भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय रहे गौतम अडानी अब ऑस्ट्रेलियाई राजनीति का मुद्दा बन गए हैं. भारत में तो सिर्फ अडानी और मोदी की नजदीकियों पर ही बात होती रही है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में बाकायदा अडानी और उनके प्रोजेक्ट को लेकर पोल करवाया गया है. बात यहां तक बढ़ गई है कि ऑस्ट्रेलिया में गौतम अडानी की कोयला खदानों का आवंटन निरस्त करने जैसी मांग भी उठने लगी है. ऑस्ट्रेलिया में 18 मई 2019 को वोटिंग होनी है और काफी हद तक Adani Coal Mine उस वोटिंग का रुझान तय कर सकती है. कारण ये है कि इस कोल माइन के चलते ऑस्ट्रेलिया की जनता और वहां के नेताओं की राय भी बंट गई है.
भारतीय अरबपति बिज़नेसमैन गौतम अडानी का उत्तरी क्वींसलैंड का कार्माइकल कोलमाइन प्रोजेक्ट, 18 मई को होने वाले ऑस्ट्रेलियाई चुनाव में लोगों के विरोध का विषय बन गया है. ऑस्ट्रेलियाई संसद में भी इस मुद्दे पर बहस हो चुकी है. एक धड़ा मानता है कि इससे आर्थिक विकास होगा, निवेश बढ़ेगा, नौकरियां मिलेंगी और दूसरा धड़ा ये मानता है कि इससे जलवायु परिवर्तन होगा, प्रदूषण बढ़ेगा.
ऑस्ट्रेलिया के सात संभावित निर्दलीय उम्मीदवारों ने एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किया है. Australian Conservation Foundation के तहत इन सदस्यों ने ये वादा किया है कि अगर वो सांसद चुने गए तो जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कई कदम उठाएंगे. मौजूदा कंजर्वेटिव लिबरल नेशनल पार्टियों के गठबंधन ने हमेशा कोयला खनन और निर्यात का समर्थन किया है और वो इस बार चुनाव में पिछड़ रहे हैं.
1 दशक से पर्यावरण रहा है ऑस्ट्रेलिया में चुनाव का अहम मुद्दा-
समर्थन और विरोध दोनों के बीच घिरे अडानी-
पहले ऐसा माना जा रहा था कि गौतम अडानी को ऑस्ट्रेलियाई सरकार का समर्थन मिल गया है. अप्रैल में अडानी के ग्राउंडवॉटर प्लान को समर्थन मिला था पर उसके बाद चुनावों की घोषणा हो गई. क्वीन्सलैंड सरकार ने इस प्लान को एक बार फिर से पुनर्विचार के लिए भेज दिया. क्वीन्सलैंड में ही कोयला खदाने मौजूद हैं. अडानी ग्रुप...
भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय रहे गौतम अडानी अब ऑस्ट्रेलियाई राजनीति का मुद्दा बन गए हैं. भारत में तो सिर्फ अडानी और मोदी की नजदीकियों पर ही बात होती रही है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में बाकायदा अडानी और उनके प्रोजेक्ट को लेकर पोल करवाया गया है. बात यहां तक बढ़ गई है कि ऑस्ट्रेलिया में गौतम अडानी की कोयला खदानों का आवंटन निरस्त करने जैसी मांग भी उठने लगी है. ऑस्ट्रेलिया में 18 मई 2019 को वोटिंग होनी है और काफी हद तक Adani Coal Mine उस वोटिंग का रुझान तय कर सकती है. कारण ये है कि इस कोल माइन के चलते ऑस्ट्रेलिया की जनता और वहां के नेताओं की राय भी बंट गई है.
भारतीय अरबपति बिज़नेसमैन गौतम अडानी का उत्तरी क्वींसलैंड का कार्माइकल कोलमाइन प्रोजेक्ट, 18 मई को होने वाले ऑस्ट्रेलियाई चुनाव में लोगों के विरोध का विषय बन गया है. ऑस्ट्रेलियाई संसद में भी इस मुद्दे पर बहस हो चुकी है. एक धड़ा मानता है कि इससे आर्थिक विकास होगा, निवेश बढ़ेगा, नौकरियां मिलेंगी और दूसरा धड़ा ये मानता है कि इससे जलवायु परिवर्तन होगा, प्रदूषण बढ़ेगा.
ऑस्ट्रेलिया के सात संभावित निर्दलीय उम्मीदवारों ने एक अहम समझौते पर हस्ताक्षर किया है. Australian Conservation Foundation के तहत इन सदस्यों ने ये वादा किया है कि अगर वो सांसद चुने गए तो जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए कई कदम उठाएंगे. मौजूदा कंजर्वेटिव लिबरल नेशनल पार्टियों के गठबंधन ने हमेशा कोयला खनन और निर्यात का समर्थन किया है और वो इस बार चुनाव में पिछड़ रहे हैं.
1 दशक से पर्यावरण रहा है ऑस्ट्रेलिया में चुनाव का अहम मुद्दा-
समर्थन और विरोध दोनों के बीच घिरे अडानी-
पहले ऐसा माना जा रहा था कि गौतम अडानी को ऑस्ट्रेलियाई सरकार का समर्थन मिल गया है. अप्रैल में अडानी के ग्राउंडवॉटर प्लान को समर्थन मिला था पर उसके बाद चुनावों की घोषणा हो गई. क्वीन्सलैंड सरकार ने इस प्लान को एक बार फिर से पुनर्विचार के लिए भेज दिया. क्वीन्सलैंड में ही कोयला खदाने मौजूद हैं. अडानी ग्रुप और क्वीन्सलैंड सरकार की तन गई, लेकिन क्वीन्सलैंड ही ऑस्ट्रेलिया का एक ऐसा इलाका है जहां सबसे ज्यादा लोग अडानी ग्रुप के समर्थन में हैं.
ऑस्ट्रेलिया में एक वोट सर्वे चलाया गया. इसका टाइटल था "The Adani coal mine in Queensland's Galilee Basin should be built" (क्या अडानी कोयला खदान को क्वीन्सलैंड के गैली बेसिन में बनने देना चाहिए.). इसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं.
क्वीन्सलैंड के सुदूर इलाकों में ही इन कोयला खदानों का सपोर्ट सबसे ज्यादा है. यानी वहां जहां के लोगों को इस खदान के कारण नौकरियां मिलने वाली हैं. सुदूर क्वीन्सलैंड में 48% लोग मानते हैं कि कोयला खदान बननी चाहिए और 38 प्रतिशत मानते हैं कि नहीं. यही सपोर्ट मेट्रो इलाकों में 26% गिर जाता है और उत्तरी क्वीन्सलैंड में 30 प्रतिशत रहता है.
अगर यहीं पूरे ऑस्ट्रेलिया की बात की जाए तो अडानी ग्रुप को नकारा जा रहा है. 61% लोग मानते हैं कि अडानी कोल माइन को नहीं बनना चाहिए. ये सर्वे 119,682 लोगों के मतों के आधार पर किया गया. ऐसे में सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों ने इस कोयला खदान को ग्रीन सिग्नल दिया.
ये प्रोजेक्ट क्लाइमेट चेंज एक्टिविस्ट के बीच बहुत चर्चित रहा है और इसका विरोध स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक किया गया, लेकिन वहां की सत्ताधीन पार्टी और इस प्रोजेक्ट के समर्थकों के हिसाब से ये आर्थिक विकास लाएगा और इससे नौकरियां बढ़ेंगी.
ये मल्टी बिलियन डॉलर प्रोजेक्ट है और ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है.
क्यों अडानी के समर्थन में हैं ऑस्ट्रेलियाई नेता-
फरवरी, 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया में कोल माइनिंग इंडस्ट्री में 52,900 लोग काम करते हैं. 2018 में ऑस्ट्रेलिया ने 440 मिलियन टन काले कोयले का उत्पादन किया है. इसमें धातु कोयला (metallurgical coal) करीब 40 प्रतिशत था जबकि थर्मल कोयला 60 प्रतिशत.
2017-18 के दौरान कोल माइनिंग इंडस्ट्री ऑस्ट्रेलियन जीडीपी के कुल हिस्से का करीब 2.2 प्रतिशत था. अब एक तरफ ग्रामीण वोटर हैं जिन्हें कोयला खदान से फायदा नजर आ रहा है और यकीनन इतने बड़े प्रोजेक्ट का आर्थिक फायदा तो होगा ही, दूसरी तरफ शहरी वोटर हैं जिन्हें ग्रीन हाउस गैस के खिलाफ सरकार चाहिए और इसलिए कोयला माइन का सपोर्ट नहीं किया जा सकता. जो नेता कोयला माइन के पूरे विपक्ष में रहे हैं उन्हें शहरी लोगों का सपोर्ट मिल रहा है.
बड़ी पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं. हालांकि, लेबर पार्टी के नेता कभी इसके पक्ष में कभी विपक्ष में खड़े दिखते हैं. विज्ञान की बातें तो होती हैं, लेकिन पर्यावरण की भी. अब कंजर्वेटिव लिबरल पार्टी और नेशनलिस्ट पार्टी को अभी भी अपना पक्ष साफ नजर नहीं आ रहा.
वहीं अल्पसंख्यक दल, जिनमें पाउलिन हैनसन की दक्षिणपंथी वन नेशन पार्टी हो या फिर अरबपति क्लाइव पाल्मर की यूनाइटेड ऑस्ट्रेलियाई पार्टी, ने कारमाइकेल प्रोजेक्ट के पक्ष में समर्थन जताया है. क्लाइव पाल्मर ख़ुद लौह अयस्क, निकेल और कोयला खनन के कारोबार से जुड़े हैं.
वहीं कई नेता ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ की बात भी कर रहे हैं क्योंकि इस कोयला माइन से ऑस्ट्रेलिया की जलवायु को बहुत नुकसान होगा और ग्रेट बैरियर रीफ को भी नुकसान होगा.
अब अगर अडानी ग्रुप इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाता है तो उसे ऑस्ट्रेलियाई सरकार के कई नियमों को मानना होगा, जैसे क्वीन्सलैंड सरकार का Black-throated Finch Management Plan (पक्षी को बचाने का प्लान) मानना होगा और इसके हिसाब से काम करना होगा.
2010 में अडानी ग्रुप ने कार्माइकल माइन का अधिग्रहण किया था और क्वीन्सलैंड सरकार को 3 बिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश दिया था. उस समय अडानी ग्रुप दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खदान बनाना चाहता था, लेकिन अब मामला अटक गया है.
इस प्रोजेक्ट में 11.4 बिलियन डॉलर के मेगा माइन रेल प्रोजेक्ट के साथ 60 मिलियन टन सालाना की कैपेसिटी से कोयला खनन का प्लान था. अब इसकी कैपेसिटी 2 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट के साथ 10 मिलियन टन कोयला सालाना की कर दी गई है. लाख कोशिशों के बावजूद अडानी को ऑस्ट्रेलियन सरकार से या वहां के बैंक से न तो फंडिंग मिली है और न ही लोन. 2 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ अडानी ग्रुप ने खुद ही शुरुआत की है और अब वो सब खतरे में पड़ गया है.
कई लोगों का ये भी कहना है कि ये प्रोजेक्ट आर्थिक सुविधाएं उस तरह से नहीं लाएगा जैसा बताया जा रहा है. niversity of Queensland के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जॉन क्विगिन का कहना है कि चूंकि वैश्विक स्तर पर कोयले की मांग गिर रही है इसलिए इस प्रोजेक्ट से उतनी उम्मीद न की जाए और अडानी ग्रुप को ये मालूम है. 2010 में जब ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ था तब बात दूसरी थी और अब बदल गई है.
अडानी ने ऑस्ट्रेलिया की पार्टियों को भी लंबा-चौड़ा डोनेशन दिया है जो चुनाव में मदद कर रहा है साथ ही अडानी के समर्थन में कुछ नेताओं को भी ले आया है. Australian Conservation Foundation के डेटा के मुताबिक अडानी ग्रुप ने $60,800 (करीब 30 लाख रुपए) का डोनेशन 2016 से लेकर अब तक अलग-अलग पार्टियों को दिया है.
इस सबसे तो लग रहा है जैसे अडानी ग्रुप भारत की न सही, लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सरकार बनाने या गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
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