चूंकि 'वो', भले ही अच्छे खासे वित्तीय अनुभव के साथ बेहतर जानकारी और समझ बूझ रखते हों, सरकारी आदमी है तो पोलिटिकल तंज़ क्वालीफाई कर गए. दरअसल 'चाय के प्याले में तूफ़ान भर' वाला शगूफा उन्होंने ही छोड़ा था. कांग्रेस के मूर्धन्य नेता जयराम रमेश और अनेकों एस्पिरेंट्स नस्ल के नेता मसलन पवन खेड़ा, सुप्रिया श्रीनेत आदि तो रियल टाइम में रियलिटी बाहर लाने के लिए माहिर माने जाते हैं. सो जयराम रमेश ने लीड लेते हुए ट्वीट कर ही दिया इस आशय का कि चाय का प्याला खुद पीएम हैं और अडानी एपिसोड रूपी तूफ़ान पीएम के लिए है. तो स्पष्ट हुआ ना रियल मकसद क्या है ?
एक और बात भी स्पष्ट हुई विपक्ष की, अन्य पार्टियों के सुर या तो उतने मुखर नहीं है या पोस्ट भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस पूरे जोशखरोश में हैं अपने यशस्वी, मनस्वी, तपस्वी (किसी कांग्रेसी प्रवक्ता ने ही डिफाइन किया है) नेता की अगुआई में. पार्टी को लग रहा है कि उनके अडानी अंबानी नैरेटिव पे मोहर जो लगा दी है हिंडनबर्ग ने और यही सोच लोगों को नहीं भा रही है. एक कॉमन सेंस जो है, वो है कि राजनीतिक पार्टी हितों के टकराव यानी कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट के मसले पर दोगलापन क्यों बरत रही हैं ?
एक विदेशी शॉर्ट सेलर एक्टिविस्ट कंपनी की रिपोर्ट का मैसिव इम्पैक्ट हुआ ही इसलिए है कि देश के विपक्ष ने विरोध की राजनीति के स्वार्थवश इसे गॉस्पेल ट्रुथ मानने का ढोंग किया है. ढोंग इसलिए कह रहे हैं कि जहाँ उनके स्वयं के हित सधते हैं अडानी से मसलन राजस्थान में, छत्तीसगढ़ में , महारष्ट्र में या फिर केरल में, अडानी आदर्श 'बिजनेसमैन' है लेकिन अन्यथा अडानी सत्ता के मित्र हैं, पीएम लिंक्ड...
चूंकि 'वो', भले ही अच्छे खासे वित्तीय अनुभव के साथ बेहतर जानकारी और समझ बूझ रखते हों, सरकारी आदमी है तो पोलिटिकल तंज़ क्वालीफाई कर गए. दरअसल 'चाय के प्याले में तूफ़ान भर' वाला शगूफा उन्होंने ही छोड़ा था. कांग्रेस के मूर्धन्य नेता जयराम रमेश और अनेकों एस्पिरेंट्स नस्ल के नेता मसलन पवन खेड़ा, सुप्रिया श्रीनेत आदि तो रियल टाइम में रियलिटी बाहर लाने के लिए माहिर माने जाते हैं. सो जयराम रमेश ने लीड लेते हुए ट्वीट कर ही दिया इस आशय का कि चाय का प्याला खुद पीएम हैं और अडानी एपिसोड रूपी तूफ़ान पीएम के लिए है. तो स्पष्ट हुआ ना रियल मकसद क्या है ?
एक और बात भी स्पष्ट हुई विपक्ष की, अन्य पार्टियों के सुर या तो उतने मुखर नहीं है या पोस्ट भारत जोड़ो यात्रा कांग्रेस पूरे जोशखरोश में हैं अपने यशस्वी, मनस्वी, तपस्वी (किसी कांग्रेसी प्रवक्ता ने ही डिफाइन किया है) नेता की अगुआई में. पार्टी को लग रहा है कि उनके अडानी अंबानी नैरेटिव पे मोहर जो लगा दी है हिंडनबर्ग ने और यही सोच लोगों को नहीं भा रही है. एक कॉमन सेंस जो है, वो है कि राजनीतिक पार्टी हितों के टकराव यानी कनफ्लिक्ट ऑफ़ इंटरेस्ट के मसले पर दोगलापन क्यों बरत रही हैं ?
एक विदेशी शॉर्ट सेलर एक्टिविस्ट कंपनी की रिपोर्ट का मैसिव इम्पैक्ट हुआ ही इसलिए है कि देश के विपक्ष ने विरोध की राजनीति के स्वार्थवश इसे गॉस्पेल ट्रुथ मानने का ढोंग किया है. ढोंग इसलिए कह रहे हैं कि जहाँ उनके स्वयं के हित सधते हैं अडानी से मसलन राजस्थान में, छत्तीसगढ़ में , महारष्ट्र में या फिर केरल में, अडानी आदर्श 'बिजनेसमैन' है लेकिन अन्यथा अडानी सत्ता के मित्र हैं, पीएम लिंक्ड अडानी इश्यू है.
आज भी एक मालगाड़ी कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ से अडानी एंटरप्राइजेज द्वारा खनन किए गए हजारों टन कोयले को कांग्रेस शासित राजस्थान ले गई, जहां अडानी एंटरप्राइजेज बिजली पैदा करने के लिए उस कोयले का उपयोग करेगा। जनता अवाक है कहीं अडानी मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर का आदर्श नमूना तो नहीं हैं ! अब बात करें "वो" की जो हैं भारत सरकार के फाइनेंस सेक्रेटरी टीवी सोमनाथन.
उन्होंने व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण से, अडानी इश्यू को गैर-मुद्दा बताते हुए कहा था कि जमाकर्ताओं या पॉलिसीधारकों के लिए बिल्कुल कोई चिंता नहीं है क्योंकि अडानी फर्मों के लिए एसबीआई और एलआईसी का एक्सपोजर नितांत ही छोटा है. किसी एक कंपनी की हिस्सेदारी ऐसी नहीं है कि वृहद स्तर पर कोई प्रभाव पैदा करे और इसलिए इस लिहाज से बिल्कुल चिंता की बात नहीं है. फिर एलआईसी और एसबीआई भी तथ्यों के साथ अडानी ग्रुप के साथ अपने एक्सपोज़र पर खुलासा कर चुकी है.
संस्थाएं भी मसलन आरबीआई, सेबी भी एक्शन मोड में आ गई हैं. सेबी ने 'देरी' के आरोप पर भी सफाई देते हुए स्पष्ट किया कि एक सटीक व्यवस्था है जिसमें किसी भी शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव होने पर कुछ शर्तों के तहत अपने आप सक्रिय हो जाती है. सभी विशिष्ट मामलों के संज्ञान में आने के बाद नियामक मौजूदा नीतियों के अनुसार उनकी तथ्य जांच करता है और उचित कार्रवाई करता है.
देखना दिलचस्प होगा कल यानी सोमवार को क्या माहौल बनता है ? एक तरफ सेंसेक्स खुलेगा, क्या करवट लेगा जबकि शुक्रवार का दिन तो अडानी के किये, इन्वेस्टर्स के लिए राहत भरा रहा था ; अडानी इंटरप्राइजेज के शेयरों ने न्यूनतम 1017.45 सुबह देखा और शाम होते होते चढ़कर 1531.25 पर पहुंच गए. क्या यही ट्रेंड जारी रहेगा ? विश जनहित में जारी रहे ! क्या कांग्रेस एलआईसी और एसबीआई के स्पष्टीकरण और संस्थाओं की सक्रियता के बावजूद प्रस्तावित धरना प्रदर्शन करेगी ?
वैसे अब फिलहाल तो कोई औचित्य नहीं है, फिर भी करती है तो जन हित की अनदेखी इस लिहाज से होगी कि अनर्गल प्रलापों से एलआईसी और एसबीआई की प्रतिष्ठा पर ही आंच आती प्रतीत होगी जबकि तथ्य बिल्कुल विपरीत है. हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर तमाम उचित अनुचित बातें हुई, हो रही हैं और शायद कुछ समय तक होती भी रहेंगी चूंकि विपक्ष जेपीसी की मांग पर अड़ा हुआ है और सत्ता ऐसा करेगी नहीं क्यंकि जब भी जेपीसी गठित हुई हैं, सत्ता धराशायी हुई है भले ही कमिटी आरोपों को अंततःनकार ही क्यों ना दें.
लेकिन तथ्यों के आलोक में देखें तो अडानी वापसी करेंगे ही क्योंकि बाजार मूल्य में 120 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट के बावजूद अदानी समूह की कंपनियों का मूल्यांकन 100 अरब डॉलर से अधिक है. अब भी अदानी बहुत अमीर हैं और उनके समूह का आकार बहुत बड़ा है. सवाल यह है कि अब आगे क्या? हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि समूह 85 फीसदी तक अधिमूल्यित था, इसलिए शेयर की कीमतों में औसतन 60 फीसदी तक की कमी आयी है. लेकिन अब भी समूह की कंपनियों का मूल्यांकन काफी अधिक है.
उदाहरण के लिए अदानी पावर का मूल्यांकन उसकी बुक वैल्यू का 14 गुणा है, अदानी ग्रीन एनर्जी का मूल्यांकन उसकी बुक वैल्यू का 56 गुणा है. हां ,हाल ही में अधिग्रहीत अंबुजा सीमेंट की बुक वैल्यू जरूर सामान्य है. विगत मार्च में अदाणी समूह की सात मूलभूत सूचीबद्ध कंपनियों का कर पूर्व लाभ 17 हजार करोड़ रुपये था, आंतरिक नगद प्रवाह में कोई कमी नहीं है. भले ही क्रेडिट रेटिंग में गिरावट आ जाए, ग्रुप का मौजूदा विदेशी कर्ज बेहद ही सस्ते दर पर है.
हां, बेशक कोई भी नया बॉन्ड महंगा होगा, नया बैंक ऋण भी आसानी से नहीं मिलेगा. सो जिच यही है कि अडानी के पास निवेश करने के लिए नकदी उपलब्ध नहीं है. परंतु अभी भी वह देश के दूसरे सबसे अमीर व्यक्ति है और उनका ग्रुप सबसे बड़े कारोबारी समूहों में से एक है ; सो गौतम अडानी का अंत तो कतई नहीं है. हां, अडानी के लोगों को बड़बोलेपन से बचना होगा, अभिमान छोड़कर लो प्रोफइल रहना होगा.
ग्रुप के टॉप एग्जीक्यूटिव का हिन्डनबर्ग की तुलना जनरल डायर से करना अतिशयोक्ति थी. ठीक है कि जलियांवाला बाग में आदेश केवल एक अंग्रेज ने दिया था और भारतीयों पर भारतीय ही गोलियां बरसाने लगे लेकिन वो कालखंड स्वाधीनता संग्राम का था. आज इस ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में और किसी ने नहीं तो कम से कम बिजनेस ने तो 'वसुधैव कुटुंबकम' की अवधारणा को आत्मसात कर ही लिया है. तो आप हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को सिर्फ इसलिए धत्ता नहीं बता सकते कि कम्पनी विदेशी है.
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