2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ संभावित महागठबंधन की एक ही कमजोरी है - आखिरकार PM की कुर्सी पर बैठेगा तो कौन? मगर, अब इस कमजोरी को दूर करने का ताकतवर फॉर्मूला ढूंढ निकाला गया है.
विपक्ष के एकजुट न हो पाने में सबसे बड़ी कमजोरी यही रही है. कहने को तो खुद राहुल गांधी भी कई बार प्रधानमंत्री बनने की इच्छा जता चुके हैं, लेकिन ममता और मायावती के नाम पर चर्चा शुरू होने के बाद से वो खुद को इस रेस से बाहर बताने लगे हैं. मगर, मालूम हुआ है कि ठीक ऐसा तो बिलकुल नहीं होने वाला.
विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर अपडेट ये है कि 2019 के चुनाव में कोई चेहरा नहीं होगा. ऐसे में सब अपने अपने इलाके में सत्ताधारी बीजेपी को चैलेंज करेंगे - और प्रधानमंत्री पद पर फैसला चुनाव नतीते आने के बाद होगा. जाहिर है जिसके पास लाठी होगी भैंस भी उसी की होगी - यानी नंबर के हिसाब से फैसला होगा. ऐसा लगता है कांग्रेस को पक्का यकीन है कि नंबर उसी का ज्यादा होगा. यही वजह है कि कांग्रेस उसी लिहाज से अपनी रणनीति तैयार कर रही है.
अब 2019 के लिए एनसीपी नेता शरद पवार का नाम सूत्रधार के तौर पर आगे आ रहा है. वैसे भी मोर्चा खड़ा करने की हालिया कोशिश शरद पवार ने ही शुरू की थी और उसी के तहत ममता बनर्जी का नाम आगे बढ़ाया था. हालांकि, अब बात ममता बनर्जी से काफी आगे बढ़ी हुई लगती है.
कैसे सबके भरोसेमंद बन गये शरद पवार
दो महीने पहले ही शरद पवार 2019 के लिए महागठबंधन को लेकर बड़े हताश और निराश नजर आ रहे थे. शायद कांग्रेस ही महागठबंधन में सबसे बड़ी चुनौती बन रही थी. अब कांग्रेस नेतृत्व और पवार दोनों एक एक कदम आगे बढ़े हैं. कांग्रेस राहुल गांधी के प्रति शरद पवार ने अपना नजरिया बदल दिया है. विपक्ष के बाकी नेताओं की तरह शरद पवार भी पहले राहुल की जगह सोनिया गांधी को ही तरजीह देते रहे. नजरिये में बदलाव के बाद राहुल गांधी और शरद पवार की हाल फिलहाल कम से कम तीन मुलाकातें बतायी जा रही हैं.
न चेहरा न कुर्सी का दावेदार फिर भी बड़ी चुनौती!जून के आखिर में शरद पवार ने एक इंटरव्यू में कहा था - "ईमानदारी से कहूं तो मैं महसूस करता हूं कि कोई महागठबंधन या तीसरा मोर्चा संभव नहीं है..." तब शरद पवार ने महागठबंधन के कंसेप्ट को ही अव्यावहारिक करार दिया था. शरद पवार का ये भी कहना रहा कि कई साथी महागठबंधन बनाये जाने के पक्ष में हैं, लेकिन उन्हें खुद नहीं लगता कि ये क्रियान्वित हो पाएगा.
अब खबर है कि शरद पवार ही महागठबंधन के सूत्रधार होंगे. मुमकिन है ऐसा ममता बनर्जी और मायावती का नाम उछलने के बाद हुआ हो - और उसी के जवाब में कांग्रेस ने शरद पवार का नाम आगे बढ़ाकर दोनों को शह देने की कोशिश की हो.
कांग्रेस नेतृत्व के शरद पवार पर इस भरोसे की वजह फिलहाल तो यही लगती है. ये शरद पवार ही रहे जिन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से हटकर नयी पार्टी बना ली - और यही शरद पवार हैं जो फिर से कांग्रेस के साथ करीब डेढ़ दशक से मजबूती से मैदान में डटे हुए हैं.
पवार के होने से विपक्ष को क्या फायदा
विपक्षी एकता को मजबूत करने में इन दिनों दो बुजुर्गों का बड़ा रोल देखने को मिल रहा है. एक हैं शरद पवार तो दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा. देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण का ही वो मौका रहा जब विपक्ष का अब तक का सबसे बड़ा जमावड़ा बेंगलुरू में देखने को मिला था. दोनों बुजुर्गों की खासियत ये है कि वे प्रधानमंत्री पद के संभावित मौजूदा दावेदारों की राह में खतरा नहीं हैं. विपक्षी एकजुटता के लिए भला इससे बड़ा संबल क्या चाहिये?
शरद पवार ने पिछले दिनों दो महत्वपूर्ण बातें कही थी. एक, चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए किसी नाम की घोषणा नहीं होगी. दो, चुनाव नतीजों के बाद सबसे बड़ी पार्टी इस मुद्दे पर फैसला लेगी. ध्यान से देखा जाये तो इस बयान में एक ही पार्टी उभर कर आती है - कांग्रेस.
राहुल से हुई मुलाकातों के बीच ही शरद पवार विपक्ष के कई नेताओं से मिले हैं जिनमें दो प्रमुख नाम हैं मायावती और देवगौड़ा. शरद पवार की सबसे बड़ी खासियत ये भी है कि सभी से उनकी सीधी बातचीत है. चाहे वो ममता बनर्जी हों या फिर एन. चंद्रबाबू नायडू.
विपक्ष की ताजा तस्वीर तो कुछ ऐसी ही लग रही है कि 2019 में मोदी के मुकाबले शरद पवार मुख्य कर्ताधर्ता के रूप में नजर आएंगे, लेकिन वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं होंगे. विपक्षी दलों के बीच बड़ी भूमिका के लिए सबसे ज्यादा सीटें लाने की होड़ होगी तो सभी अपने अपने स्तर पर प्रयास करेंगे. बीजेपी के बागी खेमे के नेताओं में से एक अरुण शौरी का फॉर्मूला भी तो कुछ कुछ ऐसा ही रहा. अगर ऐसा वास्तव में हुआ तो निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
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