क्या गांधी की नीतियां गलत थीं? क्या गोडसे सही था? क्या देश हित के नाम पर अगर कोई हत्या करता है तो उसे जायज ठहराया जा सकता है? ऐसे तमाम सवालों से हम तब डीओ चार हुए थे जब राजकुमार संतोषी की मोस्ट अवेटेड फिल्म गांधी - गोडसे एक युद्ध का टीजर आया था. सवाल अब और गहरे हैं. वजह है फिल्म का ट्रेलर. संतोषी की गांधी-गोडसे एक युद्ध भले ही 26 जनवरी 2023 को रिलीज हो रही हो. मगर ट्रेलर ने साफ़ कर दिया है कि अपनी साफगोई के कारण फिल्म रिलीज के बाद हिंदू - मुस्लिम, कांग्रेस-भाजपा-संघ सभी की भावनाओं को थोड़ाबहुत आहत करेगी. साथ ही फिल्म के जरिये हमें ये भी पता चलेगा कि अगर गोडसे ने गांधी को गोली मारी तो घटना क्षणिक या आवेश के नाते नहीं हुई. गांधी की हत्या के लिए गोडसे के अपने तर्क थे. जिनपर यदि विचार किया जाए तो जिस तरह गांधी सही हैं. वैसे ही उन्हें मारने वाला गोडसे भी अपनी कुछ बातों को लेकर सही था और उसके सच को भले ही छुपा दिया गया हो लेकिन उन्हें ख़ारिज किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता.
फिल्म का ट्रेलर दर्शकों को गांधी और गोडसे के बीच चल रहे विचारधाराओं के युद्ध की एक झलक देता है. साथ ही ये जिज्ञासा भी पैदा करता है कि इस युद्ध में जीत आखिर किस पक्ष की होती है. गांधी-गोडसे एक युद्ध एक काल्पनिक फिल्म है, जो गांधी को नाथूराम गोडसे के आमने-सामने लाती है. यह फिल्म इस आधार पर आधारित है कि अगर गांधी हत्याकांड में बच जाते और नाथूराम गोडसे के साथ चर्चा करते तो क्या होता.
ट्रेलर से साफ़ है गांधी और गोडसे की इस विरोधाभासी...
क्या गांधी की नीतियां गलत थीं? क्या गोडसे सही था? क्या देश हित के नाम पर अगर कोई हत्या करता है तो उसे जायज ठहराया जा सकता है? ऐसे तमाम सवालों से हम तब डीओ चार हुए थे जब राजकुमार संतोषी की मोस्ट अवेटेड फिल्म गांधी - गोडसे एक युद्ध का टीजर आया था. सवाल अब और गहरे हैं. वजह है फिल्म का ट्रेलर. संतोषी की गांधी-गोडसे एक युद्ध भले ही 26 जनवरी 2023 को रिलीज हो रही हो. मगर ट्रेलर ने साफ़ कर दिया है कि अपनी साफगोई के कारण फिल्म रिलीज के बाद हिंदू - मुस्लिम, कांग्रेस-भाजपा-संघ सभी की भावनाओं को थोड़ाबहुत आहत करेगी. साथ ही फिल्म के जरिये हमें ये भी पता चलेगा कि अगर गोडसे ने गांधी को गोली मारी तो घटना क्षणिक या आवेश के नाते नहीं हुई. गांधी की हत्या के लिए गोडसे के अपने तर्क थे. जिनपर यदि विचार किया जाए तो जिस तरह गांधी सही हैं. वैसे ही उन्हें मारने वाला गोडसे भी अपनी कुछ बातों को लेकर सही था और उसके सच को भले ही छुपा दिया गया हो लेकिन उन्हें ख़ारिज किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता.
फिल्म का ट्रेलर दर्शकों को गांधी और गोडसे के बीच चल रहे विचारधाराओं के युद्ध की एक झलक देता है. साथ ही ये जिज्ञासा भी पैदा करता है कि इस युद्ध में जीत आखिर किस पक्ष की होती है. गांधी-गोडसे एक युद्ध एक काल्पनिक फिल्म है, जो गांधी को नाथूराम गोडसे के आमने-सामने लाती है. यह फिल्म इस आधार पर आधारित है कि अगर गांधी हत्याकांड में बच जाते और नाथूराम गोडसे के साथ चर्चा करते तो क्या होता.
ट्रेलर से साफ़ है गांधी और गोडसे की इस विरोधाभासी दुनिया में उतरने के साथ दर्शकों को आजादी के बाद की राजनीति की दुनिया भी देखने को मिलेगी. आज वक़्त एजेंडे का है. अपनी विचारधारा को किसी दूसरे पर थोपने का है. अपने को सही दिखाने और अपनी बात मनवाने का है. ऐसे में जब हम राजकुमार संतोषी की इस अपकमिंग फिल्म के ट्रेलर को देखते हैं तो ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि बहुत दिन बाद ऐसा हुआ है जब बॉलीवुड के निर्माता निर्देशकों ने एजेंडे से ऊपर कहानी को तरजीह दी और फिर जो निकलकर आया उसपर बतौर दर्शक पैसा खर्च करना बनता है.
फिल्म क्योंकि गांधी और गोडसे के ऊपर है. तो ट्रेलर में कहीं भी हमें वो बनावटीपन नहीं लगता. न ही ये महसूस होता है कि स्क्रिप्ट राइटर असगर वजाहत और राजकुमार संतोषी की कलम ने गांधी को महान दिखाने की कोशिश की है. वहीं जब हम फिल्म में गोडसे को देखते हैं तो साफ़ पता चलता है कि उसके लिए किसी भी चीज से पहले देश है. वो लोगों द्वारा गांधी को महान दर्शाए जाने से नाराज है. जो इस बात का पक्षधर है कि यदि बंटवारा हुआ और उसके बाद जो दंगे भड़के और उसमें भारत में रह रहे जो हिंदू और सिख मरे उनकी मौत की जिम्मेदार गांधी की नीतियां हैं.
ध्यान रहे जैसी राजनीति हिंदुस्तान में होती है. उसमें सदैव ही तुष्टिकरण एक प्रभावी कारक रहता है. ये तुष्टिकरण ही था जिसके चलते ये तो कहा गया कि नाथूराम गोडसे ने गांधी की हत्या की लेकिन अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण ये रहा कि कभी इस बात पर खुलकर चर्चा नहीं हुई कि अगर नाथूराम गोडसे ने गांधी को गोली मारी तो क्यों मारी. देश की राजनीति और तब के राजनेताओं ने गोडसे को एक हत्यारे की तरह, एक विलेन की तरह पेश किया. मगर अब जबकि हम राजकुमार संतोषी की आने वाले इस फिल्म की झलकियां ट्रेलर में देखते हैं तो लगता है कि निर्माता निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर ने गोडसे को लेकर कई भ्रम तोड़ दिए हैं.
फिल्म आने में बस कुछ ही दिन बचे हैं. दर्शक इसे हिट या फ्लॉप करते हैं इसका भी फैसला जल्द हो जाएगा लेकिन जिस बात पर बात होनी चाहिए वो ये कि बहुत दिन बाद किसी ने सच को सच की तरह दिखाने की ईमानदार कोशिश की जिसकी सराहना होनी ही चाहिए.
बाकी जिक्र अगर गोडसे का हो तो इतना तो साफ़ है कि वो गोडसे जिसे अब तक छिपा कर रखा गया था वो इस फिल्म के जरिये बाहर लाया गया है. जब हम फिल्म देखेंगे तो हमें इस बात का भी एहसास हो जाएगा कि किसी अन्य नागरिक की तरह देश और गांधी को लेकर उसके भी अपने पक्ष थे.
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