दिल्ली के दांव पर दीदी की चाल के चर्चे सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि पूरा देश कर रहा है. गठबंधन के तार जोड़ने में लगीं पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी दिल्ली का तख़्ता पलट करने की सोच रही थीं, तभी बंगाल की सियायी बिसात पर एक-एक कर उन्हीं के मोहरे पिटने लगे. कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर सीबीआई का शिकंजा कसा तो बंगाल में 35 साल की माकपा सरकार को आंदोलन के ज़रिए उखाड़ फेंकने वाली ममता बनर्जी अपने पुराने तेवर में आ गयीं.
शारदा और रोज़वैली चिटफंड घोटालों में तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के नाम सामने आने के बाद ममता बैकफुट पर थीं. अपने नेताओं की गिरफ्तारी को राजनैतिक बदला बताकर ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रहीं ममता को चुनाव के पहले एक बड़ा मुद्दा मिल गया.
इधर राज्य में अपनी ज़मीन तलाश रही भाजपा आए दिन दीदी के किले की दीवारें कमज़ोर कर रही थी. ऐसे में राजीव कुमार प्रकरण को मुद्दा बनाकर ममता ने अपना दम दिल्ली को खूब दिखाया. महागठबंधन रूपी भानुमति के कुनबे को जोड़ने में लगीं ममता को विरोधी नेताओं का समर्थन भी खूब मिला.
एक तरफ भाजपा शारदा, नारदा, रोज़वैली घोटाले के ज़रिए ममता के दामन को दाग़दार साबित करने में लगी है, तो दूसरी ओर घोटालों को लेकर बैकफुट पर आयी ममता को भी इस घटना से लोगों में अपने प्रति सहानुभूति जगाने और आंदोलन की आग भड़काने का मौका मिल गया. हमेशा से विरोध की राजनीति करने वाली ममता ने आंदोलन के ज़रिए ही अपनी जगह राजनीति में बनायी और सत्ता में आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब ममता धरने पर बैठीं.
सीबीआई ने जो गंभीर आरोप राजीव कुमार पर लगाये हैं इससे ये तो तय है कि राजीव कुमार पर कड़ी कार्रवाई...
दिल्ली के दांव पर दीदी की चाल के चर्चे सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं बल्कि पूरा देश कर रहा है. गठबंधन के तार जोड़ने में लगीं पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी दिल्ली का तख़्ता पलट करने की सोच रही थीं, तभी बंगाल की सियायी बिसात पर एक-एक कर उन्हीं के मोहरे पिटने लगे. कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर सीबीआई का शिकंजा कसा तो बंगाल में 35 साल की माकपा सरकार को आंदोलन के ज़रिए उखाड़ फेंकने वाली ममता बनर्जी अपने पुराने तेवर में आ गयीं.
शारदा और रोज़वैली चिटफंड घोटालों में तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं के नाम सामने आने के बाद ममता बैकफुट पर थीं. अपने नेताओं की गिरफ्तारी को राजनैतिक बदला बताकर ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रहीं ममता को चुनाव के पहले एक बड़ा मुद्दा मिल गया.
इधर राज्य में अपनी ज़मीन तलाश रही भाजपा आए दिन दीदी के किले की दीवारें कमज़ोर कर रही थी. ऐसे में राजीव कुमार प्रकरण को मुद्दा बनाकर ममता ने अपना दम दिल्ली को खूब दिखाया. महागठबंधन रूपी भानुमति के कुनबे को जोड़ने में लगीं ममता को विरोधी नेताओं का समर्थन भी खूब मिला.
एक तरफ भाजपा शारदा, नारदा, रोज़वैली घोटाले के ज़रिए ममता के दामन को दाग़दार साबित करने में लगी है, तो दूसरी ओर घोटालों को लेकर बैकफुट पर आयी ममता को भी इस घटना से लोगों में अपने प्रति सहानुभूति जगाने और आंदोलन की आग भड़काने का मौका मिल गया. हमेशा से विरोध की राजनीति करने वाली ममता ने आंदोलन के ज़रिए ही अपनी जगह राजनीति में बनायी और सत्ता में आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ जब ममता धरने पर बैठीं.
सीबीआई ने जो गंभीर आरोप राजीव कुमार पर लगाये हैं इससे ये तो तय है कि राजीव कुमार पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है. राजीव कुमार शारदा और रोज़वैली घोटालों की जांच के लिए बनायी गयी एसआईटी का हिस्सा थे, जिसमें उनपर सबूतों से छेड़छाड़ करने और उन्हें मिटाने का आरोप सीबीआई ने लगाया है.
राजीव कुमार का जो भी हो, 37 हज़ार करोड़ के शारदा और रोज़नैली चिटफंड घोटालों को लेकर मझधार में फंसी ममता बनर्जी अब कुमार को नांव बनाकर धरने की पतवार के सहारे अपनी नांव तो किनारे पर लगाने की कोशिश कर रही हैं. सवाल ये भी उठने लगे हैं कि हमेशा निडर रहने वाली ममता बनर्जी ने सीबीआई के शिकंजे से डरकर तो कहीं महागठबंधन की नींव नहीं रखी?
सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार को गिरफ्तारी से तो बचा लिया लेकिन ममता के आश्रय में काफी समय से सीबीआई से बच रहे कुमार को अब सीबीआई के सवालों का जवाब देना होगा. हो सकता है कि ममता के कई राज़ों के राज़दार राजीव कुमार को जब सीबीआई के तीखे तेवर का सामना करना पड़े, ऐसा हुआ तो घोटालों के छीटें ममता या उनके करीबी नेताओं पर भी आ सकते हैं. शायद यही कारण है कि ममता अब तक कुमार को सीबीआई से बचा रही थीं. यही नहीं सवाल ये भी उठता है कि कुणाल घोष, सुदीप बंधोपाध्याय और मदन मित्रा जैसे अपनी पार्टी के नेताओं की गिरफ्तारी को कड़वा घूंट समझकर पी जाने वाली ममता बनर्जी ने भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे पुलिस कमिश्नर को बचाने के लिए धरना क्यों दिया?
चुनाव के एेन पहले घोटालों की किताब खोलकर सीबीआई के ज़रिए भाजपा ममता पर शिकंजा कसने में लगी है तो ममता भी सीबीआई कार्रवाई पर समर्थन जुटाने में लगी हैं.
अब बात भाजपा की...
लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह सहित भाजपा के आला नेता आए दिन पश्चिम बंगाल में रैली करने आ रहे हैं. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा की पकड़ कमज़ोर हुई तो पार्टी आलाकमान ने पश्चिम बंगाल पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी ताकत झोंक दी है. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन और प्रियंका की एंट्री से बाज़ी हाथ से निकलती देख भाजपा का फोकस अब 42 लोकसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल पर है.
उधर क्षेत्रीय राजनीति की धुरंधर ममता बनर्जी 34 सीटों के साथ दिल्ली का ख़्वाब देख रहीं हैं और खुद को दिल्ली के तख़्त का उम्मीदवार भी मानती हैं. पहले भी दिल्ली के ताज तक पहुंचने के लिए ममता की ज़रूरत सरकारों को पड़ चुकी है और आने वाले चुनाव में भी ममता किंगमेकर की भूमिका में आ सकती हैं.
ऐसे में ये तो साफ है कि भाजपा के लिए ममता जितनी बड़ी गले की फांस हैं, ममता के लिए भाजपा भी उतनी बड़ी चुनौती है. भाजपा भी राज्य में ध्रुवीकरण कर ममता के गढ़ में अंदर घुसती जा रही है जिसका परिणाम आने वाले लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा.
रविवार को ही ममता सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को रैली के लिए बालूरघाट में होलीकॉप्टर उतारने की अनुमति नहीं दी तो योगी को फोन पर रैली को संबोधित करना पड़ा, और रविवार का दिन बीतने के पहले ही सीबीआई की 40 सदस्यों की टीम ममता के करीबी पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर दस्तक देने पहुंच गयी.
एससी/एसटी एक्ट, राम मंदिर जैसे मुद्दों पर बैकफुट पर आयी भाजपा को घेरने के लिए ममता बनर्जी महागठबंधन के भानुमति के कुनबे को जोड़ने में लगी हैं. राज्य में तेजी से जड़ें फैला रही भाजपा से नाराज़ ममता बनर्जी ने पहले ही भाजपा की रथयात्रा पर रोग लगाई, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली में हेलीकॉप्टर उतरने की अमुमति नहीं दी और रविवार को योगी की रैली पर भी अंकुश लगा दिया.
मौजूदा परिस्थिति को देखकर कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल की राजनैतिक बिसात पर शह और मात का खेल अभी लंबा चलने वाला है. देखना ये है कि आने वाले चुनाव में ममता की दीदीगिरी चलती है या मोदी मैजिक.
वैसे पश्चिम बंगाल की बात करें तो भाजपा के पास यहां खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन बंगाल के दायरे में राज करने वाली ममता बनर्जी की पूरी पूंजी दांव पर है.
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