'संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष समापन समारोह' के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर में थे. प्रणब ने संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और कई ऐसे पक्षों पर अपनी बात रखी जिसको सुनकर उनके आलोचकों और इस यात्रा का विरोध कर रहे लोगों के मुंह पर ताला जड़ गया. लगभग 30 मिनट तक दिए गए इस भाषण में प्रणब ने जहां एक तरफ राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षवाद के अहम मुद्दे को छुआ तो वहीं उन्होंने देशभक्ति और उदारवादी लोकतंत्र पर भी अपना पक्ष रखा.
भाषण में प्रणब के तेवर साफ और वो मजबूत दिख रहे थे. उन्होंने कहा कि, "मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूं. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में तिलक, टैगोर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू समेत अन्य विद्वानों को कोट करते हुए राष्ट्रवाद और देश पर अपनी राय रखी. प्रणब ने ऐसा करके राष्ट्रवाद के नाम पर संविधान का मजाक उड़ाने वाले लोगों को इस बात के साफ संकेत दिए कि एक सफल लोकतंत्र के लिए धर्म के इतर संविधान को महत्व देना चाहिए.
अपने भाषण में प्रणब ने कहा कि, धर्म कभी भारत की पहचान नहीं हो सकता. संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है." प्रणब मुखर्जी के अनुसार, "राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है. देशभक्ति का मतलब देश की प्रगति में आस्था है." भाषण में बड़ी ही प्रमुखता से मुखर्जी ने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्रवाद सार्वभौमिक दर्शन 'वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः' से निकला है.
शायद ये देश में बढ़ती हुई सहिष्णुता ही है जिसके मद्देनजर प्रणब ने कहा कि "भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है. इसमें अलग रंग, अलग भाषा, अलग पहचान है. हिन्दू, मुस्लिम,...
'संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष समापन समारोह' के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर में थे. प्रणब ने संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और कई ऐसे पक्षों पर अपनी बात रखी जिसको सुनकर उनके आलोचकों और इस यात्रा का विरोध कर रहे लोगों के मुंह पर ताला जड़ गया. लगभग 30 मिनट तक दिए गए इस भाषण में प्रणब ने जहां एक तरफ राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षवाद के अहम मुद्दे को छुआ तो वहीं उन्होंने देशभक्ति और उदारवादी लोकतंत्र पर भी अपना पक्ष रखा.
भाषण में प्रणब के तेवर साफ और वो मजबूत दिख रहे थे. उन्होंने कहा कि, "मैं यहां पर राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझाने आया हूं. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में तिलक, टैगोर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू समेत अन्य विद्वानों को कोट करते हुए राष्ट्रवाद और देश पर अपनी राय रखी. प्रणब ने ऐसा करके राष्ट्रवाद के नाम पर संविधान का मजाक उड़ाने वाले लोगों को इस बात के साफ संकेत दिए कि एक सफल लोकतंत्र के लिए धर्म के इतर संविधान को महत्व देना चाहिए.
अपने भाषण में प्रणब ने कहा कि, धर्म कभी भारत की पहचान नहीं हो सकता. संविधान में आस्था ही असली राष्ट्रवाद है." प्रणब मुखर्जी के अनुसार, "राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है. देशभक्ति का मतलब देश की प्रगति में आस्था है." भाषण में बड़ी ही प्रमुखता से मुखर्जी ने इस बात पर बल दिया कि राष्ट्रवाद सार्वभौमिक दर्शन 'वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः' से निकला है.
शायद ये देश में बढ़ती हुई सहिष्णुता ही है जिसके मद्देनजर प्रणब ने कहा कि "भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है. इसमें अलग रंग, अलग भाषा, अलग पहचान है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की वजह से यह देश बना है."
अपने भाषण में नेहरू का नाम जोड़कर जहां एक तरफ प्रणब ने एक बड़ा राजनीतिक दाव खेला तो वहीं उन्होंने उन लोगों को भी सोचने पर विवश कर दिया जो लगातार नेहरू की आलोचना में व्यस्त हैं. प्रणब ने कहा कि "भारत की आत्मा सहिष्णुता में बसती है. इसमें अलग रंग, अलग भाषा, अलग पहचान है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की वजह से यह देश बना है." इसके अलावा प्रणब ने ये भी कहा कि "धर्म, मतभेद और असिहष्णुता से भारत को परिभाषित करने का हर प्रयास देश को कमजोर बनाएगा. असहिष्णुता भारतीय पहचान को कमजोर बनाएगी."
कुल मिलाकर एक ऐसे वक़्त में जब 2019 के चुनाव नजदीक हैं और कांग्रेस ऊपर उतने के लिए संघर्ष कर रही है पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का ये भाषण कई मायनों में कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. प्रणब ने जो कहा उसको सुनकर कहना गलत नहीं है कि इस भाषण के बाद, आम लोगों के बीच लगातार धूमिल होती कांग्रेस की छवि कुछ साफ होगी और निश्चित तौर पर इस भाषण का फायदा कांग्रेस को 2019 के आम चुनावों में मिलेगा.
ये भी पढ़ें -
RSS के खिलाफ कांग्रेस की वो योजना जिस पर प्रणब दा ने पानी फेर दिया है
प्रणब मुखर्जी का टीचर से राष्ट्रपति तक का सुहाना सफर
प्रणब मुखर्जी ने तमाम चर्चाओं पर तो मुहर लगा दी, पर एक सस्पेंस रह ही गया
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.