यूपी में काम बोल रहा है या कारनामा? काशी और क्योटो की बहस और बनारस के ब्रिज हादसे जैसी घटनाओं पर बात अलग से की जा सकती है - क्योंकि मुसीबतें अभी और भी हैं.
यूपी में फिलहाल तो खौफ का आलम ये है कि आम आदमी आंधी तूफान से, अपराधी पुलिस एनकाउंटर से और सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के ही विधायक में रंगदारी मांगे जाने से दहशत में हैं.
अब तक 21 - नंबर चालू आहे...
बीजेपी के करीब दो दर्जन विधायकों को धमकी भरे मैसेज मिले हैं - 'बतौर रंगदारी ₹ 10 लाख दो वरना...'
धमकी देनेवाले ने कुछ को एक तस्वीर भी भेजी है जिसमें खून से लथपथ एक महिला की लाश जमीन पर पड़ी है. साथ में मैसेज भी है - 'क्या आपने पैसे की व्यवस्था की है? आज किसी ने अपनी बहन खो दी है, अब आप के लिए. इंतजार करो. ब्रेकिंग न्यूज...'
चुनौती पुलिस को या योगी को?
फरीदपुर से बीजेपी विधायक श्याम बिहारी लाल पुलिस को दी अपनी शिकायत में बताते हैं, "जब मैंने मैसेज भेजने वाले, अली बुधेश भाई, का नंबर ब्लॉक कर दिया तो वो दूसरे नंबर से भेजने लगा. उसने लिखा - क्राइम ब्रांच वाले भी मुझसे डरते हैं, वे बचा नहीं पाएंगे. उसने रात के दो बजे वीडियो कॉल भी किया लेकिन मैं रिसीव नहीं कर पाया."
आपबीती सुनाते हुए श्याम बिहारी लाल कहते हैं, "रंगदारी की धमकीवाला मैसेज सबसे पहले मुझे 20 मई को मिला. मुझे लगा इस मामले में मैं अकेला हूं. मैंने बरेली के एसएसपी को शिकायक कर चुनाव प्रचार के लिए कैराना चला गया. मैसेज भेजने वाले ने वीडियो कॉल कर मेरी फोटो भी ले ली. फोटो भेजकर उसने कहा कि वो अपने आदमियों को दे देगा."
एनकाउंटर के बीच रंगदारी! माजरा क्या है?
श्याम बिहारी लाल जैसा ही मैसेज बीजेपी विधायक सुरेश श्रीवास्तव, नीरज बोरा, शशांक त्रिवेदी, अनिता लोधी, वीर विक्रम सिंह, लोकेंद्र प्रताप सिंह, धीरेंद्र बहादुर सिंह, साकेंद्र वर्मा, श्याम प्रकाश, बृजेश प्रजापति, नरेंद्र पाल सिंह, मूलचंद्र निरंजन, विनय कुमार द्विवेदी, प्रेम नारायण पांडेय, श्याम बिहारी लाल, विनोद कटियार, सतीश द्विवेदी, सत्यपाल सिंह राठौर, रजनीकांत मणि त्रिपाठी, मानवेंद्र सिंह, आरके शर्मा के अलावा कुछ पूर्व विधायकों और बीजेपी नेताओं को भी मिले हैं.
नाम ग्लोबल, भाषा लोकल
विधायकों को मिल रही धमकी में कई दिलचस्प बातें गौर करने लायक हैं. निश्चित तौर पर पुलिस के लिए भी चुनौती होगी कि ऐसा क्यों हो रहा है?
1. सभी के सभी या तो सत्ताधारी पार्टी के मौजूदा विधायक हैं, पूर्व विधायक हैं या फिर बीजेपी के नेता. धमकी की शिकायत अभी तक किसी विपक्षी विधायक की ओर से नहीं आयी है.
2. धमकी भरा मैसेज भेजा जाने वाला नंबर अमेरिका के टेक्सास का है - +1(903) 3294240. पुलिस को जांच में ये भी पता चला है कि मैसेज के लिए अलग अलग प्रॉक्सी सर्वर इस्तेमाल किये गये हैं जिसमें पाकिस्तान का भी एड्रेस है. ये मैसेज ऐसे लैंडलाइन नंबर से भेजे हुए हैं जिस पर व्हाट्सऐप की भी सुविधा है.
3. मैसेज की भाषा से पुलिस को लग रहा है कि भेजने वाले का पूर्वांचल के ही किसी न किसी इलाके से ताल्लुक हो सकता है. सभी मैसेज एक ही नाम लेकर भेजा गया है - अली बुधेश भाई.
अब सवाल उठता है कि अली बुधेश भाई कौन है? पुलिस और जांच एजेंसियों की फेहरिस्त में अली बुधेश नाम का एक शख्स जरूर रहा है. 80 के दशक में ये माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम का करीबी रहा. बाद में बहरीन भाग गया और अपना अलग गिरोह खड़ा कर लिया.
पुलिस को अभी ये नहीं समझ पा रही थी कि वास्तव में ये मैसेज खुद अली बुधेश भेज रहा है या फिर उसके नाम पर कोई और? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये कोई और गिरोह है और सरगना का नाम संयोगवश अली बुधेश ही है. पुलिस अभी उधेड़बुन में ही है कि आज तक ने खबर ब्रेक कर नया ट्विस्ट ला दिया है.
आज तक से एक्सक्लूसिव बातचीत में अली बुधेश ने बताया है कि न तो उसने किसी विधायक से रंगदारी नहीं मांगी है, न ही किसी को धमकी भरा मैसेज दिया है. अली बुदेश इन दिनों बहरीन में हैं.
अली बुधेश के इंकार से गहराय रहस्य
अली बुधेश ने बताया, 'मैंने किसी भी विधायक को धमकी नहीं दी है. मुझे भी जानकारी मिली है कि मेरे नाम से भारत में रंगदारी मांगी जा रही है. मुझे खबर मिली है कि यूपी ही नहीं दिल्ली और मुंबई में भी इस तरह के धमकी भरे मैसेज मेरे नाम से किए जा रहे हैं. ये सब दाऊद इब्राहिम के इशारे पर छोटा शकील करवा रहा है."
कहीं गुमराह करने की कोशिश तो नहीं
ताज्जुब की बात ये है कि रंगदारी के ₹ 10-10 लाख उस सूबे के विधायकों से मांगे जा रहे हैं जहां का मुख्यमंत्री डंके की चोट पर खुलेआम कहता रहा है कि अपराधी या तो जेल जाएंगे या मारे जाएंगे. ये उसी यूपी पुलिस को चैलेंज है अखबारों की कतरन ट्वीट कर अपनी पीठ ठोकते नहीं थकती थी कि उसके खौफ से अपराधी दया की भीख मांग रहे हैं.
एनकाउंटर से ध्यान हटाने की कोशिश तो नहीं?
अपराधियों में ये कौन सा खौफ है कि वो नये शिकार को टारगेट कर रहे हैं? अच्छी बात है कि यूपी पुलिस ने जांच का काम एटीएस और एसटीएफ को सौंप दिया है. एसटीएफ के लिए ये नयी बात तो बिलकुल भी नहीं है. एसटीएफ की तो नींव ही पड़ी थी जब एक अपराधी ने किसी और नहीं बल्कि यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की ही सुपारी ले ली थी. अरसा पहले एसटीएफ ने मोबाइल फोन के सर्विलांस के जरिये श्रीप्रकाश शुक्ला को ट्रैक किया और एनकाउंटर कर डाला था. यूपी पुलिस और श्रीपकाश शुक्ला के एनकाउंटर पर बॉलीवुड की फिल्म 'सहर' भी बन चुकी है.
पुलिस के लिए ये बड़ी पहेली जरूर है, पर एक बात हजम नहीं हो रही कि रंगदारी सिर्फ बीजेपी विधायकों या नेताओं से ही क्यों मांगी जा रही है? क्या ये पुलिस को गुमराह करने की कोशिश है? क्या ये एनकाउंटर को काउंटर करने की कोई आपराधिक रणनीति है? ये सिर्फ आपराधिक साजिश है या कुछ और? ये सिर्फ यूपी की पुलिस ही नहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी चुनौती है?
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