देश में एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की छूट तो है, लेकिन उसकी सीमा भी तय है. पहले ये व्यवस्था जरूर रही कि कोई भी प्रत्याशी कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था, लेकिन 1996 में कानून में संशोधन कर इस पर एक तरीके से रोक लगा दी गयी. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 (7) के अनुसार अब कोई भी उम्मीदवार केवल दो सीटों पर ही चुनाव एक साथ लड़ सकता है.
उम्मीदवार के दोनों सीटों से चुनाव जीतने की स्थिति में एक सीट खाली करनी पड़ती है जिस पर चुनाव आयोग को एक निश्चित अवधि में उपचुनाव कराना होता है. उपचुनाव की तारीख तो चुनाव आयोग बाद में तय करता है, लेकिन उम्मीदवार को नतीजे आने के 10 दिन बाद एक सीट छोड़नी ही पड़ती है.
राहुल से पहले एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने वाले नेता
एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने की परंपरा की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम दर्ज है. वाजपेयी दो बार दो-दो सीटों से और एक बार तो एक साथ तीन संसदीय क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ चुके हैं. एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने वालों में हरियाणा के चौधरी देवीलाल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एनटी रामाराव के नाम अलग अलग रिकॉर्ड दर्ज हैं.
1. अटल बिहारी वाजपेयी : 1952 में उपचुनाव में हार के बाद 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश की तीन सीटों से चुनाव मैदान में उतरे - बलरामपुर, मथुरा और लखनऊ. नतीजे आये तो मालूम हुआ कि वाजपेयी सिर्फ बलरामपुर सीट पर ही जीत पाये. लखनऊ में वो दूसरे स्थान पर रहे, लेकिन मथुरा में तो जमानत तक जब्त हो गयी.
1991 के चुनाव में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा और लखनऊ दो सीटों से चुनाव...
देश में एक से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की छूट तो है, लेकिन उसकी सीमा भी तय है. पहले ये व्यवस्था जरूर रही कि कोई भी प्रत्याशी कितनी भी सीटों से चुनाव लड़ सकता था, लेकिन 1996 में कानून में संशोधन कर इस पर एक तरीके से रोक लगा दी गयी. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33 (7) के अनुसार अब कोई भी उम्मीदवार केवल दो सीटों पर ही चुनाव एक साथ लड़ सकता है.
उम्मीदवार के दोनों सीटों से चुनाव जीतने की स्थिति में एक सीट खाली करनी पड़ती है जिस पर चुनाव आयोग को एक निश्चित अवधि में उपचुनाव कराना होता है. उपचुनाव की तारीख तो चुनाव आयोग बाद में तय करता है, लेकिन उम्मीदवार को नतीजे आने के 10 दिन बाद एक सीट छोड़नी ही पड़ती है.
राहुल से पहले एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने वाले नेता
एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने की परंपरा की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम दर्ज है. वाजपेयी दो बार दो-दो सीटों से और एक बार तो एक साथ तीन संसदीय क्षेत्रों से भी चुनाव लड़ चुके हैं. एक से ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ने वालों में हरियाणा के चौधरी देवीलाल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एनटी रामाराव के नाम अलग अलग रिकॉर्ड दर्ज हैं.
1. अटल बिहारी वाजपेयी : 1952 में उपचुनाव में हार के बाद 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश की तीन सीटों से चुनाव मैदान में उतरे - बलरामपुर, मथुरा और लखनऊ. नतीजे आये तो मालूम हुआ कि वाजपेयी सिर्फ बलरामपुर सीट पर ही जीत पाये. लखनऊ में वो दूसरे स्थान पर रहे, लेकिन मथुरा में तो जमानत तक जब्त हो गयी.
1991 के चुनाव में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा और लखनऊ दो सीटों से चुनाव लड़ा और दोनों जीते, लेकिन बाद में विदिशा छोड़ दिये. 1996 में भी अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ और गांधीनगर की दो सीटों से चुनाव लड़ा था. वाजपेयी ने दोनों ही सीटों पर जीत हासिल की लेकिन बाद में गांधीनगर छोड़ दिया और आखिर तक लखनऊ से ही चुनाव लड़ते रहे.
2. इंदिरा गांधी : पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1980 के चुनाव में रायबरेली और मेडक से चुनाव लड़ीं - और दोनों जगह से जीत भी गयीं. बाद में इंदिरा गांधी ने मेडक सीट छोड़ दी थी.
3. लाल कृष्ण आडवाणी : 1991 चुनाव में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी नई दिल्ली और गांधी नगर लोकसभा सीटों से चुनाव लड़े थे. दोनों सीटों से जीतने के बाद आडवाणी ने नई दिल्ली सीट छोड़ दी थी.
4. सोनिया गांधी : पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 1999 में अपना पहला लोकसभा चुनाव बेल्लारी और अमेठी दो सीटों से लड़ा था. दोनों सीटें जीतने के बाद सोनिया ने बेल्लारी से इस्तीफा दे दिया था.
5. लालू प्रसाद यादव : फिलहाल चारा घोटाले में जेल में बंद लालू प्रसाद तो दो बार दो-दो सीटों से चुनाव लड़ चुके हैं. 2004 में लालू प्रसाद छपरा और मधेपुरा संसदीय सीटों से चुनाव लड़े और दोनों जीते. बाद में लालू ने मधेपुरा छोड़ दिया. फिर 2009 में लालू प्रसाद सारण और पाटलीपुत्र से चुनाव लड़े लेकिन तब एक ही सीट पर जीत पाये. लालू प्रसाद सारण से तो जीते गये लेकिन पाटलिपुत्र से कुछ ही वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा था.
6. अखिलेश यादव : यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके अखिलेश यादव 2009 कन्नौज और फिरोजाबाद से मैदान में उतरे और दोनों सीटों पर उन्हें कामयाबी मिली. अखिलेश यादव ने कन्नौज अपने पास रखा और फिरोजाबाद सीट छोड़ दी.
7. नरेंद्र मोदी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 के आम चुनाव में बतौर बीजेपी उम्मीदवार वाराणसी और वडोदरा दो सीटों पर चुनाव लड़ा. मोदी ने दोनों सीटें जीतने के बाद वडोदरा से इस्तीफा दे दिया था. इस बार मोदी सिर्फ वाराणसी से ही चुनाव लड़ रही हैं. पहले ओडिशा की किसी सीट को लेकर चर्चा रही, लेकिन पुरी से संबित पात्रा को टिकट मिलने के बाद चर्चा थम गयी.
8. मुलायम सिंह यादव : समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव भी 2014 में आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों सीटों चुनाव लड़ा था. दोनों सीटें जीतने के बाद मुलायम ने मैनपुरी से इस्तीफा दे दिया था. इस बार मुलायम सिंह मैनपुरी से सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार हैं - और उनकी आजमगढ़ सीट से उनके बेटे अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने अखिलेश यादव के खिलाफ भोजपुरी गायक दिनेशलाल यादव निरहुआ को उम्मीदवार बनाया है.
चार सीटें हारने वाले नेता
चार सीटों पर चुनाव लड़कर हारने का रिकॉर्ड पूर्व उप प्रधानमंत्री देवी लाल के नाम है. हरियाणा के दिग्गज नेता देवीलाल को एक दौर में प्रधानमंत्री पद का भी दावेदार माना जाता था - लेकिन चुनावी हार और जीत में हमेशा बड़ा या छोटा होना मायने नहीं रखता.
1991 में चौधरी देवीलाल एक साथ लोक सभा की तीन और एक विधानसभा सीट पर चुनाव लड़े थे. देवी लाल तीन लोक सभा सीटों - सीकर, रोहतक और फिरोजपुर के साथ साथ घिराई विधानसभा सीट से भी नामांकन दाखिल किया था. नतीजे आये तो लोगों की हैरानी का ठिकाना न रहा. चौधरी देवीलाल जैसा दिग्गज नेता सभी चार सीटों से चुनाव हार गये थे.
तीन सीटें जीतने वाले नेता
TDP यानी तेलुगू देशम पार्टी के संस्थापक एनटी रामाराव 1985 के राज्य विधानसभा चुनाव में तीन सीटों से नॉमिनेशन फाइल किया था. नतीजे आये तो पता चला वो तीनों सीटों से जीत गये. एनटीआर तब एक सात हिंदुपर, गुडीवडा और नलगोंडा विधानसभा सीटें जीती थीं.
दो सीटों से चुनाव लड़ने की पहली वजह तो जीत के भरोसे की कमी होती है. जब भी कोई नेता दो-दो सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला करता है तो दूसरी सीट बैकअप के लिहाज से खोजी जाती है. मतलब ये कि दोनों में से एक पर तो जीत पक्की ही होनी चाहिये. नेताओं के सीटें छोड़ने को लेकर अब तक कोई एक कंडीशन नहीं लगती. हर नेता अपनी जरूरत और अहमियत के हिसाब से सीटें छोड़ने का फैसला करता है.
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