शशि थरूर (Shashi Tharoor) जिस तरह से अपना चुनाव कैंपेन कर रहे हैं, जंग कोई भी हो जीती वैसे ही जाती है. मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में मीठी मीठी बातें बोल कर भी शशि थरूर उनकी खामियां भी बता जाते हैं - और ऐसी जिनकी आंच सीधे राहुल गांधी तक पहुंच रही है.
अपने साथ हो रहे भेदभाव से लेकर लंबे अरसे से चुनाव न कराये जाने पर सवाल उठाते हुए वो सिस्टम को जिम्मेदार तो बताते हैं, लेकिन चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री को बेहतरीन इंसान बताना नहीं भूलते.
कांग्रेस में चुनाव (Congress President Election) न कराया जाना और सिस्टम को जिम्मेदार बताकर बेशक शशि थरूर कांग्रेस को एक्सपोज कर रहे हैं, लेकिन ये भी साफ साफ समझ में तो आता ही है कि वो सीधे-सीधे गांधी परिवार (Gandhi Family) को ही टारगेट कर रहे हैं.
अगर कांग्रेस में अभी कुछ भी गड़बड़ है तो बीते करीब बीस साल से जिम्मेदार तो सोनिया गांधी ही हैं. गुलाम नबी आजाद की कांग्रेस छोड़ने वाली चिट्ठी को याद करें तो पार्टी में गड़बड़ियों की शुरुआत तो तभी हो गयी थी, जब राहुल गांधी को कांग्रेस में उपाध्यक्ष बनाया गया. गुलाम नबी आजाद का इशारा तो यही था कि राहुल गांधी ने एक बढ़िया सिस्टम तहस नहस कर दिया.
गुलाम नबी आजाद के आरोपों पर राहुल गांधी के पहले वाले बयान भी मुहर तो लगाते ही हैं. ये राहुल गांधी ही तो कहा करते थे कि वो सिस्टम को बदलना चाहते हैं. क्योंकि जब से वो काम संभाले तभी से सिस्टम उनको पसंद नहीं आता था. दस साल की कोशिश के बावजूद सिस्टम तो सुधरा नहीं, केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद तो सिस्टम को जैसे जंग ही लगने लगा.
सोनिया गांधी के हैंडओवर के बाद राहुल गांधी के हाथ में तो सब कुछ ही था, लेकिन तब भी वो सिस्टम के साथ कुछ नहीं कर पाये. शायद थक हार कर ही तौबा कर लिया होगा. 2019 की चुनावी हार तो बहाना थी. कहा तो ये भी जाता है कि राहुल गांधी कांग्रेस के नेताओं को ही सबक सिखाने के लिए इस्तीफे की पेशकश किये, लेकिन जब कोई फर्क नहीं पड़ा तो इस्तीफे पर अड़ गये और आखिरकार ट्विटर...
शशि थरूर (Shashi Tharoor) जिस तरह से अपना चुनाव कैंपेन कर रहे हैं, जंग कोई भी हो जीती वैसे ही जाती है. मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में मीठी मीठी बातें बोल कर भी शशि थरूर उनकी खामियां भी बता जाते हैं - और ऐसी जिनकी आंच सीधे राहुल गांधी तक पहुंच रही है.
अपने साथ हो रहे भेदभाव से लेकर लंबे अरसे से चुनाव न कराये जाने पर सवाल उठाते हुए वो सिस्टम को जिम्मेदार तो बताते हैं, लेकिन चुनाव अधिकारी मधुसूदन मिस्त्री को बेहतरीन इंसान बताना नहीं भूलते.
कांग्रेस में चुनाव (Congress President Election) न कराया जाना और सिस्टम को जिम्मेदार बताकर बेशक शशि थरूर कांग्रेस को एक्सपोज कर रहे हैं, लेकिन ये भी साफ साफ समझ में तो आता ही है कि वो सीधे-सीधे गांधी परिवार (Gandhi Family) को ही टारगेट कर रहे हैं.
अगर कांग्रेस में अभी कुछ भी गड़बड़ है तो बीते करीब बीस साल से जिम्मेदार तो सोनिया गांधी ही हैं. गुलाम नबी आजाद की कांग्रेस छोड़ने वाली चिट्ठी को याद करें तो पार्टी में गड़बड़ियों की शुरुआत तो तभी हो गयी थी, जब राहुल गांधी को कांग्रेस में उपाध्यक्ष बनाया गया. गुलाम नबी आजाद का इशारा तो यही था कि राहुल गांधी ने एक बढ़िया सिस्टम तहस नहस कर दिया.
गुलाम नबी आजाद के आरोपों पर राहुल गांधी के पहले वाले बयान भी मुहर तो लगाते ही हैं. ये राहुल गांधी ही तो कहा करते थे कि वो सिस्टम को बदलना चाहते हैं. क्योंकि जब से वो काम संभाले तभी से सिस्टम उनको पसंद नहीं आता था. दस साल की कोशिश के बावजूद सिस्टम तो सुधरा नहीं, केंद्र में बीजेपी की सरकार बनने के बाद तो सिस्टम को जैसे जंग ही लगने लगा.
सोनिया गांधी के हैंडओवर के बाद राहुल गांधी के हाथ में तो सब कुछ ही था, लेकिन तब भी वो सिस्टम के साथ कुछ नहीं कर पाये. शायद थक हार कर ही तौबा कर लिया होगा. 2019 की चुनावी हार तो बहाना थी. कहा तो ये भी जाता है कि राहुल गांधी कांग्रेस के नेताओं को ही सबक सिखाने के लिए इस्तीफे की पेशकश किये, लेकिन जब कोई फर्क नहीं पड़ा तो इस्तीफे पर अड़ गये और आखिरकार ट्विटर पर शेयर भी कर दिया.
हो सकता है, शशि थरूर के मुंह से सिस्टम को दोष दिया जाना राहुल गांधी को भी अच्छा लगता हो. संगठन में चुनाव न कराये जाने का जो सवाल शशि थरूर उठा रहे हैं, राहुल गांधी की शुरुआती उपलब्धियों में गिनाया तो वही जाता है - लेकिन शशि थरूर रुकने वाले नहीं लगते.
शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में अपने साथ जिस भेदभाव की बात कर रहे हैं, सवाल तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर ही खड़े हो रहे हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे और अपने साथ हो रहे भेदभाव की बात कर शशि थरूर सवाल तो गांधी परिवार की भूमिका पर ही उठा रहे हैं. कहने को वो ये जरूर कहते हैं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने चुनाव लड़ने के लिए उनका स्वागत और हौसलाअफजाई भी की है, लेकिन जब ये बताते हैं कि उनको बताया कुछ और गया था और हो कुछ और रहा है, फिर तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही सवालों के घेरे में खड़े हो रहे हैं.
बात बस इतनी ही होती तो कोई बात नहीं होती, बाबा साहेब अंबेडकर के बहाने शशि थरूर तो परिवारवाद की राजनीति पर ही सवाल उठाने लगे हैं. ये वही सवाल है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह उठाते रहे हैं. तेलंगाना में केसीआर की पॉलिटिक्स पर सवाल तो अब उठाये जा रहे हैं, पहला शिकार तो राहुल गांधी ही रहे हैं - और निशाने पर कांग्रेस की ही राजनीति रही है.
थरूर के निशाने पर गांधी परिवार क्यों?
शशि थरूर, राहुल गांधी के मुकाबले अभी सोनिया गांधी से ज्यादा नाराज लगते हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि शशि थरूर को लगता है कि उनके साथ धोखा हुआ है - क्योंकि सोनिया गांधी ने जिस तरह आश्वस्त किया था, वैसा उनको कुछ भी नजर नहीं आ रहा है.
मल्लिकार्जुन खड़गे के नामांकन के दौरान कांग्रेस के दिग्गजों की मौजूदगी देखते ही शशि थरूर को बहुत बड़ा झटका लगा था. झटका लगने की एक वजह तो G-23 में साथी रहे नेताओं का पलट जाना भी रहा, लेकिन अशोक गहलोत जैसे नेता की मौजूदगी में वो गांधी परिवार का ही अक्स देख रहे थे.
खुल कर दिल की बात साझा भी की. सोनिया गांधी ने उनको आश्वस्त किया था कि कोई आधिकारिक उम्मीदवार नहीं होगा. किसी भी उम्मीदवार को गांधी परिवार का सपोर्ट नहीं होगा - शशि थरूर यही तो पूछ रहे थे कि जो नजारा नजर आ रहा है, उसे कैसे समझें?
ये तो कैंपेन के शुरू में ही लगने लगा था कि शशि थरूर जिस तरीके से कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, इरादा नेक तो कतई नहीं है - शशि थरूर के बयानों पर ध्यान दें और क्रोनोलॉजी समझें तो ऐसा लगता है जैसे पहले वो कांग्रेस को एक्सपोज कर रहे थे - और अब खुल कर गांधी परिवार को टारगेट करने लगे हैं.
अंबेडकर का नाम लेकर परिवारवाद की राजनीति पर हमला: जब कोई किसी मिशन पर निकलता है तो उसे अपने मन की बात कहने के बहाने भी मिलने लगते हैं. जब कामयाबी के किस्से सुनाकर लोगों को मोटिवेट किया जाता है तो ऐसी चीजों को 'लॉ ऑफ अट्रैक्शन' के तौर पर समझाया जाता है. विडंबना ये है कि शशि थरूर के मामले में कामयाबी की संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है, लेकिन वो मौके का नये तरीके से इस्तेमाल करने लगे हैं.
शशि थरूर को ये मौका अपनी किताब 'अंबेडकर: अ लाइफ' के विमोचन के मौके पर मिल ही गया. अंबेडकर के बहाने शशि थरूर ने परिवारवाद की राजनीति पर ही सीधा हमला बोल दिया. हो सकता है, कांग्रेस में गांधी परिवार के करीबी नेता इसे अपने तरीके से समझाना शुरू कर चुके हों - शशि थरूर पर एक्शन की भी मांग उठने लगी हो.
कांग्रेस नेता थरूर ने अंबेडकर के बारे को लेकर बात करते हुए कहा, 'एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी भी जाति व्यवस्था के तर्क को नहीं माना... वो राजनीति में या कहीं और पारिवारिक विरासत के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता.'
बेशक शशि थरूर ने ये भी समझाया कि ये उनका अपना ऑब्जर्वेशन है क्योंकि अंबेडकर ने सीधे तौर पर उसके बारे में नहीं लिखा है. शायद तब ऐसी स्थिति भी नहीं रही होगी, लेकिन शशि थरूर को जो कहना था वो तो बोल ही दिया है.
अब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उनके सिपहसालार जैसे चाहें समझते और समझाते फिरें - शशि थरूर की सेहत पर फर्क ही क्या पड़ने वाला है?
2019 में भी चुनाव हारने वाले कौन कौन थे: शशि थरूर एक चीज बार बार दोहरा रहे हैं कि वो राज्य सभा में नहीं गये हैं, बल्कि तीन बार लगातार लोक सभा चुनाव जीत कर संसद पहुंचे हैं. जाहिर है, राज्य सभा का नाम लेकर वो मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ ही इशारा कर रहे हैं.
लेकिन 2019 में चुनाव हारने वालों का जिक्र कर तो शशि थरूर सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे तक ही सीमित नहीं लग रहे हैं. ये तो है कि शशि थरूर के निशाने पर सीधे सीधे मल्लिकार्जुन खड़गे ही हैं, लेकिन चोट तो राहुल गांधी तक ही पहुंच ही रही होगी.
शशि थरूर का कहना है कि वो पैराशूट से नहीं आये हैं, 2019 के चुनाव में भी जीता, जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव हार गये थे. जिस केरल से शशि थरूर संसद पहुंचे हैं, उसी करले के वायनाड से राहुल गांधी भी सांसद हैं, लेकिन अमेठी से तो वो लोक सभा का चुनाव हार ही गये थे - क्या शशि थरूर सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे की ही बात कर रहे हैं या फिर राहुल गांधी को भी लगे हाथ ही लपेटने की कोशिश कर रहे हैं.
शशि थरूर को क्यों लगता है कि भेदभाव हो रहा है
शशि थरूर का कहना है कि वो कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठा रहे हैं. यहां तक कि चुनाव अधिकारी बनाये गये मधुसूदन मिस्त्री जैसे सीनियर कांग्रेस नेता से भी कोई शिकायत नहीं है - लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे को मिल रहा अटेंशन उनको फूटी आंख नहीं सुहा रहा है?
अब सवाल ये है कि मल्लिकार्जुन खड़गे को अटेंशन क्यों मिल रहा है - और शशि थरूर को क्यों नहीं?
अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से साफ तौर पर कहा जा चुका है कि गांधी परिवार कांग्रेस अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया से दूर है और न तो किसी का समर्थन, न ही किसी का विरोध कर रहा है - तो मल्लिकार्जुन खड़गे को जगह जगह फूल माला लेकर स्वागत करने वाले कौन लोग हैं?
शशि थरूर पूछ रहे हैं, जगह जगह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और सीनियर नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को बुला रहे हैं... स्वागत कर रहे हैं... ये केवल एक ही उम्मीदवार के लिए था, लेकिन जब वो प्रदेश कांग्रेस कमेटियों में गये, ऐसा कोई इंतजाम नहीं नजर आया.
थरूर कहते हैं, मैंने राज्य कांग्रेस कमेटी का दौरा किया, लेकिन वहां पीसीसी चीफ उपलब्ध नहीं थे... मैं शिकायत नहीं कर रहा हूं, लेकिन क्या आपको व्यवहार में अंतर नहीं दिख रहा है?
वो कांग्रेस में बनाये केंद्रीय चुनाव प्राधिकारण को लेकर भी कहते हैं, कोई शिकायत नहीं है. 22 साल से चुनाव नहीं हुए हैं, इसलिए सिस्टम में दिक्कतें आ रही होंगी. हो सकता है कहीं कोई चूक हो गयी हो.
लेकिन शशि थरूर की शिकायतें खत्म नहीं हो पा रही हैं, डेलिगेट की जो पहली लिस्ट मिली थी, उसमें उनके मोबाइल नंबर नहीं थे... दूसरी लिस्ट में भी ऐसी ही कुछ गड़बड़ियां हैं... जो वोटर के लिए दिक्कत पैदा कर रही हैं.
भोपाल से आयी रिपोर्ट भी शशि थरूर के दावों को सपोर्ट कर रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे के बाद शशि थरूर भी भोपाल के कांग्रेस तफ्तर पहुंचे थे, लेकिन वहां कांग्रेस के 100 नेता और कार्यकर्ता भी नहीं जुटे... यहां तक कि भोपाल के विधायक भी प्रदेश कार्यालय नहीं पहुंचे थे - और मल्लिकार्जुन खड़गे के दौरे के वक्त नजारा बिलकुल अलग देखा गया. बताते हैं कि तब कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ा था.
बताते हैं कि शशि थरूर के भोपाल दौरे की सूचना कई नेताओं को नहीं दी गयी थी. भोपाल के पार्षदों के हवाले से आयी मीडिया रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश कार्यालय से ही ऐसी सूचना उनको नहीं दी जा रही है. हालांकि, कुछ ऐसी शिकायतें मल्लिकार्जुन खड़गे के दौरे को लेकर भी है.
17 अक्टूबर को अध्यक्ष पद पर वोटिंग है, लेकिन मल्ल्किार्जुन खड़गे और शशि थरूर में से किसी के भी राजस्थान जाकर वोट मांगने का कार्यक्रम नहीं बना है. अब तो ये भी खबर आ रही है कि ऐसा कोई कार्यक्रम बनने वाला भी नहीं है. लिहाजा जैसे तैसे दोनों ही फोन से ही अपने वोटर से संपर्क कर पा रहे हैं - मतलब, ये कि राजस्थान का बवाल थमा नहीं है, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव और भारत जोड़ो यात्रा के शोर में थोड़ा कम पर गया है.
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