लोक सभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल यूपी की 80 में से 77 जबकि पंजाब की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़े थे - यूपी से तो नरेंद्र मोदी के खिलाफ वो खुद भी चुनाव मैदान में थे. वो खुद तो चुनाव हार गये लेकिन 434 में से 4 उम्मीदवार संसद पहुंच गये.
तब उन्हें यूपी से ज्यादा उम्मीद थी, लेकिन बात नहीं बनी. शायद इसीलिए 2017 में वो यूपी की जगह पंजाब को तरजीह दे रहे हैं. हालांकि, उनका कहना था, "असल में यूपी में मेरे पास बैंडविथ नहीं है."
दिल्ली में एक्सपेरिमेंट
केजरीवाल ने दिल्ली में खूब एक्सपेरिमेंट किया है. पहले आरटीआई मुहिम, फिर लोकपाल को लेकर आंदोलन और फिर मुख्यधारा की राजनीति. बहुमत नहीं मिलने पर भी पहली ही बार में सरकार भी बना ली - और जब कुछ समझ में नहीं आया तो 49 दिन में इस्तीफा देकर भाग खड़े हुए. लोक सभा की हार के बाद उन्होंने 49 दिन की सरकार के लिए माफी मांगी और 67 सीटों के साथ जबरदस्त वापसी की.
इसे भी पढ़ें: पंजाब के लोगों को समझा रहे हैं केजरीवाल - 'अच्छे दिन आएंगे...'
बिजली, पानी और वाई-फाई को छोड़ भी दें तो केजरीवाल का ऑड-इवन फॉर्मूला हिट हुआ - और अब तो उसकी दूसरी पारी शुरू होने जा रही है. भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाकर केजरीवाल दिल्ली की कुर्सी पर दोबारा तो बैठ गये - लेकिन लोकपाल का अब तक अता पता दिखाई नहीं दे रहा. बहरहाल, केजरीवाल फिलहाल पंजाब के सियासी सैर पर निकले हैं.
पंजाब में पूरा मौका
पंजाब में केजरीवाल के लिए फायदे की बात ये है कि बादल सरकार के नाक तले मंत्रियों और अफसरों पर ड्रग्स की तस्करी और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप हैं. कांग्रेस की ओर से कैप्टन अमरिंदर के राजनीतिक कद के अलावा ऐसा कोई आकर्षण नहीं है जो लोगों के सामने मजबूत विकल्प के तौर पर नजर आ रहा हो. शिरोमणि अकाली दल पर एंटी...
लोक सभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल यूपी की 80 में से 77 जबकि पंजाब की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़े थे - यूपी से तो नरेंद्र मोदी के खिलाफ वो खुद भी चुनाव मैदान में थे. वो खुद तो चुनाव हार गये लेकिन 434 में से 4 उम्मीदवार संसद पहुंच गये.
तब उन्हें यूपी से ज्यादा उम्मीद थी, लेकिन बात नहीं बनी. शायद इसीलिए 2017 में वो यूपी की जगह पंजाब को तरजीह दे रहे हैं. हालांकि, उनका कहना था, "असल में यूपी में मेरे पास बैंडविथ नहीं है."
दिल्ली में एक्सपेरिमेंट
केजरीवाल ने दिल्ली में खूब एक्सपेरिमेंट किया है. पहले आरटीआई मुहिम, फिर लोकपाल को लेकर आंदोलन और फिर मुख्यधारा की राजनीति. बहुमत नहीं मिलने पर भी पहली ही बार में सरकार भी बना ली - और जब कुछ समझ में नहीं आया तो 49 दिन में इस्तीफा देकर भाग खड़े हुए. लोक सभा की हार के बाद उन्होंने 49 दिन की सरकार के लिए माफी मांगी और 67 सीटों के साथ जबरदस्त वापसी की.
इसे भी पढ़ें: पंजाब के लोगों को समझा रहे हैं केजरीवाल - 'अच्छे दिन आएंगे...'
बिजली, पानी और वाई-फाई को छोड़ भी दें तो केजरीवाल का ऑड-इवन फॉर्मूला हिट हुआ - और अब तो उसकी दूसरी पारी शुरू होने जा रही है. भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगाकर केजरीवाल दिल्ली की कुर्सी पर दोबारा तो बैठ गये - लेकिन लोकपाल का अब तक अता पता दिखाई नहीं दे रहा. बहरहाल, केजरीवाल फिलहाल पंजाब के सियासी सैर पर निकले हैं.
पंजाब में पूरा मौका
पंजाब में केजरीवाल के लिए फायदे की बात ये है कि बादल सरकार के नाक तले मंत्रियों और अफसरों पर ड्रग्स की तस्करी और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप हैं. कांग्रेस की ओर से कैप्टन अमरिंदर के राजनीतिक कद के अलावा ऐसा कोई आकर्षण नहीं है जो लोगों के सामने मजबूत विकल्प के तौर पर नजर आ रहा हो. शिरोमणि अकाली दल पर एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर लागू हो रहा है तो बीजेपी जौ के साथ घुन वाली हालत का शिकार हो सकती है. दिल्ली से इतर पंजाब में केजरीवाल के पास पूरा मौका है - अगर बहुमत हासिल कर, जैसे कि कयास भी लगाए जा रहे हैं, वो सत्ता तक पहुंच पाते हैं. वो खुद को साबित कर सकते हैं कि उन्हें मौका मिले तो बिलकुल अलग तरह की राजनीति कर सकते हैं.
"मैं नूं..." |
फर्ज कीजिए केजरीवाल पंजाब में सरकार बनाने में कामयाब होते हैं तो उन्हें कदम कदम पर अग्नि परीक्षा देनी होगी. फिर न तो उनके पास उनके पास न तो धारदार बयानबाजी वाली तलवार होगी, न दिल्ली की जंग जैसी उप राज्यपाल की ढाल. हर हाल में उन्हें अपनी काबिलियत साबित करनी ही होगी.
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आदर्श तो हर स्थिति में नामुमकिन होता है - लेकिन अगर पंजाब में वो मिसाल कायम कर पाते हैं तो हर कोई उनका लोहा मानने को मजबूर होगा - वरना, राजनीति में मिट्टी पलीद होते देर नहीं लगती - ये पब्लिक है किसी के भी बहकावे में ज्यादा देर नहीं ठहरती.
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