशी निवेश से जुड़े सभी मामले सिक्योरिटी क्लीयरैंस के लिए केवल वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु के अधीन आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन के पास ही आएंगे.
कल्पना कर सकते हैं कि पॉलिसी और प्रमोशन वाले मंत्रालय का मकसद ज्यादा से ज्यादा निवेश लाना होगा चाहे सुरक्षा का कुछ भी हो. अब इसके लिए किसी दूसरे मंत्रालय की क्लीयरेंस की जरूरत नहीं होगी. लेकिन कंट्री ऑफ कन्सर्न से जुड़े जितने भी मामले सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए आएंगे, उनका निदान संबंधित प्रशासकीय विभाग व मंत्रालय ही करेगा. इस तरह से अब केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और देश की सुरक्षा से जुड़ी हुई एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस अहम काम से अलग कर दिया गया है.
सरकार ने अपने इस कदम को सही ठहराने के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस का जामा पहना दिया है. यानी विदेशियों को निवेश करने में दिक्कत न हो इसलिए सुरक्षा जांच भी अनाड़ी हाथ करेंगे. विदेशियों से इतनी मोहब्बत क्यों है भाई? ईस्ट इंडिया कंपनी भी भारत में व्यापार करने आई थी और यूनियन कार्बाइड भी.
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